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Saturday, December 26, 2009

समाचार संकलन:कुछ महत्वपूर्ण पहलू

पत्रकारिता अब केवल मिशन नहीं, बल्कि एक रोमांचक व्यवसाय के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है । समाज में पत्रकार के सम्मान, प्रतिष्ठा एवं महत्व से प्रभावित होकर ही अनेक युवा साहसी स्वयं को पत्रकार कहलाने में गर्व एवं संतोष का अनुभव करते हैं । किन्तु नवोदित पत्रकारों को यह जान लेना चाहिए कि पत्रकारिता कोई हंसी खेल नहीं है । पत्रकारिता रोमांचक व्यवसाय के साथ ही अत्यंत जोखिमपूर्ण एवं उत्तरदायित्वपूर्ण जॉब है । ऐसे में, किसी छोटे बडे दैनिक या साप्ताहिक समाचार पत्र के संवाददाता बनने मात्र से येन-केस प्रकरण किसी समाचार पत्र अथवा पत्रकार संगठन के सदस्य । पदाधिकारी बनने मात्र से किसी व्यक्ति का स्वयं को पत्रकार स्वीकार कर लेना अपने में काफी नहीं है । बल्कि नवोदित पत्रकारों को पत्रकार के गुण, तकनीकी पहलुओं और दायित्वों के मूलभूत मानदण्डों को आत्मसात करना परम आवश्यक है । यहां हम नवोदित पत्रकारों के लिए कुछ आधारभूत सैद्वांतिक जानकारी की चर्चा कर रहे हैं जिसके पर्याप्त ज्ञान के बिना स्वंय को पत्रकार प्रतिष्ठित करना इस पेशे की गरिमा से खिलवाड़ मात्र ही कहा जायेगा । संवाददाता और संवाद यानी पत्रकार और समाचार एक दूसरे के पूरक है । अत: यदि आप पत्र प्रतिनिधि या संवाददाता हैं, तो आपको मालूम होना चाहिए, कि समाचार किस चिडिया का नाम है? समाचार की प्रचलित परिभाषा में कहा जाता है कि यदि कुत्ता आदमी को काट ले, तो यह समाचार नहीं है । अगर आदमी कुत्ते को काट ले, तो यह समाचार है । समाचार को हमेशा नवीन, रोचक, मनोरंजक एवं महत्वूपर्ण होना चाहिए । अंग्रेजी शब्द न्यूज के चार अक्षरों क्रमश: नार्थ यानी उत्तर, ईस्ट यानी पूर्व वेस्ट यानी पश्चिम और साउथ यानी दक्षिण अर्थात् चारों दिशाओं का दर्शन जिसमें हो वही न्यूज है । वैसे भी न्यूज जिस न्यू शब्द से बना है, उसका अर्थ होता है - नया, यानी समाचार में नयापन होना चाहिए । वैसे समाचार की एक गंभीर परिभाषा यह भी है-जिसे कोई दबाना चाह रहा हो, वह समाचार है, बाकी सब विज्ञापन है। किसी भी संवाददाता के लिए जरूरी है कि उसमें समाचार सूंघने का गुण हो तथा समाचार आयोजन की क्षमता हो। इसके लिए उसका व्यवहार कुशल होना तथा विश्वसनीय होना जरूरी है । आंखों देखी और सुनी सुनाई बातों से ही समाचार नहीं बन जाता । जो आपने सुना है, वह मात्र अफवाह भी हो सकती है । जो आपने देखा है, वह घटना का एक पक्ष भी हो सकता है । इसलिए देखने सुनने के बाद भी संवाददाता का दायित्व है कि वह घटना की खोजबीन करे, उसकी गहराई में जाये । संबधित पक्षों की जानकारी लेने के बाद ही समाचार लिखें । पत्रकारिता में विश्वास बहुत आवश्यक है । आपको अपने समाचार स्रोत या समाचार सूत्रों पर विश्वास होना चाहिए और समाचार सूत्र को आप पर विश्वास होना चाहिए कि आप उसका नाम आउट नहीं करेगें । इसी विश्वास की धुरी पर बडे से बडे गोपनीय मामले भी समाचार पत्रों में उछल जाते हैं । समाचार स्रेातों से पत्रकार का सामंजस्य ही उसे श्रेष्ठ संवाददाता के रूप में प्रतिष्ठित कर सकता है। संवाददाता