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Saturday, July 10, 2010

गांव मरहिया में सिर्फ लंबू जी....लंबू जी....

मरहिया(प्रैसवार्ता) पश्चिमी चंपारण के ग्राम मरहिया में भारी संख्या में लंबू जी हैं। लम्बे लोगों के ग्राम के रूप अपनी पहचान बना चुके पश्चिमी चंपारण के लौरिया प्रखंड के मरहिया ग्राम के ग्रामीणों की औसत लम्बाई 6 फुट 9 इंच है, जबकि इक्का-दुक्का 7 फुट भी पार कर चुका है। मरहिया ग्राम सम्राट चंद्र गुप्त मौर्य की जन्मस्थली भी है। नंदवंश के आखिरी राजा घनानंद की दासी मुर्रा का घर यही है। दासी मुर्रा ही चन्द्रगुप्त की मां थी। मुर्रा के घर का अवशेष यहां टीले के रूप में विद्यमान है। भारद्वाज गोत्र के कौशिक राजपूतों के इस ग्राम में अब भी सामान्य से अधिक लंबे लोगों की संख्या लगभग 450 है। ग्राम की जानकी देवी ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि उनके पूर्वज धु्रव नारायण सिंह बेतिया महाराज हिरेन्द्र किशोर के पिता के गनमैन थे। महाराजा हरेन्द्र की शादी के समय एक हाथी ने महारानी की पालकी पर हमला बोल दिया था, तो ध्रुव नारायण सिंह ने रक्षार्थ तलवार से हाथी की सूंड काट डाली, जिससे हाथी की मृत्यु हो गई। इससे प्रसन्न होकर महाराज हरेन्द्र ने मरहिया की जागीर ध्रुव नारायण सिंह को सौंप दी। तब से ये लंबे लोग यही के होकर रह गये। ग्राम के वैद्यनाथ के अनुसार नंदवंश के आखिरी राजा घनानंद की दासी मुर्रा के नाम पर इस ग्राम का नाम पहले मोर्या तथा बाद के अपभ्रंश नाम मरहिया पड़ गया, जिसका वर्णन चित्रसेन के इतिहास चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त में मिलता है। मरहिया वृत्त के खाता संख्या 435 के अन्तर्गत ही नंदनगढ़ का किला आता है। बताया जाता है, कि 1950 में मरहिया ग्राम में एक कुएं की खुदाई में एक आदर्धावृत्ताकार सुरंग मिली थी, जो मुर्रा के घर की ओर से होती हुई नंदनगढ़ के किले की तरफ जाती है, जिसे ग्रामवासियों ने बन्द करा दी और उसे भर दिया। मरहिया ग्राम के बीच स्थित एक खंडहरनुमा टीले को मुर्रा का घर बताया जाता है।

संस्कृति के प्रचार पर 16 करोड़ रुपये खर्च-खंडेलवाल

नैनीताल(प्रैसवार्ता) हरियाणा के अपर मुख्य सचिव डाक्टर के.के. खंडेलवाल ने कहा है कि उत्तराखंड व हरियाणा समृद्धशाली संस्कृति के वाहन हैं। हरियाणा में भी उत्तराखंड की तर्ज पर राम लीला, मीरा प्रसंग और राधा प्रसंग का वर्णन है। इस वर्ष दोनों प्रांतों की संस्कृति के प्रचार-प्रसार और एक रुपता के प्रदर्शन के लिए दोनों प्रांतों की ओर से कलाकारों के दलों को इधर-उधर भेजा जायेगा तथा संस्कृति के संरक्षण के लिए भी मिलकर प्रयास किये जायेंगे। डा. खंडेलवाल के अनुसार हरियाणा में संस्कृति के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर कार्य किया जा रहा है। उत्तर क्षेत्र संस्कृतिक केन्द्र से संबंध राज्य राज्यों की अपेक्षा हरियाणा में संस्कृति के संरक्षण और प्रसार पर 16 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं, जो अन्य राज्यों से कहीं ज्यादा है। हरियाणा ही एक मात्र ऐसा राज्य है, जहां का इनसाईक्लो पीडिया बनाया गया है, जिससे प्रभावित होकर उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के अध्यक्ष और पंजाब के राज्यपाल ने अन्य राज्यों को भी इन्साईक्लोपीडिया तैयार करने को कहा है। डा. खंडेलवाल कहते हैं, कि इस वर्ष हरियाणा संस्कृति विकास के अन्तर्गत गुरू-शिष्य परम्परा को सार्थक करने समेत पांरपरिक गीत संगीत, नृत्य एवं वाद्य यंत्रों के संरक्षण की पहल करेगा, जिसका डाक्यूमेटेंशन विभिन्न स्थानों पर किया जाएगा।

स्कूली बच्चों की गांधीगिरी कामयाब

रतिया(प्रैसवार्ता) हरियाणा राज्य के जिला फतेहाबाद के उपमंडल रतिया के ग्राम लाधूवास स्थित मिडिल स्कूल के बच्चों ने गांधीगिरी दिखाते हुए शिक्षा मंत्री से अपनी मांग पूरी करवा ली है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार उपरोक्त स्कूल के करीब 90 छात्र पिछले चार वर्ष से शिक्षक नियुक्ति की मांग कर रहे थे, मगर कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। आखिर स्कूली छात्रों ने ग्राम पंचायत को साथ लेकर हरियाणा सिविल सचिवालय चंडीगढ़ की 6वीं मंजिल पर पहुंच कर शिक्षा मंत्री के कार्यालय के बाहर रैंप की साईड में बैठ गये, जो हर किसी गुजरने वाले को दिखाई दिये। ''प्रैसवार्ता" प्रतिनिधी ने जब लाईन लगाकर बच्चों से पूछा, तो उन्होंने रोकर अपनी दास्तान सुनाई कि उन्हें चार वर्ष से सरकार शिक्षक नहीं दे रही, जिससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है। गांधीगिरी की चर्चा जब शिक्षा मंत्री को पहुंची, तो उन्होंने तुरन्त शिक्षा विभाग की प्रधान सचिव को बुलाकर आदेश जारी कर दिया, कि स्कूली बच्चों की मांग तुरन्त पूरी की जाये। एक घंटे के भीतर ही शिक्षक नियुक्ति के आदेश पंचायत स्कूली बच्चों को दे दिये। इस प्रकार स्कूली छात्रों ने गांधीगिरी के जरिये वह सफलता हासिल कर ली, जो पंचायत पिछले चार वर्ष से नहीं कर पाई थी।

नर्सिंग रजिस्ट्रार की नियुक्ति विवादों में

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा नर्सिंग काऊंसिल रजिस्ट्रार की नियमों की अवहेलना करते हुए की गई नियुक्ति विवादों में गई है। करीब एक दशक उपरांत इस नियुक्ति के उजागर होने से स्वास्थ्य विभाग में हड़कम्प मच गया है, क्योंकि रजिस्ट्रार के पद पर आसीन की गई तो शर्तें पूरी करती थी और ही योग्यता की कसौटी पर खरा उतरती थी। नियमानुसार 23 वर्ष का अनुभव रखने वाले भी रजिस्ट्रार पद के प्रत्याशी थे, मगर उन्हें दर किनार कर दिया गया। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार हरियाणा नर्सिंग कौंसिल में रजिस्ट्रार पद के लिए बकायदा 1999 में विज्ञापन निकाला गया था। विज्ञापन में स्पष्ट किया गया था, कि जिस उम्मीदवार को अधिकतम शैक्षणिक और प्रशासनिक अनुभव होगा, उसे ही वरीयता दी जायेगी। इस पद के लिए साक्षात्कार 22 जनवरी 2000 को लिया गया, जिसके लिए दस महिलाओं ने आवेदन किया था। आवेदकों के पास नर्सिंग क्षेत्र में 5 वर्ष से लेकर 23 वर्ष तक का शैक्षणिक एवं प्रशासनिक अनुभव था। आवेदकों में एक रोहतक की सुमित्रा देवी भी थी, हालांकि उनके पास केवल सिस्टर टयूटर का ही अनुभव था, प्रशासनिक नहीं। बावजूद इसके सुमित्रा को इंटरव्यू में ऐप्लस ग्रेड देकर 1 अगस्त 2000 को रजिस्ट्रार पद पर नियुक्ति दे दी। नियुक्ति प्रकरण विवादों में आने पर सरकार ने जांच के आदेश दे दिये हैं। जांच सीनियर आई..एस अधिकारी एच.एस. मलिक विशेष सचिव, स्वास्थ्य विभाग, हरियाणा करेंगे। ''प्रैसवार्ताÓÓ को यह भी पता चला है, कि कौंसिल की उपाध्यक्ष कौशल्या हुड्डा रजिस्ट्रार सुमित्रा देवी के बीच पनपे विवाद उपरांत कौंसिल में चल रही अनियमिताओं का भंडाफोड़ हुआ है। उपाध्यक्ष के आरोप हैं, कि जून 2009 में एम.पी.डब्लयु (एफ) की परीक्षा में गड़बड़ी की गई है। 100 में से 23 अंक लेने वाली सोनिया को पास कर दिया गया है, जबकि पास के लिए 50 प्रतिशत अंक चाहिये। इसी प्रकार विद्या को पास की मार्कशीट दे दी गई, जबकि रिजल्ट रजिस्ट्रर में वह फेल है। केवल इतना ही जून 2009 की उत्तर पुस्तिका को भी बिना किसी अनुमति फाड़ दिया गया है। 6 जनवरी 2010 को .एन.एम जी.एन.एम की परीक्षा का इंचार्ज निदेशक का बनाया गया, क्योंकि रजिस्ट्रार ने, जो पेपर छपवाये थे, लीक हो गये थे। इस दौरान परीक्षा चार्ज रजिस्ट्रार से ले लिया गया-जिसके चलते कौंसिल को वित्तीय हानि उठानी पड़ी। मजेदार बात तो यह है कि कार्रवाई तो दूर रही, रजिस्ट्रार से स्पष्टीकरण तक भी नहीं मांगा गया। आरोप तो यह भी अध्यक्ष रजिस्ट्रार लाखों रुपयों के चैक पर स्वयं हस्ताक्षर कर देते हैं-जबकि कौंसिल बाडी के सामने यह मामला रखा जाना चाहिए। उपाध्यक्ष द्वारा रहस्योद्घाटन उपरांत रिकार्ड में तबदीली के काम में तेजी गई है। सत्यता तो जांच उपरांत ही सामने आयेगी, परन्तु हरियाणा नर्सिंग कौंसिल फिलहाल विवादों में है।

ऐतिहासिक चबूतरे पर होगी महापंचायत

महम(प्रैसवार्ता) हिन्दू मैरिज एक्ट में संशोधन की मांग को लेकर एक अगस्त को महम चौबीसी के ऐतिहासिक चबूतरे पर सर्वजात सर्वखाप पंचायत होगी, जिसकी सफलता के लिए खाप पंचायतें सक्रिय हो गई हैं। हिन्दू मैरिज एक्ट में संशोधन की मांग से लोगों को अवगत कराते हुए महम चौबीसी के ऐतिहासिक चबूतरे पर पहुंचने का निमंत्रण दिया जा रहा है। सर्वखाप के कानूनी प्रकोष्ठ के संयोजक शमशेर सिंह खरकड़ा के अनुसार एक गांव, एक गौत्र एवं सीम-सीमाली ग्रामों में विवाह को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं किया जायेगा। जो सांसद एवं विधायक उनकी मांग का समर्थन करेंगे, सर्वजातीय पंचायत उनका समर्थन करेगी, जबकि विरोध करने वालों का विरोध किया जायेगा। प्रथम अगस्त को होने वाली इस बैठक में हिन्दू मैरिज एक्ट में संशोधन की मांग को लेकर संघर्ष का बिगुल फूंका जायेगा।

सोचो जब ऐसा हो तो क्या हो...

