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Wednesday, January 27, 2010

किराये पर लाईसैंस और सर्टिफिकेट

बठिण्डा(प्रैसवार्ता) ड्रग कंट्रोल ऐक्ट अनुसार दवाईयां बेचने का कारोबार केवल डिप्लोमा होल्डर फार्मासिस्ट ही कर सकता है, जबकि उसके लाईसैंस या सर्टिफिकेट पर किसी ओर को दवाइयां बेचने का अधिकार नहीं है, परन्तु बठिण्डा जिला में सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है। कुछ फार्मासिस्टों ने अपने लाईसैंस या सर्टिफिकेट कर दे रखे हैं-जबकि कई दवा विक्रेताओं के पास लाईसैंस या सर्टिफिकेट है-ही नहीं, परन्तु फिर भी वह अंग्रेजी दवाइयां धड़ल्ले से बेच रहे हैं। ''प्रैसवार्ता'' को मिली जानकारी अनुसार ड्रग ऐक्ट अनुसार दवाइयों की दुकान में कोई अन्य कारोबार नहीं किया जा सकता, परन्तु जिला बठिण्डा में कुछ दवा विक्रेताओं की दुकानों पर एस.टी.डी, मोबाइल रिचार्ज इत्यादि का काम हो रहा है, जिनका प्रयोग दवा विक्रेता नशीली, नकली, प्रतिबंधित तथा एक्सपायरी डेट की दवाएं छिपाने का इस्तेमाल करते हैं। ड्रग ऐक्ट के अनुसार दवा विक्रेता सिर्फ डाक्टर की पर्ची पर ही दवा देने का अधिकार रखते हैं और बेची गई दवाई का कैश-मीमो देना अनिवार्य है-जिसमें डाक्टर का नाम, दवाई का नाम, बैच नंबर, उत्पादन तैयार करने वाली फर्म का नाम, तिथि और मूल्य दर्ज होना चाहिये, परन्तु जिला बठिण्डा में ऐसा नहीं हो रहा। कुछ प्राईवेट अस्पतालों तथा क्लिनिकों में भी दवा बिक्री की दुकानें हैं, जहां डाक्टरों को मिलने वाले सैंपलों तक की बिक्री होती है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने ''प्रैसवार्ता'' को बताया कि नशीले पदार्थ अफीम, गांजा, भुक्की, चरस, स्मैक इत्यादि पकडऩे का अधिकार तो पुलिस प्रशासन के पास है, परन्तु नकली या नशीली दवाइयों की जांच व निरीक्षण ड्रग इंस्पैक्टर के पास है, जिस कारण पुलिस कार्यवाही करने में असमर्थ है।

क्लोरोफार्म एक जहर:सरेआम बिकता है

सिरसा(प्रैसवार्ता) रंगहीन तरल पदार्थ और तीखी मीठी गंध वाले क्लोरोफार्म को, यदि सूंघने का प्रयास यिका जाये, तो क्लोरोफार्म का नाम सुनते ही सूंघने वाला व्यक्ति बेहोश हो जायेगा। इस कैमीकल के प्रयोग के कई ढंग हैं। कारखानों तथा प्रयोगशाला में सल्फेट की तरह इसका प्रयोग किया जाता है और प्लास्टिक बनाने वाली मशीनों में फिक्सर के तौर पर प्रयोग, न सिर्फ चिंता का विषय है, बल्कि इसका दुरुपयोग क्षतिदायक भी है। क्लोरोफार्म के जहरीले पन के कारण अप्रेशन थियेटरों में रोगियों को बेहोश करने के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता। आश्चर्यजनक पहलू यह है कि, जहां क्लोरोफार्म अस्पतालों में मिलना मुश्किल है, वहीं दवा विक्रेताओं के पास आसानी से उपलब्ध हो जाता है। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की लोकप्रिय पसंद क्लोरोफार्म के कारण जनपद सिरसा के डबवाली शहर में लूटपाट की घटनाएं हो चुकी हैं। ''प्रैसवार्ता'' द्वारा एकत्रित जानकारी मुताबिक क्लोरोफार्म को अभी तक ''एच ग्रेड'' नहीं दिया गया। ''एच ग्रेड'' की दवाई लेने के लिए डाक्टर की पर्ची अनिवार्य होती है। इंडियन फार्म स्यूटिकल्ज ऐसोसियेशन की कम्युनिटी फार्मेसी शाखा के निर्देशक डा. संजय शर्मा के अनुसार क्लोरोफार्म का प्रयोग कारखाने तथा प्रयोगशाला तक ही होता है और ज्यादातर दवा विक्रेता इसकी बिक्री नहीं करते, परन्तु इसकी बिक्री पर कोई पाबंदी न होने के कारण खरीदा-बेचा जा सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार के इग्जामीनर डी.वी.एस देवगौड़ा ने ''प्रैसवार्ता'' से कहा कि यह सच है कि क्लोरोफार्म की बिक्री व प्रयोग चिंताजनक है, मगर इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए कानून में संशोधन की जरूरत है।

अब घरेलू कर्मियों का पंजीकरण

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा सरकार बाल मजदूर कानून की सख्ती से पालना करते हुए एक कानून बनाने जा रही है, जिसके अंतर्गत घरेलू कार्य करवाने वालों को सरकार से स्वीकृति लेनी होगी-जबकि काम करने वालों का पंजीकरण होगा। आरंभ में यह योजना पंचकुला, गुडग़ांव, करनाल, रोहतक व हिसार में लागू ही जायेगी तथा बाद में इसे पूरे प्रदेश में लागू कर दिया जायेगा। सरकार काम करने वालों का परिश्रामिक भी निर्धारित करेगी। ''प्रैसवार्ता'' को मिली जानकारी अनुसार सरकार पिछले कुछ समय से विभिन्न शहरों में हुई हत्याओं की घटनाओं से चिंतित है। बिना पंजीकरण कार्य करने वाला पुरूष/महिला को, जहां जुर्माना और सजा दोनों हो सकेंगी, वहीं कार्य करवाने वाले को भी बराबर का भागीदार माना जायेगा। जिक्र योग है कि प्रदेश में बाल कानून की अनदेखी करके 70 प्रतिशत लोगों ने घरेलू कार्यों के लिए छोटे-छोटे बच्चे रखे हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक इस कानून संबंधी रूप रेखा तैयार कर ली गई है, जिसे किसी भी समय लागू किया जा सकता है।

Friday, January 22, 2010

शादीशुदा औरतों की भी पसंद-हाईमैनोप्लास्टी

नई दिल्ली(प्रैसवार्ता) समाज में नैतिकता के पतन और पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के परिणाम स्वरूप कुंवारी लड़कियों के साथ-साथ शादीशुदा महिलाओं का रूझान भी हाईमैनोप्लास्टी की तरफ बढऩे लगा है। हाईमैनोप्लास्टभ् के चलते लड़कियां शादी से पूर्व यौन संबंध बनाने से गुरेज नहीं करती और शादी के दिन निकट आने पर अपने कोमार्य भंग होने की चिंता के चलते हाईमैनोप्लास्टी करवाने लगी हैं। इस तकनीक से यौन संबंधों का लुत्फ उठाने उपरांत भी कौमार्य की रक्षा की जा सकती है। देश की राजधानी दिल्ली सहित चंडीगढ़, जयपुर, लुधियाना, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों मं इस तरह के आप्रेशन कास्मैटिक सर्जरी के नाम पर होने लगे हैं। "प्रैसवार्ता" को मिली जानकारी अनुसार इस तरह के आप्रेशन से लाभांवित होने वाली महिला/लड़की को मात्र दो-तीन सप्ताह का परहेज रखना होता है। शादीशुदा महिलाएं अपनी आयु व अनुभव के अनुसार सालगिरह इत्यादि पर आप्रेशन करवाकर अपने पति इत्यादि को उपहार देने लगी है। चिकित्सकों के अनुसार भारतीय लड़कों में प्राय: यह इच्छा रहती है कि उसकी होने वाली पत्नी कुंवारी हो और यही कारण है कि हाईमैनोप्लास्टी का रूझान बढऩे लगा है। एक दिन में होने वाले इस आप्रेशन में आप्रेशन उपरांत संबंधित महिला/लड़की को छुट्टी दे दी जाती है।

मौत का नंगा नाच:प्रशासन बेखबर

बठिण्डा(प्रैसवार्ता) शहर सिरसा में मौत का नंगा नाच नचाने वाली अनेक कारें धड़ल्ले से घूम रही हैं, जो कभी भी विस्फोटक रूप धारण कर अमूल्य जिदंगियों को मौत के आगोश में ले जा सकती है। एल.पी.जी गैंस से चलने वाली यह कारें किसी भी क्षण एक धमाके के साथ किसी भी अप्रिय हादसे को जन्म दे सकती है। मजेदार बात यह है कि ऐसी कारें बनाने वाले बकायदा इश्तिहार बाजी करके कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं। गैंस चलित इन कारों में रसोई गैस का प्रयोग किया जा रहा है, जो कभी भी क्षतिदायक हो सकता है। ''प्रैसवार्ता'' को मिली जानकारी अनुसार वास्तविक तकनीक के अनुसार यह कारें सी.एन.जी. गैंस से चलनी चाहिये, मगर सी.एन.जी महंगी होने के कारण ज्यादातर लोग रसोई गैस का इस्तेमाल करते है। केवल इतना ही नहीं, सी.एन.जी से चलाई जाने वाली कारों को गैंस चलित बनवाने के लिए 20-25 हजार रुपये का खर्च होता है, मगर बठिण्डा में विदेशी नकल पर देसी तकनीक से कारों को गैंस चलित बनाने पर मात्र 5 से 7 हजार रुपये का खर्च आता है। देसी तकनीक घातक सिद्ध हो सकती है, क्योंकि इस प्रणाली से कारों में गैंस का रिसाव सदा रहता है, जो किसी भी समय दुर्घटना होने की स्थिति में फट सकता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने एक आदेश में शहरों में होने वाली दुर्घटनाओं को देखते हुए सी.एन.जी से वाहन चलाने को कहा है, मगर बठिण्डा में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की उल्लंघना हो रही है।

उच्चतम न्यायालय के आदेशों से बेखबर हरियाणा परिवजनकर्मी

सिरसा(प्रैसवार्ता) माननीय उच्चतम न्यायालय के एक जनहित याचिका पर नवम्बर 2001 में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था, करीब एक दशक बीत जाने उपरांत भी हरियाणा राज्य परिवहन के कर्मचारी इससे बेखबर हैं और चलती बसों में बिना किसी भय के धूम्रपान करते देखे जा रहे हैं। ''प्रैसवार्ता'' द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण अनुसार हरियाणा राज्य परिवहन के 60 प्रतिशत चालक-परिचालक, 45 से 50 प्रतिशत बस संस्थान परिसर व कर्मशालाओं में अपनी ड्यूटी दौरान धूम्रपान करते हैं। ''धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है"- लिखा होने उपरांत भी धूम्रपान के रसिया इस लिखित की परवाह नहीं करते। केवल इतना ही नहीं, हरियाणा राज्य परिवहन की ज्यादातर बसों में यात्री सरेआम धूम्रपान करते देखें जा सकते हैं-जबकि बसों में साफ-साफ लिखा होता है कि बस में धूम्रपान कानूनन वर्जित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार धूम्रपान के धुएं से होने वाले रोगों के कारण प्रत्येक वर्ष करीब 30 लाख लोग समय से पूर्व मृत्यु का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि बहुत कम लोग जानते हैं कि मुंह में जलता हुआ धुआं एक छोटे से अग्रिकांड तुल्य है। एक जल रही सिगरेट से मुंह पर 90 डिग्री सैटीग्रेड का तापमान बनता है, और सांस में खींचे गये धुएं का 30 डिग्री सैंटीग्रेड तापमान, जो एक इंच सिगरेट रह जाने पर 50 डिग्री सैंटीग्रेड रह जाता है, खास नली को क्षति पहुंचाता है। एक सिगरेट करीब 500 मिलीग्राम धुआं उगलती है-जिसमें बहुत हानिकारक रसायन होते हैं, जिनकी संख्या लगभग 4 हजार बताई जाती है और इनमें 43 कारसोजैनिक होते हैं, जो कैंसर का कारण बनते हैं। धूम्रपान संबंधी माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों से बेखबर हरियाणा परिवहनकर्मी, जहां कानून व नियमों की अनदेखी कर रहे हैं, वहीं कई भयंकर बीमारियों को भी निमंत्रण दे रहे हैं।

