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Tuesday, June 15, 2010

आचार संहिता उपरांत फिर आचार संहिता

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का दूसरा कार्यकाल आचार संहिता के बीच है। राज्य चुनाव आयोग ने आठ जिलों के पंचायती चुनाव करवाने की घोषणा करके 15 जुलाई तक मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को एक राहत दी है, जिसके चलते उन्हें राजनीतिक कठिनाईयों को उत्पन्न करने वाले निर्णयों को टालने का अवसर मिल गया है, जिसमें मंत्रिमंडल का विस्तार तक शामिल है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार तबादलों के इन महीनों में, जहां सरकारी कार्यालयों में सूनापन है, वहीं राजनेता भी आचार संहिता कह कर अपना पीछा छुड़वा रहे हैं। राज्य का सचिवालय तो मंत्री, मुख्य संसदीय सचिवों के दर्शनों को तरस गया है, क्योंकि मंत्री और संसदीय सचिव अपने-अपने क्षेत्र के चुनावों में व्यस्त है। सरकारी तंत्र भी किसी भी सरकारी फाईल को हाथ लगाने या आगे बढ़ाने में आचार संहिता की दुहाई देकर चुप्पी साध लेता है। आचार संहिता के चलते राजनीतिक प्रभाव डालने वाले निर्णय ही नहीं, बल्कि जनहित में लिए जाने वाले निर्णय भी आगे सरक जाते हैं।

'उमरां'च की राखिया है

हिसार(प्रैसवार्ता) विज्ञान ने एक बार फिर उम्र पर विजय हासिल करते हुए आई.वी.एफ तकनीक से सातरोड़ की भतेरी देवी ने 66 वर्ष की आयु में तीन बच्चों को जन्म देकर नया कीर्तिमान बनाया है। इस तकनीक से 29 मई को जन्म लेने वाले तीनों बच्चे सकुशल हैं। नैशनल फर्टीलिटी सैंटर के संचालक डा. अनुराग बिश्रोई ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि भतेरी देवी ने तीसरी बार गर्भधारण किया है। इससे पहले सिर्फ दो-दो भू्रण प्रत्यारोपित किये गये थे, लेकिन तीसरी बार उनकी बच्चेदानी में तीन भ्रूण प्रत्यारोपित किये गए, जिस पर भतेदी देवी ने दो लड़कों तथा एक लड़की को जन्म दिया। 21 मई 1944 को रोहतक जिला के ग्राम मदीना के लहरी सिंह दांगी के घर जन्म लेने वाली भतेरी देवी का विवाह देवा सिंह से हुआ था। देवा सिंह ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि भतेरी देवी से शादी उपरांत उसने दो और विवाह किये, लेकिन कोई सन्तान नहीं हुई थी, मगर अब तीनों बच्चों के जन्म से वह खुश है। डा. बिश्रोई के अनुसार आई.वी.एफ (इन विट फर्टीलाईजेशन) तकनीक से अच्छे परिणाम सामने आये हैं। वर्ष 2008 में जीन्द की राजो देवी ने 70 वर्ष की आयु में एक लड़की को जन्म दिया था। इससे पूर्व 2005 में रोमानिया की एक 66 वर्षीय महिला ने दो बच्चों को जन्म दिया था। उन्होंने बताया कि आई. वी.एफ को परखनली शिशु तकनीक कहा जाता है। इसमें पुरूष के शुक्राणु व महिला के अंडाणु प्राप्त कर उससे भू्रण तैयार करके 48 से 72 घंटे तक इंक्यूवेटर में रखने उपरांत महिला की बच्चेदानी से प्रत्यारोपित किया जाता है।

सरकार को सहयोग दे रहे-तीन निर्दलीय विधायकों को जोर का झटका धीरे से

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) निर्दलीय विधायकों के सहारे बनी हरियाणा की हुड्डा सरकार ने अपने एक मंत्री और दो मुख्य संसदीय सचिवों के परिवारजनों के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज करके इन्हें जोर का झटका धीसे से दिया है-जबकि इससे पूर्व भी हुड्डा की इस झटका तकनीक से पूर्व वित्त मंत्री वीरेन्द्र सिंह, पूर्व मंत्री किरण चौधरी, प्रदेश कांग्रेस प्रधान फूल चंद मुलाना समेत कई कांग्रेसी दिग्गज अभी तक उभर नहीं पाये हैं। विधानसभा चुनाव में अपने विरोधी कांग्रेसी दिग्गजों का सफल आप्रेशन करने वाले भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने सात निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बनाई थी, जिनमें से चार को मंत्री पद तथा तीन को मुख्य संसदीय सचिव बनाया गया था। हाल ही में हुए नगर निगम फरीदाबाद के चुनाव में राजस्व राज्य मंत्री शिवचरण शर्मा की पत्नी और बेटे के खिलाफ पुलिस द्वारा विभिन्न-विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज करना, मेवात जिले के ग्राम जमालगढ़ में मुख्य संसदीय सचिव जलेब खान के दामाद के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करना तथा गृह राज्य मंत्री गोपाल कांडा के खिलाफ मुख्य सचिव को मामले पर कार्यवाही का निर्देश संकेत देता है, कि निर्दलीय विधायकों से जरूरत पर समर्थन लिया गया था, मगर अब स्थिति में बदलाव चुका है। जिक्र योग है कि 1999 में राज्य के 22 विधायकों ने बंसी लाल का साथ छोड़कर इनैलो की सरकार बनाई थी और वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनावों में इन्हें अपना प्रत्याशी बनाते हुए इनैलो सुप्रीमों ओम प्रकाश चौटाला ने यह कहकर इंकार कर दिया था, कि तुम बंसी लाल के होकर भी नहीं हो सके, मैं तुम पर कैसे विश्वास कर लूं। शायद इसी तर्ज पर हुड्डा चल रहे हैं।

Saturday, June 12, 2010

रंजीव दलाल नहीं एमएस मलिक है हरियाणा के डीजीपी

सिरसा(प्रैसवार्ता) केंद्र व राज्य सरकार बेशक पुलिस के आधुनिकीकरण की बात करती हो, स्वयं पुलिस महानिदेशक पुलिस को अपडेट करने के बयान देते हों, मगर जमीनी हकीकत इससे इत्तफाक नहीं रखती। कागजों में कभी मार न खाने वाली पुलिस कंप्यूटर पर तो इस मामले में निरक्षर ही साबित हो रही है। यही वजह है, कि राज्य पुलिस की वेबसाइट पर आज भी एमएस मलिक को ही पुलिस महानिदेशक दर्शाया हुआ है। इतना ही नहीं लगभग सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों के नाम भी वे शो किए हुए हैं, जो पदोन्नति पाकर अतिक्ति पुलिस महानिरीक्षक या पुलिस महानिरीक्षक बन चुके हैं। पुलिस की वेबसाइट पर जॉन वी जॉर्ज को आईजी कानून व्यवस्था दिखाया हुआ है, जबकि वे कभी के इस पद से पदोन्नति पाकर एडीजीपी बन चुके हैं। इसी प्रकार राकेश मलिक को आईजी प्रशासन, रविकांत शर्मा को आईजी आधुनिकीकरण एवं वैल्फेयर दिखाया हुआ है। इनकी सहायता के लिए जिन अधिकारियों के नाम पुलिस की वेबसाइट पर मौजूद हैं, वे भी गुमराह करने वाले हैं। परमिंद्र राय को डीआईजी प्रशासन, यशपाल सिंघल को डीआईजी ट्रेनिंग, अनिल दावड़ा को डीआईजी आधुनिकीकरण एवं कल्याण प्रस्तुत किया गया है। इसी प्रकार चारों पुलिस रेंज में भी उन अधिकारियों के नाम आईजी के तौर पर दर्शाए गए हैं, जो या तो रिटायर हो चुके हैं या फिर किसी अन्य पद पर पहुंच गए हैं। अंबाला रेंज में एचएस अहलावत को आईजी दिखाया गया है। हिसार के आईजी के तौर पर आरएन चालिया को दर्शागया गया है, जबकि चालिया अपने पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। गुडग़ांव रेंज में आरएस दलाल को आईजी दिखाया गया है, जबकि रोहतक रेंज में रेशम सिंह को आईजी दिखाया गया है। रेशम सिंह भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जिलों में मामले में भी पुलिस अभी बरसों पीछे है। पुलिस के वेबसाइट आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 19 जिले ही हैं। सभी जिलों में कई बार एसपी बदले जा चुके हैं, परन्तु पुलिस की वेबसाइट इससे तवज्जो नहीं रखती। पुलिस की वेबसाइट की मानें तो पंचकुला में सीएस राव, अंबाला में केके मिश्रा, यमुनानगर में केके सिंधु, कुरूक्षेत्र में देसराज सिंह, कैथल में पीआर देव, करनाल में एएस अहलावत, पानीपत में कुलदीप सिंह, सोनीपत में एएस चावला, रोहतक में पीके अग्रवाल, झज्जर मोहम्मद शकील, गुडग़ांव में एसएस कपूर, फरीदाबाद में आरएस शर्मा, नारनौल में एमएस कपूर, फरीदाबाद में आरएस शर्मा, नारनौल में एमएस अहलावत, रेवाड़ी में एसपी रंगा, हिसार में संदीप खिरवार, सिरसा में एकेराव, भिवानी में सुमन मंजरी, जींद में राजपाल सिंह व फतेहाबाद में हनीफ कुरैशी पुलिस की कमान संभाल रहे हैं। मजे की बात यह है कि उक्त सभी आईपीएस अधिकारी पुलिस की विभिन्न शाखाओं में आईजी या उससे भी ऊंचे पद पर पदोन्नति पा चुके हैं। पुलिस की वेबसाइट अपडेट करने वालों ने तो पुलिस का मानचित्र ही बदलकर रख दिया और प्रदेश में 19 जिले ही प्रस्तुत किए हैं, जबकि प्रदेश में 22 जिले अस्तित्व में आ चुके हैं।

26 अगस्त तक हो जायेगा-किराया एक्ट लागू

बठिण्डा(प्रैसवार्ता) पंजाब सरकार 26 अगस्त से पहले किराया एक्ट लागू कर देगी, अदालत ने इस प्रकरण में सरकार को निर्देश जारी किया है। अदालती निर्देश उपरांत सरकार गंभीर हो गई है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार अदालत ने याचिकाओं उपरांत इस मामले में बनी कमेटी की रिपोर्ट उपरांत 26 अगस्त तक इस एक्ट को लागू करने को कहा था। उक्त एक्ट लागू होने का मामला काफी समय से लटक रहा था। बेअन्त सिंह सरकार (1995) के समय तैयार किये गये इस एक्ट को राष्ट्रपति ने भी 1998 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी। कैप्टन सरकार सरकार के कार्यकाल में भी यह मामला अटका रहा था, क्योंकि इस मामले में में दो याचिकाएं अदालत में दायर की गई थी, जिनमें से लुधियाना के वकील इंद्रजीत सिंह की ओर से 1878/2000 तथा मनजीत कौर द्वारा 2004/14281 की याचिका शामिल थी। इस प्रकरण में अदालती निर्देश मानने पर एक अधिकारी की खिंचाई भी की गई थी। अगस्त 2009 में इस प्रकरण से संबंधित एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसने पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक, राजस्थान में जाकर पाया था, कि किराया एक्ट के अच्छे परिणाम हैं-जिनसे पालिका/निगमों को ज्यादा आय होगी। प्रदेश में अभी तक 1949 उपरांत उक्त कानून को पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया, क्योंकि भारत-पाक विभाजन होने उपरांत पाकिस्तान से काफी संख्या में लोग भारत आये थे, जहां उनके रहने के लिए मकानों की कमी थी। इस पांच साल के लिए बढ़े कानून मुताबिक तो किराया बढ़ाया जा सकेगा और ही किरायेदार को निकाला जायेगा। ''प्रैसवार्ताÓÓ के अनुसार किराया एक्ट लागू होने से दुकानों के किराये में भी बढ़ौत्तरी होगी और शहरों में विकास गति तीव्रता लेगी। इस प्रकरण में गठित सुखबीर-कालिया कमेटी द्वारा एक हजार करोड़ से ज्यादा राजस्व आने की संभावना व्यक्त की है। इस संबंध में स्थानीय शासन और निकाय विभाग द्वारा भी सर्वेक्षण करवाया गया था, जिससे पता चला था कि राज्य में किरायेदारों की संख्या ज्यादा है। इस एक्ट को लागू करने के मामले में केन्द्र सरकार ने पंजाब सरकार को पुन:''यूजर चार्ज" लगाने को कहा था। इसमें किराया एक्ट लागू किये जाने की भी चर्चा है।