झज्जर(प्रैसवार्ता) हिसार वन मंडल के एक अधिकारी की कथित मिली भगत कर एक यूजर एजेंसी (पैट्रोल पम्प) का पक्ष लेकर सरकार को लाखों रुपयों की क्षति पहुंचाने का मामला उजागर हुआ है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी सूचना के अधिकार में मिले पत्रों से उजागर हुए पर्यावरण से जुड़े इस मामले में दो जिला वन अधिकारी और रेंजर की जांच को इस कदर ''इग्नोर" कर ''ओवर रूल्ड" किया कि भविष्य में जांच करने वाले अधिकारी को जानकारी हो जाये, कि इस प्रकरण से एक बड़े साहब भी संबंधित है, हालांकि यह मामला पर्यावरण न्यायालय कुरूक्षेत्र में विचाराधीन है। हिसार वन विभाग से संबंधित इस प्रकरण में कंजरवेटर वी के झांझडिया ने पैट्रोल पम्प चलाने वाली यूजर एजेंसी को लांभावित करने के लिए नियमों को ताक पर रखने का प्रयास किया। जिक्रयोग है, कि राष्ट्रीय राजमार्ग नं. दस पर ग्राम कुतुबपुर में वर्ष 2002 से एक पैट्रोल पम्प संचालित है, जिस पर इल्जाम है कि उनके द्वारा वन भूमि का अधिक प्रयोग किया जा रहा है और अपने रास्ते के लिए यहां किये गये पौधारोपण को नष्ट किया गया है। इस प्रकरण की जांच के लिए हिसार मंडल के तत्कालीन जिला वन अधिकारी शिव कुमार ने तीन बार मौके का मुआयना करके प्रकरण को सही ठहराते हुए रिपोर्ट की, कि यूजर एजेंसी (आई.वी.पी.सी.एल पैट्रोल पम्प) द्वारा अपने आने जाने के रास्ते के लिए 1221 वर्ग मीटर वन भूमि का पिछले कई वर्ष से भारत सरकार की बगैर स्वीकृति के प्रयोग किया जा रहा, है जोकि वन सरंक्षण अधिनियम 1980 की अवहेलना है। वन विभाग के रेंज व अन्य आला अधिकारियों ने जांच में पाया कि यहां कोई पेड बाधक नहीं है, लेकिन रिकार्ड में यहां 1999-2000 में 10 आर.के.एम पौधारोपण किया गया था, जिसके चलते यूजर एजेंसी को नोटिस जारी किया गया। परिमंडल के कंजरवेटर ने हिसार के जिला वन अधिकारी की इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए पुन: रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिये, जिस पर जिला वन अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट को दोहराते हुए इस अवहेलना के दोषी हांसी खंड के प्रभारी वन दरोगा सज्जन कुमार तथा बीट इंचार्ज वन रक्षक हुकमी राम के खिलाफ कार्यवाही अमल में लाने को कहा, मगर इसके उपरांत भी कंजरवेटर पैट्रोल पम्प पर इस कद्र मेहरबान रहे कि उन्होंने पंचकुला स्थित नोडल अधिकारी को भी यूजर एजेंसी पर पैनल्टी लगाकर स्वीकृति प्रदान करने की सिफारिश कर दी। कंजरवेटर ने पत्र में लिखा था कि उक्त साईट पर 287 वृक्ष नहीं खड़े थे, गलती से पेड़ खड़े होने की रिपोर्ट भेजी गई है। मौके पर पेड़ न होने के कारण मार्किंग लिस्ट नहीं बनाई गई है, यूजर एजेंसी ने बाधक पेड न होने के कारण उक्त साईट का चयन किया है। अतीत में दिखाये गये 287 पेड़ गलत थे और गलती से ही यूजन एजेंसी से फेलिंग चार्जिज लिये गये हैं। यहां तक कंजरवेटर ने उच्चाधिकारियों को गुमराह करते हुए लिखा कि पंप के आने-जाने वाले पर पेड़ हो ही नहीं सकते तथा यूजर एजेंसी 286 वर्ग मीटर भूमि इस्तेमाल कर रही है-जबकि वास्तव में 1221 वर्ग मीटर का प्रयोग किया जा रहा है, जिसकी नोडल अधिकारी ने स्वीकृति प्रदान कर दी। जिला वन अधिकारी हिसार के तबादले उपरांत नये जिला वन अधिकारी ने 286 वर्ग मीटर तथा 1.72 आर.के.एम. में खड़े पौधों के हिसाब से यह राशी 42900 रुपये निर्धारित की, जोकि सिर्फ पौधारोपण की थी। 23 नवम्बर को इस मामले में हिसार के जिला वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने कंजरवेटर को एक शुद्धि पत्र भेजा और साथ पैनल सी ऐ रिपोर्ट दी, जिसमें इस मामले में यूजर एजेंसी से जो राशी वसूलनी थी, कई गुणा ज्यादा थी। यह राशी पूर्व जिला वन अधिकारी की जांच रिपोर्ट के आधार पर 1221 वर्ग मीटर और 7.35 आर.के.एम के हिसाब से तय की गई, जो करीब 6 लाख 94 हजार 630 रुपये बनती थी। इसमें दो और चार्जिज शामिल किये गये, जिन्हें पहली रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया था। तार फैसिंग के चार लाख 41 हजार रुपये, दस प्रतिशत सुपरवाईजरी चार्जिज 63148 रुपये शामिल करते हुए पैट्रोल पम्प के डिप्टी मनैजर को सूचित करते हुए और राशी जमा करवाने के लिए कहा गया, तो विभाग में हड़कम्प मच गया, क्योंकि एक अधिकारी महज 42900 रुपये बता रहे हैं और जिला अधिकारी 6 लाख 94 हजार 630 रुपये बता रहे हैं। फिलहाल इन दोनों में कौन सच बोल रहा है, यह निस्पक्ष जांच उपरांत ही पता चल सकेगा।

जिसे डंसने से मर जाता है-सांप

बलिया(प्रैसवार्ता) उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद बलिया के ग्राम सिकंदरपुर निवासी एवं कृषक पढ़े लिखे पदम नाथ तिवाड़ी एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिसे डंसने उपरांत सांप की मृत्यु हो जाती है। पदमनाथ (52) को जवानी में नशे की आदत पड़ गई थी, कि वह बिना नशा किये रह नहीं सकता। संपन्न कृषक होने के कारण उसने महंगे से महंगे नशीले पदार्थों का सेवन करने के साथ-साथ अपनी नशाखोरी प्रवृत्ति को शांत करने के लिए अफीम, पोस्त के अतिरिक्त व धतूरे के बीज वह खाने लग गया। उन दिनों अफीम की खेती उसके क्षेत्र में होती थी, वहीं ही गाजीपुर रिफाईनरी है, जोकि अफीम से विभिन्न-विभिन्न दवाईयां तैयार करती है। पदमनाथ के अनुसार वह प्रतिदिन आधा किलोग्राम तक डोडे खाने के साथ-साथ चार बीड़ी बंडल पीना, 25 से 30 कप चाय लेता था। धीरे-धीरे जब उसमें नशे की मात्रा कम होने पर शरीर दर्द करने लगा, तो उसने स्वयं को सांपों से डंसवाना शुरू कर दिया, जिससे वह खूब आनन्द महसूस करता था। इस प्रकार उसके सारे शरीर में जहर भर गया और परिस्थितियां ऐसी बन गई, कि उसे डंसने वाला सांप स्वयं ही मर जाने लगा, जबकि पदमनाथ का कुछ नहीं बिगड़ता था। दो अलग-अलग घटनाओं में पदमनाथ को सांप और कुत्ते ने काटा और वह दोनों ही मर गये। सांप को काटने से पदमनाथ का शरीर सुन्न हो गया, जिससे उसे खूब आनन्द आया। नशा मुक्ति केन्द्र की डाक्टर शशी बाला ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि सांप से डसवाकर नशा करना कोई आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि कुछ समय पूर्व एक नशा मुक्ति केन्द्र के शिविर में उनके पास दो ऐसे सगे भाई आये थे, जिन्होंने स्वयं को डंसवाने के लिए सांप पाल रखे थे। डाक्टर शशी का मानना है कि 70 प्रतिशत लोग यौन संबंधों बारे अधूरी जानकारी होने के कारण नशे की शुरूआत करते हैं, परन्तु नशे का ज्यादा प्रयोग उन्हें नपुंसक बना देता है। पदमनाथ अब नशे छोड़कर ब्राह्मण होने के कारण पूजा-पाठ व धार्मिक ग्रन्थ बिना ऐनक के पढ़ता है। ग्राम और परिवारजन पदमनाथ के नशा छोडऩे से बहुत खुश हैं।

Tuesday, July 6, 2010

4 करोड़ से संवरेंगे नवग्रह कुंड

कैथल(प्रैसवार्ता) नवग्रह कुंडो के जीर्णोदार के लिए राज्य सरकार ने दो करोड़ रूपये की राशि जारी की है, जबकि इस पर चार करोड़ रूपये खर्च होने की संभावना है। उक्त जानकारी देते हुए जन स्वास्थ्य मंत्री हरियाणा रणदीप सुरजेवाला ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि कैथल एक प्राचीन, धार्मिक व महाभारत काल से जुडा हुआ शहर है, जहां आदिकाल में नौ ग्रहों की स्थापना की गई थी, जिसका आज भी उतना ही महत्व है। समय के साथ साथ इनकी देखभाल कम हो गई है और धीरे धीरे से यह कुंड जीर्ण-शीर्ण अवस्था में चले गए। राज्य सरकार ने तीर्थों को नष्ट न होने से बचाने के लिए अनेक योजनाएं बनाईहै। उन्होने बताया कि कैथल में 9 ग्रह शुक्र, बुद्ध, बृहस्पति, सूर्य कुंड, शनि(दिवाल वाला कुंड), केतु कुंड, चंद्र कुंड, राहू व भोम कुंड है-जिनमें चार कुंडों का अस्तित्व समाप्त हो गया है, जहां आबादी बस चुकी है, जबकि पांच कुंड जीर्ण हालत में है, जिनके घाटो व सीढिय़ों पर गंदगी जमी है और शहर का कूडा कर्कट डाला जाता है। जनस्वास्थ्य विभाग ने इन पांचों कुंडो के लिए चार करोड़ रूपये स्वीकृत किये है, जिनमें से दो करोड़ रूपये आ भी चुके है। जनस्वास्थ्य मेंत्री ने बताया कि ये कुंड, जहां ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखते है, वहीं जल को बचाने का कार्य भी करेंगे। जनस्वास्थ्य विभाग की योजना है कि इनके जीर्णोद्वार उपरांत इन कुंडो को जलस्तर रिचार्ज के लिए उपयोग में लाया जाएगा। इससे आने वाले पानी के संकट से भी मुक्ति मिलेगी।