दुर्घटनाओं का शहर बन रहा है-सिरसा

सिरसा(प्रैसवार्ता) कभी सिरसा को पैरिस जैसा बनाने का स्वप्र दिखाकर सत्ता पर काबिज होकर भी अपने वायदे से दूरी बनाये रखने वाले एक राजनेता को भले ही सिरसावासियों ने सत्ता से दूर का रास्ता दिखा दिया है, मगर प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही का खमियाजा जरूर भुगतना पड़ रहा है। बिजली की नंगी तारें, जगह-जगह पर सीवरेज के खड्डे, टूटी-सड़कें, बिना ढक्कनों के मेन होल, सड़कों के किनारों पर लगाई गई रंग-बिरंगी टयूबों में बिजली का न होना, बेकाबू होती यातायात व्यवस्था और दिन प्रतिदिन बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं के चलते सिरसा शहर खतरों का नगर बनता दिखाई देने लगा है। विद्युत प्रसारण निगम द्वारा बिना योजना कनैक्शन के लिए लटकाई गई अस्थाई तारें व खम्बे सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक साबित हो रहे हैं। ज्यादातर ऐसी तारों से अक्सर चिंगारियां निकलती रहती हैं-जो कभी भी किसी अप्रिय हादसे को जन्म दे सकती हैं। शहर के सबसे ज्यादा भीड़-भाड़ वाले रोड़ी बाजार में बिजली के खम्बों तथा लटकती तारों से शायद निगम अधिकारी बेखबर है, भले ही बार-बार शिकायत की गई हो, मगर लगता है कि शायद विद्युत निगम किसी हादसे की इंतजार कर रहा है। शहर में स्ट्रीट लाईट की यह स्थिति है है कि इसे दिन में देखा जा सकता है, रात्रि को नहीं, क्योंकि रात्रि को अंधेरा होता है। अंधेरे में आते-जाते कई लोग दुर्घटनाओं का शिकार हो चुके हैं। शहर की विभिन्न-विभिन्न सड़कों पर पड़े खड्डे, सीवरेज का पानी, बिगड़ती सफाई व्यवस्था, जहां दुर्घटनाओं में वृद्धि कर रही है, वहीं कई बीमारियों को भी निमंत्रण दे रही है। राज्य में अपनी विशेष पहचान रखने वाला सिरसा हादसों का शहर बनता नजर आने लगा है।

प्रोपर्टी डीलरों द्वारा कानून को ठेंगा

बठिण्डा(प्रैसवार्ता) पंजाब सरकार के निर्देशानुसार पुड्डा से बिना पंजीकरण करवाये कोई भी व्यक्ति प्रोपर्टी डीलर/एस्टेट या प्रमोटर का कार्य नहीं कर सकता, परन्तु बठिण्डा में ज्यादातर लोग सरकार के इस कानून व नियमों की उल्लंघना करके प्रोपर्टी डिलिंग का काम कर रहे हैं, जिनमें से कुछ सरकारी कर्मचारी भी है। ''प्रैसवार्ता'' को मिली जानकारी अनुसार बठिण्डा शहर में लगभग दो सौ व्यक्ति प्रोपर्टी डिलिंग का कारोबार कर रहे हैं। पंजाब अपार्टमैंट एण्ड प्रोपर्टी रैगुलेशन एक्ट 1955 के लागू होने पर इस एक्ट की धारा 21 के अन्र्तगत कोई भी व्यक्ति बिना पुड्डा रजिस्ट्रेशन से यदि प्रोपर्टी का कार्य करता है, तो उसे उस एक्ट की धारा 36 (3)के अन्र्तगत एक वर्ष की कैद या दस हजार रुपये जुर्माना अथवा दोनों सजाएं भी हो सकती हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि सरकार के कानून तथा नियमों को ठेंगा दिखाने वालों ने बिना पुड्डा रजिस्ट्रेशन के बड़े-बड़े बोर्डों के साथ अपने कार्यालय बनाकर प्रोपर्टी का कारोबार शुरू किया हुआ है।

जहां मृत्यु पर शोक नहीं जश्र मनाया जाता है

गुडग़ांव(प्रैसवार्ता) आम तौर पर किसी सभी समुदायों के लोगों में अपने परिचित या रिश्तेदार की मृत्यु पर मातम या शोक मनाया जाता है। तथा लोगों को रोते बिलखते देखा जाता है, परन्तु विभिन्न संस्कृतियों के इस देश में एक ऐसा भी समुदाय है जिसमें मृत्यु पर शौक नहीं अपितु जश्र मनाया जाता है तथा मृतक की शव यात्रा किसी की बारात की तरह प्रतीत होती है। मृतक को डी जे की धुन पर नाचते गाते हुए पूरे सम्मान के साथ अंत्येष्टी के लिए ले जाया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में खाना बदोस की तरह जीवन यापन करने वालो भूभलिया समुदाय के लोगों में मृतक को ढोल नगाड़ों और डी जे की धुन पर नाचते हुए अंत्येष्टी के लिए ले जाया जाता है। भूभलिया समुदाय का ऐसा ही एक वाक्या सोमवार को सामने आया। फिरोजपुर झिरका के गुडग़ांवां अलवर मार्ग पर बसे भूभलिया समुदाय मं कल एक महिला की मौत हो गई। परिवार के लोगों ने मौत पर मातम करने की बजाए डी जे का इंतजा किया और नाचते गाते महिला को अंतिम संस्कार के लिए ले गए। भूभलिया समुदाय के लोगों की दस परम्परा को देखने के लिए शहर जगह जगह शव यात्रा को देखने वालों की भीड़ लग गई। बच्चों ने डीजे की आवाज सुनकर इस उम्मीद पर देखने दौड़ पड़े कि शायद कोई बारात होगी। अंतिम यात्रा में जहां अन्य समुदाय के लोग गंगा जल और पवित्रता का ध्यान रखते हैं वहीं इस समुदाय के लोग शव यात्रा में भी जमकर जाम छलकाते हैं। भूभलिया समुदाय के वृद्ध रामू ने बताया कि उनके यहां शुरू से ही शव यात्रा जश्र के साथ निकालने की परम्परा है। उनकी भी अंतिम इच्छा यही है कि उनकी शव यात्रा भी उनकी पत्नी की तरह ही शान से निकले। अपने आपको चित्तौड़ गढ़ का वारिस बताने वाले खेमू ने बताया कि भूभलियाओं की यह परम्परा रही है कि वो जीते भी हैं शान से और मरते भी हैं शान से।

फर्जी नाम दिखाकर हड़प ली पेंशन

झज्जर(प्रैसवार्ता) हरियाणा में पेंशन वितरण में जमकर घपले हो रहे हैं। हालात यह हो गए हैं कि सालों तक घपले के आरोपियों पर सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती। 2000 से 2002 में झज्जर जिले में पेंशन में 45 लाख रुपये से ज्यादा का घपला हुआ। आज तक यह राशि सरकार के पास वापस नहीं आई। एक अफसर ने सख्ती की तो उसका तबादला कर दिया गया। झज्जर जिले में 2000 से 2002 के बीच बांटी गई पेंशन में जमकर घपला हुआ। पेंशन लेने वालों की संख्या में 1016 लोगों के नाम फालतू जोड़कर उनके नाम पर 23 लाख तीन हजार 800 रुपये हड़प लिए गए। इसके अलावा कई महीने तक पेंशन की राशि ज्यादा निकलवाने के बावजूद कम बांटी गई। जो राशि बच जाती थी उसे सरकारी खाते में जमा नहीं कराया गया। इस तरह 22 लाख रुपये का गोलमाल किया गया। जब शिकायत मिली तो विभाग ने एक टीम गठित कर जांच कराई। जांच दल ने जुलाई 2003 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें 45 लाख रुपये से ज्यादा का घपला होने की जानकारी दी गई। इसके बाद विभाग ने पुलिस केस भी दर्ज कराया। पुलिस केस का तो अभी फैसला होना है, लेकिन विभाग ने जांच दल की रिपोर्ट पर चार्जशीट जारी की। एक अफसर की चार्जशीट तो वापस ही ले ली, जबकि दो अफसरों की चार्जशीट अभी पेंडिंग है। इसके अलावा एक अकाउंटेंट आरपी लांबा को भी चार्जशीट जारी की गई थी। लांबा पर आरोप था कि 22 लाख रुपये से ज्यादा का घपला हुआ है, जिसके लिए वे भी जिम्मेदार हैं। लांबा पर लगाए गए आरोपों के संबंध में जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट 14 फरवरी 2005 में सौंप दी थी। जांच अधिकारी ने लांबा को दोषी करार दिया। लांबा ने 18 अप्रैल 2006 को जवाब दे दिया, लेकिन विभाग के निदेशक ने कोई कार्रवाई नहीं की। निदेशक ने फाइल पर लिख्चा दिया कि आपराधिक केस अदालत में लंबित है, इसलिए अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए। तब से यह फाइल लंबित रही। पिछले साल सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग के निदेशक पद पर नीलम प्रदीप कासनी को तैनात किया गया। उन्होंने सभी पुराने घपलों की फाइलें खंगाली। झज्जर के 45 लाख रुपये के घपले में एक आरोपी आरपी लांबा को उन्होंने 4 नवंबर 2009 को नौकरी से निकालने का आदेश पारित कर दिया। कासनी ने लिखा, 'आपराधिक केस और विभागीय कार्रवाई अलग-अलग मामले हैं। विभागीय जांच में लांबा दोषी साबित हो चुके हैं। इस मामले को लंबित रखने से कोई लाभकारी उद्देश्य साबित नहीं होगा। इसलिए लांबा को नौकरी से बाहर किया जाता है।' आदेश के बाद कासनी का तबादला कर दिया गया। दूसरी ओर लांबा ने इस आदेश के खिलाफ विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव धनपत सिंह के पास अपील दायर कर दी है। लांबा की दलील है कि घपले में संलिप्त अन्य अफसरों पर कार्रवाई नहीं हुई, उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है।

हरियाणा में धरोहरों की हिफाजत नहीं

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा में ऐतिहासिक धरोहरों की हिफाजत के नाम पर स्थानीय प्रशासन सिर्फ आंखों में धूल झोंक रहा है। जिसके चलते हरियाणा के 2295 धरोहरों पर अतिक्रमण हो गया हैं। यह जानकारी भारतीय पुरातत्व विभाग के सुपरिटेंडिंग आर्कियोलाजिस्ट एसएच केसरवानी ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस मुकुल मुदगल और जस्टिस जसबीर सिंह की खंडपीठ के समक्ष हलफनामा दायर कर के दी। दायर हलफनामे के अनुसार भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) उन सभी इमारतों और स्थानों से अतिक्रमण हटाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है जिन इमारतों को केंद्र सरकार ने संरक्षित धरोहर का दर्जा दिया है। एएसआई ने कहा कि जिलों के उपायुक्त इसमें कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। ऐसे में कुल 1405 कारण बताओ नोटिस जारी किए जा चुके हैं। जब एएसआई की टीम 28 अक्तूबर को हांसी स्थित पृथ्वी राज चौहान किले से अतिक्रमण हटाने के लिए जेसीबी मशीन के दस्ते के साथ गई तो जिले के डीसी और अन्य अफसर दूर खड़े होकर चुपचाप देख रहे थे। इसी बीच भीड़ ने उन पर हमला कर दिया जिस कारण इस अभियान को बीच में छोडऩा पड़ा। प्रशासन ने न तो उन्हें उपयुक्त सुरक्षा मुहैया करवाई और न ही मुहिम में कोई रुचि ली। ऐसे में एएसआई की टीम को चोटें भी लगी। वहीं, जिला रोहतक में ऐतिहासिक धरोहर खोकराकोट में अतिक्रमण करने पर 74 कारण बताओ नोटिस चस्पा किए गए। फरीदाबाद के मुगल ब्रिज स्थित बुधिया का नाला में अतिक्रमण हटाने के लिए 17 और 18 फरवरी का समय रखा गया है। राजा हर्ष का टीला, थानेसर से अतिक्रमण हटाए जाने का अभियान दो और तीन फरवरी को चलाया जाएगा। ऐसे ही भिवानी में नौरंगाबाद, सिरसा स्थित थेर माउंड और गुडग़ांव की अली वर्दी खान सराय मस्जिद में अतिक्रमण हटाए जाने का अभियान भी चलाया जा रहा है। ऐसे में मांग की गई है कि एएसआई की टीम को अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान उचित सुरक्षा मुहैया करवाई जाए। गौरतलब है कि हाईकोर्ट में पंजाब एवं हरियाणा के ऐतिहासिक धरोहरों संभाले जाने के संबंध में याचिका दायर की गई थी।