Friday, June 11, 2010

नकली घी के बाद अब नकली सरसों तेल की बिक्री

सिरसा(प्रैसवार्ता) जिला सिरसा के कालांवाली क्षेत्र में देसी घी व नकली दूध की बिक्री के बाद इन दिनों सरसों का नकली तेल भी जोर-शोर से बिक रहा है। नकली सरसों के तेल की बिक्री से लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है वहीं कम कीमत वाले इस नकली तेल को महंगे रेट पर बेचा जा रहा है। इसके साथ इस तेज का वजन भी कम होता है। इस नकली तेल की बिक्री को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने के कारण यह धंधा पूरे जोर शोर से जारी है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार मंडी कालांवाली व अन्य कस्बों में विभिन्न ब्रांडों के नकली तेल की बिक्री जोरों पर हो रही है। यह तेल बोतलों की पैकिंग में उपलब्ध है। पता नहीं यह तेल कहां से आता है। बोतलों के रेपरों पर सिरसा व पंजाब की मंडी किलियांवाली के नाम का पता दिया जाता है। यह तेल इतनी सुंदर पैकिंग में उपलब्ध करवाया गया है ताकि ग्राहकों को इसके नकली होने का पता न चल सके। जब इस संबंध में क्षेत्र के एक निजी चिकित्सक से बात की तो उसने बताया कि जिस प्रकार केमिकल इस तेल में प्रयोग किए जा रहे है वे मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। पता चला है कि इस तेल में सस्ते तेलों के अलावा कई केमिकल भी मिलाए जाते है ताकि यह तेल असली की तरह नजर आए। कई उपभोक्ताओं ने बताया कि जब यह तेल फ्रिज में रखा गया तो घी की तरह जम गया जबकि असली सरसों का तेल कभी नहीं जमता। कई उपभोक्ताओं ने प्रैसवार्ता को बताया कि इस तेल का स्वाद असली तेल जैसा नहीं है।

Tuesday, June 8, 2010

हरियाणा: जहां प्रसूति वार्ड में पुरूष करते हैं-डयूटी

नारनौल(प्रैसवार्ता) स्थानीय सिविल अस्पताल के प्रसूति गृह में महिला स्टाफ नर्स की जगह पुरूष डयूटी कर रहे हैं, जिसके चलते प्रसूति करवाने वाली महिलाएं सहमी-सहमी रहती हैं। वहीं मरीज के साथ आये तीमारदार भी परेशान होते हैं। प्रसूति गृह में पुरूषों की डयूटी और वह भी एक राज्य में, जहां महिलाएं घूंघट में रहती हैं, चिंतनीय है। राज्य सरकार के निर्देशानुसार प्रसूति गृह में डिलीवरी भी महिला नर्सों द्वारा की जानी अनिवार्य है तथा पुरूषों का इस वार्ड में प्रवेश वर्जित है, परन्तु नारनौल के सिविल अस्पताल में सब कुछ सरकारी आदेशों के विपरीत हो रहा है। पुरूषों की उपस्थिति में, जहां प्रसूति करवाने वाली महिला सहमी-सहमी रहती है, वहीं उसकी गोपनीयता भी भंग होती है। देश, जहां महिला सशक्तीकरण की ओर बढ़ रहा है, ऊंचे-ऊंचे पदों पर महिलाएं आसीन हो रही हैं, वहीं नारनौल में प्रसूति के लिए महिलाओं को पुरूषों के सामने अपनी डिलीवरी करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

9 साल बिना मान्यता के ही पढ़ाते रहे विज्ञान संकाय

सिरसा(प्रैसवार्ता) डीसी कॉलोनी स्थित एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान द्वारा बिना मान्यता के ही 10 जमा 1 व 2 के विद्यार्थियों को विज्ञान संकाय में दाखिला देने के कारण इस स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर रहे या कर चुके विद्यार्थियों के भविष्य पर प्रश्रचिन्ह लग गया है। अतिरिक्त न्यायिक दंडाधिकारी सुधीर परमार की अदालत ने इस मामले में स्कूल प्रबंधन को दोषी ठहराते हुए इसके खिलाफ आई शिकायत को स्वीकार कर लिया है। तथ्यों के अनुसार चंडीगढ़ स्थित शिक्षा निदेशालय द्वारा भेजे गए पत्र के साथ छेड़छाड़ करके सेंट्रल स्कूल के संचालकों ने आट्र्स, कॉमर्स के साथ लिखे संकाय शब्द को साइंस में बदल दिया। शिक्षा निदेशालय द्वारा हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी के सचिव, जिला शिक्षा अधिकारी सिरसा व सेंट्रल स्कूल को एक ही प्रतियां प्रेषित की गई थी,लेकिन गंतव्य पर पहुंचने वाले इन पत्रों का मूल स्वरूप बदल गया जिसके तहत सेंट्रल स्कूल को आट्र्स, कॉमर्स के साथ-साथ साइंस संकाय की भी मान्यता दर्शा दी गई। मामले के अनुसार, डीसी कॉलोनी स्थित सेंट्रल स्कूल ने 10 जमा 2 कक्षा में आट्र्स व कॉमर्स संकाय की कक्षा संचालित करने के लिए निदेशक सैकेंडरी एजुकेशन हरियाणा से आवेदन किया गया था। निदेशक शिक्षा हरियाणा के आदेश में केवल आट्र्स व कॉमर्स संकाय में ही सशर्त अस्थायी मान्यता देने संबंधी पत्र जारी किया। निदेशक शिक्षा विभाग द्वारा इस पत्र की प्रति सेंट्रल स्कूल के प्रबंधक के अलावा हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड व जिला शिक्षा अधिकारी को भी प्रेषित की गई थी। निदेशक शिक्षा विभाग द्वारा जारी इस पत्र में सेंट्रल स्कूल को आट्र्स व कॉमर्स संकाय में ही कक्षाएं संचालित करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन स्कूल संचालकों ने साइंस संकाय के संचालन से मोटी कमाई जुटाने के लिए इस पत्र से छेड़छाड़ कर साइंस विषय भी जोड़ दिया। बताते हैं, कि स्कूल संचालकों ने साइंस संकाय चलाने के लिए शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों से गठजोड़ किया और जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को मूल पत्र से की गई छेड़छाड़ वाली कॉपी प्रदान की। इसी प्रकार स्कूल संचालकों ने हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड को भी शिक्षा निदेशक से हासिल हुए पत्र से कथित छेड़छाड़ वाली कॉपी उपलब्ध करवाई। इस सारे मामले का भंडाफोड़ सूचना अधिकार अधिनियम के कारण हुआ। खैरपुर निवासी कमल किशोर पुत्र हरिसिंह व रवि कुमार पुत्र अशोक कुमार जग्गा ने सूचना अधिकार के माध्यम से शिक्षा निदेशालय से जानकारी मांगी। निदेशक शिक्षा हरियाणा चंडीगढ़ के आदेश दिनांक 24 सितंबर 2001 की प्रति में शिक्षा निदेशक की ओर से केवल आट्र्स व कॉमर्स विषय की ही मान्यता दिए जाने का उल्लेख किया गया। इस मामले में संपूर्ण जानकारी उपलब्ध न होने के कारण याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय में शिकायत की। इस पर फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश सुधीर परमार ने इसे विद्यार्थियों के साथ छलकपट बताते हुएण् शिकायत को जायज ठहराते हुए स्कूल संचालकों को दोषी करार दिया है। इस संबंध में सेंट्रल स्कूल के प्रिंसीपल नरेश पंवार से बातचीत की गई, तो उन्होंने कहा कि यह कोर्ट का अंतरिम आदेश है और वे इसे सेशन कोर्ट में चुनौती देंगे। वहीं जिला शिक्षा अधिकारी आशा किरण ग्रोवर ने कहा कि न्यायालय के फैसले की अनुपालना की जाएगी। न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले की सूचना जैसे ही अभिभावकों को मिली तो उनमें हड़कंप मच गया। अब वे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हो उठे हैं।

शपथ पत्र सिर्फ अदालती कार्यवाही के लिए

पंचकुला(प्रैसवार्ता) गैंस कनैक्शन और राशन कार्ड जैसे रोजमर्रा के कामकाज के लिए अब शपथ पत्र देना जरूरी नहीं, क्योंकि राज्य सरकार ने शपथ पत्र की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। सरकार का यह आदेश दो जून से राज्य में प्रभावी हो गया है, परन्तु अदालती कामकाज के लिए शपथ पत्र देने पर यह आदेश लागू नहीं होगा। गौरतलब है, कि अब तक प्रदेश में तमाम प्रकार की पहचान और दस्तावेज होने उपरांत भी छोटे-छोटे काम के लिए शपथ पत्र देना पड़ता था, जिसके लिए लोगों को उसे तस्दीक करवाने के लिए तहसील कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते थे, या फिर नोटरी के पास जाना पड़ता था। राशन कार्ड बनवाना हो या फिर आमर्स लाईसैंस, गैंस कनैक्शन से लेकर साधारण काम तक के लिए शपथ पत्र अनिवार्य था। राज्य सरकार के इस नये निर्देश मुताबिक अदालत के कामकाज को छोड़कर सभी कार्यों के लिए साधारण पत्र ही मान्य होगा। अगर ज्यादा ही जरूरी होगा, तो आवेदक अपने सरपंच या पार्षद से तस्दीक करवाकर अपना कामकाज करवा सकता है। इस संबंध में राज्य की मुख्य सचिव द्वारा अधिसूचना भी जारी की गई है।