नकली घी का केंद्र बन रहा है हरियाणा

भिवानी(प्रैसवार्ता) कभी दूध, दहीं के खाने के लिए विशेष पहचान रखने वाला हरियाणा अब नकली देसी घी का केंद्र बनता जा रहा है। प्रदेश के कई शहरों में नकली देसी घी की फैक्ट्रिया पकड़ी भी जा चुकी है, परंतु फिर भी यह कारोबार थमने का नाम नहीं नहीं ले रहा। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार नकली देसी घी बनाने वाला डालडा व रिफाईंड तेल में इत्र व अन्य ऐसी महक युक्त सामग्री मिलाकर देसी घी तैयार करके धडल्ले से बेच रहे है। स्वास्थ्य विभाग या प्रशासन की अनदेखी के चलते यह कारोबार पूरे प्रदेश के साथ साथ एन.सी.आर, राजस्थान व पंजाब में अपने पैर पसार रहा है। स्वार्थ के चलते नकली देसी घी, जो मात्र 50 रूपये प्रति किलो तैयार हो जाता है, दौ सौ रूपये प्रति किलोग्राम तक बिक रहा है। राज्य में कभी देसी घी का मुख्य केंद्र रही मंडी आदमपुर भी नकली देसी घी के कारोबार से अछूती नहीं रही है।

बदलेगी रेलवे स्टेशन की तस्वीर

सिरसा(प्रैसवार्ता) वर्षों से अपने विकास की प्रतीक्षा कर रहे रेलवे स्टेशन को, आदर्श रेलवे स्टेशन का दर्जा मिलते ही नया रूप देने की तैयारी शुरू हो गई है और जल्द ही यह रेलवे स्टेशन पर किले की भांति गुम्बद बनाया जायेगा। जिसके सभी मुंडेरो पर पत्थर की जाली लगेगी, जो एक किले जैसा नजर आएगा। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार रेलवे बोर्ड द्वारा बीकानेर मंडल के दो रेलवे स्टेशनों को आदर्श स्टेशन बनाने का निर्णय लिया गया, जिसमें सिरसा के अक्तिरिक्त लालगढ़ का रेलवे स्टेशन शामिल है। रेलवे स्टेशन के सहायक मंडल अभियंता ऐ.के.वर्मा के अनुसार रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित मापदंडों के मुताबिक आदर्श रेलवे स्टेशनों को धोलपुर के पत्थरों से सजाने के साथ साथ महिलाओं व पुरूषों के लिए शौचालय व पेयजल की व्यवस्था की जाएगी। प्लेटफार्म पर लगभग तीन दर्जन बैच बनाए जाएगें, जिन पर भी छतरी लगेगी। बिजली बोर्ड यात्रियों को रेलवे स्टेशनों की सुविधाओं के संकेत देंगे। आदर्श रेलवे स्टेशन की कडी में रेलवे स्टेशन के प्रवेश द्वार को भी नया रूप दिया जायेगा, जबकि माल गोदाम रोड़ स्थित दूसरे प्रवेश द्वार से स्टेशन तक सड़क की चौडाई 3.62 मीटर से बढ़ाकर 6 मीटर की जायेगी। रेलवे बोर्ड का प्रयास रहेगा कि सिरसा का रेलवे स्टेशन भी जोधपुर व बीकानेर के रेलवे स्टेशनों जैसा लगे। आदर्श रेलवे स्टेशन बनने से पूर्व लगभग 35 लाख रूपये की लागत से स्टेशन की जीर्णोद्वार शुरू हो चुका है। इसी कडी में दो वेंटिग रूम, एक रिटायरिंग रूम, एक स्टेशन सुपरवाईजर का कार्यालय, एक बुकिंग आफिस, एक बड़ा पैसेंजर हाल व बरामदे की छते बदली गई है-जबकि टैलीफोन एक्सचेंज व सहायक स्टेशन मास्टर के कार्यालय की छत्त शीघ्र ही बदली जायेगी।

सिरसा में चल रही झोला प्रयोग शालाएं

सिरसा(प्रैसवार्ता) खून, थूक, मल-मूत्र की जांच कर मनुष्य के शरीर में उपस्थित रोग की जानकारी प्रयोग शाला के माध्यम से सैंकड़ों रूपयों के खर्च उपरांत दी जाती है, मगर सिरसा में झोलाछाप डाक्टरों के साथ साथ झोला प्रयोगशालाएं भी भारी संख्या में बगैर पैथोलोजिस्ट के लोगों का आर्थिक शोषण करने के साथ साथ संदिग्ध जांच की रिपोर्ट से मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। शहर के कई निजी अस्पतालों की अपनी निजी प्रयोगशालाएं है, जहां चिकित्सकों के परामर्श उपरांत पैथोलोजिस्ट की बजाये झोला छाप लैब तकनीशियन जांच करके अपनी रिपोर्ट देते है, जबकि नियमानुसार पैथोलोजिस्ट ही जांच रिपोर्ट कर सकता है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार सिरसा में ऐसी प्रयोगशालाओं की कोई कमी नहीं, जहां ऐसे लोगों द्वारा जांच उपरांत रिपोर्ट तैयार की जाती है, जिनके पास कोई मान्य डिग्री होती है और हड्डी कोई डिप्लोमा। ज्यादातर प्रयोगशालाओं में सिर्फ अनुभव के आधार पर स्टॉफ रखकर कागजी कार्यवाही पूरी की जाती है। आश्चर्यजनक पहलू यह है कि प्रयोगशालाओं से कही खतरनाक अस्पतालों में नर्सिंग केयर के नाम पर कार्य करने वाले युवक -युवतियां है, जिनके पास कोई मान्य डिग्री या डिप्लोमा नहीं होता। जबकि नियमानुसार इनके पास जी.एन.एम, .एन.एम या अन्य किसी प्रकार की मान्य डिग्री या डिप्लोमा नहीं है। ऐसे लोग दिन प्रतिदिन सैकडों मरीजों को ड्रिप देने के साथ साथ इंजैक्शन इत्यादि भी लगाते है, जबकि कई ऐसे इंजैक्शन है, जिनकी मात्रा थोड़ी कम होने पर मरीज की जान को खतरा हो सकता है। केवल इतना ही नहीं, कई अस्पतालों में तो चिकित्सक की अनुपस्थिति में यह मरीजों का उपचार करते है, जिन्हें अस्पताल परिसर में मुंह पर मास्क, हाथों में दस्ताने गले में स्टेथेस्कोप लटकाए आसानी से देखा जा सकता है।

Monday, July 5, 2010

बठिण्डा तेल शोधक कारखाने का नाम तबदील

बठिण्डा(प्रैसवार्ता) केन्द्र सरकार ने बठिण्डा के तेल शोधक कारखाने (रिफाईनरी) का नाम शुरू गोबिन्द सिंह रिफाईनरी लिमिटेड से बदल कर एच पी सी एल मित्तल अैनर्जी लिमिटेड कर दिया है, जिस पर पंजाब सरकार ने भी अपनी स्वीकृति दे दी है। इस का रहस्योदघाटन उस समय हुआ, जब रिफाईनरी के प्रबंधकों को स्टाम्प डियूटी और रजिस्ट्रेशन चार्जिज में छूट लेने के लिए कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि रिफाईनरी के लिए, जो जमीन एक्वायर की गई थी, या की जानी है, उसे स्टाम्प डयूटी तथा रजिस्ट्रेशन चार्जिज पर छूट है। पंजाब सरकार द्वारा 22 जून को बठिण्डा प्रशासन को, जो एजेंडे की कापी भेजी गई है, उसके अनुसार रिफाईनरी का नाम एच पी सी एल मित्तल अर्नजी लिमिटेड लिखा हुआ है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार गृह सचिव पंजाब ने इस प्रौजेक्ट संबंधी एक उच्च स्तरीय मीटिंग की थी, जिसमें रिफाईनरी के प्रबंधकों ने कहा था कि केन्द्र सरकार ने इस रिफाईनरी का नाम बदल दिया गया, जिस पर पंजाब सरकार ने भी नोटिफिकेशन की तैयारी शुरू कर दी है। रिफाईनरी के प्रबंधकों द्वारा एक्वायर जमीन के लिए राजस्व विभाग से छूट की मांग की गई, तो उन्होंने नये नाम पर छूट देने से इंकार कर दिया, क्योंकि राजस्व रिकार्ड में पुराना नाम ही चल रहा है। अब राज्य सरकार ने नाम बदलने को हरी झंडी दे दी है।

Tuesday, June 15, 2010

आचार संहिता उपरांत फिर आचार संहिता

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का दूसरा कार्यकाल आचार संहिता के बीच है। राज्य चुनाव आयोग ने आठ जिलों के पंचायती चुनाव करवाने की घोषणा करके 15 जुलाई तक मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को एक राहत दी है, जिसके चलते उन्हें राजनीतिक कठिनाईयों को उत्पन्न करने वाले निर्णयों को टालने का अवसर मिल गया है, जिसमें मंत्रिमंडल का विस्तार तक शामिल है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार तबादलों के इन महीनों में, जहां सरकारी कार्यालयों में सूनापन है, वहीं राजनेता भी आचार संहिता कह कर अपना पीछा छुड़वा रहे हैं। राज्य का सचिवालय तो मंत्री, मुख्य संसदीय सचिवों के दर्शनों को तरस गया है, क्योंकि मंत्री और संसदीय सचिव अपने-अपने क्षेत्र के चुनावों में व्यस्त है। सरकारी तंत्र भी किसी भी सरकारी फाईल को हाथ लगाने या आगे बढ़ाने में आचार संहिता की दुहाई देकर चुप्पी साध लेता है। आचार संहिता के चलते राजनीतिक प्रभाव डालने वाले निर्णय ही नहीं, बल्कि जनहित में लिए जाने वाले निर्णय भी आगे सरक जाते हैं।