Wednesday, January 20, 2010

कैसे बनते हैं-आंसू

विश्व में प्रकृति ने जो भी वस्तु बनाई है, उसका कोई न कोई महत्व है। इन वस्तुओं में भले ही वृक्ष हो, पानी हो या कीड़ा-मकौड़ा, हर जीव जंतु का किसे न किसे ढंग से प्रकृति का संतुलन बनाये रखने में योगदान है। इसी प्रकार मनुष्य शरीर में मिलने वाले अंग और उनमे से निकलने वाले पदार्थ जैसे थूक, आंसू, नाक व कान से निकलने वाले लेस पदार्थ इत्यादि का अपना महत्व है। नाक में बालों का बहुत महत्व है, जो कि सास द्वारा अंदर जाने वाली हवा को छानते हैं और इसमें धूल के करण, हवा में उडऩे वाले हल्के हानिकारक बीजों को लेसदार पदार्थ के साथ रोकने में मदद करते हैं। कानों में भी एक गाढ़ा लेसदास पदार्थ होता है, जो कान के रास्ते अंदर जाने वाली धूल इत्यादि को रोकता है। आंखों में भी एक नमकीन स्वाद वाला तरल पदार्थ निकलता है, जिसे आंसू कहते हैं। यह आंसू हमारे शरीर से ज्यादा खुशी, गम या चोट लगाने पर निकलते हैं। यह आंसू लैकरेमल शैक नामक एक थैली से निकलते हैं और इस थैली का नाक के साथ सीधा सम्पर्क होता है। इसलिए कई बार रोने पर निकलते आंसूओं के साथ-साथ नाक से भी पानी निकलना शुरू हो जाता है। आंसू आंखों के लिए बहुत लाभदायक है, जो आंखों को धो कर साफ रखते हैं और आंखों में पड़ी धूल आदि को निकालते हैं। कई बार आंखों में कई प्रकार के सुक्ष्म कीटाणु भी प्रवेश कर जाते हैं, जिनका खात्मा भी आंसू ही करते हैं। आंसुओं की रसायनिक रचना के पक्ष में 94 प्रतिशत पानी और 6 प्रतिशत रासायनिक, जिसमें कुछ सार्व तथा लाईसोजनिम तत्व होते हैं, की मौजूदगी के कारण आंसुओं में कीट नाशक शक्ति होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार आंसुओं का शरीरिक महत्व तो है ही, बल्कि सामाजिक महत्व भी है। आंसुओं के माध्यम से मनुष्य के दिल का दर्द बाहर निकलता है और मन हल्का हो जाता है। जिन व्यक्तियों की आंखों से आंसू नहीं निकलते, उन्हें एक प्रकार से रेगी माना जाता है और ''पत्थर दिल'' भी कहा जाता है। आंसू मनुष्य, पशु-पक्षी, जीव-जंतुओं के लिए प्रकृति द्वारा मिले एक वरदान कहे जा सकते हैं। -परमिन्द्र (प्रैसवार्ता)

सूंघने की अद्भुत क्षमता

यदि दस लाख लीटर पानी में एक बूंद सिरका या शराब डालकर उस घोल को कुत्ते के पास रखा जाये, तो वह उसे सूंघ कर मालूम कर लेगा कि उसमें सिरका या शराब मिलाई हुई है। अपने मालिक का दस वर्ष पहले पहना हुआ पुराना कपड़ा भी, यदि कुत्ते को परखने के लिए दिया जाये, तो वह अपनी अद्भुत सूंघने की क्षमता के द्वारा यह पहचान लेता है कि कपड़ा उसके मालिक का ही है। प्राणी जगत में प्रकृति ने मात्र कुत्ते को ही सूंघने की यह अद्भुत क्षमता प्रदान की है। एक साधारण कुत्ते की सूंघने की क्षमता मनुष्य से दस लाख गुणा अधिक होती है। यह क्षमता कुत्ते की आयु, नसल, प्रशिक्षण तथा वातावरण पर भी निर्भ करती है। अल्सेशियन लेब्राडोर, डावरमेन तथा हाऊंड जैसी नसल में सूंघने की क्षमता अन्य प्रजाति के कुत्तों की अपेक्षा अधिक होती है। इस अनूठी क्षमता के कारण ही इस नसल के कुत्तों को कठोर प्रशिक्षण देकर पुलिस विभाग में खोजी कुत्तों के रूप में काम लिया जाता है। ये प्रशिक्षित कुत्ते सूंघ कर ही विशाल बर्फीली पहाडिय़ों में दुर्घनाग्रस्त हवाई जहाज का ''ब्लैक बॉक्स'' ढूंढ निकालते हैं। पल भर में हत्यारों, विस्फोटक तथा नशीले पदार्थों के तस्करों को पकडऩे की करामात यह मूक पशु ही कर सकता है।
विज्ञान:जहां आधुनिक युग में सुपर कम्प्यूटर एवं मानव मस्तिष्क भी मात खा जाता है, वहां एक कुत्ता सूंघ कर घटना के रहस्य को ढूंढ निकालने में सफलता प्राप्त कर लेता है। कुत्तों में सूंघने की क्षमता का रहस्य इसकी नाक व मस्तिष्क की बनावट में छुपा होता है। प्रत्येक जीव की नाक में, जो क्षेत्र सूंघने के प्रति संवेदनशील होता है, उसे ''ऑलफेक्ट्री एरिया'' कहते हैं। कुत्ते में यह क्षेत्र मनुष्य से चालीस गुणा अधिक होता है। यह झिल्लीनुमा सिमटा रहता है, जिससे सूंघने के लिए अधिक कोशिकाएं उपलब्ध होती हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक जीव के मस्तिष्क में एक विशेष भाग होता है, जो गंध की प्रकृति को परखने का काम करता है। कुत्ते में इस भाग की कोशिकाएं मनुष्य की तुलना में चालीस गुणा ज्यादा होता है। -डॉ. एम.एल. परिहार (प्रैसवार्ता)

गुड़:पौष्टिक खुराक और दवा

भारतवर्ष में सदियों से पकवानों में गुड़ का प्रयोग होता आ रहा है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में गुड़ का हलवा, गज्जक, गुलगुले, शकरपारे, लड्डू तथा चाय गुड़ से ही बनती है। गुणों की खान गुड़ की पौष्टिकता से अनजान शहरी लोग ज्यादातर चीनी प्रयोग में लाते हैं, परनतु शायद वह चीनी प्रयोग से होने वाली क्षति के बारे अनभिज्ञ है। मनुष्य शरीर के लिए गुड़ हर दृष्टि से लाभदायक है। यदि गुड़ खाने उपरांत दांतों की अच्छी तरह से सफाई कर ली जाये, तो यह दांतों को भी नुकसान नहीं पहुंचाता। गुड़ में गुलुकोज 29 प्रतिशत, खनिज द्रव 3.29 प्रतिशत, पानी 8.66 प्रतिशत, शुक्रोज 29.70 प्रतिशत के अतिरिक्त लोहा, प्रोटीन, आयोटीन, विटामिन ऐ और बी कम्पलैक्स भी भरपूर मात्रा में होता है। गुड़ में मौजूद तत्व शरीर को गर्माइश पहुंचाते हैं और खून की कमी को दूर करते हैं। हड्डियों को पोषण उपलष्ब्ध करवाने के साथ-साथ स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में गुड़ की विशेष भूमिका होती है। यदि गुड़ के गुणों को आयुर्वेदिक औषधी के रूप में देखा जाये, तो गुड़ खून और चर्बी बढ़ाने के अतिरिक्त शरीर को फर्तीला और सुंदर बनाता है। गुड़ दिल के लिए लाभदायक है, रोग नाशक है और मलमूत्र रोग, थकावट को दूर करने के साथ-साथ पाचन शक्ति बढ़ाता है। सौंफ के साथ गुड़ खाने पर वात रोग, हरड़ के साथ खाने पर पित रोग और अदरक के साथ खाने से गुड़ कफ रोग में लाभदायक है। पांडू रोग, सास रोग, खुजली दूर करने वाला गुड़ मधुमेह नाशक और त्रिदोश नाशक माना गया है। जरूरत से ज्यादा गुड़ का सेवन नुकसानदायक भी है। -रजनी मिश्रा (प्रैसवार्ता)

गैस सिलेण्डर से गैर चोरी

छिंदवाड़ा(प्रैसवार्ता) अगर हमारे गैंस उपभोक्ता पाठक सिलेण्डरी लेने जा रहे है तो सावधान हो जाए, क्योंकि जो सिलेण्डर आप खरीद रहे हैं। उसमें गैंस कम हो सकती है यह शिकायत भी नई नहीं है, किन्तु शिकायतों पर कार्यवाही न होने से शिकायत बढ़ती जा रही है। जिसका नमूना म0प्र0 के छिंदवाड़ा जिले में देखने को मिला है। यहां तक एक गैंस उपभोक्ता द्वारा सिलेंडर खरीदकर जब तोला गया तो गैंस 1 किलो 700 ग्राम कम पाई गई, जबकि इसके पूर्व भी गैंस को नापने पर 4 से 5 किलो कम पाई गई जिसकी शिकायत पर कोई कार्यवाही न होने से शिकायत जस की तस बनी हुई है प्रैसवार्ता ने जब इस जागरूक उपभोक्ता से चर्चा की तो उसने बताया कि छिंदवाड़ा में इस प्रकार गैंस की चोरी बढ़ती जा रही है। जानकारी की मानें तो वितरकों के पास रिफेलर होता है, जिससे आसानी से गैंस भरे सिलेंडर में से गैंस निकाली जा सकती है तथा इसमें वे इतने महारथी होते हैं कि सिलेंडर में लगाने वाली सील भी वे हुबद्र बना देते हैं। वितरकों से गैंस सिलेंडर लेते समय यदि जागरूक उपभोक्ता जांच करे या गोदामों के आकस्मिक जांच कराई जाए तो रसोई गैस के नाम पर होने वाली चोरी का बड़े रूप में खुलासा हो सकता है। बहरहाल खाद्य विभाग इस प्रकार की शिकायत को गंभीरता से ना लेकर वही रटा रटाया जवाब कि शिकायत पर कार्यवाही की जाएगी कहकर अपना पल्ला झाड़ते हुए नजर अंदाज कर रहा है। जिससे जिले में गैस सिलेंडर से गैंस की चोरी बढ़ती जा रही है।