Monday, June 7, 2010

जहां बुढ़ापा पैंशन के आधे लाभपत्र फर्जी है

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा राज्य के कई सरकारी विभाग वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं, वहीं समाज कल्याण विभाग में एक बहुत बड़ा घपला उजागर हुआ है। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार पिछले दो वर्षों में बढ़ापा पैंशन के लाभपात्रों की संख्या में हुई दुगन्नी वृद्धि बढ़कर 12 लाख 53 तक पहुंच गई। प्रति मास करीब 16688 की दर से लाभपात्रों की संख्या में वृद्धि होने के चलते प्रतिवर्ष 2 लाख 10 हजार व्यक्ति 60 वर्ष की आयु सीमा में सम्मिलित होकर लाभपात्रों से जुड़ गये हैं-जबकि 15 प्रतिशत वास्तव में बुढ़ापा पैंशन लेने के अधिकार से वंचित है। आश्चर्यजनक बात यह है, कि स्वास्थ्य विभाग, हरियाणा के आंकड़ों अनुसार कुल आबादी का 0.5 प्रतिशत भाग (करीब सवा लाख व्यक्ति) ही 59 वर्ष की आयु सीमा को पार करके 60 वर्ष के हुए हैं, जबकि इसके विपरीत 2 लाख दस हजार लोग पैंशन ले रहे हैं। जिक्र योग है कि प्रतिवर्ष 60 वर्ष की आयु में पहुंचने वाले सवा लाख व्यक्तियों में वह लोग भी शामिल है, जो कि बुढ़ापा पैंशन प्राप्ति के योग्य नहीं है। हरियाणा प्रदेश में कुल 18 लाख व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार की पैंशन योजनाओं का लाभ ले रहे हैं, जबकि बुढ़ापा पैंशन योजना में 13 लाख के करीब लाभपात्र है। इस संबंध में ''प्रैसवार्ताÓÓ द्वारा सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण विभाग हरियाणा के कार्यालय से सम्पर्क किया गया, तो पता चला कि यह घपला पिछले वर्ष सितम्बर महीने में उस समय उजागर हुआ, जब सरकार ने दो प्रतिशत की दर से बैंकों को पैंशन बांटने का कार्यभार सौंपने का निर्णय लिया। इस निर्णय उपरांत बुढ़ापा पैंशन लाभपात्र लोगों की नई सूची बनाने तथा उंगी निशान वाले परिचय कार्ड बनाने के लिए बैंकों को एक सौ रुपये प्रति लाभपात्र के हिसाब से देने के लिए निजी कंपनियों से तालमेल किया, तब फर्जी लाभपात्र का विवरण एकत्रित करने के लिए विशेष अभियान शुरू किया गया। कार्यालय सूत्रों अनुसार प्रारंभिक जांच दौरान यह बात सामने आई कि बुढ़ापा पैंशन लाभपात्रों के परिचय कार्ड बनाने के लिए अनुबंधित निजी कंपनियों के प्रतिनिधियों को ग्रामीण स्तर पर जाकर सरपंच सहित प्रभावी व्यक्तियों की हिदायत पर जाली लाभपात्रों की जानकारी मिली। राज्य में सैकड़ों की संख्या में मृतकों को भी पैंशन दिये जाने के रहस्य से भी पर्दा उठा है। प्राप्त आंकड़ों अनुसार वर्ष 2008 में गुडग़ांव जिले की लाभपात्र संख्या 25304 थी, जो वर्ष 2010 में बढ़कर 80818 तक पहुंच गई। दो वर्षों में जिले में 55514 लाभपात्र हैं। सिरसा जिला में वर्ष 2008 में 41906 लाभपात्र थे, जो वर्ष 2010 में बढ़कर 81139 हो गये हैं। इसी प्रकार जीन्द जिले में 44327 से बढ़कर 81590, भिवानी जिले में 62861 से बढ़कर 96240 लाभ पात्र हो गये हैं। विभाग इस घपलेबाजी को रोकने के लिए पुन: बुढ़ापा पैंशन के लाभपात्रों के बैंक खाते खोलने की योजना बना रहा है।

Wednesday, June 2, 2010

हिंदी साहित्य सम्मेलन की डिग्री अवैध

नई दिल्ली(प्रैसवार्ता) सुप्रीम कोर्ट ने 1967 उपरांत हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से डिग्री, डिपलोमा या सर्टिफिकेट लेने वालों पर आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाते हुए इस द्वारा जारी सभी प्रमाण पत्रों को अवैध करार दिया है। इन प्रमाण पत्रों के सहारे आयुर्वेदिक की प्रैक्टिस कर रहे है चिकित्सकों के लिए यह एक बड़ा झटका है। जस्टिस डा. बी.एस. चौहान और स्वतंत्र कुमार की बैंच ने दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा के आयुर्वेद चिकित्सों की याचिका को खारिज करते हुए उक्त निर्णय सुनाया है। इन चिकित्सकों ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षा पास की थी, परन्तु यह आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए 1970 में अधिसूचित मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। बैंच ने अपने निर्णय में कहा, ''बिना वैद्य योग्यता, डिग्री या डिपलोमा के अकुशल, अपंजीकृत व अनधिकृत चिकित्सकों को रोगियों के शोषण की अनुमति नहीं दी जा सकती। संस्थान ने इन लोगों को न ही छात्र के रूप में भर्ती किया और न ही उन्हें औपचारिक शिक्षा दी। बिना मान्यता का यह संस्थान इन लोगों की बुनियादी योग्यता से भी वाकिफ नहीं है। 1970 के कानून में निर्धारित योग्यता के बिना किसी भी व्यक्ति को मैडीकल प्रेक्टिस करने की अनुमति नहीं दी गई है। ऐसे में इन लोगों पर आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने पर पाबंदी गलत नहीं है।

गांव की चौधर के लिए साम-दाम , दंड-भेद का इस्तेमाल

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) 6 जून तथा 12 जून को होने वाले पंचायती चुनावों को लेकर प्रदेश के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में शादी जैसा माहौल दिखाई देता है। जगह-जगह लगे टैन्ट, कुर्सियां, पोस्टरों तथा होर्डिंग पर हाथ जोड़कर वोट मांगते उम्मीदवार, चाय-पानी ठंडे, लंगर तथा शराब की उचित व्यवस्था देखी जा सकती है। समय के साथ-साथ बदलाव हर वस्तु में आता है और चुनावी रंग में आया बदलाव स्पष्ट छलकता है। वर्तमान चुनाव में आये बदलाव, प्रचार के बदलते तौर तरीके और आधुनिकता के इस युग में हाईटैक हुए चुनावों की सरगर्मियों की सही तस्वीर पर प्रस्तुत है, ''प्रैसवार्ता" की एक चुनावी रिपोर्ट! बढ़ते पारे के साथ जिला परिषद, खंड समिति तथा पंचायती चुनाव में बढ़ी सरगर्मियों में उम्मीदवार घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं। राज्य चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित खर्च पर चुनाव लडऩा कठिन है, क्योंकि छोटा समझा जाने वाला पंचायती चुनाव भी काफी महंगा पड़ता है। ग्राम भाग खेड़ा के राजपाल ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि वह जमाना लद गया, जब सैंकड़ों रुपयों में चुनाव हो जाता था। चुनाव सरपंची, पंची का हो या फिर विधायक और सांसद का एक जैसे ही तौर-तरीकों का जमाना आ गया है। दूर-दराज शहरों/ग्रामों में बसे मतदाताओं को अपने वाहनों पर मतदान के लिए लाने पर होने वाले खर्च के अतिरिक्त कई-कई दिन तक आने-जाने वालों की आवभगत (जलपान, ठंडा, दोपहर भोज आदि)तथा सांय ढलते ही शराब का सेवन करवाना उम्मीदवारों की मजबूरी है। कई बार तो वोटों की खरीद-फिरोक्त भी करनी पड़ती है। ग्राम की चौधर पाने के लिए ज्यादातर उम्मीदवार पैसा पानी की तरह बहा रहे है और विजय श्री प्राप्त करने के लिए साम-दाम, दंड-भेद का हर ढंग इस्तेमाल कर रहे हैं।

बरसात के पानी से होती है- साल भर सिंचाई

सिरसा(प्रैसवार्ता) जल संरक्षण के सिलसिले में सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा द्वारा एक मिसाल कायम करते हुए डेरा परिसर में 6 विशाल डिग्गियां बनाई गई हैं, जिनमें से दो डिग्गियों में बरसाती पानी को संरक्षित किया गया है, जबकि शेष चार डिग्गियों को बरसात का इंतजार है। बरसाती पानी के सरंक्षण से जरूरत पडऩे पर उसी पानी से खेती की सिंचाई की जाती है। डेरा सच्चा सौदा में हर छोटी से छोटी वस्तु का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाता है और पानी के मामले में यह बात पानी की हर बूंद पर लागू होती है। डेरे के शाह सतनाम जी धाम परिसर में और डेरे की खेती की भूमि में, जो भरपूर हरियाली नजर आती है, वह एक शोध का विषय है, क्योंकि करीब दो दशक पूर्व यहां की भूमि जिस स्थिति में थे, अब उसमें काफी बदलाव आ गया, क्योंकि यह भूमि बंजर थी और दूर-दूर तक 20-20 फुट ऊंचे रेतीले पर्यटन स्थल से कम नजर नहीं आता। हर तरह की फसलों से लेकर फलों व फूलों की यहां खेती होती है। डेरा प्रवक्ता डा. पवन इंसा ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि इस क्षेत्र को रेगिस्तान से नखलिस्तान में बदलने के पीछे डेरा प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम सिंह इंसा की अद्वितीय कृषि विशेषज्ञों का होना है। डेरा मुखी स्वयं खेती के कार्यों में बढ़-चढ़ भागीदारी करते हैं। सैकड़ों एकड़ बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया जा चुका है-जबकि डेरा की जल संरक्षण के लिए बनी डिग्गियां एक बड़े कृषि भू-भाग के लिए जीवन देने का काम करती है। बरसाती पानी के संरक्षण के अतिरिक्त डेरा परिसर की रिहायशी कालौनियों से निकलने वाले सीवरेज के बेकार पानी का उपयोग भी सिंचाई के लिए किया जा सके, इसके लिए डेरा परिसर में सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट स्थापित किया जा रहा है। सिंचाई दौरान अधिकतर पानी वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है और पौधों की जड़ों तक पहुंच नहीं पाता, इसके लिए ड्रिप ऐरीगेशन सिस्टम लगाया गया है, जो जितनी पौधे को जरूरत होती है, उतना ही पानी उसे प्रदान करते हैं।

Tuesday, June 1, 2010

रेंडीयर:एक ऐसा हिरण, जिसे पालतू बनाया जा सकता है

उत्तरी अमेरिका में रेंडीयर को कैरीबोआ कहा जाता है। यह जीव काफी बड़ा और बेडोल शरीर का मालिक होता है। नर और मादा दोनों की विशाल और वृक्षों की शाखाओं जैसे सींग होते हैं तथा खुर दूसरे हिरणों के मुकाबले में बड़े और चौड़े होते हैं। यही कारण है कि उनके पैर बर्फ में नहीं घसते। जब यह चलते हैं-तो टॅप-टॅप की आवाज सुनाई देती है। रेंडियर आर्कटिक क्षेत्र में रहता है, जोकि यूरोप, ऐशिया और अमेरिका में फैला हुआ है। आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर और यूरोप के उत्तर में रहने वाले लैपस नामक घुमक्कड़ जाति के लोग पूर्णतया रेंडियर ऊपर ही निर्भर रहते हैं। रेंडीयर से उन्हें दूध और मांस मिलता है, जिसके चमड़े से गर्म कपड़े और बूट बनाये जाते हैं। रेंडीयर ही उनका भारी सामान ढोने वाला पशु है और वही ही उनकी बर्फ पर चलने वाली सैलेज गाडियां खींचता है। बर्फ पर चलने वाली सैलेज गाड़ी चलाने वाली मशहूर हस्त्ी है, शांता क्लाज, परन्तु शान्ता क्लाज के रेंडीयर काफी चमकीले और शानदार दिखाई देते हैं। सजीव रेंडीयरों के मुकाबले में शान्ता क्लाज के रेंडीयर ज्यादा सुन्दर होते हैं। एक अच्छे तैराक माने जाने वाले रेंडीयर सर्दी ऋतु में बर्फ के नीचे शैबाल खाते हैं और गर्मियों के दिनों में घास और पत्ते। रेंडियर एक ऐसा हिरण है, जिसे पालतू बनाया जा सकता है। -मनमोहित (प्रैसवार्ता)