'उमरां'च की राखिया है

हिसार(प्रैसवार्ता) विज्ञान ने एक बार फिर उम्र पर विजय हासिल करते हुए आई.वी.एफ तकनीक से सातरोड़ की भतेरी देवी ने 66 वर्ष की आयु में तीन बच्चों को जन्म देकर नया कीर्तिमान बनाया है। इस तकनीक से 29 मई को जन्म लेने वाले तीनों बच्चे सकुशल हैं। नैशनल फर्टीलिटी सैंटर के संचालक डा. अनुराग बिश्रोई ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि भतेरी देवी ने तीसरी बार गर्भधारण किया है। इससे पहले सिर्फ दो-दो भू्रण प्रत्यारोपित किये गये थे, लेकिन तीसरी बार उनकी बच्चेदानी में तीन भ्रूण प्रत्यारोपित किये गए, जिस पर भतेदी देवी ने दो लड़कों तथा एक लड़की को जन्म दिया। 21 मई 1944 को रोहतक जिला के ग्राम मदीना के लहरी सिंह दांगी के घर जन्म लेने वाली भतेरी देवी का विवाह देवा सिंह से हुआ था। देवा सिंह ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि भतेरी देवी से शादी उपरांत उसने दो और विवाह किये, लेकिन कोई सन्तान नहीं हुई थी, मगर अब तीनों बच्चों के जन्म से वह खुश है। डा. बिश्रोई के अनुसार आई.वी.एफ (इन विट फर्टीलाईजेशन) तकनीक से अच्छे परिणाम सामने आये हैं। वर्ष 2008 में जीन्द की राजो देवी ने 70 वर्ष की आयु में एक लड़की को जन्म दिया था। इससे पूर्व 2005 में रोमानिया की एक 66 वर्षीय महिला ने दो बच्चों को जन्म दिया था। उन्होंने बताया कि आई. वी.एफ को परखनली शिशु तकनीक कहा जाता है। इसमें पुरूष के शुक्राणु व महिला के अंडाणु प्राप्त कर उससे भू्रण तैयार करके 48 से 72 घंटे तक इंक्यूवेटर में रखने उपरांत महिला की बच्चेदानी से प्रत्यारोपित किया जाता है।

सरकार को सहयोग दे रहे-तीन निर्दलीय विधायकों को जोर का झटका धीरे से

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) निर्दलीय विधायकों के सहारे बनी हरियाणा की हुड्डा सरकार ने अपने एक मंत्री और दो मुख्य संसदीय सचिवों के परिवारजनों के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज करके इन्हें जोर का झटका धीसे से दिया है-जबकि इससे पूर्व भी हुड्डा की इस झटका तकनीक से पूर्व वित्त मंत्री वीरेन्द्र सिंह, पूर्व मंत्री किरण चौधरी, प्रदेश कांग्रेस प्रधान फूल चंद मुलाना समेत कई कांग्रेसी दिग्गज अभी तक उभर नहीं पाये हैं। विधानसभा चुनाव में अपने विरोधी कांग्रेसी दिग्गजों का सफल आप्रेशन करने वाले भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने सात निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बनाई थी, जिनमें से चार को मंत्री पद तथा तीन को मुख्य संसदीय सचिव बनाया गया था। हाल ही में हुए नगर निगम फरीदाबाद के चुनाव में राजस्व राज्य मंत्री शिवचरण शर्मा की पत्नी और बेटे के खिलाफ पुलिस द्वारा विभिन्न-विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज करना, मेवात जिले के ग्राम जमालगढ़ में मुख्य संसदीय सचिव जलेब खान के दामाद के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करना तथा गृह राज्य मंत्री गोपाल कांडा के खिलाफ मुख्य सचिव को मामले पर कार्यवाही का निर्देश संकेत देता है, कि निर्दलीय विधायकों से जरूरत पर समर्थन लिया गया था, मगर अब स्थिति में बदलाव चुका है। जिक्र योग है कि 1999 में राज्य के 22 विधायकों ने बंसी लाल का साथ छोड़कर इनैलो की सरकार बनाई थी और वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनावों में इन्हें अपना प्रत्याशी बनाते हुए इनैलो सुप्रीमों ओम प्रकाश चौटाला ने यह कहकर इंकार कर दिया था, कि तुम बंसी लाल के होकर भी नहीं हो सके, मैं तुम पर कैसे विश्वास कर लूं। शायद इसी तर्ज पर हुड्डा चल रहे हैं।

Saturday, June 12, 2010

रंजीव दलाल नहीं एमएस मलिक है हरियाणा के डीजीपी

सिरसा(प्रैसवार्ता) केंद्र व राज्य सरकार बेशक पुलिस के आधुनिकीकरण की बात करती हो, स्वयं पुलिस महानिदेशक पुलिस को अपडेट करने के बयान देते हों, मगर जमीनी हकीकत इससे इत्तफाक नहीं रखती। कागजों में कभी मार न खाने वाली पुलिस कंप्यूटर पर तो इस मामले में निरक्षर ही साबित हो रही है। यही वजह है, कि राज्य पुलिस की वेबसाइट पर आज भी एमएस मलिक को ही पुलिस महानिदेशक दर्शाया हुआ है। इतना ही नहीं लगभग सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों के नाम भी वे शो किए हुए हैं, जो पदोन्नति पाकर अतिक्ति पुलिस महानिरीक्षक या पुलिस महानिरीक्षक बन चुके हैं। पुलिस की वेबसाइट पर जॉन वी जॉर्ज को आईजी कानून व्यवस्था दिखाया हुआ है, जबकि वे कभी के इस पद से पदोन्नति पाकर एडीजीपी बन चुके हैं। इसी प्रकार राकेश मलिक को आईजी प्रशासन, रविकांत शर्मा को आईजी आधुनिकीकरण एवं वैल्फेयर दिखाया हुआ है। इनकी सहायता के लिए जिन अधिकारियों के नाम पुलिस की वेबसाइट पर मौजूद हैं, वे भी गुमराह करने वाले हैं। परमिंद्र राय को डीआईजी प्रशासन, यशपाल सिंघल को डीआईजी ट्रेनिंग, अनिल दावड़ा को डीआईजी आधुनिकीकरण एवं कल्याण प्रस्तुत किया गया है। इसी प्रकार चारों पुलिस रेंज में भी उन अधिकारियों के नाम आईजी के तौर पर दर्शाए गए हैं, जो या तो रिटायर हो चुके हैं या फिर किसी अन्य पद पर पहुंच गए हैं। अंबाला रेंज में एचएस अहलावत को आईजी दिखाया गया है। हिसार के आईजी के तौर पर आरएन चालिया को दर्शागया गया है, जबकि चालिया अपने पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। गुडग़ांव रेंज में आरएस दलाल को आईजी दिखाया गया है, जबकि रोहतक रेंज में रेशम सिंह को आईजी दिखाया गया है। रेशम सिंह भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जिलों में मामले में भी पुलिस अभी बरसों पीछे है। पुलिस के वेबसाइट आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 19 जिले ही हैं। सभी जिलों में कई बार एसपी बदले जा चुके हैं, परन्तु पुलिस की वेबसाइट इससे तवज्जो नहीं रखती। पुलिस की वेबसाइट की मानें तो पंचकुला में सीएस राव, अंबाला में केके मिश्रा, यमुनानगर में केके सिंधु, कुरूक्षेत्र में देसराज सिंह, कैथल में पीआर देव, करनाल में एएस अहलावत, पानीपत में कुलदीप सिंह, सोनीपत में एएस चावला, रोहतक में पीके अग्रवाल, झज्जर मोहम्मद शकील, गुडग़ांव में एसएस कपूर, फरीदाबाद में आरएस शर्मा, नारनौल में एमएस कपूर, फरीदाबाद में आरएस शर्मा, नारनौल में एमएस अहलावत, रेवाड़ी में एसपी रंगा, हिसार में संदीप खिरवार, सिरसा में एकेराव, भिवानी में सुमन मंजरी, जींद में राजपाल सिंह व फतेहाबाद में हनीफ कुरैशी पुलिस की कमान संभाल रहे हैं। मजे की बात यह है कि उक्त सभी आईपीएस अधिकारी पुलिस की विभिन्न शाखाओं में आईजी या उससे भी ऊंचे पद पर पदोन्नति पा चुके हैं। पुलिस की वेबसाइट अपडेट करने वालों ने तो पुलिस का मानचित्र ही बदलकर रख दिया और प्रदेश में 19 जिले ही प्रस्तुत किए हैं, जबकि प्रदेश में 22 जिले अस्तित्व में आ चुके हैं।

26 अगस्त तक हो जायेगा-किराया एक्ट लागू

बठिण्डा(प्रैसवार्ता) पंजाब सरकार 26 अगस्त से पहले किराया एक्ट लागू कर देगी, अदालत ने इस प्रकरण में सरकार को निर्देश जारी किया है। अदालती निर्देश उपरांत सरकार गंभीर हो गई है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार अदालत ने याचिकाओं उपरांत इस मामले में बनी कमेटी की रिपोर्ट उपरांत 26 अगस्त तक इस एक्ट को लागू करने को कहा था। उक्त एक्ट लागू होने का मामला काफी समय से लटक रहा था। बेअन्त सिंह सरकार (1995) के समय तैयार किये गये इस एक्ट को राष्ट्रपति ने भी 1998 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी। कैप्टन सरकार सरकार के कार्यकाल में भी यह मामला अटका रहा था, क्योंकि इस मामले में में दो याचिकाएं अदालत में दायर की गई थी, जिनमें से लुधियाना के वकील इंद्रजीत सिंह की ओर से 1878/2000 तथा मनजीत कौर द्वारा 2004/14281 की याचिका शामिल थी। इस प्रकरण में अदालती निर्देश मानने पर एक अधिकारी की खिंचाई भी की गई थी। अगस्त 2009 में इस प्रकरण से संबंधित एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसने पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक, राजस्थान में जाकर पाया था, कि किराया एक्ट के अच्छे परिणाम हैं-जिनसे पालिका/निगमों को ज्यादा आय होगी। प्रदेश में अभी तक 1949 उपरांत उक्त कानून को पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया, क्योंकि भारत-पाक विभाजन होने उपरांत पाकिस्तान से काफी संख्या में लोग भारत आये थे, जहां उनके रहने के लिए मकानों की कमी थी। इस पांच साल के लिए बढ़े कानून मुताबिक तो किराया बढ़ाया जा सकेगा और ही किरायेदार को निकाला जायेगा। ''प्रैसवार्ताÓÓ के अनुसार किराया एक्ट लागू होने से दुकानों के किराये में भी बढ़ौत्तरी होगी और शहरों में विकास गति तीव्रता लेगी। इस प्रकरण में गठित सुखबीर-कालिया कमेटी द्वारा एक हजार करोड़ से ज्यादा राजस्व आने की संभावना व्यक्त की है। इस संबंध में स्थानीय शासन और निकाय विभाग द्वारा भी सर्वेक्षण करवाया गया था, जिससे पता चला था कि राज्य में किरायेदारों की संख्या ज्यादा है। इस एक्ट को लागू करने के मामले में केन्द्र सरकार ने पंजाब सरकार को पुन:''यूजर चार्ज" लगाने को कहा था। इसमें किराया एक्ट लागू किये जाने की भी चर्चा है।