को अपने पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर, व्यक्तिगत स्वार्थ से पूरित होकर या मात्र अपनी वाह-वाही के लिए कोई समाचार नहीं देना चाहिए। पत्रकार के निर्लिप्त एवं निष्पक्ष होना चाहिए। समाचार और समाचार स्रोत से परिचय के बाद अब प्रश्न है कि समाचार लिखकर सम्पादक को कैसे भेजा जाये? प्राय: संवाददाता यह शिकायत करते हैं कि उन्होंने तो बहुत मेहनत करके दो पृष्ठ का समाचार भेजा था, लेकिन अखबार में मात्र चार छ: पंक्तियों ही प्रकाशित हुई, और इसके लिए पत्रकार बंधु डेस्क एडीटर या समाचार संपादक पर भेदभाव आदि का आरोप लगाने लगते हैं । लेकिन जरूरी यह भी है कि समाचार संकलन के बाद समाचार लेखन की कला भी संवाददाता को आती हो । किसी भी समाचार का पहला आकर्षण उसका शीर्षक होता है । शीर्षक पढ़कर जो आकर्षण, जो उत्कंठा पाठक के मन में उत्पन्न हुई, यदि वह आकर्षण समाचार के पहले पैराग्राफ (अनुच्छेद) में बरकरार नहीं रहा तो समझिये कि आपका समाचार लिखना बेकार है। इस प्रकार दुकानदार विशिष्ट सामान को दुकान की शोविन्डो में रखता है ताकि ग्राहक आकर्षित हो, इसी प्रकार समाचार का पहला अनुच्छेद पूरे समाचार की शो विन्डो होती है। इस पहरे के पैरेग्राफ को अंग्रेजी में इन्ट्रो कहते हैं । अत: समाचार लेखन में सर्वाधिक महत्ववूर्ण उसकी इन्ट्रों लिखना ही होता है। एक आदर्श इन्ट्रों वह कहलायेगा, जो प्रत्येक वर्ग के पाठक को रूचिकर लगे और पाठक को पूरा समाचार पढऩे के लिए मजबूर कर दे। हालांकि, इन्ट्रों लिखना आसान नहीं, लेकिन यदि सही इन्ट्रों लिख दिया, तो बाकी समाचार लिखना कठिन भी नहीं है। इन्ट्रों लिखते हुए ध्यान रखना चाहिए कि वह समाचार के अनुकूल हो। इन्ट्रो में समाचार की सबसे महत्वपूर्ण बात सबसे रोचक बात आ जानी चाहिए। जहां तक हो सके इन्ट्रो छोटा और स्पष्ट हो। इन्ट्रों संक्षिप्त होगा तो पढऩे में तो आसान होगा ही, उसमें संप्रेषण शक्ति भी अधिक होगी। माना जाता है कि समाचार में क्या कहां कब और क्यों और किस के उत्तर पाठक को मिल जाने चाहिए। लेकिन ये सब जबाव इन्ट्रों में दिये जाने कतई जरूरी नहीं है। अच्छे इन्ट्रों में प्रभाव, पठनीयता और भाषा में बहाव होना चाहिए। बहुत से पाठक समयाभाव के कारण अखबार की प्रमुख हैडलाइन ही पढ़ते हैं। साथ ही, वे समाचारों की इन्ट्रों भी जरूर पढ़ते हैं और इन्ट्रों से ही पूरे समाचार का सारांश समझ लेते हैं। यदि एक सफल इन्ट्रों ने पाठक के मन में समाचार के प्रति रूचि पैदा की है तो पाठक को समाचार के अंत तक ले जाने का काम भी संवाददाता या समाचार सम्पादक का है। अत: समाचार को पिरामिड के उल्टे आकार में लिखना चाहिए अर्थात् सर्वाधिक महत्पवूर्ण बात उपर से प्रारंभ करें और जैसे जैसे महत्व या रूचि कम होती जाये, वैसे ही तथ्यों को नीचे की ओर लेते आना चाहिए इस प्रकार किसी भी सफल समाचार का पहला पैराग्राफ सर्वाधिक महत्पवूर्ण और अंतिम पैराग्राफ सबसे कम महत्व का होना चाहिए। ऐसे समाचार में समाचार सम्पादक को भी पर्याप्त सुगमता रहती है । यदि समाचार प्रकाशित करने के लिए स्थान कम है तो यथानुरूप समाचार के अंतिम पैरा काटा जा सकता है। कई बाद पूरा समाचार कम्पोज होने के बाद भी उसक छोटा करने की जरूरत सब