आंखों से ही जजब़ात व्यक्त करने वाले कलाकार-दिलीप कुमार

भारतीय फिल्म उद्योग एक ऐसा स्थान है, जहां प्रतिदिन कोई कोई नया अभिनेता या अभिनेत्री अपना भाग्य अजमाने के लिए कदम रखता है। कई सफल हो जाते हैं-जबकि कई गुमनामी अंधेरों में गुम हो जाते हैं। दिलीप कुमार भी एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने 40 के दशक में फिल्म उद्योग में कदम रखा और अपने जबरदस्त अभिनय की बदौलत सिने दर्शकों के दिलों में ऐसा स्थान बनाया कि आज भी लोग उनकी फिल्मों के संवाद और गीत गुनगुनाते हैं। दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 रविवार को पेशावर में हुआ। बारह बहिन-भाईयों में से अकेले दिलीप कुमार ने फिल्मों में कदम रखा। उनका असली नाम युसुफ खान था। उनके पिता जनाब सखर खान फलों का कारोबार करते थे। वर्ष 1944 में मात्र 22 वर्ष की आयु में दिलीप साहब ने फिल्म ''ज्वार भाटा" के माध्यम से फिल्मी दुनिया में कदम रखा। इस फिल्म में उनके साथ नई कलाकार चंद्रकला पवार को पेश किया गया, परन्तु यह फिल्म कोई विशेष प्रभाव दिखा सकी। वर्ष 1947 में निर्देशक शौकत हुसैन रिजवी के निर्देशन में बनी फिल्म ''जुगनू" की जबरदस्त सफल्ता ने दिलीप कुमार को स्टार बना दिया। इस फिल्म् में उनके बतौर नायिका बेगम नूरजहां ने काम किया। इस जोड़ी की यह पहली और अंतिम फिल्म थी। इसी वर्ष देश की स्वतंत्रता के साथ ही भारत पाक का बंटवारा हो गया और नूरजहां शौकत हुसैन रिजवी से विवाह रचाकर पाकिस्तान चली गई। इस फिल्म का एक गीत ''यहां बदला वफा का बेवफाई से किया है, काफी लोकप्रिय हुआ। वर्ष 1948 में फिल्म ''शहीद" की शानदार सफलता ने दिलीप कुमार की प्रसिद्धि को चार चांद लगा दिये। इस फिल्म का यह गीत ''वतन की राह में, वतन के नौजवां शहीद हो," आज भी लोगों की जबां पर है। फिर इसी वर्ष ही वाडिया मूवीटोन्स की फिल्म ''मेला" में दिलीप कुमार ने अपने अभिनय का ऐसा जादू बिखेरा, कि फिल्म सुपरहिट हुई। 1949 में उन्होंने सुप्रसिद्ध निर्देशक महबूब खान की फिल्म ''अंदाज" में नरगिस और राज कपूर के साथ काम किया, मगर यह फिल्म भी सुपरहिट हुई। 1951 में निर्देशक नीतिन बोस की फिल्म ''दीदार" दिलीप कुमार के फिल्मी कैरियर की एक यादगार फिल्म कही जा सकती है। 1952 में उन्होंने निर्देशक महबूब खान द्वारा बनाई गई भारत की पहली 16 एम.एम रंगीन फिल्म ''आन" में अभिनय किया। इस फिल्म में दिलीप कुमार एक ऐसे नवयुक की भूमिका निभाई, जो एक अहंकारी साहिबजादी को सबक सिखाता है। 1955 में निर्देशक खान की शानदार फिल्म ''देवदास" आई जिसने रिकार्ड तोड़ सफलता प्राप्त की, बल्कि उस फिल्म में दिलीप साहिब के ''देवदास" की तरफ से बोले गये एक संवाद ''कौन कम्बख्त पीता है, जीने के लिए" ने ट्रेजडी किंग के रूप में विश्व स्तर पहचान बना दी। इस फिल्म के माध्यम से दिलीप कुमार और बैजंती माला की जोड़ी फिल्मी पर्दे पर पेश की गई। 1957 में दिलीप साहब ने निर्देशक बी.आर. चौपड़ा की फिल्म ''नया दौर" में एक तांगे वाले की भूमिका निभाकर सिने दर्शकों का दिल जीत लिया। बजैन्ती माला के साथ आई फिल्म ''मधुमति" को भी बॉक्स- ऑफिस पर खूब सफलता मिली। दिलीप कुमार-बैजन्ती माला की जोड़ी ने आठ फिल्मों में काम करते सभी फिल्मों में सफलता के रिकार्ड तोडे। फिर उन्होंने ''याराना" ''हलचल", ''दाग", ''सदगिल", ''फुटपाथ", ''आदमी", ''गंगा-यमुना", ''संगीना", ''राम और श्याम" इत्यादि यादगार फिल्मों ने अमित छाप छोड़ी, परन्तु जिस फिल्म ने दिलीप कुमार को फिल्म उद्योग के इतिहास में अमर कर दिया, उस फिल्म का नाम था, ''मुगले--आजम" इस फिल्म के निर्देशक के. आसिफ थे। यह फिल्म 5 अगस्त 1960 को मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमा घर में रीलीज हुई और इसने सफलता का ऐसा इतिहास रचा, कि आज तक भी लोग इस फिल्म के दीवाने हैं। इस फिल्म में दिलीप साहब ने शहजादा सलीम और मधुबाला ने अनारकली की भूमिका निभाई थी। फिल्म में शहनशाह अकबर की भूमिका महान कलाकार पृथ्वी राज कपूर की थी। इस फिल्म के संवाद आज भी बच्चे-बच्चे की जुबां पर है। उनके अभिनय की विशेष पहचान थी कि, बगैर बोले ही आंखों के साथ ही जजबातों का इजहार कर देना। इसी दौर में उन्हें अभिनेत्री मधुबाला से प्यार हो गया, परन्तु यह इश्क सिरे चढ़ सका। दिलीप कुमार ने अपनी प्रतिभा के माध्यम से सर्वोत्तम अभिनेता के रूप में आठ ''फिल्मफेयर एवार्ड" जीते, जिनमें लगातार तीन बार पुरस्कार प्राप्त करने का गर्व प्राप्त किया। 1966 में उन्होंने अभिनेत्री नसीम बानों की बेटी सायरा बानो से निकाह कर लिया। दिलीप साहब ने 80 के दशक में भी अपनी चमक को मध्यम नहीं होने दिया। इस दशक में यश-चौपड़ा की फिल्म ''मशाल" सुभाष घई की फिल्में ''कर्मा" और ''सौदागर" आदि यादगारी और सुपर हिट फिल्में फिल्म जगत को दी। 1998 में उन्होंने आखरी बार फिल्म ''किला" में दिखाई दिये और इसके बाद उन्होंने फिल्म जगत से सन्यास ले लिया। वह इतने प्रसिद्ध थे कि एक बार पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली के रामलीला मैदान में कहा था कि ''कोने-कोने" में लोगों की आवाज को बहुत बारीकी से सुना जाता है, एक मेरी और दूसरी दिलीप साहब की" विदेशी यात्री भी कहते थे कि दो चीजें भारत में जरूर देखने वाली हैं- ''ताजमहल" और ''दिलीप कुमार" ''प्रैसवार्ता" को दिए गए साक्षात्कार में एक बार दिलीप कुमार ने कहा था, कि वर्तमान में फिल्मी सितारे अपनी मर्जी और शर्तों पर फिल्में करते हैं, जबकि एक ऐसा जमाना भी था, जब उन्हें सख्त नियमों का पालन करने के साथ-साथ उल्लंघन होने पर दंडित होना पड़ता था। उन्हें याद है कि जब वह ''बाम्बे टाकीज कम्पनी" में काम करते थे, तब एक बार वह भड़कीले कपड़े पहनकर स्टूडियो पहुंचे, तो उन्हें चेतावनी मिली। एक बार स्टूडियो में सिगरेट पीने के कारण एक सौ रुपया का दंड दिया गया। उनका और राजकपूर की अकसर स्टूडियो छोड़कर दोपहर में फिल्मी शौ देखने की आदत थी और एक दिन ''बॉम्बे टाकीज" की मालकिन ने उन्हें देख लिया और दोनों को पास बुलाकर बड़े प्यार से फिल्म देखने आई विशेष अतिथि लेड़ी रामा राव, श्रीमति जमशेद जी टाटा और सहेलियों से मिलवाया। दिलीप साहब खुश हो गये, कि गलती माफ हो गई, परन्तु अगली पहली तिथि को उनका यह भ्रम टूट गया कि कोषाध्यक्ष ने उनके वेतन से एक सौ रुपया काट लिया। दिलीप साहब ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी फिल्मों को समर्पित कर दी थी।.......... को महान कलाकार ने इस दुनिया से विदाई ले ली और पीछे छोड़ गये अपनी यादें, जो आज भी सिने दर्शकों के दिलों पर छाई हुई है। -चन्द्र मोहन ग्रोवर (प्रैसवार्ता)

हरियाणा के अफसरों की होगी बल्ले-बल्ले

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा के अफसरों की बल्ले-बल्ले होने जा रही है। उनके वेतन में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। डीएसपी, आबकारी एवं कराधान अफसर, वेटरनिटी डाक्टरों समेत 11 श्रेणी के अफसरों का वेतन बढ़ाने को मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा से सोमवार को मंजूरी मिल चुकी है। इस संबंध में अब कभी भी अधिसूचना जारी हो सकती है। इन अफसरों का वेतन करीब एक साल पहले घटा दिया था। हरियाणा सरकार ने जब छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद एक जनवरी 2006 से नए वेतनमान लागू किए थे, तो कुछ के वेतन में विसंगतियां आ गई थीं। उन्हें दूर करने के चक्कर में सरकार ने 18 अगस्त 2009 को वेतनमान ही घटा दिए। इससे अफसरों में जबरदस्त नाराजगरी फैली। इन अफसरों ने सरकार के पास अपनी शिकायतें भेजीं। अब मुख्यमंत्री ने इन्हें मंजूर कर लिया है और 11 श्रेणी के अफसरों का वेतन बढ़ाने को मंजूरी दे दी है। डीएसपी, आबकारी एवं कराधान अफसर, डेंटल सर्जन, एचसीएमएस डाक्टर, हरियाणा वेटरनिटी सर्जन, हरियाणा के तीनों इंजीनियरिंग विभागों सिंचाई, लोक निर्माण विभाग और जनस्वास्थ्य के अलावा पंचायती राज और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के असिस्टेंट इंजीनियर/सब डिवीजनल इंजीनियर, असिस्टेंट आर्किटेक्ट, जिला कमांडेंट होम गार्ड, राजस्व और पुनर्वास विभाग के तहसीलदार और जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक का वेतनमान अब 14800 रुपये जमा+5400 ग्रेड पे होगा। पहले इसे घटाकर 12090 कर दिया था। इसके अलावा असिस्टेंट एडवोकेट जनरल का वेतनमान अब 25000 रुपये+8000 ग्रेड पे होगा। पहले यह वेतनमान 18600+8000 ग्रेड पे था।