Friday, June 11, 2010

नकली घी के बाद अब नकली सरसों तेल की बिक्री

सिरसा(प्रैसवार्ता) जिला सिरसा के कालांवाली क्षेत्र में देसी घी व नकली दूध की बिक्री के बाद इन दिनों सरसों का नकली तेल भी जोर-शोर से बिक रहा है। नकली सरसों के तेल की बिक्री से लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है वहीं कम कीमत वाले इस नकली तेल को महंगे रेट पर बेचा जा रहा है। इसके साथ इस तेज का वजन भी कम होता है। इस नकली तेल की बिक्री को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने के कारण यह धंधा पूरे जोर शोर से जारी है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार मंडी कालांवाली व अन्य कस्बों में विभिन्न ब्रांडों के नकली तेल की बिक्री जोरों पर हो रही है। यह तेल बोतलों की पैकिंग में उपलब्ध है। पता नहीं यह तेल कहां से आता है। बोतलों के रेपरों पर सिरसा व पंजाब की मंडी किलियांवाली के नाम का पता दिया जाता है। यह तेल इतनी सुंदर पैकिंग में उपलब्ध करवाया गया है ताकि ग्राहकों को इसके नकली होने का पता न चल सके। जब इस संबंध में क्षेत्र के एक निजी चिकित्सक से बात की तो उसने बताया कि जिस प्रकार केमिकल इस तेल में प्रयोग किए जा रहे है वे मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। पता चला है कि इस तेल में सस्ते तेलों के अलावा कई केमिकल भी मिलाए जाते है ताकि यह तेल असली की तरह नजर आए। कई उपभोक्ताओं ने बताया कि जब यह तेल फ्रिज में रखा गया तो घी की तरह जम गया जबकि असली सरसों का तेल कभी नहीं जमता। कई उपभोक्ताओं ने प्रैसवार्ता को बताया कि इस तेल का स्वाद असली तेल जैसा नहीं है।

Tuesday, June 8, 2010

हरियाणा: जहां प्रसूति वार्ड में पुरूष करते हैं-डयूटी

नारनौल(प्रैसवार्ता) स्थानीय सिविल अस्पताल के प्रसूति गृह में महिला स्टाफ नर्स की जगह पुरूष डयूटी कर रहे हैं, जिसके चलते प्रसूति करवाने वाली महिलाएं सहमी-सहमी रहती हैं। वहीं मरीज के साथ आये तीमारदार भी परेशान होते हैं। प्रसूति गृह में पुरूषों की डयूटी और वह भी एक राज्य में, जहां महिलाएं घूंघट में रहती हैं, चिंतनीय है। राज्य सरकार के निर्देशानुसार प्रसूति गृह में डिलीवरी भी महिला नर्सों द्वारा की जानी अनिवार्य है तथा पुरूषों का इस वार्ड में प्रवेश वर्जित है, परन्तु नारनौल के सिविल अस्पताल में सब कुछ सरकारी आदेशों के विपरीत हो रहा है। पुरूषों की उपस्थिति में, जहां प्रसूति करवाने वाली महिला सहमी-सहमी रहती है, वहीं उसकी गोपनीयता भी भंग होती है। देश, जहां महिला सशक्तीकरण की ओर बढ़ रहा है, ऊंचे-ऊंचे पदों पर महिलाएं आसीन हो रही हैं, वहीं नारनौल में प्रसूति के लिए महिलाओं को पुरूषों के सामने अपनी डिलीवरी करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

9 साल बिना मान्यता के ही पढ़ाते रहे विज्ञान संकाय

सिरसा(प्रैसवार्ता) डीसी कॉलोनी स्थित एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान द्वारा बिना मान्यता के ही 10 जमा 1 व 2 के विद्यार्थियों को विज्ञान संकाय में दाखिला देने के कारण इस स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर रहे या कर चुके विद्यार्थियों के भविष्य पर प्रश्रचिन्ह लग गया है। अतिरिक्त न्यायिक दंडाधिकारी सुधीर परमार की अदालत ने इस मामले में स्कूल प्रबंधन को दोषी ठहराते हुए इसके खिलाफ आई शिकायत को स्वीकार कर लिया है। तथ्यों के अनुसार चंडीगढ़ स्थित शिक्षा निदेशालय द्वारा भेजे गए पत्र के साथ छेड़छाड़ करके सेंट्रल स्कूल के संचालकों ने आट्र्स, कॉमर्स के साथ लिखे संकाय शब्द को साइंस में बदल दिया। शिक्षा निदेशालय द्वारा हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी के सचिव, जिला शिक्षा अधिकारी सिरसा व सेंट्रल स्कूल को एक ही प्रतियां प्रेषित की गई थी,लेकिन गंतव्य पर पहुंचने वाले इन पत्रों का मूल स्वरूप बदल गया जिसके तहत सेंट्रल स्कूल को आट्र्स, कॉमर्स के साथ-साथ साइंस संकाय की भी मान्यता दर्शा दी गई। मामले के अनुसार, डीसी कॉलोनी स्थित सेंट्रल स्कूल ने 10 जमा 2 कक्षा में आट्र्स व कॉमर्स संकाय की कक्षा संचालित करने के लिए निदेशक सैकेंडरी एजुकेशन हरियाणा से आवेदन किया गया था। निदेशक शिक्षा हरियाणा के आदेश में केवल आट्र्स व कॉमर्स संकाय में ही सशर्त अस्थायी मान्यता देने संबंधी पत्र जारी किया। निदेशक शिक्षा विभाग द्वारा इस पत्र की प्रति सेंट्रल स्कूल के प्रबंधक के अलावा हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड व जिला शिक्षा अधिकारी को भी प्रेषित की गई थी। निदेशक शिक्षा विभाग द्वारा जारी इस पत्र में सेंट्रल स्कूल को आट्र्स व कॉमर्स संकाय में ही कक्षाएं संचालित करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन स्कूल संचालकों ने साइंस संकाय के संचालन से मोटी कमाई जुटाने के लिए इस पत्र से छेड़छाड़ कर साइंस विषय भी जोड़ दिया। बताते हैं, कि स्कूल संचालकों ने साइंस संकाय चलाने के लिए शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों से गठजोड़ किया और जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को मूल पत्र से की गई छेड़छाड़ वाली कॉपी प्रदान की। इसी प्रकार स्कूल संचालकों ने हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड को भी शिक्षा निदेशक से हासिल हुए पत्र से कथित छेड़छाड़ वाली कॉपी उपलब्ध करवाई। इस सारे मामले का भंडाफोड़ सूचना अधिकार अधिनियम के कारण हुआ। खैरपुर निवासी कमल किशोर पुत्र हरिसिंह व रवि कुमार पुत्र अशोक कुमार जग्गा ने सूचना अधिकार के माध्यम से शिक्षा निदेशालय से जानकारी मांगी। निदेशक शिक्षा हरियाणा चंडीगढ़ के आदेश दिनांक 24 सितंबर 2001 की प्रति में शिक्षा निदेशक की ओर से केवल आट्र्स व कॉमर्स विषय की ही मान्यता दिए जाने का उल्लेख किया गया। इस मामले में संपूर्ण जानकारी उपलब्ध न होने के कारण याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय में शिकायत की। इस पर फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश सुधीर परमार ने इसे विद्यार्थियों के साथ छलकपट बताते हुएण् शिकायत को जायज ठहराते हुए स्कूल संचालकों को दोषी करार दिया है। इस संबंध में सेंट्रल स्कूल के प्रिंसीपल नरेश पंवार से बातचीत की गई, तो उन्होंने कहा कि यह कोर्ट का अंतरिम आदेश है और वे इसे सेशन कोर्ट में चुनौती देंगे। वहीं जिला शिक्षा अधिकारी आशा किरण ग्रोवर ने कहा कि न्यायालय के फैसले की अनुपालना की जाएगी। न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले की सूचना जैसे ही अभिभावकों को मिली तो उनमें हड़कंप मच गया। अब वे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हो उठे हैं।

शपथ पत्र सिर्फ अदालती कार्यवाही के लिए

पंचकुला(प्रैसवार्ता) गैंस कनैक्शन और राशन कार्ड जैसे रोजमर्रा के कामकाज के लिए अब शपथ पत्र देना जरूरी नहीं, क्योंकि राज्य सरकार ने शपथ पत्र की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। सरकार का यह आदेश दो जून से राज्य में प्रभावी हो गया है, परन्तु अदालती कामकाज के लिए शपथ पत्र देने पर यह आदेश लागू नहीं होगा। गौरतलब है, कि अब तक प्रदेश में तमाम प्रकार की पहचान और दस्तावेज होने उपरांत भी छोटे-छोटे काम के लिए शपथ पत्र देना पड़ता था, जिसके लिए लोगों को उसे तस्दीक करवाने के लिए तहसील कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते थे, या फिर नोटरी के पास जाना पड़ता था। राशन कार्ड बनवाना हो या फिर आमर्स लाईसैंस, गैंस कनैक्शन से लेकर साधारण काम तक के लिए शपथ पत्र अनिवार्य था। राज्य सरकार के इस नये निर्देश मुताबिक अदालत के कामकाज को छोड़कर सभी कार्यों के लिए साधारण पत्र ही मान्य होगा। अगर ज्यादा ही जरूरी होगा, तो आवेदक अपने सरपंच या पार्षद से तस्दीक करवाकर अपना कामकाज करवा सकता है। इस संबंध में राज्य की मुख्य सचिव द्वारा अधिसूचना भी जारी की गई है।

Monday, June 7, 2010

जहां बुढ़ापा पैंशन के आधे लाभपत्र फर्जी है

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा राज्य के कई सरकारी विभाग वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं, वहीं समाज कल्याण विभाग में एक बहुत बड़ा घपला उजागर हुआ है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार पिछले दो वर्षों में बढ़ापा पैंशन के लाभपात्रों की संख्या में हुई दुगन्नी वृद्धि बढ़कर 12 लाख 53 तक पहुंच गई। प्रति मास करीब 16688 की दर से लाभपात्रों की संख्या में वृद्धि होने के चलते प्रतिवर्ष 2 लाख 10 हजार व्यक्ति 60 वर्ष की आयु सीमा में सम्मिलित होकर लाभपात्रों से जुड़ गये हैं-जबकि 15 प्रतिशत वास्तव में बुढ़ापा पैंशन लेने के अधिकार से वंचित है। आश्चर्यजनक बात यह है, कि स्वास्थ्य विभाग, हरियाणा के आंकड़ों अनुसार कुल आबादी का 0.5 प्रतिशत भाग (करीब सवा लाख व्यक्ति) ही 59 वर्ष की आयु सीमा को पार करके 60 वर्ष के हुए हैं, जबकि इसके विपरीत 2 लाख दस हजार लोग पैंशन ले रहे हैं। जिक्र योग है कि प्रतिवर्ष 60 वर्ष की आयु में पहुंचने वाले सवा लाख व्यक्तियों में वह लोग भी शामिल है, जो कि बुढ़ापा पैंशन प्राप्ति के योग्य नहीं है। हरियाणा प्रदेश में कुल 18 लाख व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार की पैंशन योजनाओं का लाभ ले रहे हैं, जबकि बुढ़ापा पैंशन योजना में 13 लाख के करीब लाभपात्र है। इस संबंध में ''प्रैसवार्ताÓÓ द्वारा सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण विभाग हरियाणा के कार्यालय से सम्पर्क किया गया, तो पता चला कि यह घपला पिछले वर्ष सितम्बर महीने में उस समय उजागर हुआ, जब सरकार ने दो प्रतिशत की दर से बैंकों को पैंशन बांटने का कार्यभार सौंपने का निर्णय लिया। इस निर्णय उपरांत बुढ़ापा पैंशन लाभपात्र लोगों की नई सूची बनाने तथा उंगी निशान वाले परिचय कार्ड बनाने के लिए बैंकों को एक सौ रुपये प्रति लाभपात्र के हिसाब से देने के लिए निजी कंपनियों से तालमेल किया, तब फर्जी लाभपात्र का विवरण एकत्रित करने के लिए विशेष अभियान शुरू किया गया। कार्यालय सूत्रों अनुसार प्रारंभिक जांच दौरान यह बात सामने आई कि बुढ़ापा पैंशन लाभपात्रों के परिचय कार्ड बनाने के लिए अनुबंधित निजी कंपनियों के प्रतिनिधियों को ग्रामीण स्तर पर जाकर सरपंच सहित प्रभावी व्यक्तियों की हिदायत पर जाली लाभपात्रों की जानकारी मिली। राज्य में सैकड़ों की संख्या में मृतकों को भी पैंशन दिये जाने के रहस्य से भी पर्दा उठा है। प्राप्त आंकड़ों अनुसार वर्ष 2008 में गुडग़ांव जिले की लाभपात्र संख्या 25304 थी, जो वर्ष 2010 में बढ़कर 80818 तक पहुंच गई। दो वर्षों में जिले में 55514 लाभपात्र हैं। सिरसा जिला में वर्ष 2008 में 41906 लाभपात्र थे, जो वर्ष 2010 में बढ़कर 81139 हो गये हैं। इसी प्रकार जीन्द जिले में 44327 से बढ़कर 81590, भिवानी जिले में 62861 से बढ़कर 96240 लाभ पात्र हो गये हैं। विभाग इस घपलेबाजी को रोकने के लिए पुन: बुढ़ापा पैंशन के लाभपात्रों के बैंक खाते खोलने की योजना बना रहा है।

Wednesday, June 2, 2010

हिंदी साहित्य सम्मेलन की डिग्री अवैध

नई दिल्ली(प्रैसवार्ता) सुप्रीम कोर्ट ने 1967 उपरांत हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से डिग्री, डिपलोमा या सर्टिफिकेट लेने वालों पर आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाते हुए इस द्वारा जारी सभी प्रमाण पत्रों को अवैध करार दिया है। इन प्रमाण पत्रों के सहारे आयुर्वेदिक की प्रैक्टिस कर रहे है चिकित्सकों के लिए यह एक बड़ा झटका है। जस्टिस डा. बी.एस. चौहान और स्वतंत्र कुमार की बैंच ने दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा के आयुर्वेद चिकित्सों की याचिका को खारिज करते हुए उक्त निर्णय सुनाया है। इन चिकित्सकों ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षा पास की थी, परन्तु यह आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए 1970 में अधिसूचित मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। बैंच ने अपने निर्णय में कहा, ''बिना वैद्य योग्यता, डिग्री या डिपलोमा के अकुशल, अपंजीकृत व अनधिकृत चिकित्सकों को रोगियों के शोषण की अनुमति नहीं दी जा सकती। संस्थान ने इन लोगों को न ही छात्र के रूप में भर्ती किया और न ही उन्हें औपचारिक शिक्षा दी। बिना मान्यता का यह संस्थान इन लोगों की बुनियादी योग्यता से भी वाकिफ नहीं है। 1970 के कानून में निर्धारित योग्यता के बिना किसी भी व्यक्ति को मैडीकल प्रेक्टिस करने की अनुमति नहीं दी गई है। ऐसे में इन लोगों पर आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने पर पाबंदी गलत नहीं है।

गांव की चौधर के लिए साम-दाम , दंड-भेद का इस्तेमाल

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) 6 जून तथा 12 जून को होने वाले पंचायती चुनावों को लेकर प्रदेश के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में शादी जैसा माहौल दिखाई देता है। जगह-जगह लगे टैन्ट, कुर्सियां, पोस्टरों तथा होर्डिंग पर हाथ जोड़कर वोट मांगते उम्मीदवार, चाय-पानी ठंडे, लंगर तथा शराब की उचित व्यवस्था देखी जा सकती है। समय के साथ-साथ बदलाव हर वस्तु में आता है और चुनावी रंग में आया बदलाव स्पष्ट छलकता है। वर्तमान चुनाव में आये बदलाव, प्रचार के बदलते तौर तरीके और आधुनिकता के इस युग में हाईटैक हुए चुनावों की सरगर्मियों की सही तस्वीर पर प्रस्तुत है, ''प्रैसवार्ता" की एक चुनावी रिपोर्ट! बढ़ते पारे के साथ जिला परिषद, खंड समिति तथा पंचायती चुनाव में बढ़ी सरगर्मियों में उम्मीदवार घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं। राज्य चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित खर्च पर चुनाव लडऩा कठिन है, क्योंकि छोटा समझा जाने वाला पंचायती चुनाव भी काफी महंगा पड़ता है। ग्राम भाग खेड़ा के राजपाल ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि वह जमाना लद गया, जब सैंकड़ों रुपयों में चुनाव हो जाता था। चुनाव सरपंची, पंची का हो या फिर विधायक और सांसद का एक जैसे ही तौर-तरीकों का जमाना आ गया है। दूर-दराज शहरों/ग्रामों में बसे मतदाताओं को अपने वाहनों पर मतदान के लिए लाने पर होने वाले खर्च के अतिरिक्त कई-कई दिन तक आने-जाने वालों की आवभगत (जलपान, ठंडा, दोपहर भोज आदि)तथा सांय ढलते ही शराब का सेवन करवाना उम्मीदवारों की मजबूरी है। कई बार तो वोटों की खरीद-फिरोक्त भी करनी पड़ती है। ग्राम की चौधर पाने के लिए ज्यादातर उम्मीदवार पैसा पानी की तरह बहा रहे है और विजय श्री प्राप्त करने के लिए साम-दाम, दंड-भेद का हर ढंग इस्तेमाल कर रहे हैं।

बरसात के पानी से होती है- साल भर सिंचाई

सिरसा(प्रैसवार्ता) जल संरक्षण के सिलसिले में सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा द्वारा एक मिसाल कायम करते हुए डेरा परिसर में 6 विशाल डिग्गियां बनाई गई हैं, जिनमें से दो डिग्गियों में बरसाती पानी को संरक्षित किया गया है, जबकि शेष चार डिग्गियों को बरसात का इंतजार है। बरसाती पानी के सरंक्षण से जरूरत पडऩे पर उसी पानी से खेती की सिंचाई की जाती है। डेरा सच्चा सौदा में हर छोटी से छोटी वस्तु का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाता है और पानी के मामले में यह बात पानी की हर बूंद पर लागू होती है। डेरे के शाह सतनाम जी धाम परिसर में और डेरे की खेती की भूमि में, जो भरपूर हरियाली नजर आती है, वह एक शोध का विषय है, क्योंकि करीब दो दशक पूर्व यहां की भूमि जिस स्थिति में थे, अब उसमें काफी बदलाव आ गया, क्योंकि यह भूमि बंजर थी और दूर-दूर तक 20-20 फुट ऊंचे रेतीले पर्यटन स्थल से कम नजर नहीं आता। हर तरह की फसलों से लेकर फलों व फूलों की यहां खेती होती है। डेरा प्रवक्ता डा. पवन इंसा ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि इस क्षेत्र को रेगिस्तान से नखलिस्तान में बदलने के पीछे डेरा प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम सिंह इंसा की अद्वितीय कृषि विशेषज्ञों का होना है। डेरा मुखी स्वयं खेती के कार्यों में बढ़-चढ़ भागीदारी करते हैं। सैकड़ों एकड़ बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया जा चुका है-जबकि डेरा की जल संरक्षण के लिए बनी डिग्गियां एक बड़े कृषि भू-भाग के लिए जीवन देने का काम करती है। बरसाती पानी के संरक्षण के अतिरिक्त डेरा परिसर की रिहायशी कालौनियों से निकलने वाले सीवरेज के बेकार पानी का उपयोग भी सिंचाई के लिए किया जा सके, इसके लिए डेरा परिसर में सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट स्थापित किया जा रहा है। सिंचाई दौरान अधिकतर पानी वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है और पौधों की जड़ों तक पहुंच नहीं पाता, इसके लिए ड्रिप ऐरीगेशन सिस्टम लगाया गया है, जो जितनी पौधे को जरूरत होती है, उतना ही पानी उसे प्रदान करते हैं।