ब्रिज कोर्स बंद होने की कागार पर

छिंदवाड़ा(प्रैसवार्ता) विभिन्न कारणों से अपनी पढ़ाई को बीच में ही त्याग चुके 8 वर्ष ऊपर की आयु के बच्चों में अपने साथी छात्रों से पढ़ाई में पिछडऩे को लेकर हीन भावना न आए इस दृष्टि से ब्रिज कोर्स नाम से सीधे इन शाला त्यागी बच्चों को आगे की कक्षाओं में प्रवेश देकर उनके रहने खाने तथा यूनिफार्म की व्यवस्था कर पढ़ाने का जो अभियान सर्व शिक्षा अभियान अवासीय ब्रिज कोर्स के माध्यम से चल रहा है वह अब बंद होने की कागार में दिखाई दे रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा इस पवित्र उद्देश्य को लेकर जो अभियान चल रहा है। वह अब शाला त्यागी बच्चों के अभाव में केवल औपचारिकता मात्र बनकर रह गया है। जबकि ऐसे समय में जब अधिकांश बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़कर आज भी बाल मजदूरी करने को मजबूर हैं। यह स्पष्ट है कि सरकार की योजना और यह नीति केवल फाइलों में कैद है नहीं तो यह योजना सबसे ज्यादा सफल और फलीभूत होती आवश्यकता भी इसके व्यापक प्रचार प्रसार की बहरहाल अपनी सफलता की बांट जोह रही यह योजना शिक्षा विभाग से पर्याप्त प्रचार प्रसार की दरकार रख रही है।

स्वाइन फ्लू ने मध्य प्रदेश में दी दस्तक

भोपाल(प्रैसवार्ता) प्रदेश में स्वाइन फ्लू ने दस्तक दे दी है। इसका खुलासा जिला छिंदवाड़ा के इन्दौर, ग्वालियर, खंडवा में पाए गए केस ने कर दिए हैं, हालांकि चिकित्सक इसकी पुष्टि करने से बच रहे हैं, किन्तु वे स्वाइन फ्लू से इंकार भी नहीं कर रहे हैं। चिकित्सकों का यह भी मानना है कि ठंड जितनी बढ़ेगी खताश उतना ही बढ़ेगा। बेहतर होगा कि इसके बचाव के उपाय किए जाएं स्वाइन फ्लू का भय इन दिनों प्रदेश में इस तरह व्याप्त हो रहा है कि लोग इससे बचाव के लिए विभिन्न प्रयोग करते देखे जा रहे हैं, जबकि चिकित्सा जगत में इससे बचाव के क्या प्रयास किए जा रहे हैं यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है।

पुरस्कारों की घटती गरिमा

वर्तमान समय में यथासंभव पुरस्कार व सम्मान मुंह देख-देखकर दिए जा रहे है, न कि पुरस्कृत किए जाने वाले शख्स की कला, प्रतिभा अथवा गुण के आधार पर। ऐसी विकट परिस्थिति में ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है, जो एक और उदाहरण है इसी बात का कि नौटंकी की यह परम्परा न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर मे बदस्तूर जारी है। इसमें कोई हैरत या अचंभे की बात नहीं है, क्योंकि अभी तक यही दस्तूर चलता आया है और यही आगे भी चलता रहेगा। यदि ओबामा को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया तो महज अमेरिका के तलवे चाटने के लिए, उसे खुश करने के लिए। वैसे भी पुरस्कारों के इस तरह के 'अंधा बांटे रेवड़ी, अपने-अपनों को दे' की तर्ज पर हो रहे वितरण से पुरस्कारों की न सिर्फ गरिमा घटी है, बल्कि उनका महत्व भी दिनोंदिन कम होता जा रहा है। हालांकि यह सच है कि पुरस्कार चमत्कार करते हैं, किन्तु ऐसे पुरस्कार, जो मुंह देखकर दिए जाते हों, कोई मायने नहीं रखते। अगर बात करें हम नोबेल पुरस्कारों के मामले में भारत की उपेक्षा की तो भारत के लिए देश-विदेश में जो श्रद्धा, ख्याति, प्रसिद्धि एवं चाहत लोगों में है, वही हमारे और देश के लिए सबसे बड़ा नोबेल पुरस्कार एवं सम्मान है। -विशाल शुक्ल, छिंदवाड़ा (प्रैसवार्ता)

यहां अकबर के सामने झुकते हैं सिर

कुल्लू(प्रैसवार्ता) अकबर के सामने जीते जी ही नहीं, मौत के बाद भी सैकड़ों सिर झुकते हैं। हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में बसा मलाणा गांव उन्हें देवताओं की तरह पूजता है। ग्रामीणों ने मुगल सम्राट को सोने से निर्मित सदियों पुरानी मूर्ति को एक मंदिर में स्थापित किया है। हर साल फरवरी में फागली उत्सव के दौराव वे अकबर और उनके घोड़े की प्रतिमा निकालते हैं। इसके बाद मंत्रोच्चारण के बीच पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा करते हैं। अकबर के साथ मलाणा वासियों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। देव जमलू की हुकूमत वाले इस ऐतिहासिक गांव में स्थापित उनकी मूर्ति पर देश-विदेश के कई जानेमाने इतिहासकार शोध कर रहे हैं। गांव के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि देवता जमलू ने दिल्ली के तख्त तक को हिला कर रख दिया था।

भविष्य में पत्रकारिता का दायरा विशाल होगा-ग्रोवर

जाने-माने पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर के अनुसार वर्तमान युग में एक सही व स्वस्थ पत्रकार का दायित्व बड़ा अह्म है। अगर वह अपने दायित्व के प्रति पूरी तरह से ईमानदार है, तो उसकी कलम को चूमने वाले हजारों पाठक हर समय तैयार मिल सकते हैं और यदि वह पत्रकारिता को अपना व्यवसाय शौं या समाज में अपनी पैठ बनाने, कृत्रिम रौब डालने के लिए करता है, तो वह पत्रकारिता की बदौलत मिलने वाले सम्मान का हकदार नहीं है। सम्मान का सही हकदार तो वह, जो स्वस्थ, स्वच्छ व सत्य लेखनी का स्वामी है, क्योंकि वर्तमान में पाठक इतना जागरूक हो चुका है कि वह सत्य या असत्य की पहचान रखने में सक्षम है। साहित्य और पत्रकारिता में प्राथमिकता संबंधी पूछने पर पत्रकार श्री ग्रोवर का जवाब था कि दोनों के अलग-अलग रास्ते हैं। साहित्य, जहां मन की गहराईयों से फूटता है, वहीं पत्रकारिता सामायिक विषय, परिस्थितियों, विस्फोटों, अचानक घटित राजनीतिक गतिविधियों, देश-विदेश की घटनाओं को प्राथमिकता देती है। पत्रकारिता की कवरेज सामयिक और निश्चित समय के लिए होती है। जबकि रचना हमेशा के लिए, क्योंकि साहित्य इतिहास है और पत्रकारिता सामयिक। साहितय और पत्रकारिता में किसके पाठक ज्यादा और किसे लोकप्रिय मानते हैं, प्रश्र के उत्तर में श्री ग्रोवर का कहना है कि दोनों के अपने-अपने पाठक हैं। एक तरफ जहां साहित्य का घेरा विशाल और चिरंजीवी है, वहीं पत्रकारिता का क्षेत्र मात्र शिक्षित लोगों तक ही सीमित है। साहित्य आत्मा की खुराक है, तो पत्रकारिता शरीर की। ऐसी स्थिति में आत्मा की खुराक ज्यादा सकून। ऐसे पत्रकार कर्तव्य को प्राथमिकता देते हुए कलम का प्रयोग करते हैं-जिन्हें खरीदना या दबाना मुश्किल होता है। भविष्य में पत्रकारिता के बारे में पत्रकार श्री ग्रोवर की सोच है कि देश-विदेश की परिस्थितियां हलचल मचाये हुए हैं और हर देश आर्थिक व राजनीतिक तौर पर आगे बढऩे की होड़ से ग्रस्त है। इसी प्रकार आने वाले युग में पत्रकारिता की भूमिका और ज्यादा अह्म हो जायेगी, क्योंकि पत्रकार की कलम करोड़ों अखबारी पाठकों को जागरूक करने में अपनी सक्रिय भूमिका निभायेगी। भविष्य में पत्रकारिता का स्तर धीरे-धीरे संवरता जायेगा, क्योंकि आज का पत्रकार अपने दायित्व को समझने का यदि प्रयास करे, तो यह पत्रकारिता क्षेत्र के लिए सुखद होगा, अन्यथा जागृत समाज दायित्वहीन पत्रकारों को दायित्व सिखाने के लिए प्रभावी कदम उठाने पर विवश होगा। सी.एम ग्रोवर (प्रैसवार्ता)

जहां हिन्दू करते हैं मजार की देखभाल

हरदा(प्रैसवार्ता) जिले के झाड़पा गांव में स्थित पीर की मजार की देखभाल सालों से हिन्दु समुदाय के लोग कर रहे हैं। वहीं यहां मोहर्रम पर चादर चढ़ाते हैं, लोभान जलाते हैं और साफ-सफाई करते हैं। पीर बाबा की यह मजार करीब चार सौ साल पुरानी है। कुछ साल पहले तक यह जर्जर हालत में थी। गांव वालों ने इसका जीर्णोद्धार कराया। इस गांव में कोई मुसलमान नहीं रहता। झाड़पा गांव हरदा से सात किमी दूर है। इसकी आबादी करीब तीन सौ हैं। सभी घर हिन्दुओं के हैं, लेकिन पीर बाबा के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है। गांव के संतोष बिश्रोई मजार पर रोजाना अगरबत्ती और लोभान जलाना व फूल चढ़ाना नहीं भूलते। यहां तक कि वे कोई भी काम मजार पर मत्था टेकने के बाद ही शुरू करते हैं। हर गुरुवार को वे बाबा के नाम पर यहां कन्याभोज का आयोजन भी करते हैं। खास बात यह है कि आसपास के गांवों में भी मुस्लिम आबादी नगण्य है। कुछ व्यवसायी और फेरीवाले मुसलमान गांव में आते हैं तो मजार पर मत्था जरुर टेकते हैं।
महक रहे हैं फूल: मजार के आसपास ग्रामीणों द्वारा गुलाब, अशोक सहित विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए गए हैं। एक ग्रामीण ओमप्रकाश सारन ने बताया कि अब मजार के चारों ओर दीवार व चबूतरा भी बना दिया गया है। मजार की मरम्मत तथा हरियाली से यहां का नजारा ही बदल गया है।
जीर्णोद्धार कराया:पीर बाबा के बारे में ज्यादा जानकारी किसी को नहीं है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि मजार करीब चार सौ साल पुरानी है। यह जर्जर हालत में थी। गांव वालों ने ही इसका जीर्णोद्धार कराया। लोगों की मान्यता है कि यहां मत्था टेकने से बरकत होती है। अकीदतमंदों की हर मुराद पूरी होती है। गांव के बुजुर्ग बद्री बिश्रोई, फूलचंद तथा कोटवार भागीरथ ने प्रैसवार्ता को बताया कि मजार की देखरेख वर्षों से गांववासी ही करते आ रहे हैं। उन्होंने कभी भी मंदिर और मजार में भेद नहीं समझा।

मस्जिद में भी हुआ 'वंदेमातरम्'