किरयाणा की दुकानों पर मिल रहा है-प्रतिबंधित इजैक्श आक्सीटोसन

सिरसा(प्रैसवार्ता) स्वास्थय विभाग की मिलीभगत से जिला सिरसा में प्रतिबंधित आक्सीटोसिन की धडल्ले से बिक्री हो रही है। अधिक दूध प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओं को लगाया जाने वाला यह टीका काफी हानिकारक है, क्योंकि इस टीके की बदौलत पशु का दुध पीने से मनुष्य नपुंसक हो सकता है। बताया जाता है कि प्रतिबंध से पूर्व आक्सीटोसिन का टीका मात्र 20 पैसे में मिलता था मगर अब इनका दाम तीन गुणा हो गया है और खुदरा लेने पर एक रूपये का एक मिलता है। केवल इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह टीका किरयाना की दुकानों पर भी मिल जाता है। एक चिकित्सक ने प्रैसवार्ता को बताया कि जो मनुष्य आक्सीटोसिन लगे हुए पशु के दूध का लगातार सेवन करता है, उसमें महिलाओं जैसे लक्षण प्रतीत होने लग जाते है और पुरूषों का सीना तक बढ़ जाता है। धीरे-धीरे ऐसी अवस्था हो जाती है कि पुरूष अपने पौरूष तक खो बैठता है, लेकिन महिलाओं पर इसका कोई प्रतिकुल प्रभाव नहीं पडता। इस चिकित्सक का यह भी मानना है कि जो बच्चा या गर्भवती महिला आक्सीटोसीन लगे पशु का दूध पीते है, उस बच्चे के विकास की गति धीमी हो जाती है और कभी कभी तो विकास भी पूर्ण रूप में सही नहीं होता। ऐसे बच्चों की दाढी व मूंछें देर से आती हैं। भारतीय पुरूषों के सैक्स पावर में आ रही कमी का मुख्य कारण आक्सीटोसिन लगे पशुओं के दूध का प्रयोग करना है। ग्राम औढा के एक कृषक नत्था सिंह ने 'प्रैसवार्ताÓ को बताया कि लोग अब इस टीके का प्रयोग सब्जी व फल के पौधों के साथ साथ कपास-नरमें के पौधों पर भी करने लगे है, ताकि अधिक से अधिक पैदावार की जा सके। कद्दू या तोरी की बेल पर इस टीके के लगने से एक बार जो बडे आकार में और ज्यादा मात्रा में सब्जी मिल जाती है, लेकिन एक बार फल देने के बाद पर पौधों में हारमोन की कमी आ जाने के कारण अपनी प्रजनन क्षमता खो बैठते है। और दूसरी बार फल देने से पूर्व सुख जाते है। इसी कृषक के अनुसार यहीं स्थिति पशुओं की हो रही है। चिकित्सकों के मुताबिक कपास-नरमें में इसी टीके का प्रयोग होता है, तो उसके बिनौले में इसका प्रभाव कम होने के कारण जब पशु बिनौले खाते है, तो उसका कुछ अंश दूध द्वारा मानव के शरीर में भी चला जाता है। एक अन्य चिकित्सक के अनुसार हयूमन आक्सीटोसिन का भी टीका आता है, जिसका उपयोग गर्भवती महिला को बच्चा जल्दी पैदा करने के लिए दिया जाता है। इसी टीके का एक दो बार प्रयोग तो घातक नहीं, मगर ज्यादा प्रयोग क्षतिदायक है। पशु चिकित्सकों का मानना है कि आक्सीटोसिन का प्रयोग पशुओं की प्रजनन क्षमता बढाने के लिए किया जाता है, लेकिन बिना कारण व बिना जरूरत या दूध निकालने के लिए लगाया गया, यह टीका पशु को समय से पूर्व मौत भी दे सकता है, या फिर पशुओं की प्रजनन और गर्भधारण की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

हरियाणा के शौकीनों के गले तर करेगी 'ग्रेन वाइन'

पानीपत(प्रैसवार्ता) हरियाणा के शौकीनों के गले तर करने के लिए ग्रेन वाइन ज्यादा जल्द बाजार में आ रही है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि यह गुणवत्ता के हिसाब से तो बेहतर होगी ही साथ ही डिस्टिलरी की आय में भी खासी वृद्धि होगी। पानीपत सहकारी चीनी मिल डिस्टिलरी इसे तैयार कर रहा है। अगले महीने तक इसे मार्केट में उतारा जा रहा है। प्रदेश की एक मात्र पानीपत स्थित सहकारी डिस्टिलरी में अब तक शीरे से मिलने वाले अल्कोहल से वाइन तैयार की जाती थी, लेकिन हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में गन्ने की फसल की कमी के चलते पानीपत की डिस्टिलरी को कुछ समय से शीरा मिलने में परेशानी आ रही थी। शीरे के अभाव में डिस्टिलरी को बाजार से सीधे अल्कोहल की खरीद करनी पड़ रही थी। इससे तैयार होने वाली वाइन महंगी पड़ती थी। लागत को कम करने के लिए पानीपत डिस्टिलरी ने शीरे के बजाए ग्रेन (ज्वार, बाजरा, गेहूं, भूसी, चावल की कनकी) से वाइन तैयार करने की महत्वकांक्षी योजना तैयार की और करीब चार करोड़ रुपये की लागत से डिस्टिलरी परिसर में ग्रेन फरमेंटेशन प्लांट स्थापित कर दिया। फिलहाल प्लांट के अंदर ग्रेन फरमेंटेशन में है और मई माह के अंत तक ग्रेन से बनी वाइन की पहली खेप बाजार में उपलब्ध हो जाएगी। पानीपत सहकारी डिस्टिलरी के सूत्रों से पता चला है कि चार करोड़ रुपये की लागत से ग्रेन फरमेंटेशन प्लांट स्थापित कराया गया है। फिलहाल प्लांट के अंदर ग्रेन फरमेंटेशन में है। उन्होंने उम्मीद जताई कि ग्रेन से तैयार होने वाले अल्कोहल से बनी शराब मई माह के अंत तक बाजार में उपलब्ध करवा दी जाएगी। दावा किया कि ग्रेन से तैयार होने वाला अल्कोहल उच्च गुणवत्ता वाला होता है और इससे वाइन की क्वालिटी बेहतर आती है। इसकी संभावित मांग को देखते हुए आबकारी विभाग में कोटा बढ़ाने के लिए आवेदन किया है। इससे डिस्टिलरी की आय में वृद्धि होना तय है।

हथियारों का आल इंडिया लाइसेंस नहीं

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) अब हथियारों का आल इंडिया लाइसेंस नहीं मिलेगा। केवल तीन राज्यों का लाइसेंस दिया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ समेत सभी राज्यों को निर्देश भेजकर कहा है कि हथियारों के लाइसेंस उदारता से न दिया जाएं। निर्देशों के अनुसार आल इंडिया लाइसेंस अब जिस राज्य का निवासी लेना चाहता है, उसे आल इंडिया का लाइसेंस न देकर दो पड़ोसी राज्यों (यानी तीन राज्यों) का ही मिलेगा। आल इंडिया लाइसेंस केवल पांच कैटेगरी को ही मिल सकेगा। केंद्र ने ये कैटेगरी भी बता दी हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री, सांसद, सेना और पैरा मिलिट्री फोर्स के जवान और अफसर, आल इंडिया सर्विस के अफसर, देश में किसी भी हिस्से में तैनात जिम्मेदार अफसर और खिलाड़ी शामिल हैं। यह लाइसेंस भी सिर्फ तीन साल के लिए दिया जाएगा। तीन साल के बाद राज्य सरकार पुनर्विचार करेगी। कोई भी लाइसेंस बिना पुलिस वेरिफिकेशन के जारी नहीं किया जाएगा। जिलाधीश की संस्तुति होनी जरूरी है। नान प्रतिबंधित बोर वाले हथियारों के लाइसेंस राज्य सरकार जारी करेंंगी, जबकि प्रतिबंधित बोर वाले हथियारों के लाइसेंस केंद्र सरकार जारी करेगी, लेकिन राज्य सरकार, जिलाधीश की संस्तुति और पुलिस वेरिफिकेशन के बाद केंद्र को संस्तुति भेजेगी। प्रतिबंधित बोर वाले हथियारों में सामान्यतया एके 47, एसएलआर या अन्य बड़े हथियार आते हैं, जबकि नान प्रतिबंधित बोर वाले हथियारों की श्रेणी में छोटे हथियार आते हैं। केंद्र ने साफ-साफ कहा है, कि प्रतिबंधित बोर वाले हथियार का लाइसेंस मांगने वालों की संस्तुति केवल कुछ ही लोगों के लिए की जाएगी। हर व्यक्ति को यह लाइसेंस नहीं दिया जाएगा। अगर किसी व्यक्ति की जान को आतंकियों से खतरा है, कोई व्यक्ति इस प्रकार की डयूटी की जिम्मेदारी संभाल रहा है, जो आतंकियों की नजर में एक लक्ष्य हो सकता है, वे सांसद और विधाय और प्राइवेट व्यक्ति, जो आतंकी गतिविधियों की रोकथाम में लगे हैं और वे व्यक्ति या उनके परिजन, जो कभी आतंकवादियों के निशाने पर हैं, इस श्रेणी में शामिल किए गए हैं। पंजाब और हरियाणा सरकार के उच्चाधिकारियों ने पुष्टि करते हुए कहा कि केंद्र के इन निर्देशों को फौरन लागू कर दिया है।

हरियाणा में किसान आयोग बनने की तैयारी

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) पंजाब की तर्ज पर किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए हरियाण में किसान आयोग गठन किये जाने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है और किसी भी क्षण इसकी घोषणा की जा सकती है। अपने विधानसभाई चुनावों में किये गये वायदों में ''किसान आयोग" भी एक कांग्रेसी वायदा था। किसान आयोग का कार्य किसानों की समस्याओं को हल करना, कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने, लाभकारी मूल्य दिलवाने के लिए योजनाएं बनाकर उन्हें अमलीजामा पहनाना होगा। ''प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार पदम भूषण विजेता डा. आर.एस. परौदा को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। डा. परौदा राजस्थान के अजमेर जिला के ग्राम सरघाना के निवासी हैं तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक रह चुके हैं और इन्हें बायोडाईवसिटी कंजरवेशन को प्रोत्साहित करने का विशेषज्ञ माना जाता है।

अब बाबा के भक्तों को मिलेगी ''आक्सीजन"