Tuesday, June 1, 2010

रेंडीयर:एक ऐसा हिरण, जिसे पालतू बनाया जा सकता है

उत्तरी अमेरिका में रेंडीयर को कैरीबोआ कहा जाता है। यह जीव काफी बड़ा और बेडोल शरीर का मालिक होता है। नर और मादा दोनों की विशाल और वृक्षों की शाखाओं जैसे सींग होते हैं तथा खुर दूसरे हिरणों के मुकाबले में बड़े और चौड़े होते हैं। यही कारण है कि उनके पैर बर्फ में नहीं घसते। जब यह चलते हैं-तो टॅप-टॅप की आवाज सुनाई देती है। रेंडियर आर्कटिक क्षेत्र में रहता है, जोकि यूरोप, ऐशिया और अमेरिका में फैला हुआ है। आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर और यूरोप के उत्तर में रहने वाले लैपस नामक घुमक्कड़ जाति के लोग पूर्णतया रेंडियर ऊपर ही निर्भर रहते हैं। रेंडीयर से उन्हें दूध और मांस मिलता है, जिसके चमड़े से गर्म कपड़े और बूट बनाये जाते हैं। रेंडीयर ही उनका भारी सामान ढोने वाला पशु है और वही ही उनकी बर्फ पर चलने वाली सैलेज गाडियां खींचता है। बर्फ पर चलने वाली सैलेज गाड़ी चलाने वाली मशहूर हस्त्ी है, शांता क्लाज, परन्तु शान्ता क्लाज के रेंडीयर काफी चमकीले और शानदार दिखाई देते हैं। सजीव रेंडीयरों के मुकाबले में शान्ता क्लाज के रेंडीयर ज्यादा सुन्दर होते हैं। एक अच्छे तैराक माने जाने वाले रेंडीयर सर्दी ऋतु में बर्फ के नीचे शैबाल खाते हैं और गर्मियों के दिनों में घास और पत्ते। रेंडियर एक ऐसा हिरण है, जिसे पालतू बनाया जा सकता है। -मनमोहित (प्रैसवार्ता)

आंखों से ही जजब़ात व्यक्त करने वाले कलाकार-दिलीप कुमार

भारतीय फिल्म उद्योग एक ऐसा स्थान है, जहां प्रतिदिन कोई कोई नया अभिनेता या अभिनेत्री अपना भाग्य अजमाने के लिए कदम रखता है। कई सफल हो जाते हैं-जबकि कई गुमनामी अंधेरों में गुम हो जाते हैं। दिलीप कुमार भी एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने 40 के दशक में फिल्म उद्योग में कदम रखा और अपने जबरदस्त अभिनय की बदौलत सिने दर्शकों के दिलों में ऐसा स्थान बनाया कि आज भी लोग उनकी फिल्मों के संवाद और गीत गुनगुनाते हैं। दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 रविवार को पेशावर में हुआ। बारह बहिन-भाईयों में से अकेले दिलीप कुमार ने फिल्मों में कदम रखा। उनका असली नाम युसुफ खान था। उनके पिता जनाब सखर खान फलों का कारोबार करते थे। वर्ष 1944 में मात्र 22 वर्ष की आयु में दिलीप साहब ने फिल्म ''ज्वार भाटा" के माध्यम से फिल्मी दुनिया में कदम रखा। इस फिल्म में उनके साथ नई कलाकार चंद्रकला पवार को पेश किया गया, परन्तु यह फिल्म कोई विशेष प्रभाव दिखा सकी। वर्ष 1947 में निर्देशक शौकत हुसैन रिजवी के निर्देशन में बनी फिल्म ''जुगनू" की जबरदस्त सफल्ता ने दिलीप कुमार को स्टार बना दिया। इस फिल्म् में उनके बतौर नायिका बेगम नूरजहां ने काम किया। इस जोड़ी की यह पहली और अंतिम फिल्म थी। इसी वर्ष देश की स्वतंत्रता के साथ ही भारत पाक का बंटवारा हो गया और नूरजहां शौकत हुसैन रिजवी से विवाह रचाकर पाकिस्तान चली गई। इस फिल्म का एक गीत ''यहां बदला वफा का बेवफाई से किया है, काफी लोकप्रिय हुआ। वर्ष 1948 में फिल्म ''शहीद" की शानदार सफलता ने दिलीप कुमार की प्रसिद्धि को चार चांद लगा दिये। इस फिल्म का यह गीत ''वतन की राह में, वतन के नौजवां शहीद हो," आज भी लोगों की जबां पर है। फिर इसी वर्ष ही वाडिया मूवीटोन्स की फिल्म ''मेला" में दिलीप कुमार ने अपने अभिनय का ऐसा जादू बिखेरा, कि फिल्म सुपरहिट हुई। 1949 में उन्होंने सुप्रसिद्ध निर्देशक महबूब खान की फिल्म ''अंदाज" में नरगिस और राज कपूर के साथ काम किया, मगर यह फिल्म भी सुपरहिट हुई। 1951 में निर्देशक नीतिन बोस की फिल्म ''दीदार" दिलीप कुमार के फिल्मी कैरियर की एक यादगार फिल्म कही जा सकती है। 1952 में उन्होंने निर्देशक महबूब खान द्वारा बनाई गई भारत की पहली 16 एम.एम रंगीन फिल्म ''आन" में अभिनय किया। इस फिल्म में दिलीप कुमार एक ऐसे नवयुक की भूमिका निभाई, जो एक अहंकारी साहिबजादी को सबक सिखाता है। 1955 में निर्देशक खान की शानदार फिल्म ''देवदास" आई जिसने रिकार्ड तोड़ सफलता प्राप्त की, बल्कि उस फिल्म में दिलीप साहिब के ''देवदास" की तरफ से बोले गये एक संवाद ''कौन कम्बख्त पीता है, जीने के लिए" ने ट्रेजडी किंग के रूप में विश्व स्तर पहचान बना दी। इस फिल्म के माध्यम से दिलीप कुमार और बैजंती माला की जोड़ी फिल्मी पर्दे पर पेश की गई। 1957 में दिलीप साहब ने निर्देशक बी.आर. चौपड़ा की फिल्म ''नया दौर" में एक तांगे वाले की भूमिका निभाकर सिने दर्शकों का दिल जीत लिया। बजैन्ती माला के साथ आई फिल्म ''मधुमति" को भी बॉक्स- ऑफिस पर खूब सफलता मिली। दिलीप कुमार-बैजन्ती माला की जोड़ी ने आठ फिल्मों में काम करते सभी फिल्मों में सफलता के रिकार्ड तोडे। फिर उन्होंने ''याराना" ''हलचल", ''दाग", ''सदगिल", ''फुटपाथ", ''आदमी", ''गंगा-यमुना", ''संगीना", ''राम और श्याम" इत्यादि यादगार फिल्मों ने अमित छाप छोड़ी, परन्तु जिस फिल्म ने दिलीप कुमार को फिल्म उद्योग के इतिहास में अमर कर दिया, उस फिल्म का नाम था, ''मुगले--आजम" इस फिल्म के निर्देशक के. आसिफ थे। यह फिल्म 5 अगस्त 1960 को मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमा घर में रीलीज हुई और इसने सफलता का ऐसा इतिहास रचा, कि आज तक भी लोग इस फिल्म के दीवाने हैं। इस फिल्म में दिलीप साहब ने शहजादा सलीम और मधुबाला ने अनारकली की भूमिका निभाई थी। फिल्म में शहनशाह अकबर की भूमिका महान कलाकार पृथ्वी राज कपूर की थी। इस फिल्म के संवाद आज भी बच्चे-बच्चे की जुबां पर है। उनके अभिनय की विशेष पहचान थी कि, बगैर बोले ही आंखों के साथ ही जजबातों का इजहार कर देना। इसी दौर में उन्हें अभिनेत्री मधुबाला से प्यार हो गया, परन्तु यह इश्क सिरे चढ़ सका। दिलीप कुमार ने अपनी प्रतिभा के माध्यम से सर्वोत्तम अभिनेता के रूप में आठ ''फिल्मफेयर एवार्ड" जीते, जिनमें लगातार तीन बार पुरस्कार प्राप्त करने का गर्व प्राप्त किया। 1966 में उन्होंने अभिनेत्री नसीम बानों की बेटी सायरा बानो से निकाह कर लिया। दिलीप साहब ने 80 के दशक में भी अपनी चमक को मध्यम नहीं होने दिया। इस दशक में यश-चौपड़ा की फिल्म ''मशाल" सुभाष घई की फिल्में ''कर्मा" और ''सौदागर" आदि यादगारी और सुपर हिट फिल्में फिल्म जगत को दी। 1998 में उन्होंने आखरी बार फिल्म ''किला" में दिखाई दिये और इसके बाद उन्होंने फिल्म जगत से सन्यास ले लिया। वह इतने प्रसिद्ध थे कि एक बार पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली के रामलीला मैदान में कहा था कि ''कोने-कोने" में लोगों की आवाज को बहुत बारीकी से सुना जाता है, एक मेरी और दूसरी दिलीप साहब की" विदेशी यात्री भी कहते थे कि दो चीजें भारत में जरूर देखने वाली हैं- ''ताजमहल" और ''दिलीप कुमार" ''प्रैसवार्ता" को दिए गए साक्षात्कार में एक बार दिलीप कुमार ने कहा था, कि वर्तमान में फिल्मी सितारे अपनी मर्जी और शर्तों पर फिल्में करते हैं, जबकि एक ऐसा जमाना भी था, जब उन्हें सख्त नियमों का पालन करने के साथ-साथ उल्लंघन होने पर दंडित होना पड़ता था। उन्हें याद है कि जब वह ''बाम्बे टाकीज कम्पनी" में काम करते थे, तब एक बार वह भड़कीले कपड़े पहनकर स्टूडियो पहुंचे, तो उन्हें चेतावनी मिली। एक बार स्टूडियो में सिगरेट पीने के कारण एक सौ रुपया का दंड दिया गया। उनका और राजकपूर की अकसर स्टूडियो छोड़कर दोपहर में फिल्मी शौ देखने की आदत थी और एक दिन ''बॉम्बे टाकीज" की मालकिन ने उन्हें देख लिया और दोनों को पास बुलाकर बड़े प्यार से फिल्म देखने आई विशेष अतिथि लेड़ी रामा राव, श्रीमति जमशेद जी टाटा और सहेलियों से मिलवाया। दिलीप साहब खुश हो गये, कि गलती माफ हो गई, परन्तु अगली पहली तिथि को उनका यह भ्रम टूट गया कि कोषाध्यक्ष ने उनके वेतन से एक सौ रुपया काट लिया। दिलीप साहब ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी फिल्मों को समर्पित कर दी थी।.......... को महान कलाकार ने इस दुनिया से विदाई ले ली और पीछे छोड़ गये अपनी यादें, जो आज भी सिने दर्शकों के दिलों पर छाई हुई है। -चन्द्र मोहन ग्रोवर (प्रैसवार्ता)

