आज के मानव का जीवन कार्य व्यस्तता, दौड़-धूप, प्रतिस्पर्धा और आपाधापी का पर्याय बन चुका है। आराम और शांति के क्षण विरले ही उपलब्ध हो पाते हैं। इसी व्यस्त किन्तु आराम परस्त जीवन की देन है उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, तनाव, मोटापा तथा अन्य बीमारियां। कैसा हो यदि इन सब बीमारियों के इलाज के लिए दवाइयों के स्थान पर अथवा उनके साथ-साथ नृत्य और संगीत का प्रयोग किया जाए? निश्चय ही नृत्य और संगीत का दवा के रूप में प्रयोग हम सभी को भाएगा। पश्चिमी देशों में लोग शरीर को हल्का-फुल्का बनाए रखने के लिए कई-कई घंटों नृत्य का अभ्यास करते हैं। शरीर को छरहरा बनाए रखने की यह पद्धति भूतपूर्व सोवियत संघ के गणराज्यों में बहुत ही प्रसिद्ध है। इसके लिए संगीत की सुर-ताल और लहरियों के साथ-साथ लोग तालाब में तैरने, साइकिल चलाने, लंबे समय तक दौडऩे आदि का अभ्यास करते हैं। चूंकि इस प्रकार के व्यायामों के लिए शरीर को अधिक मात्रा में आक्सीजन की जरूरत होती है इसलिए इस प्रकार के व्यायामों को वातापेक्षी व्यायाम की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार के व्यायामों के लिए वातावरण का सृजन संगीत द्वारा किया जाता है जो हर व्यक्ति को उसकी क्षमतानुसार व्यायाम करने के लिए उत्साहित करता है। इससे प्राणवायु शरीर के प्रत्येक अंग की कोशिकाओं में पहुुंचकर उनको साफ कर देती है, जिससे शरीर में चुस्ती और ताजगी का अनुभव होता है। यह भी जरूरी है कि वातपेक्षी व्यायाम करते समय चेहरे पर मुस्कान हो। मुस्कान चेहरे का व्यायाम है। दूसरी ओर हंसने से हमारे भीतर ऐसे हारमोन स्रावित होते हैं जो हमें स्वस्थ बनाए रखते हैं। चेहरे पर यह मुस्कान आती है मनचाहे संगीत से। इस प्रकार के व्यायाम में कोई नया आयाम नहीं है। इसमें शरीर को मोडऩा, बैठना, कूदना, बाहों को आगे-पीछे मोडऩा और शरीर को मोडऩा ही शामिल है। इसे करने के लिए जरूरी नहीं कि इन्हें पूर्वा नियम-कानूनों के साथ किया जाए। उन्मुक्त ढंग से किया गया नृत्य भी फायदेमंद होता है। हृदय की भावनाओं तथा संवेगों को प्रकट करने का माध्यम संगीत है। संगीत सुनना तथा उसका अभ्यास करना दोनों ही तनाव से ग्रसित मानव की शिराओं में शिथिलता प्रदान करता है। यों भी संगीत में डूबा व्यक्ति चाहे कुछ ही समय के लिए ही सही अपने दु:ख-विशाद को भूल जाता है जिससे मस्तिष्क तथा शरीर को तनाव से मुक्ति मिलती है, आराम व सुकून मिलता है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि संगीत मानसिक, शारीरिक तनाव तथा व्याधियों को दूर करने में सहायक है। चिकित्सा शास्त्र के प्राचीन ग्रंथों में भी रोगों के उपचार में संगीत की महत्ता का वर्णन मिलता है। आधुनिक समय में संगीत द्वारा रोगों के उपचार का चलन बढ़ता जा रहा है। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा विभिन्न मानसिक रोगों के उपचार के लिए संगीत एक अचूक औषधि है। इनके अतिरिक्त बुखार, शीतप्रकोप आदि के उपचार के लिए भी संगीत का सहारा लिया जाता है। अनेक चिकित्सकों ने आपरेशन करते समय भी रोगी को दवाइयों से बेहोश करने की बजाए संगीत सुनवाना अधिक उचित माना है। उनका मानना है कि संगीत की मधुर तरंगों में रोगी इतना मग्न हो सकता है कि शल्य चिकित्सा के असहनीय दर्द की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता। संगीत द्वारा अन्य रोगों के उपचार के लिए निरंतर अनुसंधान चल रहे हैं। संगीत केवल हम मानवों को ही रोगरहित नहीं करता अपितु यह पौधों तथा जानवरों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। यह सिद्ध हो चुका है कि संगीत श्रवण से गायों में दुग्ध विसर्जन की मात्रा बढ़ जाती है साथ ही संगीत का पौधे के विकास पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य तथा नृत्य व संगीत हमकदम हैं इसमें कोई दो राय नहीं है। परन्तु साथ ही यह भी जरूरी है कि नष्त्य या संगीत रोगी की पसंद का हो। व्यक्ति विशेष की प्रवष्ठित तथा स्थिति के अनुरूप भी संगीत अथवा नृत्य का चयन किया जा सकता है। यह जरूरी नहीं कि नृत्य या संगीत शास्त्रीय नियमों से बंधे हों। -मनमोहित (प्रैसवार्ता)
Wednesday, December 23, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment