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Wednesday, December 23, 2009

सबसे अधिक गधे फतेहपुर में

सीकर(प्रैसवार्ता) रेगिस्तान का जहाज कहलाने वाला ऊंट का अस्तित्व अब मशीनीकरण के कारण खतरे में पड़ गया है। पशुपालन विभाग के तमाम दावों के बाद भी हर साल ऊंटों की संख्या घट रही है। वैज्ञानिकों ने भले ही ऊंटनी के दूध से डायबिटीज का इलाज ढूंढ निकाला हो या केमल मिल्क से डेयरी खुलें। इन सबके बाद भी सरकार के पास ऊंटों के लिए सरंक्षण के लिए कोई योजना नहीं है। माल ढोने रेगिस्तानी इलाकों में यातायात की बेजोड़ सवारी के रूप में ख्यात ऊंटों की संख्या शेखवाटी जनपद में साल दर साल घटती जा रही है। यातायात हो कृषि कार्य, सभी जगह आधुनिक संसाधनों का उपयोग होने लगा है, जो समय की बचत करने के साथ सस्ता भी है। इस मामले में सीकर, झुंझुनूं, चुरू तीनों ही जिलों की स्थिति समान है। आंकड़ें साक्षी हैं कि साल दर साल ऊंटों की संख्या घटती जा रही है। सीकर, झुंझुनूं चुरू तीनों जिलों की स्थिति समान है। सीकर जिले में वर्ष 1992 में 29291 ऊंट थे जो पांच साल के अंतराल के बाद 1997 में घटकर 27552 रह गए। इसी प्रकार झुंझुनूं जिले में वर्ष 1991 में 32667 ऊंट थे जो 1997 में घटकर 30519 रह गए। चुरू जिले की भी यही स्थिति है। वहां 1992 में 83128 ऊंट थे, लेकिन पांच साल बाद 1997 में इनकी संख्या 64 हजार 764 रह गई। यह स्थिति करीब दस साल पहले की है। इसके बाद की स्थिति तो और भी चौंकाने वाली है। हालांकि ताजा आंकड़ें तो नहीं है लेकिन पीछे के दस सालों में शेखवाटी जनपद में तेजी से विकास हुआ है। आधुनिक संसाधनों में बेहताश बढ़ोतरी हुई है। खेतीबाड़ी यातायात के काम कुछ सालों पहले काम आने वाले ऊंट अब तो नजर आने से भी रह गए हैं। जिले में वर्ष 2003 में श्रीमाधोपुर तहसील में सबसे ज्यादा 5565 ऊंट थे जिनकी संख्या गिरकर 2008 में 3419 रह गई। इसी प्रकार सीकर में 2003 में 3787 ऊंट थे जिनकी संख्या 2008 में 3695 रह गई। दांतारामगढ़ में 2003 में 3393 ऊंटों की संख्या थी जो 2008 में गिरकर 2504 रह गई। लक्ष्मणगढ़ में 2003 में 2955 ऊंट थे जो 2008 में 2581 रह गए। नीमकाथाना में 2003 में 2462 ऊंटों की संख्या थी जो गिरकर 2008 1680 रह गई। इसी प्रकार फतेहपुर में 2003 में 2176 थी जो गिरकर 2008 में 1607 ऊंटों की संख्या रह गई। अगर ऊंटों की गिरती संख्या पर गौर किया जाए तो बहुत संभावना है कि रेगिस्तान का जहाज ऊंट 2023 में जिले से लुप्त हो जाएगा। ऊंटों की संख्या घटने के पीछे एक बड़ा कारण यह सामने आया है कि खेती बाड़ी में ऊंट की जगह ट्रैक्टर का उपयोग होने लगा है। परंपरा से हटकर लोग अब ऊंट की बजाय ट्र्रैक्टर खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं। इसके अलावा सामान ढोने में गधा गाड़ी के प्रचलन में रहने से जिले में गधों की संख्या 1992 के बाद बढ़ी है। शहरी क्षेत्रों में छोटा-मोटा सामान इधर-उधर ले जाने के लिए गधा गाड़ी का प्रचलन बढ़ा है। वर्ष 1997 में सीकर जिले में जहां 2307 गधे थे वहीं पांच साल बाद 1997 में बढ़कर इनकी संख्या 3122 हो गई। जिले में सबसे कम गधे लक्ष्मणगढ़ तहसील में हैं वहां 1997 के आंकड़ों के मुताबिक 307 गधे थे जबकि जिले में सर्वाधिक गधे फतेहपुर तहसील में 1117 थे।

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