हरियाणा के अफसरों की होगी बल्ले-बल्ले

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा के अफसरों की बल्ले-बल्ले होने जा रही है। उनके वेतन में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। डीएसपी, आबकारी एवं कराधान अफसर, वेटरनिटी डाक्टरों समेत 11 श्रेणी के अफसरों का वेतन बढ़ाने को मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा से सोमवार को मंजूरी मिल चुकी है। इस संबंध में अब कभी भी अधिसूचना जारी हो सकती है। इन अफसरों का वेतन करीब एक साल पहले घटा दिया था। हरियाणा सरकार ने जब छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद एक जनवरी 2006 से नए वेतनमान लागू किए थे, तो कुछ के वेतन में विसंगतियां आ गई थीं। उन्हें दूर करने के चक्कर में सरकार ने 18 अगस्त 2009 को वेतनमान ही घटा दिए। इससे अफसरों में जबरदस्त नाराजगरी फैली। इन अफसरों ने सरकार के पास अपनी शिकायतें भेजीं। अब मुख्यमंत्री ने इन्हें मंजूर कर लिया है और 11 श्रेणी के अफसरों का वेतन बढ़ाने को मंजूरी दे दी है। डीएसपी, आबकारी एवं कराधान अफसर, डेंटल सर्जन, एचसीएमएस डाक्टर, हरियाणा वेटरनिटी सर्जन, हरियाणा के तीनों इंजीनियरिंग विभागों सिंचाई, लोक निर्माण विभाग और जनस्वास्थ्य के अलावा पंचायती राज और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के असिस्टेंट इंजीनियर/सब डिवीजनल इंजीनियर, असिस्टेंट आर्किटेक्ट, जिला कमांडेंट होम गार्ड, राजस्व और पुनर्वास विभाग के तहसीलदार और जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक का वेतनमान अब 14800 रुपये जमा+5400 ग्रेड पे होगा। पहले इसे घटाकर 12090 कर दिया था। इसके अलावा असिस्टेंट एडवोकेट जनरल का वेतनमान अब 25000 रुपये+8000 ग्रेड पे होगा। पहले यह वेतनमान 18600+8000 ग्रेड पे था।

किरयाणा की दुकानों पर मिल रहा है-प्रतिबंधित इजैक्श आक्सीटोसन

सिरसा(प्रैसवार्ता) स्वास्थय विभाग की मिलीभगत से जिला सिरसा में प्रतिबंधित आक्सीटोसिन की धडल्ले से बिक्री हो रही है। अधिक दूध प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओं को लगाया जाने वाला यह टीका काफी हानिकारक है, क्योंकि इस टीके की बदौलत पशु का दुध पीने से मनुष्य नपुंसक हो सकता है। बताया जाता है कि प्रतिबंध से पूर्व आक्सीटोसिन का टीका मात्र 20 पैसे में मिलता था मगर अब इनका दाम तीन गुणा हो गया है और खुदरा लेने पर एक रूपये का एक मिलता है। केवल इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह टीका किरयाना की दुकानों पर भी मिल जाता है। एक चिकित्सक ने प्रैसवार्ता को बताया कि जो मनुष्य आक्सीटोसिन लगे हुए पशु के दूध का लगातार सेवन करता है, उसमें महिलाओं जैसे लक्षण प्रतीत होने लग जाते है और पुरूषों का सीना तक बढ़ जाता है। धीरे-धीरे ऐसी अवस्था हो जाती है कि पुरूष अपने पौरूष तक खो बैठता है, लेकिन महिलाओं पर इसका कोई प्रतिकुल प्रभाव नहीं पडता। इस चिकित्सक का यह भी मानना है कि जो बच्चा या गर्भवती महिला आक्सीटोसीन लगे पशु का दूध पीते है, उस बच्चे के विकास की गति धीमी हो जाती है और कभी कभी तो विकास भी पूर्ण रूप में सही नहीं होता। ऐसे बच्चों की दाढी व मूंछें देर से आती हैं। भारतीय पुरूषों के सैक्स पावर में आ रही कमी का मुख्य कारण आक्सीटोसिन लगे पशुओं के दूध का प्रयोग करना है। ग्राम औढा के एक कृषक नत्था सिंह ने 'प्रैसवार्ताÓ को बताया कि लोग अब इस टीके का प्रयोग सब्जी व फल के पौधों के साथ साथ कपास-नरमें के पौधों पर भी करने लगे है, ताकि अधिक से अधिक पैदावार की जा सके। कद्दू या तोरी की बेल पर इस टीके के लगने से एक बार जो बडे आकार में और ज्यादा मात्रा में सब्जी मिल जाती है, लेकिन एक बार फल देने के बाद पर पौधों में हारमोन की कमी आ जाने के कारण अपनी प्रजनन क्षमता खो बैठते है। और दूसरी बार फल देने से पूर्व सुख जाते है। इसी कृषक के अनुसार यहीं स्थिति पशुओं की हो रही है। चिकित्सकों के मुताबिक कपास-नरमें में इसी टीके का प्रयोग होता है, तो उसके बिनौले में इसका प्रभाव कम होने के कारण जब पशु बिनौले खाते है, तो उसका कुछ अंश दूध द्वारा मानव के शरीर में भी चला जाता है। एक अन्य चिकित्सक के अनुसार हयूमन आक्सीटोसिन का भी टीका आता है, जिसका उपयोग गर्भवती महिला को बच्चा जल्दी पैदा करने के लिए दिया जाता है। इसी टीके का एक दो बार प्रयोग तो घातक नहीं, मगर ज्यादा प्रयोग क्षतिदायक है। पशु चिकित्सकों का मानना है कि आक्सीटोसिन का प्रयोग पशुओं की प्रजनन क्षमता बढाने के लिए किया जाता है, लेकिन बिना कारण व बिना जरूरत या दूध निकालने के लिए लगाया गया, यह टीका पशु को समय से पूर्व मौत भी दे सकता है, या फिर पशुओं की प्रजनन और गर्भधारण की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

हरियाणा के शौकीनों के गले तर करेगी 'ग्रेन वाइन'

पानीपत(प्रैसवार्ता) हरियाणा के शौकीनों के गले तर करने के लिए ग्रेन वाइन ज्यादा जल्द बाजार में आ रही है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि यह गुणवत्ता के हिसाब से तो बेहतर होगी ही साथ ही डिस्टिलरी की आय में भी खासी वृद्धि होगी। पानीपत सहकारी चीनी मिल डिस्टिलरी इसे तैयार कर रहा है। अगले महीने तक इसे मार्केट में उतारा जा रहा है। प्रदेश की एक मात्र पानीपत स्थित सहकारी डिस्टिलरी में अब तक शीरे से मिलने वाले अल्कोहल से वाइन तैयार की जाती थी, लेकिन हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में गन्ने की फसल की कमी के चलते पानीपत की डिस्टिलरी को कुछ समय से शीरा मिलने में परेशानी आ रही थी। शीरे के अभाव में डिस्टिलरी को बाजार से सीधे अल्कोहल की खरीद करनी पड़ रही थी। इससे तैयार होने वाली वाइन महंगी पड़ती थी। लागत को कम करने के लिए पानीपत डिस्टिलरी ने शीरे के बजाए ग्रेन (ज्वार, बाजरा, गेहूं, भूसी, चावल की कनकी) से वाइन तैयार करने की महत्वकांक्षी योजना तैयार की और करीब चार करोड़ रुपये की लागत से डिस्टिलरी परिसर में ग्रेन फरमेंटेशन प्लांट स्थापित कर दिया। फिलहाल प्लांट के अंदर ग्रेन फरमेंटेशन में है और मई माह के अंत तक ग्रेन से बनी वाइन की पहली खेप बाजार में उपलब्ध हो जाएगी। पानीपत सहकारी डिस्टिलरी के सूत्रों से पता चला है कि चार करोड़ रुपये की लागत से ग्रेन फरमेंटेशन प्लांट स्थापित कराया गया है। फिलहाल प्लांट के अंदर ग्रेन फरमेंटेशन में है। उन्होंने उम्मीद जताई कि ग्रेन से तैयार होने वाले अल्कोहल से बनी शराब मई माह के अंत तक बाजार में उपलब्ध करवा दी जाएगी। दावा किया कि ग्रेन से तैयार होने वाला अल्कोहल उच्च गुणवत्ता वाला होता है और इससे वाइन की क्वालिटी बेहतर आती है। इसकी संभावित मांग को देखते हुए आबकारी विभाग में कोटा बढ़ाने के लिए आवेदन किया है। इससे डिस्टिलरी की आय में वृद्धि होना तय है।

हथियारों का आल इंडिया लाइसेंस नहीं

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) अब हथियारों का आल इंडिया लाइसेंस नहीं मिलेगा। केवल तीन राज्यों का लाइसेंस दिया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ समेत सभी राज्यों को निर्देश भेजकर कहा है कि हथियारों के लाइसेंस उदारता से न दिया जाएं। निर्देशों के अनुसार आल इंडिया लाइसेंस अब जिस राज्य का निवासी लेना चाहता है, उसे आल इंडिया का लाइसेंस न देकर दो पड़ोसी राज्यों (यानी तीन राज्यों) का ही मिलेगा। आल इंडिया लाइसेंस केवल पांच कैटेगरी को ही मिल सकेगा। केंद्र ने ये कैटेगरी भी बता दी हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री, सांसद, सेना और पैरा मिलिट्री फोर्स के जवान और अफसर, आल इंडिया सर्विस के अफसर, देश में किसी भी हिस्से में तैनात जिम्मेदार अफसर और खिलाड़ी शामिल हैं। यह लाइसेंस भी सिर्फ तीन साल के लिए दिया जाएगा। तीन साल के बाद राज्य सरकार पुनर्विचार करेगी। कोई भी लाइसेंस बिना पुलिस वेरिफिकेशन के जारी नहीं किया जाएगा। जिलाधीश की संस्तुति होनी जरूरी है। नान प्रतिबंधित बोर वाले हथियारों के लाइसेंस राज्य सरकार जारी करेंंगी, जबकि प्रतिबंधित बोर वाले हथियारों के लाइसेंस केंद्र सरकार जारी करेगी, लेकिन राज्य सरकार, जिलाधीश की संस्तुति और पुलिस वेरिफिकेशन के बाद केंद्र को संस्तुति भेजेगी। प्रतिबंधित बोर वाले हथियारों में सामान्यतया एके 47, एसएलआर या अन्य बड़े हथियार आते हैं, जबकि नान प्रतिबंधित बोर वाले हथियारों की श्रेणी में छोटे हथियार आते हैं। केंद्र ने साफ-साफ कहा है, कि प्रतिबंधित बोर वाले हथियार का लाइसेंस मांगने वालों की संस्तुति केवल कुछ ही लोगों के लिए की जाएगी। हर व्यक्ति को यह लाइसेंस नहीं दिया जाएगा। अगर किसी व्यक्ति की जान को आतंकियों से खतरा है, कोई व्यक्ति इस प्रकार की डयूटी की जिम्मेदारी संभाल रहा है, जो आतंकियों की नजर में एक लक्ष्य हो सकता है, वे सांसद और विधाय और प्राइवेट व्यक्ति, जो आतंकी गतिविधियों की रोकथाम में लगे हैं और वे व्यक्ति या उनके परिजन, जो कभी आतंकवादियों के निशाने पर हैं, इस श्रेणी में शामिल किए गए हैं। पंजाब और हरियाणा सरकार के उच्चाधिकारियों ने पुष्टि करते हुए कहा कि केंद्र के इन निर्देशों को फौरन लागू कर दिया है।

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