एडीटर को होती है। ऐसी स्थिति मेें पूरा समाचार दुबारा कम्पोज कराना संभव नहीं होता, अत: वह अपेक्षाकृत कम महत्व के अंतिम एक या दो पैराग्राफ उड़ा देता है ओर उसके बाद भी समाचार पूरा का पूरा रहता है । यही सफल समाचार लेखन की पहचान है । इस प्रकार एक संपूर्ण सफल समाचार में क्या, कयों, कहां, कब, कौन, कैसे और क्यों के उत्तर पाठक को मिलने चाहिए, साथ ही समाचार की पृष्ठ भूमि का परिचय भी पाठक को मिले। समाचार की भाषा सरल, स्पष्ट और तारतम्यता पूर्ण होनी चाहिए। यूं तो समाचार की अनेकानेक श्रेणियां हैं, फिर भी अपराधिक एवं साम्प्रदायिक उन्माद के समाचार लिखते तथा छापते समय विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए । ऐसे समाचारों में जब तक कि आवश्यक न हो किसी व्यक्ति का नाम, धर्म, जाति का उल्लेख न करें। समाचार पत्र का काम सबंध्ति महिला अथवा पुरूष की प्रतिष्ठा को गिराना नहीं होता है। विशेषत: बलात्कार के मामले में पीडि़त युवती का नाम नहीं दिया जाना चाहिए । मेरे विचार से तो बलात्कार एवं यौन उत्पीडऩ के समाचारों में युवती की जाति, ध्र्म का उल्लेख भी नहीं किया जाना चाहिए। समाचार है कि जंगल में अकेली दलित युवती बलात्कार की शिकार, क्या इस बलात्कार की घटना में पीडि़त युवती का दलित होना ही कारण है? क्या जंगल में अकेली सवर्ण युचती, इसलिए बलात्कार की शिकार नहीं होगी कि वह उच्च जाति की है? बलात्कार, यौन अपराधें आदि के समाचारों को अध्कि विस्तार नहीं देना चाहिए । पत्रकार को उन सब बातों से भी परहेज करना चाहिए, जिनसे समाज में वैमनस्य, तनाव और घृणा व्याप्त होने की भूमिका बनती हो । पत्रकारिता में जिनता रोमांच, जितनी प्रतिष्ठा है, उतना ही खतरा, जोखिम भी पत्राकार को उठाना पड़ सकता है । समाचार से जुड़े विविध् पक्षों, पुलिस, अपराध्ी तत्वों, अराजक तत्वों से जितना खतरा पत्राकार को है, पहीं वैधनिक दुष्टि से पत्राकार को जिस खतरे का समाना करना पड़ सकता है-वह है मानहानि । भा0द0वि0 की धरा 499 में मानहानि की शिकायत पर प्रैस एवं पत्राकार पर मुकदमा चलाने की पूरी व्यवस्था है । कुछ पत्रकार साथी समझते हैं कि तथाकथित बताया जाता है चर्चा है आदि लिखने मात्रा से वे मानहानि के दावे से बच सकते हैं । ऐसा समझना भ्रम है। दूसरों के आपत्तिजनक वकतव्यों या भाषण के अंश छापने से भी आप मानहानि के दोर्षी ठहराये जा सकते हैं । अत: पत्रकार को ध्यान रखना चाहिए कि समाचार में वह कभी भी खुद पार्टी न बने । तथ्यों को खुद ही सारी कहानी कहने दीजिये । किसी के चरित्रा, आचरण या घटना के सबंध में खुद कोई निष्कर्ष कभी नहीं निकालें । जब तक कि आपके पाए ऐसा सबूत न हो जिसे कोर्ट में प्रस्तुत किया जा सके, तब तक किसी के व्यवहार या चरित्र पर आरोप नहीं लगाना चाहिए । पत्रकार बिना किसी दबाव के निष्पक्ष एवं निडर होकर अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए । आप यदि दम से पत्रकार के रूप में कार्य करने को दृढ़प्रतिज्ञ हैं तो आपका स्वागत है । उक्त आधर मूलक बातों के साथ साथ अन्य सभी तौर तरीके भी अभ्यास करते करते स्वत: ही आप सीख जायेंगे। डा.मनोज अबोध (प्रैसवार्ता)

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