बैतूल(प्रैसवार्ता) देश में मुसलमानों द्वारा वंदेमातरम् न गाए जाने को लेकर भले फतवा जारी हुआ हो, लेकिन बैतूल बाजार की मस्जिद में मुस्लिम भाइयों ने एक स्वर से वंदे मातरम् गाकर मातृभूमि की वंदना की एक नई मिसाल पेश की है। इसके पहले श्री रूकमणी बालाजी मंदिर बालाजीपुरम में सामूहिक वंदे मातरम् का गाया गया, इसमें मुसलमान शामिल हुए। इस अनूठे वंदे मातरम् गायन में सभी धर्मों के लोग मौजूद थे। हाल में देवबंद में मुसलमानों द्वारा वंदे मातरम् न गाए जाने को लेकर फतवा जारी हुआ था। इसी तारतम्य में बालाजीपुरम में रविवार को दोपहर 2 बजे सामूहिक वंदे मातरम के गायन का आयोजन हुआ। इसमें बालाजीपुरम् मंदिर संस्थापक सेम वर्मा ने सभी लोगों से वंदे मातरम् गाने की बात करते हुए कहा कि मां की पूजा करना, प्रत्येक धर्म में सिखाया गया है। इसलिए इस राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् को अधामिक कहना गलत है। कार्यक्रम में हिन्दुओं के अलावा मुस्लिम समुदाय के लोग भी थे। कार्यक्रम में आभार समिति के शेख्र हारोड़े ने किया। बालाजी सेवा समिति संयोजक सुनील द्विवेदी ने बताया कि इसके बाद सभी लोगों ने सामूहिक वंदे मातरम् गाया। भारत माता के जयघोष के साथ छात्र-छात्राओं, युवाओं की यह रैली बैतूलबाजार की गलियों में निकाली।
वंदे मातरम् में गैर इस्लामिक कुछ भी नहीं: यहां बाजार चौक के आगे मस्जिद में हाफिज अब्दुल राजिद ने इन सभी को मस्जिद परिसर में वंदे मातरम् गायन के लिए आमंत्रित किया। इस दौरान शाहिद, अनीस, इश्ताक आदि ने भी इन सभी के साथ वंदे मातरम् गाया। हाफिज अब्दुल ने कहा कि इसके गायन में कोई गैर इस्लामिक बात नहीं है। इस दौरान मंदिर संस्थापक सेम वर्मा ने इन सभी मुस्लिम धर्मावलंबियों को इस बात के लिए बधाई दी कि हर भारतीय नागरिक की तरह उन्होंने भी वंदे मातरम् की मुखालिफत करने वालों का विरोध किया है।

खतरनाक हो सकती हैं वजन कम करने वाली दवाएं

नई दिल्ली(प्रैसवार्ता) कहते हैं कि फैशन के इस दौर में गारंटी की बात करना बेमानी होती है, भले ही आपको कितना ही नुकसान क्यों न झेलनी पड़े, लेकिन बात जब आपके स्वास्थ्य की हो रही हो, तो सेवन से पहले उसकी गारंटी की ही नहीं उसके साइड इफैक्ट के बारे में जांच-पड़ताल करना जरूरी हो जाता है। हम बात कर रहे हैं बाजार में बिकने वाली उन विभिन्न दवाओं की, जो वजन कम करने की दावे करती है, लेकिन उसके साइड इफैक्ट के बारे में नहीं बतलाती। बावजूद इसके आज विशेषकर महिलाओं में वजन कम रखने की होड़ और दवाओं पर उनकी निर्भरता को देखा जा सकता है। आज हर दूसरी महिला अपना वजन कम करना चाहती हैं, जिसके लिए वह बाजार में उपलब्ध हर नुस्खों पर दांव आजमां रही हैं। चाहे वह दवा आयुर्वेदिक हो अथवा ऐलोपैथिक, लगभग सभी दवाओं पर बारी-बारी से भरोसा करने वाले ऐसे लोग आज अंजाने ही बड़ी व घातक बीमारी की जद में तेजी से पहुंच रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि उन्हें इस बात का आभास तक नहीं है। हालात यह है कि आज बाजार में अनेकों ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं जो दो से चार हफ्तों में वजन कम करने की दावें कर रही हैं। वजन कम रखने वालों की कतार में पुरूषों की भी संख्या कम नहीं है, जो ऐसी किन्हीं दवाओं पर निर्भर है। कोई मोटापे से परेशान है तो कोई बढ़ते वजन से फिक्रमंद होकर इन दवाओं का सेवन कर रहा है। मोटापा कम करने व चर्बी घटाने वाली ऐसी दवाओं से साइड इफैक्ट से बेखबर कौन किस घड़ी, किस बड़ी बीमारी से जकड़ जाएगा, पता लगाना मुश्किल है। चिकित्सकों की राय में बाजार में बिकने वाली ऐसी कई दवाएं स्वास्थ्य के लिए केवल घातक हो सकती है, बल्कि इनके लगातार सेवन से स्ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर, थायराइड समस्या एंव दिल का रोग भी संभव है। यही बात हाल ही हुए एक शोध से भी पता लगा है। एक अध्ययन मुताबिक बाजार में बिकने वाली सेब्टेरामिन नामक दवा, जो विशेषकर वजन कम रखने के लिए दी जाती है, एक स्वस्थ शरीर के लिए बेहद ही नुकसान दायक होती है। रिपोर्ट में बताया गया है इस तरह की गोलियों के लगातार लेने से न केवल स्ट्रोक के चांसेज बढ़ सकते हैं, बल्कि इससे उच्च रक्तचाप व थायराइड की गंभीर समस्या हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार वजन कम करने के लिए बाजार में बिकने वाली सेब्टेरामिन गोली में खतरनाक तत्व पाए गए हैं, जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण काफी हानिकारक हो सकते हैं और यह खासकर उन लोगों के लिए काफी घातक हो जाता है जिन्हें पूर्व में स्ट्रोक, हाई ब्लडप्रेशर जैसे रोग रह चुके हों। डेली टेलीग्राफ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक आस्ट्रेलियाई चिकित्सीय प्रशासन ने सेब्टेरामिन दवा के साइड इफैक्ट की खबर प्रकाश में आते ही सभी डाक्टरों को आदेश जारी किर दिए गए हैं कि मरीजों को सेब्टेरामिन लिखना बंद कर दें। रिपोर्ट में बताया गया है कि चिकित्सीय परीक्षण में वजन कम करने वाली इन गोलियों के सेवन से मरीजों के शरीर में खतरनाक प्रभाव देखे गए। डा राम मनोहर लोहिया अस्पताल, नई दिल्ली में वरिष्ठ चिकित्सक डा एम वली के मतानुसार मोटापे से परेशान रोगियों को सेब्टेरामिन दवाओं का सेवन पूरी तरह से घातक है। उन्होंने बताया कि सेब्टेरामिन दवा चर्बी जलाने में कारगर तो हैं, लेकिन इसके दुष्प्रभाव को देखते हुए इसे मरीजों को देना उचित नहीं है। डा. वली ने बताया कि सेब्टेरामिन का बेहतर विकल्प ओरलीस्टैड दवा है जिसका कोई साइड इफैक्ट नहीं है और यह खाए गए चर्बी के 30 फीसदी मात्रा तुरंत नष्ट कर देने में सक्षम है। हालांकि वजन कम करने के लिए दवाओं के इस्तेमाल को जायज नहीं ठहराते हुए उन्होंने कहा कि यदि संयम से कम चर्बीयुक्त भोजन और नियमित रूप से व्यायाम जारी रखा जाए तो बढ़ते वजन और मोटापे से आसानी से निपटा जा सकता है। शोध रिपोर्ट के अनुसार सबसे पहले यह मामला महिलाओं में देखा गया, जिसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पाया गया। शोध में यह पाया गया है कि रेडिक्टल कंपनी द्वारा बेची जाने वाली इस दवा का सेवन महिलाएं अधिकतर करती हैं। गौरतलब है कि इस दवा के दुष्प्रभाव को देखते हुए आस्ट्रेलियाई प्रशासन ने तत्काल इस पर प्रतिबंध लगा चुकी है। वीएल के हॉस्पिटल, नई दिल्ली में इंटर मेडिसिन कंसल्टेंड डा अतुल भसीन बताते हैं कि सेब्टेरामिन दवा का सेवन कई खतरनाक रोगों को दावत दे सकती है, जिनमें लीवर इंफेकशन, स्ट्रोक, हाई ब्लडप्रेशर, थायराइड समस्या, अवसाद या चिंताग्रस्तता एवं हार्मोनल चेंजेज से होने वाली रोग प्रमुख हैं। डा भसीन का मानना है कि बाजार में बिकने वाली दवाओं से मोटापे और वजन संबंधी रोगों से छुटकारा पाना मुश्किल होता है। उनका कहना है कि नियमित व्यायाम और उचित भोजन ही, इससे निपटने का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका है, जो पुरूषों और महिलाओं दोनों को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जल्दबाजी के चक्कर में दवाओं पर निर्भरता न केवल कई गंभीर बीमारियों को नियंत्रित करते हैं अपितु इनसे होने शरीर में होने वाले बदलाव अतिसंवेदनशील होते हैं और वे भविष्य के लिए घातक हो सकते हैं। प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार आस्ट्रेलिया में सेब्टेरामिन दवा की सेवन करने वाली एक महिला की मौत भी हो चुकी है और तकरीबन 200 लोगों में इस दवा के सेवन से हुए दुष्परिणाम की खबर के बाद आस्ट्रेलियाई चिकित्सीय प्रशासन ने इन दवाओं पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया। चिकित्सीय प्रशासन द्वारा जारी किए चेतावनी सूचना में लोगों से अपील की गई हैं कि वजन कम करने के उद्देश्य से इन दवाओं के उपयोग से दूर रहें, क्योंकि चर्बी को तेजी से जलाने वाली यह दवा स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो रही है। रिपोर्ट से पता चला है कि आस्ट्रेलियाई चिकित्सीय प्रशासन द्वारा किए गए (एससीओयूटी)सेब्टेरामिन कार्डियोवस्कुलर प्राथमिक परिणाम पर आधारित परीक्षण में पाया है कि पूर्व में कार्डियोवस्कुलर अथवा हाईपर टेंशन के रोगी रह चुके रोगियों के लिए सेब्टेरामिन दवा अधिक घातक है और इस दवा के सेवन से रोगियों में हुए बदलाव के बाद ही प्रशासन ने इस दवा पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया था। प्रशासन ने ऐसे मरीजों, जिन्हें पूर्व में कभी कार्डियोवस्कुलर और हाईपर टेंशन की बीमारी रही हो, को सेब्टेरामिन दवा देने से इनकार किया है और यह दवा उन रोगियों के लिए अधिक खतरनाक हो सकता है जो मोटापा, बढ़ते वजन अथवा कार्डियोव्सकुलर जैसे रोगों से घिरे हुए रहे हैं।

गैंस की दिक्कत को यूं करें गायब

पेट में गैंस न सिर्फ खुद एक बीमारी है, बल्कि दूसरी कई बीमारियों की जड़ भी है। कई बार यह दूसरों के सामने हास्यास्पद या अजीब स्थिति में लाकर भी खड़ा कर देती है। लेकिन थोड़ी-सी सावधानी से इस दिक्कत से काफी हद तक बचा जा सकता है। एक्सपट्र्स की सलाह से गैस से छुटकारे के उपाय बता रहे हैं।
Justify Fullगैस यानी बीमारियों की जड़: पेट गेस को अधेवायु बोलते हैं। यह पेट में बनी रहे तो कई बीमारियां हो सकती हैं,जैसे एसिडिटी, कब्ज, पेटदर्द, सिरदर्द, जी मिचलाना, बेचैनी आदि। लंबे समय तक गैस को रोके रखने से बवासीर भी हो सकती है।
गैस है, कैसे पहचानें: पेट में दर्द, पेट से गैस पास होना, डकारें आना, छाती में जलन, अफारा। इसके अलावा, जी मिचलाना, खाना खाने के बाद पेट ज्यादा भारी लगना और खाना हजम न होना, भूख कम लगना, पेट भारी-भारी रहना और पेट साफ न होने जैसा महसूस होना।
किससे बनती है गैस
गलत खानपान
शराब पीने से।
मिर्च-मसाला, तली-भुनी चीजें ज्यादा खाने से।
राजमा, छोले, लोबिया, मोठ उड़द की दाल, फास्ट फूड, ब्रेड और किसी-किसी को दूध या भूख से ज्यादा खाने से।
खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक लेने से।
तला या बासी खाना लेने से।
गलत लाइफस्टाइल
टेंशन रखने से।
देर से सोने और सुबह देर से जागने से।
खाने-पीने का टाइम फिक्स्ड न होने से।
बाकी वजहें
लिवर में सूजन, गॉल ब्लैडर में स्टोन, अल्सर या मोटापे से
डायबीटीज, अस्थमा या बच्चों के पेट में कीड़ों की वजह से।
अक्सर पेनकिलर खाने से।
कब्ज, अतिसार, खाना न पचने व उलटी की वजह से।
जांच के 3 तरीके
एंडॉस्कोपी, ब्लड टेस्ट और बैक्टीरिया टेस्ट
क्या है इलाज
आयुर्वेद
नीचे लिखी दवाओं में से कोई एक दवा अजमा सकते हैं-
गैसांतक वटी। शुरू में दो गोली दिन में तीन बार गर्म पानी से खाने के बाद लें, पर कुछ दिन बाद एक-एक गोली तीन बार कर दें और धीरे-धीरे एक गोली एक बार।
हिमालय की लिव-52, दो गोली हर बार खाने के बाद ले।
लहशुनादि वटी एक-एक गोली तीन बार लें।
एमिल की एमिली क्योर कैप्सूल, सुबह-शाम खाने के बाद ले।
चित्रकादि वटी, एक-एक सुबह-शाल लें।
अविपत्तिकर चूर्ण, खाना खाने के आधे घंटे बाद दो से छह ग्राम लें।
हिंग्वाष्टक, लवणभास्कर चूर्ण या अजमादादि चूर्ण में से कोई एक लें।
योग
आसन-मन्डुकासन, पवनमुक्तासन, नौकासन, धनुरासन, वक्रासन आदि।
प्राणायाम-कपालभाति, अग्रिसार आदि।
इसके अतिरिक्त आप कुन्जल एवं शंखप्रच्छालन का भी प्रयोग कर सकते हैं।
होम्योपैथिक
नीचे लिखी दवाओं में से कोई एक दवा की पांच-पांच गोलियां दिन में तीन बार लें।
गैस ऊपर की ओर जोर मारे और डकारें आएं तो कार्बोवेज-30 लें।
गैस पास हो रही हो, तो लाइकोपोडियम-30 लें।
गैस पेट में घूम रही हो साथ ही पास भी हो रही हो और डकारें भी आ रही हों, या फिर गैस रूक जाए, पेट फूल जाए और अफारा भी हो तो सिंकोना ऑफ या चाइना-30 लें।
ऐसे लोग, जिन्हें घबराहट के साथ जोर-जोर से डकारें आती हों, अर्जेटम नाइट्रिकम लें। प्रस्तुति: अरूण तिवारी, प्रैसवार्ता

