जींद(प्रैसवार्ता) सर्दी का मौसम शुरू होते ही गांवों में किसान कोल्हू लगाकर गन्ने से देशी गुड़ तैयार करते थे, लेकिन बदलते हुए परिवेश में अब न तो किसी गांव में कोल्हू चलता दिखाई देता है और न ही कोल्हू में बनने वाले गुड़ की महक से वातवारण में मिठास घुलती है। गन्ने की फसल कम होने के कारण हरियाणा का देशी गुड़ अब बहुत कम जगहों पर ही मिलता है। उत्तर प्रदेश से व्यापारी गुड़ लाकर हरियाणा में बेचते हैं। उसका स्वाद इतना बढिय़ा नहीं होता है। जितना की गांव के कोल्हू के गुड़ का अच्छा स्वाद होता था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि कोल्हू के गुड़ की बिक्री करके किसान अपने परिवार का साल भर का खर्चा चलाता था। क्योंकि गुड़ को ही नकदी की फसल माना जाता था। गेहूं, चना समेत रबी की फसलों की पैदावार तो इतनी की जाती थी कि घर के खाने-पीने का काम चल जाए। लेकिन गुड़ ही किसान की आर्थिक व्यवस्था का आधार होता था। जिस किसान के पास ज्यादा गुड़ वह उतना ही आर्थिक रूप से बड़ा जमीदार माना जाता था। करीब दस-पंद्रह साल पहले तक सर्दी का मौसम शुरू होते ही गांवों की बणियों में कोल्हू लगने शुरू हो जाते थे। अगर कोई बड़ा जमीदार होता तो वह अपना अलग से कोल्हू चलाता था, नहीं तो तीन-चार या इससे अधिक किसान मिलकर अपना सांझे का कोल्हू चलाते थे। कोल्हू का कार्य एक भाइचारे का प्रतीक माना जाता था। हरियाणा एक भी कहावत थी कि सांझे के कोल्हू जिस्सा स्वाद कोन्या। यानी की कोई काम अगर मिल जुल कर किया जाए तो उसको करने में काफी आसानी होती थी। संयुक्त परिवार कम होते गए और कोल्हू का स्थान सहकारी चीनी मिलों ने ले लिया। लेकिन अब तो चीनी मिलों के सामने भी पिराई सत्र कब शुरू करें और कब खत्म करने की नौबत पिछले कई साल से खड़ी है। किसानों ने गन्ने की अपेक्षा धान व गेहूं की बिजाई को ज्यादा बढ़ावा दिया है। कुछ साल पहले जींद चीनी मिल के तहत आने वाले एरिया में गन्ने का रकबा 70-80 हजार हेक्टेयर में होता था। इतने रकबा होने के कारण शूगर मिल भी अपना पिराई सत्र पूरा आसानी से पूरा कर लेता था और किसान भी अपने कोल्हू में गुड़, शक्कर बनाते थे, लेकिन गन्ने के रकबे में कमी आ रही है। वर्ष 2006-07 में जींद में गन्ने का रकबा 14333, वर्ष 2007-08 में 17194, वर्ष 2008-09 में 5133 हेक्टेयर में गन्ने की बिजाई हुई थी।
कोल्हू चलाने को संयुक्त परिवार जरूरी:गांव हैबतपुर के धर्मचंद, बीबीपुर के रणधीर सिंह, रायचंदवाला के होशियार सिंह जैसे बुजुर्ग किसान कहते हैं कि कोल्हू चलाने के लिए संयुक्त परिवार की आवश्यकता होती है। क्योंकि कोल्हू में कई प्रकार के कार्य करने होते हैं। संयुक्त परिवार न रहने के कारण जो किसान गन्ना की फसल पैदा भी करता है वह चीनी मिल में गन्ना डालता है। किसानों ने यह भी कहा कि अब तो गन्ने की और किसानों का रुझान वैसे भी नहीं रहा है। क्योंकि गन्ना फसल से साल में एक बार आदमनी होती है, जबकि अन्य फसलों से साल में दो बार आमदनी हो जाती है।
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