जम्मू(प्रैसवार्ता) हजारों फूट की ऊंचाई पर विराजे अमरनाथ बाबा बर्फानी के श्रद्धालुओं का सफर भविष्य में ओर भी ज्यादा आसान होगा, क्योंकि ऊंचाई पर आक्सीजन की कमी के चलते श्रद्धालुओं, विशेषकर बजुर्गों का बिना दर्शन किए ही वापिस लौटना नहीं होगा। इसके लिए चंडीगढ़ की एक संस्था ने विशेष प्रबंध किये हैं। अमरनाथ यात्रा के दौरान दो महीने तक भंडारा कैम्प लगाने वाली ट्राईसिटी की संस्था शिव-पार्वती सेवादल ने श्रद्धालुओं को भोजन के साथ-साथ अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने की योजना बनाई है, जिसके मुताबिक अमरनाथ यात्रा के दौरान बालटाल में लगाये जाने वाले कैम्प में इस बार यात्रियों की सुविधा के लिए अत्याधुनिक सेल्फ आक्सीजन मेकर मशीनों और इलैक्ट्रोनिक फुट मसाजर की व्यवस्था की गई है। संस्था की ओर से कैम्प में डाक्टरों की टीम का भी प्रावधान किया गया है। शिव-पार्वती सेवादल के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह के अनुसार कैम्प में पांच आक्सीजन मेकर मशीनें और 50 फुट मसाजर उपलब्ध रहेंगे, इसके लिए सरकार की अनुमति मांगी गई है। संस्था के अनुसार इस बार पांच लाख से भी ज्यादा श्रद्धालुओं के बाबा दर्शन के लिए पहुंचने की उम्मीद है और उपरोक्त सभी सुविधाएं कैम्प में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को प्रदान की जाऐंगे। संस्था को एक जुलाई से 24 अगस्त तक भंडारा लगाने की अनुमति पहले से ही मिल चुकी है।

पत्रकारिता के चौथे स्तम्भ को कमजोरियों से बचाने की जरूरत

पिछले कुछ समय में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई-जिसने लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ पर कई प्रश्र खड़े कर दिये। यह प्रश्र स्पष्ट है कि, जो मीडिया कर्मी या पत्रकार स्वयं ईमानदार न हो, तो वह लोकतंत्र की क्या सहायता करेगा? यह प्रश्र नया नहीं है-जब लोकतंत्र का तीसरा स्तम्भ न्यायपालिका भी विवादित हो जाये, तो यह ज्यादा गंभीर व चिंतनीय जरूर हो जाता है। कुछ समय पूर्व अजमेर सैक्स कांड का सरगना दिल्ली में गिरफ्तार हुआ, तो एक पुराना प्रकरण भी चर्चित हो उठा। इस प्रकरण में एक समाचार पत्र के सम्पादक की हत्या हो गई तो सारे अजमेर शहर में खुशी मनाई गई, परन्तु दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार ने इसे प्रैस की आजादी पर हमला बताते हुए सम्पादकीय तक लिख दिया, मगर जब सत्यता सामने आई, तो पता चला कि वह पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार का धंधा करता था। देश भर में पत्रकारिता का स्तर दिन प्रतिदिन गिर रहा है, क्योंकि इस मिशन में बहुत सी काली भेड़ों ने दस्तक दे दी है, जिनका पत्रकारिता से कोई सरोकार नहीं है, बल्कि पत्रकारिता की आड़ में गलत कार्य करने या करने वालों को संरक्षण देना है। नशीली दवाईयों के सौदागर नीम-हकीम, झोलाझाप डाक्टर, देह व्यापारी, टैक्स चोर की एक लंबी कतार पत्रकारिता जगत में देखी जाने लगी है। ज्यादातर लोग प्रैस कार्ड लेकर या अखबार का पंजीकरण करवाकर भ्रष्टाचार, दलाली, ठेकेदारी व अनैतिक कार्यों के लिए सुरक्षित कवच लिये हुए है। सभी पत्रकारों को एक ही नजर से नहीं देखा जा सकता, क्योंकि कुछ पत्रकार लालच या स्वार्थ सिद्धी से दूर रहकर भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। प्रश्र यह व्यक्ति का नहीं, बल्कि चतुर्थ स्तम्भ के विश्वास का है। पत्रकारिता के स्तम्भ की नींव में ही, जब दीमक नजर आने लगे, तो समझिये कि मजबूती को ग्रहण लगना शुरू हो गया है और पत्रकारिता के विश्वास पर संदेह के बादल मंडराने लग गये है। कुछ समाचार पत्र समूह पीत पत्रकारिता का प्रमुख केन्द्र बन गये हैं-जिन्हें राजनेताओं का आशीर्वाद है, वैसे भी उद्योगपति होने के कारण राजतंत्र, प्रशासनिक तंत्र, लठैत तंत्र पर प्रभावी पकड़ रखते हैं। ऐसे समाचार पत्रों से जुड़े संवाददाता न सिर्फ अपनी जेब खर्च से रिर्पोटिंग करते हैं, बल्कि विज्ञापन रूपी कटोरा लेकर विशेषांक के लिए दर-दर पर विज्ञापन भीख मांगते हैं। कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं-जो अपनी कलाकारी की बदौलत खूब चांदी कूट रहे हैं। गलत कार्य करने व भ्रष्ट अधिकारी का तो तबादला किया जा सकता है, परन्तु किसी मुहल्ला टाईम्स के प्रधान संपादक का क्या किया जा सकता है? फरीदाबाद में कुछ वर्ष पूर्व तक उद्योगपति के अपहरण व फिरौती की अवैध वसूली में एक महिला पत्रकार पकड़ी गई थी, जो राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों की रिपोर्टर थी। नोएडा की एक महिला पत्रकार भी कई विवादों के चलते विवादित रही है। इस महिला पत्रकार की ज्यादतियों से जनता जब एकत्रित हुई, तो पत्रकार जगत महिला पत्रकार की मदद पर खड़ा हो गया, तो विववशता वश सरकारी तंत्र को महिला पत्रकार का पक्ष लेना पड़ा। इस बात में कोई संदेह की गुंजाईश नहीं कि, पत्रकार भी इसी समाज का एक अंग हैं और सामाजिक प्राणी होने के कारण कुछ दोष उसमें भी पाये जा सकते हैं, परन्तु यह आधार मानकर उसे क्षमा नहीं किया जाना चाहिये। दरअसल ऐसे पत्रकार दोहरा जुर्म करते हैं। एक तो वह समाज और कानून के साथ तो दूसरा पत्रकारिता के साथ करते हैं। प्रैस को मिली स्वतंत्रता, समाज, कानून व लोकतंत्र सत्य को उजागर करने के लिए मिली है, ना कि सत्य को या स्वयं को उस आजादी को बेचने के लिए। कई बार पत्रकारिता समाचार पत्र समूह, राजनेता व प्रशासनिक तंत्र का शिकार हो जाती है-ऐसी स्थिति में पत्रकार संगठनों को आगे आना पड़ता है। पंजाब लोक सेवा कमिशन का मुखिया भी एक पत्रकार था। कश्मीर में आतंकवादियों के लिए पैसा एकत्रित करने का दोषी भी एक पत्रकार पाया गया। प्रैस अपनी आलोचना स्वयं करे, यह कटु तो है, मगर जरूरी भी। अपने गिरेबां में न देखना, अपने इर्द-गिर्द की गंदगी को साफ न करने के कारण ही राजनीति तथा न्यायपालिका लांछित हुई है। ऐसी स्थिति में प्रैस को होने वाले हश्र की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये, बल्कि अपना नजरिया बदल कर अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिये। -चन्द्र मोहन ग्रोवर (प्रैसवार्ता)

यहां मांगी मुराद कभी खाली नहीं जाती

मालेरकोटला(प्रैसवार्ता) भीषण गर्मी के बीच कोई तपती जमीन पर पेट के बल लेटकर जा रहा था, तो कोई ढोल की थाप और चिमटों की धुन पर मस्त हुआ बढ़ रहा था। बच्चे, युवा और बुजुर्ग हर कोई बस एक बार 'मालेरकोटला वाले पीर' के दर्शन को लालायित था। सूफी पीर बाबा हैदर शेख की दरगाह पर वीरवार को लगे सालाना जोड़ मेले में कई राज्यों से पहुंचे श्रद्धालुओं ने मत्था टेक कर मुराद मांगी। बाबा की दरगाह पर श्रद्धालुओं ने चादर चढ़ाई और लंगर छका। मान्यता है, कि इस दरगाह पर मांगी गई मुराद कभी खाली नहीं जाती। तेज धूप के बीच मालवा की धरती पर सूफी पीर-फकीरों की इस सबसे बड़ी दरगाह पर हरियाणा, पंजाब के अलावा दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचे। पुलिस ने गाडिय़ां दो किलोमीटर पहले ही रूकवा दी थीं। इससे आगे श्रद्धालु पैदल ही बाबा का घोड़ा अर्थात बकरे के बच्चे को गोद में उठाए आगे बढ़े। जिला पुलिस ने संगरूर, बरनाला और पटियाला की पुलिस की मदद से सुरक्षा व्यवस्था संभाली। डीएसपी रूप सिंह मोड़ ने बताया कि दरगाह में जाने वाले हर व्यक्ति की जांच की गई थी। साथ ही क्लोज सर्किट कैमरों की भी मदद ली गई। दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बठिंडा और हनुमानगढ़ की कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने लंगर के इंतजाम किए थे। शहर में डेढ़ सौ से ज्यादा जगहों पर लंगर की व्यवस्था थी।

मेंढक भी बनाते हैं बेवकूफ

अगर आप किसी ऐसे तालाब के पास है जिसमें टर-टर करने वाले ढेर सारे हरे मेंढक हों तो उनकी आवाज को ध्यानपूर्वक सुनें। उनमें से कुछेक झूठ बोल रहे होंगे। कैसे, आइए बताते हैं। क्रोकया टर्र-टर्र करना हरे नर मेंढक का अंदाज है। दूसरे मेंढकों को यह बताने का कि वह कितना बड़ा है। जितना बड़ा नर होगा। उतनी ही गहरी उसकी क्रोक पर्याप्त होती है। अन्य नरों को डराने के लिए और इस तरह वह उसके क्षेत्र में उसे चुनौती देने से बाज़ आ जाते हैं। हालांकि ज्यादातर क्रोक सच्ची होती हैं। कुछ छोटे नर अपनी आवाजों को ऐसाकर लेते हैं कि वह भारी व गहरी मालूम होती है। उनकी आवाज बड़े बदन वाले उन मेंढकों को डरा देती है जो उन्हें ईमानदारी की लड़ाई में परास्त कर सकते है। हरे मेंढक धोखा देने वाली प्रजातियों में से केवल एक हैं। झूठ या धोखा देना पक्षियों से लेकर पानी के जानवरों, प्राइमेट्स गोरिल्ला आदि व होमोसेपियंस यानी मानव तक खोजा जा चुका है। 1990 के मध्य तक वैज्ञानिकों ने एक प्रजाति द्वारा दूसरी प्रजाति को बेवकूफ बनाने के किस्मों को कलमबंद कर दिया था। मसलन, चिडिय़ों से अपने को दूर रखने के लिए कुछ गैर-जहरीली तितलियों ने अपने पेरों को जहरीला प्रजातियों जैसे बना लिया था। लेकिन प्रजाति के अंदर सच ही हावी रहता था। शिकारियों से चौकन्ना रहने के लिए जानवर एक-दूसरे को एलार्म कॉल देते हैं, नर लड़ाई में अपनी ताकत का संकेत देते है, बच्चे अपने माता-पिता को अपने भूखे होने को बता देते हैं। इस तरह सच्चाई दोनों, संकेत देने वाले व स्वीकार करने वाले को फायदा पहुंचाते है। संकेत का अर्थ है जानकारी को दूसरे तक पहुचा देना। धोखा या भ्रम इसलिए कोई मुद्दा नहीं था। लेकिन इस खुशहाल व्यवस्था में एक कमी थी इससे झूठों के लिए अच्छा अवसर मिल जाता है। मसलन शराइक्स नाम की चिडिय़ा नियमित तौर पर शिकारियों से बचने के लिए एक-दूसरे को एलार्म कॉल देती हैं। लेकिन कभी-कभी यह चिडिय़ा झूठा अलार्म कॉल भी देती हैं ताकि दूसरी शराइक्स डर कर खाने से दूर भाग जायें। जसप्रीत सिंह (प्रैसवार्ता)