आखिर! क्यों होते हैं बलात्कार?

बलात्कार बढऩे के कई कारण है, लेकिन इसका मुख्य कारण आज की फैशन में ढलने वाली लड़कियां ही है और उससे भी ज्यादा फैशन में तथा अति विश्वास में रहते हैं उनके माता पिता अपने परिवार को फ्रेंक पूरी बनाना और बच्चों को फेशन की ओर खुले आम घूमने-फिरने की पूरी आजादी देना यही तो उनकी सबसे बड़े गलती है। मां बाप के कहने पर बच्चों को आजादी मिलती है। उन्हीं के कहे अनुसार लड़के और लड़कियां उनके नख्शे कदम पर चलते हैं। गलती अकेले लड़कों की ही नहीं रहती लड़कियां ही खुद निमंत्रण देती हैं। अपनी इज्जत के साथ खेलने के लिये। पाश्चात्य फैशन के चलते अंग प्रदर्शन करना, टाइट सूट व जींस टी शर्ट पहनना अंग दिखाकर लड़कों को उत्तेजित करना इसलिए कि लड़कों की नजरों में वे अधिक सुंदर व सेक्सी दिखें और फिर लड़के उत्तेजित होकर गलत कदम उठा लेते हैं फिर गलतियां सिर्फ लड़कों की समझी जाती है। कानून को गलतियां लड़कियों की नहीं दिखती और इज्जत खोने से पहले न ही मां बाप की आंखें खुलती हैं सरकार हमेशा लड़कों के लिये कानून निकालती है क्या लड़कियों के लिए कोई कानून नहीं समझ आते। जिनके कारण बलात्कार होते हैं, इसलिए शायद कहा जाता है अंधी सरकार का अंधा कानून। यदि इसी तरह लड़कों को लड़कियां कामोउत्तेजना के लिये प्रेरित करेंगी तो बलात्कार तो होंगी ही। यदि हमारी सरकार नपुंसक नही है तो उन्हें एक कानून ऐसा जरूर निकालना चाहिए कि सजा बालात्कारी को कम और उन लड़कियों को ज्यादा मिलें जो मुंह पर कपड़ा बांधे हुये अंग प्रदर्शन कर घूमती फिरती गाडिय़ों पर नजर आती हैं। लड़कियां मां बाप के संस्कार से ही रहन-सहन का ढंग सीखती हैं। क्या पढ़े-लिखे मां बाप के दिमाग में यह समझ नहीं आता कि शादी से पहले लड़की की जिम्मेदारी मां बाप की ही होती है। उन्हें संस्कारी बनायें। यह सिखायें कि क्या अच्छा और क्या बुरा है। लड़कियों को भी सभी तरह की समझदारी होती है, लेकिन अपनी ही इज्जत की नहीं होती तभी तो उसे दाव पर लगाने के लिये यहां वहां घूमती हैं। कभी स्कूल के बहाने तो कभी कॉलेज के तो कभी-कभी कहती हैं सहेली के यहां किसी काम से जा रही है और मुंह पर कपड़ा लपेटा और काफी शॉप में बैठी दिखेंगी और यदि इत्फाक से मां बाप की घूमने जाने की प्लालिंग हुई और वे भी काफी शॉप में काफी पीने-चले गये तो क्या देखते हैं। कोई लड़की कितनी गलत तरीके से किसी लड़के के साथ चिपक कर बैठी हुई है। लेकिन वे बेवकूफ ये नहीं जान पा रहे हैं कि जो लड़की चिपक कर बैठी हुई है असल में वो अपनी खुद की बिटिया रानी जो गुलछरे उड़ा रही है। आखिर वे भी कैसे पता कर सकते हैं मुंह पर कपड़ा बंधा हुआ है। जाने ऐसी कितनी लड़कियां है जो अपने बड़े भाईयों तथा पिताजी लोगों का रूतबा पूरे शहर में करती फिरती हैं और शायद कभी-कभी वे ही लड़कियां अपने भाइयों और पिता को बेवकूफ बनाने में सफल हो जाती है।, हो सकता है एकाएक ट्राफिक पर या चलते फिरते रास्तों में ही किसी लड़के की गाड़ी में चिपक कर बैठी हो और बाजू में उनका अपना भाई खड़ा हो या चलते फिरते रास्ते में बहन भाई क्रास हो रहे हो तो भाई या पिता पहचान ही नहीं सकते, क्योंकि मैडम के मुंह पर कपड़ा जो बंधा हुआ है। 21वीं शताब्दी के चलते लड़कियों ने अपने खुद ही कायदे कानून बनाने शुरू कर दिये हैं। सरकार उनके लिये क्या कानून बनाएगी और तो और मां भी उन्हें क्या कायदे सिखाएगी, वे खुद ही उल्टा उन्हीं को कायदे कानून बताने लगती है और बच्चे शायद ये भूल जाते हैं कि पैदा उन्होंने नहीं मां बाप ने उन्हें पैदा किया है या फिर घर के जिम्मेदार लोग ही लड़कियों से कमजोर होते हैं लड़कियों के आगे शायद उनकी धोंस चलती ही नहीं। इसलिए तो लड़कियां लड़कों की तरह दिलेरी से गाडिय़ों व साइकिलों पर अंग प्रदर्शन कर मुंह पर कपड़ा बांधे घूमती हुई नजर आती हैं, जिससे कि कोई घर का व्यक्ति उन्हें पहचान ही न सके। यदि लड़कियां विदेशी कल्चर ही अपनाना चाहती हैं तो फिर उतने कपड़े भी नहीं पहनना चाहिये वो कपड़े भी उतार देना चाहिये। शराब सिगरेट भी शुरू कर देना चाहिये, जैसे दोस्तों के साथ रातें बिताना यदि ऐसा ही करना है तो पूरी तरह से अपनाओं किसी भी फैशन में कोई कमी न हो और इन लड़कियों के माता पिता से अनुरोध है कि वे उनका पूरी तरह से साथ देकर उन्हें ऊंचाइयों पर चढ़ाये आज बड़ा दुख होता है क्या इसी दिन के लिए आजाद नहीं हुआ था हमारा देश। कितने वीरों ने अपने प्राणों की बली दे डाली अपने प्राणों की बली इसलिए दी गई थी, क्योंकि हमारा भारत देश, खुशहाली में संस्कारी में कायदे कानून में नं. 1 पर हो लेकिन हमारे भारतवासी ही भारत देश को विदेशी रूप में ढालने की कोशिश कर रहे हैं बस दो दिन ही ऐसे होते हैं। जब भारतवासी वीर जवानों को याद कर उनके गुण गाते हैं। (1)26 जनवरी (2)15 अगस्त उसके बाद किसने बली दी, क्यों दी, किसके लिये दी, क्यों शहीद हुये और वो कौन था जिन्होंने हमारे भारत देश को अच्छे और संस्कारी दिन दिखाने के लिए आजाद कराया था। उनसे उन्हें कोई मतलब नहीं बस फिर कयाहै। कारवां फिर शुरू हो जाता है बात वही की वहीं रह जाती है, लेकिन एक बात कहना चाहती हूं कि अपनी बिटिया को बिगाडऩे में या उसे संस्कारी बनाने में उसकी अपनी मां का हाथ सबसे अहम होता है। -विशाल शुक्ल ऊँ, छिंदवाड़ा (प्रैसवार्ता)