समाप्त होने के कागार पर है-जोहड़ के तथा प्रवासी पक्षी

गुरदासपुर(प्रैसवार्ता) प्रवासी पक्षियों के आवास जिला गुरदासपुर में जोहड़ के पक्षी धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। यदि इनकी तरफ ध्यान न दिया गय, तो जोहड़ समाप्त होने के साथ-साथ क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों की चहक सुनाई नहीं देगी। अपनी आय बढ़ाने के लिए ग्राम पंचायतें और किसान जोहड़ों का नामोनिशां समाप्त करने के लिए प्रयासरत् हैं, जबकि राज्य का वन-जीव विभाग इन प्रवासी पक्षियों को बचाने के लिए चुप्पी साधे हुए है। ''प्रैसवार्ता" द्वारा एकत्रित की गई जानकारी के अनुसार जिला गुरदासपुर में चार जोहड़ हैं, जिनमें कस्बा मगरमूदीयां का जोहड़ सबसे बड़ा है, जिसमें बहिरामपुर, ग्राम डाला, मगरमूदीयां की सैकड़ों भूमि शामिल है। इस जोहड़ की ऐतिहासिक विशेषता यह है कि यह महाराजा रणजीत सिंह की पसंदीदा शिकार गाह रहा है। इतिहास के पन्ने पलटने से मिली जानकारी अनुसार महाराज रणजीत सिंह, जब भी अपनी गर्मियां बिताने के लिए दीनानगर आते थे, तो वह प्रवासी पक्षियों का शिकार करने यहां आते थे। उन्होंने जोहड़ में शिकार करने के लिए एक चबूतरा भी बनवाया था। इसके अतिरिक्त तीन अन्य जोहड़ काहनुवान जोहड, नौशहरा बेट का क्षेत्रीय जोहड़ और दोरागला खंउ से लगते जोहड़ का क्षेत्र सम्मिलित है। पिदले कुछ वर्षों से यह क्षेत्र निरंतर कम हो रहा है, जिसका कारण मछली पालकों को जोहड़ ठेके पर देना है। इसके अतिरिक्त ऐसी उजह की पैदावार, जिस पर पानी की खपत ज्यादा आती है, के चलते क्षेत्र में जोहड़ निरंतर कम हो रहे हैं। जिला गुरदासपुर के पूर्व उपायुक्त कुलबीर सिंह ने मगर मूंदिया की सुन्दरता बढ़ाने के लिए एक योजना राज्य सरकार को भेजी थी, जिस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। नियमानुसार किसी भी योजना को लागू करने से पूर्व जमीन अधिग्रहण अनिवार्य है, जोकि अभी सरकार ने नहीं किया, जिसके चलते योजना ठंडे बस्ते में है। इस क्षेत्र में दलीप सिंह, हरजिन्द्र सिंह तथा करनैल सिंह ने ''प्रैसवार्ता" को बताया कि एक दशक पूर्व तक सारस की, जो प्रजातियां यहां देखी जाती थी, अब उन्हें कभी नहीं देखा गया। इसके साथ ही गुरगाबी अैर दूसरे पक्षियों का भी इस क्षेत्र में आना कम हो गया है। काहनूवॉन क्षेत्र के जोहड़ों में ड्रेन आऊट की सहायता से इस क्षेत्र की सैकड़ों एकड़ भूमि कृषि योग्य बन सकती है। वन जीव सुरक्षा भाव की इन प्रवासी पक्षियों के प्रति दिलचस्पी न होने के कारण ऐसी प्रवासी पक्षियों का शिकार भी होता है। अपने यौवन पर गर्मी के चलते प्रवासी पक्षी इस क्षेत्र में नहीं दिखाई देते, क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार प्रवासी पक्षी उन क्षेत्रों में चले जाते हैं, जहां सरदी होती है और जब भी इस क्षेत्र में सरदी बढ़ेगी, उसी समय प्रवासी पक्षी भी दिखाई देगें।

क्यों चले जाते हैं लोग...?

आज भी रोज की तरह उषा का आलोक प्राची में फैल रहा था। घर के दहलान के सामने उपवन में देखा तो वहां चहल-पहल थी। जूही की प्यालियों में मकरन्द भरा था और दक्षिणी पवन फूलों की कौडिय़ां फेंक रहा था। कमर से झुकी हुई अलबेली बेलियां नाच रही थी। मन की हार-जीत चल रही थी। अचानक ख्याल आया क्यों आज बच्चों को क्कङ्कक्र पिक्चर दिखाने ले जाया जाए। समय अच्छा कट जाएगा और बच्चे भी आज अपनी छुट्टी का मनोरंजन कर लेंगे। करीब 12:45 का वक्त था। सूर्य देवता आसमान के मध्य में हैं ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था, क्योंकि दिसंबर का महीना चढ़ चुका था। ठण्डी और तेज पुरवाई चल रही थी, जिसके कारण सर्दी और बढ़ गई। बदली छाने के कारण अभी भी धुन्धला मौसम प्रगट हो रहा था। अथक और अजेय-हंसती चिल्लाती हवा जो अपने श्रम पर स्वयं ही मुग्ध थी, बादलों को ले उड़ी और नीले आकाश में सूर्य तारे की गुलाबी-सी किरण चमक उठी। मैं आनन्द विभोर थी और साथ में बच्चे भी। इस चंचल चीखते वातावरण के बीच स्वयं को टुटोलती हुई आगे बढ़ी और तीन टिकटें लेने के लिये अपने पंजे आगे बढ़ाए। हां, तो लीजिए जनाब शुरू हो गई फिल्म। फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं लेकिन टाइम पास का अच्छा साधन थी, क्योंकि फिल्म कॉमेडियन थी। अब इन्टरवेल ने बाँहें पसारी और हम हॉल की सीढिय़ां उतरकर कैंटीन कुछ खाने-पीने के लिये गये। अचानक मैंने अपने होंठों के दोनों कोरों को फैलाया और यन्त्र चालित मुस्कान को उस आकृति के सामने पुरस्कृत किया जो मेरे सम्मुख खड़ी थी। पतला गोल मासूम चेहरा, काली आंखें और चिन्तनशील भी। रंग गोरा, कंधों के नीचे गिरते हुए काले घने लम्बे गेसू, पतली लम्बी उंगुलियां, उसके बाऐं कपोल पर एक तिल उसके सरल सौंदर्य का बांका बनाने के लिये पर्याप्त था और नाक चील की चोंच जैसी। काले रंग का कोट और नीले रंग का मफलर पहने हुए थी। साथ में काले रंग का जीन्स और मैचिंग काले चमकदार जूते। वैसे मेरी जल्दी किसी अजनबी से बोलने की आदत नहीं, स्वाभवत: मैं किसी को जल्दी मुस्कराकर रिसपांस देती। मगर, उसके व्यक्तित्व में जाने मुझे क्यों आकर्षित कर दिया और चाहते हुए भी उससे बात कर बैठी। बातों-बातों में पता चला कि उसके और मेरे बच्चे एक ही स्कूल और एक ही कक्षा में पढ़ते हैं। जब मैंने आधी अधूरी फिल्म उसे अपने साथ बैठकर देखने की ऑफर दी तो पलक झपकते ही वह गायब हो गई। मैंने सोचा शायद सीट नं. की वजह से दूर जाकर बैठ गई है या फिर उसे मेरी कंपनी पसंद नहीं। लेकिन फिल्म खत्म होने के बाद उसने मुझे स्वयं ही बुलाया और हम क्कङ्कक्र के बाहर आकर बैठ गये। ठण्डी हवा और मौसम का आनन्द लेने के साथ-साथ हमने एक दूसरे के विषय में जानने के लिए प्रश्रों की बौछार कर दी। मैं समझ नहीं पा रही थी, कि वो अपने पति के बारे में कुछ क्यों नही बता रही, मगर, बाद में बातचीत के दौरान पता चला कि उसके पति एक घटना के दौरान चल बसे। मुझे अचानक झटका सा लगा जैसे घड़ी की सुइयां रूक गईं हो, हवाएं थम सी गई हों, कहीं कोई पत्ता भी हिल रहा हो, वक्त वहीं ठहर गया हो, ऐसा प्रतीत होने लगा। आई...आई वाज शॉक्ड! माई गॉर्ड....आई..एम..सो..सॉरी! पर आपको देखकर ऐसा लगता तो नहीं। उसने बताया उसके पति को गुजरे लगभग तीन वर्ष हो चुके हैं और वो अब इस सदमें से बाहर चुकी है। उसका उज्जवल भविष्य और सपने पिरौते हुए देखना मुझे उसके चेहरे पर सा$ नज़र रहा था। मुझे एहसास हुआ कि वक़्त ने उसके जख़्म भर दिये हैं। उसकी आंखों की चमक बता रही थी, कि वह अजनबी दुनिया की भयावह भीड़ में किसी एक अपने की तलाश में भटक रही है। उसका चेहरा मेरे लिये एक खुली किताब बन चुका था। जिसे मैं आसानी से पढ़ सकती थी। उसके जख़्मों को ज्यादा करेदते हुए मैंने उसे दुआएं दी कि ईश्वर उसके भविष्य के लिये संजोए हुए सपनों को साकार करे। उसकी बातें मेरी रूह तक उतर गई, क्योंकि वह मुझे आशावादी के साथ-साथ धार्मिक स्वभाव की भी लगी। मैं सोचने लगी कितनी मासूम है यह और ऊपर से इतनी मीठी बोली बिल्कुल कोयल की तरह। दूसरी तरफ सोचने लगी ईश्वर भी कमज़ोर लोगों से ही कठिन इम्तिहान लेता है। क्या ईश्वर ने उसके साथ न्याय किया है? अगर उसके कर्मों में दोष है, तो उसकी सजा बच्चे क्यों भुगत रहे हैं? बिना पति के बच्चों को पालना क्या आसान होता है? एक विधवा मां को मां और बाप दोनों का ही रोल अदा करना पड़ता है और जीवन में चुनौतियां कया कम होती हैं? फिर सोचने लगी जब एक कड़ी टूट जाती है, तो उसे जोडऩा कितना ही मुश्किल हो जाता है। हां, वो जुड़ तो जाती है मगर वो वास्तविकता नहीं रह जाती। मगर, मैं यह भी जानती थी कि संसार कितनी तीव्रता से मनुष्य को चतुर बना देता है। निर्बल को बलवान बना देता है। मैंने उसे हौंसला रखने को कहा। ज्यादा कुछ कहते हुए अंत में मैंने उससे मोबाइल नं. लिया और कहा फिल्म तो कुछ खास नहीं लगी, मगर एक अच्छी दोस्त जरूर मिल गई। हां...फिल्म के पैसे वसूल हो गये। इतना कहते हुए हम दोनों हंस पड़े। मैंने भविष्य की शुभकामनाओं को देते हुए उससे विदा ली। बच्चों को लेकर सीधा घर की तरफ रवाना हुई। जब मैं घर पहुंची तो मुझे लगा कि वह मेरे में समा गई है। मैं, उसके प्रति इतनी भावुक क्यों हो रही हूं। मुझे समझ नहीं रहा था कि वो मेरे इतने करीब कैसे गई। मुझे उसके साथ बिताए हुए पल और उसकी मीठी खट्टी बातें याद रही थी। या फिर वह मेरी कमजोरी थी कि मैं दूसरों के दु: में इतना शामिल हो जाती हूं कि उसकी पीड़ा मुझे महसूस होने लगती है। उसका छोटी उम्र में विधवा होना फिर जिन्दगी से जुझना, मेरे विचारों का उबाल रूक सका और पीड़ा ने शब्दों का रूप ले लिया जिसे मैंने एक छोटी सी कविता के रूप में अपनी डायरी के पृष्ठों में कैद कर लिया-
''क्यों चले जाते हैं लोग...?
परियों के देश
सितारों की दुनिया में
एक नया घर बसाने
हमें तन्हा, निराश छोड़कर....?
अकेलेपन से लडऩे के लिए
जिन्दगी की जंग को जीतने के लिए
क्यों चले जाते हैं लोग....?
सात समुन्दर पार
गुडिय़ों के देश
सारा प्यार लुटाने
क्यों चलते जाते हैं लोग...?
यूं ही तन्हा छोड़कर
तितलियों के देश
एक दूसरी दुनिया में रंग भरने।"
-जसप्रीत कौर 'जस्सी' लुधियाना (प्रैसवार्ता)