Saturday, January 9, 2010

पत्रकारिता पर हावी हो रही राजनीति से पत्रकारिता खतरे में

आज से कुछ वर्ष पूर्व पत्रकारिता समाज में सम्मानजनक ढंग का व्यवसाय माना जाता था और समाज भी उन्हें विशेष व्यक्ति के तौर पर स्वीकार किये हुए था, परन्तु अब पत्रकारिता में निरंतर आ रहे बदलाव और पत्रकारिता पर हावी हो रही राजनीति से लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ पत्रकारिता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। कुछ पत्रकार भी अपने सही उद्देश्य से भटक कर झूठी वाही-वाही लूटने और धन कमाने के राह पर चल पड़े हैं-जिनके कारण स्वच्छ, स्वस्थ तथा निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले ईमानदार पत्रकार प्रभावित हो रहे हैं। मेरा निजी अनुभव है कि जो पत्रकार झूठी शौहरत और धन कमाने की लालसा को लेकर पत्रकारिता करते हैं, समाज जल्दी ही उन्हें ''बैक टू पैवेलियन'' कर देता है। किसी भी पत्रकार को अपने निजी स्वार्थ के चलते प्रैस के मान-सम्मान को दाव पर लगाने का अधिकार नहीं है। मेरी सोच अनुसार जब कोई भी पत्रकार सत्यता को छिपाने के लिए गलत तत्वों से सौदेबाजी करता है, तो वह गलत तत्वों को शह देने की भूमिका निभाने के अतिरिक्त पत्रकार समुदाय को भी संदेह के दायरे में लाकर खड़ा कर देता है। यदि हम राजनीतिज्ञों की ही बात करें तो तस्वीर का एक अजीबो-गरीब रूख देखने को मिलेगा। यह किसी से भी भूला नहीं है कि हर राजनेता प्रैस से मधुर संबंध बनाने को प्राथमिकता देता है, क्योंकि उसकी सोच होती है कि प्रैस ही राजनेता की छवि बना व बिगाड़ सकती है। कुछ पत्रकार भी निजी स्वार्थों के चलते राजनेताओं की पकड़ में आ जाते हैं, जबकि पत्रकारिता के दायित्व को समझने वाले जब राजनेताओं की गिरफ्त नहीं आते, तो वह उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए सभी ढंग अपनाने से भी नहीं चूकते क्योंकि राजनेताओं के निजी स्वार्थों व उल्टी-सीधी कार्यप्रणाली से उन्हें बचना होता। राजनेता कैसे दिखते हैं, क्या करते हैं और उनका असली चेहरा कैसा है, पत्रकार जानते हैं और राजनेता भी जानते हैं कि वह अपनी छवि व कार्यप्रणाली कैसे जनता की नजरों में बनाये रखना चाहते हैं। इसलिए पत्रकारों को अपने पक्ष में करना उनकी राजनीतिक विवशता होती है। वर्तमान में तो राजनेता इस कद्र सक्रिय देखे जा सकते हैं-जो पत्रकारों को अपने साथ जोड़े हुए हैं और दुखद पहलू यह है कि कुछ पत्रकार अपने आका राजनेताओं का गुणगान करते समय चाटुकारिता की समस्त सीमाएं लांघने से भी नहीं चूकते। दूसरी तरफ पत्रकारों में भी एकता न होने के कारण छत्रपति जैसे पत्रकारों को अपनी शहादत देने के लिए आगे आना पड़ा। अपराधी व गलत तत्व राजनेताओं व प्रशासनिक तंत्र की छत्रछाया में पत्रकारों से मारपीट या अभद्र व्यवहार करने से नहीं चूकते। स्थिति ऐसी हो गई है कि पहले अपराधी व गलत तत्व पत्रकारों से भय खाते थे, मगर अब पत्रकार उनसे भयभीत देखे जा सकते हैं। पिछला वर्ष पंजाब सहित हरियाणा प्रदेश के पत्रकारों के लिए शुभ नहीं रहा। कई पत्रकार ज्यादती का शिकार हुए और पत्रकार समुदाय में एकता न होने के कारण विवशता वश ज्यादती के शिकार को सब्र का घूंट भरना पड़ा। पत्रकार पर ज्यादती अखबारी सुर्खियों में तो बढ़ चढ़ कर पढ़ी जा सकती है और निंदा करने वाले पत्रकारों के ब्यान बखूबी पढ़े जा सकते हैं, मगर उसके साथ न्याय दिलवाने के चलने वाले ढूंढने से भी नहीं मिलते। प्रशासनिक तंत्र तथा राजनेता भी घडिय़ाली आंसू बहाकर झूठी सहानुभूति दिखाने से गुरेज नहीं करता, क्योंकि पत्रकार से ज्यादती करने वालों से उनके मधुर संबंध जो होते हैं। यदि किसी पत्रकार से ज्यादती के विरोध में पत्रकार एकत्रित हो भी जायें तो प्रशासनिक तंत्र दोषीगण को काबू करके मुकद्दमे की ऐसी परिभाषा तैयार करता है कि जमानत झटपट हो जाती हैं और जमानत से रिहा हुआ दोषी फिर धमकाने की प्रक्रिया में तेजी ला देता है-जिससे संबंधित पत्रकार और उसके परिवारजनों की नींद उड़ जाती है और वह समझौते को ही सही मानते हैं। पत्रकार भले ही कितना ईमानदार, निस्पक्ष व सिद्धांत वादी हो, मगर राजनेता उसकी ईमानदारी, सिद्धांतवादी नीति व निस्पक्षता के स्पैलिंग ही बदल देने में विशेष कहे जाते हैं। जरूरत है पत्रकारों को एक ऐसे संगठन की, जो अपने मान सम्मान व अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करें। राजनेताओं व प्रशासनिक तंत्र से सिद्धांतवादी टक्कर लेकर आजादी के परवाने पत्रकारों की तरह राजनेताओं को पत्रकारों के अधिकार व कर्तव्य का ज्ञान करवाकर उन्हें अहसास करवा सके कि पत्रकार राष्ट्र की सच्ची धरोहर हैं और कानूनी दायरे में रहकर देशहित को सर्वोपरि मानते हुए सत्यता के पक्षधर हैं। -रमेश कुमार(प्रैसवार्ता)

क्या है समाचार यानि न्यूज

समाचार यानि न्यूज का अर्थ है, सभी दिशाओं की नई से नई घटनाओं की जानकारी। न्यूज यानि एन से नार्थ, इ से ईस्ट, डब्लयू से वैस्ट तथा एस से साउथ। सामचार की इसी परिभाषा संकलन व स्त्रोत पर प्रकाश डाल रहे प्रैसवार्ता के संपादक चन्द्र मोहन ग्रोवर एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य को अपने तथा अपने से जुड़े ''सब कुछ'' के विषय में निरंतर और पूर्ण जानकारी चाहिये और ऐसा तब हो सकता है-जब सूचना स्त्रोत निर्बाध व अनवरत बहता रहे। हम जानते हैं कि ज्ञान कितना ही महत्वपूर्ण क्यों न हो, यदि प्रकाश में नहीं आता तो वह धीरे-धीरे विलुप्त हो जाता है। इस तरह कोई भी घटना कितनी ही महत्वपूर्ण रोचक, रहस्यमय और मानवीय क्यों न हो-यदि इसकी लोगों को जानकारी नहीं तो यह अनजानी ही बनी रहेगी। ज्ञान और सूचना दोनों का प्रवाह लिपी के अविष्कार से पूर्व मौखिक ही बहा करता था। विभिन्न-विभिन्न मुनियों व विचारकों द्वारा मंत्रों, श£ोकों, उपदेशों व संदेशों द्वारा प्रसारित ज्ञान सूत्र रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी मानव जाति को प्राप्त होता रहा, परन्तु बाद में लिपी के अविष्कार, ताडपत्र और फिर कागज निर्माण से ज्ञान और सूचना के इस प्रवाह को मनुष्य जाति ने अपनी पीढ़ी को लिखित रूप में उपलब्ध करवाया। ज्यों-ज्यों मानव जाति की संख्या व दूरी बढऩे लगी-तो इस प्रवाह (ज्ञान और सूचना) को सभी तक पहुंचाने के लिए अन्य उपाय जरूरी हो गये। यातायात के द्रूत साधनों, मुद्रण की जानकारी आदि ने यूरोप के माध्यम से मानव जगत को ज्ञान व सूचना के नियमित प्रवाह के रूप में नई चीज दी-जिसे आज अखबार या समाचार पत्र कहा जाता है। ज्ञान और सूचना के स्त्रोत को दृष्टिगत रखते हुए समाचार पत्र का मुख्य कार्य पाठक को जानकारी देना तथा उसका मनोरंजन करना बताया जाता है। समाचार पत्र के लिए मनोरंजन शब्द बड़ा व्यापक है। पाठक किसी लिंग, आयु, श्रेणी, व्यवसाय अथवा रूची वर्ग का हो सकता है। वैसे भी अखबार में सभी के लिए रूचिकर सामग्री हो-यही मनोरंजन शब्द से अभिप्रत है। साहित्य की विभिन्न विधाओं, उपन्यास-कथा, कविता, संस्करण, जीवनी आदि-बाल जगत, महिला जगत, युवा जगत, वृद्धावस्था, विज्ञान, फिल्म, दूरदर्शन, रंगमंच, संगीत, नृत्य व अन्य कलाओं से जुड़ी समूची पठन सामग्री मनोरंजन का ही अंग कहा जा सकता है। समाचार यानि न्यूज की चर्चा के चलते जानकारी तथा सूचना देने के पक्ष तक ही सीमित रहते हुए यही कहा जा सकता है कि इस पक्ष के भी दो अंग है। एक शुद्ध समाचार तथा दूसरा समाचार के हमारे समाज, देश व समूची मानवता पर पड़े या पड़ सकने वाले प्रभाव का आकलन, विवेचन तथा उस विषय में जनमत तैयार करने का प्रयास-जोकि लेखों व सम्पादकीय से संभव हो सकता है।
Justify Fullसमाचार यानि न्यूज क्या है- इसे समझ लेने उपरांत यह बता देना भी जरूरी है कि अखबार के पाठक विभिन्न-विभिन्न वर्गों के होने के साथ-साथ विभिन्न-विभिन्न रूची रखते हैं और यही कारण है कि ज्यादातर समाचार पत्र पाठकों की रूची और आवश्यकताओं को प्राथमिकता देते हैं। क्षेत्रीय अखबारों में, जहां क्षेत्रीय समाचारों की प्राथमिकता दी जाती है, वहीं, जिस स्थान से समाचार पत्र छपता है, वहां के समाचार पत्रों का सदा प्रमुखता मिलती है-भले ही समाचार पत्र स्थानीय, क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर का हो। अंग्रेजी के अखबार अंग्रेजी साहित्य व अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को ज्यादा महत्व देते हैं-जबकि भारतीय भाषाओं के राष्ट्रीय व प्रमुख समाचार पत्र प्राय: उन्हीं अंतर्राष्ट्रीय समाचारों का चयन करते हैं-जो या तो अपने देश से जुड़े हो अथवा समूचे विश्व पर प्रभाव डालते हैं। वर्तमान में आर्थिक गतिविधियों को लगभग सभी समाचार पत्र विशेष स्थान देने लगे हैं-जबकि कई समाचार पत्र आर्थिक व वाणिज्यिक समाचारों के विशेष संस्करण निकाल रहे हैं। पश्चिम में इसका चलन ज्यादा है, क्योंकि भारत में ज्यादातर परिवार एक ही अखबार खरीदते हैं-जबकि पश्चिम में कई-कई समाचार पत्र भी प्रयास करते हैं कि एक से ज्यादा विषयों से संबंधित जानकारी का प्रकाशन किया जा सके। घटनात्मक समाचारों में पांच ''क'' यानि कब, कहां, कैसे, कौन और क्यों को ध्यान में रखने से समाचार सम्पूर्ण और पाठनीय हो जाता है। समाचार में पांच ''क'' के प्रयोग के विपरीत कई समाचार सम्पादकों की राये में तो इन्ट्रों में सूत्र से सूचना होनी चाहिये और फिर उसका विस्तार होना चाहिये। इसके उपरांत पुलिस प्रशासन, सरकारी प्रयास हुई क्षति का विवरण, प्रभावित लोगों को आश्वस्त या सहायता देने की दिशा में, जो भी हुआ हो या करने का इरादा हो, उसकी जानकारी दी जा सकती है। हर संवाददाता को घटना की सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिये। यदि सूचना देरी से भी मिले, तो भी जरूर जाकर जाकर आसपास के लोगों या घटना से संबंधित लोगों से विवरण लेना चाहिये, परन्तु संदिग्ध परिस्थितियों वाली घटना में सतर्क रहना चाहिये, क्योंकि फालोअप का चक्कर कई बार महंगा पड़ सकता है। समाचारों के वर्गीकरण से ही उनके विभिन्न रूपों की जानकारी मिल जाती है कि वे किस विषय से जुड़े हुए हैं, यह स्पष्ट हो जाता है, अत: पत्रकार उनकी व्याख्या में न पड़कर सीधे समाचार संकलन पर आ जाते हैं। समाचार कैसे प्राप्त होगा या जुटाया जायेगा। इसकी जानकारी हर संवाददाता के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ उनकी दैनदिंन कार्यक्रम का सबसे बड़ा स्त्रोत है-एक सूचना, दो विज्ञप्ति-बुलेटिन या वक्तव्य, तीन संवाददाता सम्मेलन, चार मैच, प्रतियोगिता, सम्मेलन, न्यायालय, विधानसभा या संसद की रिर्पोटिंग, पांच नियमित अथवा विशेष ब्रीफिंग, छ: अनायास मिला संकेत या स्कूप तथा किसी विशेष समाचार की खोज। समाचार के स्त्रोतों पर ब्यौरेवाह विचार करने से पूर्व हर संवाददाता को ध्यान रखना चाहिये, कि समाचार में न केवल उसकी, अपितु उससे जुड़े अखबार की विश्वसनीयता भी दाव पर लगी रहती है। संवाददाता पाठकों के लिए अखबार के दूत का पर्याय होता है। इसलिए किसी घटना, वक्तव्य, सभा सम्मेलन, आरोप-प्रत्यारोप आदि का समाचार देते समय तथ्य को चैक (जांच) तथा क्रास चैक जरूर करें। समाचार देने में थोड़ी देर भले ही हो जाये, परन्तु जल्दबादी में अधूरी, गलत, अपुष्ट अथवा खंडनीय जानकारी न दें। प्राय: सभी घटनाक्रम व अपराध समाचारों का स्त्रोत सूचना ही होती है-भले ही वह पुलिस बुलेटिन से मिले या किसी अन्य सूत्र से। ऐसे समाचारों को कवर करते समय यह ध्यान रखना चाहिये, कि घटना अभी जारी है। अथवा उसके अवशेष अभी घटनास्थल पर ही हों, तो तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने का प्रयास किया जाना चाहिये। महानगरों में विज्ञप्ति, बुलेटिन अथवा वक्तव्यों की बाढ़ रहती है। विभिन्न-विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, उनके दल, सामाजिक संगठन, उनसे जुड़े वरिष्ठ कार्यकर्ता, कर्मचारी संगठन और उनके नेतागण, प्रमुख बुद्धिजीवी और प्रचारक अपनी नियमित या विशेष गतिविधियों पर अपने वक्तव्य जारी करते हैं। ऐसी सूचनाओं को आकर्षक ढंग देने के लिए इंट्रो जानकारी पूरक हो, तो अच्छा शीर्षक दिया जा सकता है। विज्ञप्ति, वक्तव्य या बुलेटिन में समाचार का जो भी अंश हो समाचार के शुरू में स्पष्ट हो जाये। ऐसा नहीं होना चाहिये कि समाचार का अंश आपके लिखे समाचार में सबसे अंत पर हो-उसी का शीर्षक बनना था और स्थानाभाव के कारण वही प्रमुख अंश कट गये। निस्सन्देह इसके लिए अखबार का संपादक डैस्क भी उत्तरदायी होगा, परन्तु संवाददाता होने के नाते आपको भी यह ज्ञान होना चाहिये कि कई बार समयाभाव में समाचार का पुर्नलेखन संभव नहीं हो पाता। संवाददाता सम्मेलन में समाचार संकलन का यही स्त्रोत ऐसा है-जिसमें संवाददाता के अनुभव, सूझबूझ और अध्ययन की सर्वाधिक परख होती है। जब तक संबंध विषय की पृष्ठभूमि का ज्ञान न हो-तब तक कोई भी संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे व्यक्ति से वांछित व विशेष जानकारी नहीं उगलवा सकता। अनुभव न हो तो प्रश्र पर पूरक प्रश्र का साहस और संबंध व्यक्ति को सही जानकारी देने के लिए विवश नहीं कर सकता। सूझबूझ के न होने पर उसे गलत तथ्य देते हुए या कोई जानकारी छिपाते हुए पकड़ नहीं सकता।
संवाददाता और सावधानियां:
(1) यह जानिये कि संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कौन कर रहा है और उसकी क्या स्थिति है?
(2) संवाददाता सम्मेलन का विषय अथवा मुद्दा क्या है?
(3) यदि यह मुद्दा पहले से ही चल रहा है, तो उसकी पूरी पृष्ठभूमि की जानकारी लेकर सम्मेलन में जायें?
(4) संवाददाता सम्मेलन में संवाददाता विषय से संबंधित कोई भी प्रश्र पूछने को स्वतंत्र है, परन्तु यदि संबंध व्यक्ति स्पष्ट उत्तर देने से इंकार कर देता है-तो बहस नहीं की जानी चाहिये। बेहतर रहेगा कि उस प्रश्र को किसी अन्य प्रश्र में समाहित कर वांद्धित जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की जाये।
(5) शिष्टता और संयम का साथ न छोड़ते हुए भाषा संयम रखें और जरूरत से ज्यादा उंचा भी बन बोला जाये।
(6) विवरण प्राप्त के लिए विषय से संबंध पूरक प्रश्र पूछते समय ध्यान रखें के आपका लक्ष्य संबंध व्यक्ति का चरित्र हनन करना या उसे छोटा दिखना न होकर पाठकों के लिए अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करना ही हो।
(7) संवाददाता सम्मेलन का समाचार बनाते समय इंट्रों में पूरे संवाददाता सम्मेलन का मुख्य स्वर सा मुद्दा उभर की सामने आना चाहिये, क्योंकि इंट्रों ही पाठक को समाचार पढऩे के लिए प्रेरित करेगा। संवाददाता सम्मेलन में उठाये गये मुद्दों का ब्यौरा क्रमानुसार समाचार में दिया जाना चाहिये तथा संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करने वाले का विवरण इंट्रों या फिर दूसरे पैराग्राफ तक आ जाना चाहिये।
(8) समाचार बनाते समय एक ध्यान रखा जाये कि संवाददाता सम्मेलन के आयोजन ने किसी व्यक्ति विशेष, अपने विरोधी दल के नेता अथवा किसी संगठन पर कोई आरोप लगाया हो-तो आयोजन की हैसियत जरूर देखें और जिस पर आरोप लगाया गया है, तो पक्ष लेने का हर संभव प्रयास किया जाये। पक्षपात व बेहूदा आरोप को नजर अंदाज कर दिया जाना चाहिये। यदि नेता बड़ा हो अथवा उसकी मंशा समाज व राष्ट्रहित में हो-तो आरोप-प्रत्यारोप का उल्लेख करते समय सावधान जरूर रहना चाहिये मैच, प्रतियोगिता, सभा सम्मेलन, विधानसभा, संसद व न्यायालय की रिर्पोटिंग करते समय, जो देखा व सुना जाये, उसी को लिखा जाये। किसी बात को विशेष अर्थ देने से परहेज करना चाहिये। विशेष टिप्पणी और अपने कमैन्टस देने की बजाये तथ्यों पर आधारित व सारगर्भित, पक्षपात व दोहराव रहित रिर्पोट को ही प्राथमिकता देनी चाहिये। खेल रिपोर्ट करते समय तथ्यों व आरोपों को चैक व क्रॉस चैक जरूर किया जाये तथा आरोपों का उल्लेख करते समय उन्हीं शब्दों का प्रयोग करें-जो कहे गये हों। किसी विधायक, सांसद व सदन की अवमानना वाली रिर्पोटिंग नहीं की जानी चाहिये। नियमित या विशेष ब्रीफिंग किसी संवाददाता सम्मेलन से कम नहीं होती, अत: इस संदर्भ में ज्यादा से ज्यादा जानकारी एकत्रित करने का प्रयास संवाददाता को करना चाहिये। यदाकदा अनायास ही और कई बार किसी अन्य स्टोरी पर कार्य करते हुए संवाददाता को किसी तथ्य की या मामले की भनक लग जाती है-जिससे समाज में तूफान खड़ा हो सकता है। प्रशासन में बावेला मच सकता है, सरकार हिल सकती है किसी नेता/अधिकारी/विशेष दल की प्रतिष्ठता को गहरा आघात पहुंचा सकता है। इसे ''स्कूप'' कहा जाता है-जो अपने आप में भनक या झलक मात्र है। संवाददाता को इसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है, क्योंकि इस मामले में तथ्य के बारे में गुप चुप अधिकाधिक जानकारी जुटानी होती है। सावधानी बरतना व प्रमाण जुटाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जरा सी चूक संवाददाता तथा संबंधित अखबार की विश्वसनीयता को गहरा आघात् पहुंचा सकती है। किसी समाचार विशेष पर कार्य, भले ही वह स्कूप से संबंधित हो या सौंपा गया विशेष दायित्व के लिए भी सावधानी का प्रयोग जरूरी है और यह भी ध्याना रखना होगा कि विशेष देरी न लगे तथा इसके भनक प्रतिद्वून्दी संवाददाता व अखबार को न लगे। नहीं तो स्टोरी से वंचित रहा जा सकता है और कोई दूसरा संवाददाता मोर्चा मार सकता है। अत: अंत में यही कहा जा सकता है कि अच्छे संवाददाता का कार्य तलवार की धार पर चलने जैसा जोखिम भरा है-जिसमें प्रतिपल सावधान रहने की जरूरत है। प्रस्तुति:प्रैसवार्ता