जहां दुल्हन रातभर नाचती है

लखनऊ(प्रैसवार्ता) उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे कई ग्रामों में कौल आदिवासी रहते हैं और उनकी एक प्रथा के अनुसार दुल्हन को ससुराल जाने से पहले सारी रात नाचना पड़ता है। कौल समुदाय में यह ''उल्लास पर्व" के नाम से जाना जाता है। नव विवाहित दुल्हन अपने पति घर में जब पहली बार कदम रखती है, तो उसके दिल में उठ रहे बहुत से अरमान उसे दबाने पड़ते हैं और सबके सामने नाचना पड़ता है। सांय होते ही नाचने वाली जगह को सजाया जाता है और वहां रोशनी का प्रबंध किया जाता है। जगह-जगह पर मालाएं '' कोल दहका" या ''कोल दहकी" के लिए लटकाई जाती है। इस अजीब '' कोल दहका" की शुरुआत रात्री आठ बजे होती है, जो सूर्य निकलने से पहले समाप्त होती है। दुल्हन थकावट के चलते चूर-चूर होने पर नृत्य समाप्ति से पूर्व एक गीत गाती है, जिसका अर्थ होता है, ''हे-ईश्वर, यदि अगले जन्म में मुझे फिर नारी बनाये, तो कौल जाति में पैदा न करना।" कोल जाति की प्रथा अनुसार दुल्हन के इस नृत्य को उसका पति, ससुर, सास तथा परिवारजन देखते हैं। उल्लास में आकर कई बार दुल्हन की ननदें भी उसके साथ नाचती हैं। दूसरे दिन वहां सब कुछ बिखरा रहता है, जो याद दिलाता है कि दुल्हन यहां रात भर नृत्य करती रही थी।

पुर्नविचार याजिका खारिज

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पांच अतिरिक्त जिला एवं सत्र जजों की नियुक्ति को रद करने के फैसले पर पुनर्विचार के लिए डाली याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने 18 मई को फैसले में हरियाणा के पांच अतिरिक्त जिला एवं सत्र जजों का चयन और नियुक्ति रद कर दी थी। इस फैसले पर ही प्रभावित लोगों ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी। ज्ञात रहे कि नियुक्ति के समय सरकारी पदों पर आसीन होने के चलते पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा के पांच अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की नियुक्ति रद कर दी थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले को दो माह के लिए लंबित रखते हुए चयन के समय बनी मेरिट लिस्ट में अगले पांच लोगों को चुनने के आदेश दिया था। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में चयन के समय सरकारी वकील और सहायक जिला अटॉर्नी के रूप में कार्यरत होने के चलते दिनेश कुमार मित्तल, राजेश मल्होत्रा, दीपक अग्रवाल, चंद्रशेखर और देसराज छलिया की नियुक्ति को हाईकोर्ट के जस्टिस प्रमोद कोहली और जस्टिस के कन्नन की खंडपीठ ने रद कर दिया था। इनमें चंद्रशेखर व देसराज छलिया हरियाणा के सहायक जिला अटॉर्नी, दीपक अग्रवाल हिमाचल प्रदेश में सहायक जिला अटॉर्नी, दिनेश कुमार मित्तल पंजाब एडवोकेट जनरल के कार्यालय और मल्होत्री सीबीआई वकील थे। इन लॉ अधिकारियों के चयन के खिलाफ हाईकोर्ट में 12 याचिकाएं दायर की गई थी। इनमें कहा गया था कि केंद्र या राज्य सरकार से वेतन पाने वाले कानूनी अधिकारियों को न्यायिक अधिकारी के पदों पर नहीं चुना जा सकता। 18 मई, 2007 को 22 न्यायिक अधिकारियों के चयन के लिए विज्ञापन जारी किए गए थे। इनमें सामान्य श्रेणी में 14, अनुसूचित जाति में पांच और पिछड़ी जाति वर्ग में तीन पद भरे जाने थे। इन पदों के लिए लिखित परीक्षा 2 फरवरी, 2008 और 24 अगस्त, 2008 को ली गई थी। पांचों न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि चयन के समय सरकारी पदों पर कार्यरत होने के चलते वे इन पदों के लिए अयोग्य थे। सरकारी वेतन हासिल करने के चलते ये सरकारी अधिकारियों के लिए निर्धारित नियमों से भी बाध्य थे। अपने 87 पृष्ठों के फैसले में इन कोई ने अपने आदेश को दो माह के लिए स्थगित रखते हुए खंडपीठ ने कहा कि दो माह में हाईकोर्ट रिक्त होने वाले पांच पदों पर वैकल्पिक प्रबंध कर ले। अपने निर्देशों में हाईकोर्ट ने चयन के समय बनी मेरिट लिस्ट में चयनित लोगों के बाद पहले पांच लोगों को चुनने के भी आदेश दिए।

हरियाणा के सांसद विकास से दूर

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) क्या हरियाणा के सांसदों का राज्य के विकास के कुछ लेना-देना नहीं है-या फिर यह सांसद जानबूझ कर विकास से दूरी बनाये हुए है? ''प्रैसवार्ता" द्वारा एकत्रित की गई जानकारी के अनुसार सांसद व केन्द्रीय मंत्री सुश्री शैलजा ने सांसद कोटे से मिले एक करोड़ रुपये से एक भी पैसा खर्च नहीं किया, जबकि ऐसा ही सांसद भजन लाल ने किया है। सांसद जितेन्द्र मलिक ने एक करोड़ रुपये में से मात्र दो लाख, सांसद अशोक तंवर ने एक करोड़ रुपये से दस लाख, सांसद नवीन जिंदल ने दो करोड़ रुपये में से 18 लाख, सांसद श्रुति चौधरी ने दो करोड़ में से 16 लाख रुपये, सांसद एवं इन्द्रजीत सिंह ने दो करोड़ में मात्र चार लाख, सांसद अवतार भडाना ने दो करोड़ में से 90 लाख, सांसद अरविन्द्र शर्मा ने एक करोड़ रुपये में से 87 लाख तथा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने दो करोड़ रुपये से एक करोड़ 43 लाख रुपये की राशी खर्च की है। दिसम्बर 1993 में संसद ने संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना की घोषणा करते हुए प्रत्येक लोकसभा सदस्य को अपने क्षेत्र के विकास के लिए पांच लाख रुपये की राशी आबंटित करने का निर्णय लिया था और यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन थी। वर्ष 04-05 में यह राशी एक करोड़ रुपये तथा वर्ष 08-09 में दो करोड़ कर दी गई थी। इस राशी में से 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति वाले क्षेत्र के विकास के लिए खर्च करनी होती है। मंत्रालय द्वारा अगली किस्त तब जारी की जाती है, जब संबंधित सदस्य ने न्यूनतम 50 लाख रुपये की राशी खर्च कर ली है।

जहां लोकतंत्र भी बिकता है...

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा राज्य के जिला सिरसा के उपमंडल डबवाली के ग्राम पन्नीवाला मोरिकां तथा मेवात जिला के ग्राम गंगवानी में सरपंची की नीलामी होने से विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव सामने आये हैं, जिन्होने प्रशासन की मूकदर्शकता पर प्रश्र अंकित कर दिये हैं। क्या कोई योग्य पुरूष महिला अपनी योग्यता को चांदी के चंद सिक्कों की भेंट चढ़ा पायेगा, क्या सरपंचों की तरह विधायकों और सांसदों की भी नीलामी होगी, क्या मतदाताओं को उनके अधिकार से वंचित रखना उचित है, इत्यादि ऐसे सवाल उठ खड़े हुए हैं। खाप पंचायतों के अजब-गजब फैसलों के लिए चर्चित हरियाणा में अब पंचायती चुनाव दौरान लोकतंत्र से जुड़े नीलामी पद से संविधान व कानून को चुनौती मानते हुए हरियाणवी पंचायतों ने अब लोकतांत्रिक प्रणाली को बौना दिखाया है। लोकतांत्रिक प्रणाली के हनन के लिए दोषीगण पर कोई कार्यवाही का न होना प्रशासन पर मूकदर्शक बनने के आरोप हैं। ''प्रैसवार्ताÓÓ को मिली जानकारी अनुसार चुनाव आयोग किसी भी चुनाव के दौरान निस्पक्षता के साथ-साथ लोकतांत्रिक प्रणाली को बनाये रखने के लिए बकायदा खर्च सीमा निर्धारित करता है, लेकिन लाखों रुपये में बिक सरपंच फिर क्या है? खर्च सीमा के निर्धारण से ज्यादा खर्च लोकतंत्र के हनन के दायरे में है। सूत्र बताते हैं कि चुनाव आयोग इस तरह की घटनाओं पर नजर रखे हुए है। ऐसे धन बल के बलबूते पद करने वालों को बर्खास्त करने के साथ-साथ अपराधिक मामला दर्ज भी करवा सकता है। आयोग का मानना है कि अगर खर्च सीमा निर्धारित न हो, तो फिर गरीब, योग्य व्यक्ति चुनाव लड़ ही नहीं पायेगा, क्योंकि स्वच्छ व स्वस्थ माहौल में लोकतांत्रिक माहौल बनाने के लिए खर्च सीमा निर्धारित करेगा। हरियाणा राज्य से शुरू हुई इस नई परंपरा को यदि संजीदगा से न लिया गया, तो इसके परिणाम गंभीर होंगे। इस बेहद चिंतन पहलू को भले ही ग्रामीण समर्थन दे, मगर यह संविधान तथा कानूनी नियमों की दृष्टि से किसी अपराध से कम नहीं आंका जा सकता।

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