पत्रकारिता क्षेत्र में प्रवेश करने का ढंग

पत्रकारिता का क्षेत्र उत्साहपूर्वक एवं चुनौती भरा क्षेत्र है- जिसमें प्रवेश करके आजीविका की व्यवस्था होती है-वहीं सम्मान भी मिलता है। वर्तमान में हर व्यक्ति यह जानने का इच्छुक रहता है कि कहां, क्या हो रहा है, राजनीतिक हलचल किस दौर में है, महंगाई व शेयर बाजार कैसी स्थिति में है, सरकार की कार्यप्रणाली व गतिविधियां क्या है, इत्यादि, इसके लिए समाचार पत्र,टी.वी. इंटरनैट, रेडियो इत्यादि ही मददगार होते हैं। विश्व, देश तथा प्रदेशों में विभिन्न-विभिन्न भाषाओं के दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक समाचार पत्र/पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है और उनमें भी एक दूसरे से आगे बढऩे की होड़ है। यदि किसी समाचार पत्र/पत्रिका के पास अनुभवी व परिश्रमी स्टॉफ होगा-उतनी ही ज्यादा पाठकों में पैठ तथा विश्वसनीयता बनायेगा। अलग-अलग विषयों पर नवीनतम जानकारी देने के लिए समाचार पत्र/पत्रिका समूह को पत्रकारों की आवश्यकता रहती है। इस प्रकार प्रिंट तथा इलैक्टोनिक मीडिया दोनों में ही रोजगार के अवसर हैं। इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए जहां, उच्च योग्यता अहम् भूमिका अदा करती है, वहीं पत्रकारिता से संबंधित विशेष कोर्स, जो कि डिग्री या डिप्लोमा के रूप में प्राप्त किये जा सकते हैं, सोने पर सुहागे को काम करते हैं। प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में किसी समाचार पत्र प्रकाशन समूह में बतौर मुख्य संपादन, संपादक, समाचार संपादक, रिर्पोटर, विशेष संवाददाता के रूप में कार्य प्रबंधक, एकाऊंटस प्रबंधक इत्यादि विषयों से काम करके विशेष पहचान भी बनाई जा सकती है। परिश्रम व संघर्ष के बलबूते इस क्षेत्र में उचित सम्मान प्राप्त किया जा सकता है।
पत्रकारिता संबंधी कोर्स: बी.ऐ (जर्नलिज्म) की डिग्री प्राप्ति के लिए कई विश्वविद्यालय/संस्थान प्राथमिक योग्यता स्नातक (50 प्रतिशत अंक) के आधार पर एक वर्ष या बाहरवीं सम्मान योग्यता वाले को तीन वर्ष में प्रशिक्षण लेना होता है। स्नातक योग्यता के आधार पर बी.ऐ (जर्नलिज्म) एक वर्षीय डिग्री देने के लिए निम्र विश्वविद्यालय व संस्थाओं के नाम दिये जा रहे हैं-जहां से एक वर्ष में प्रशिक्षण उपरांत डिग्री हासिल की जा सकती है।
बनारस हिन्दु युनिवर्सिटी, वाराणसी (उ0प्र0)
डा. बी.आर. अंबेडकर मराठावाड़ा, यूनिवर्सिटी, ओरंगाबाद (महाराष्ट्र)
कांशी विश्व विद्यालय, वाराणसी (उ0प्र0)
आंध्र युनिवर्सिटी विशाखापटनम (आं0)
पंजाबी युनिवर्सिटी, पटियाला (पंजाब)
बाहरवीं के आधार पर तीन वर्षीय प्रशिक्षण देकर डिप्लोमा देने वाले विश्वविद्यालय व संस्थान।
श्री गुरू नानक देव युनिवर्सिटी, अमृतसर (पंजाब)
साउथ गुजरात, युनिवर्सिटी, सूरत (गुजरात)
गुरू गोबिंद सिंह इन्द्रप्रस्थत कालेज, दिल्ली
हिमाचल प्रदेश युनिवर्सिटी, समरहिल, शिमला
बंगलौर युनिवर्सिटी, बंगलौर (कर्नाटक)
कमला नेहरू कालेज, आनंद लोक, दिल्ली
लेडी श्री राम कालेज, लाजपत नगर दिल्ली इत्यादि प्रमुख संस्थाएं हैं-जो पत्रकारिता से संबंधित डिग्री प्रदान करती हैं।
डिप्लोमा इन जर्नलिज्म: डिग्री के अतिरिक्त स्नातक/बाहरवीं के लिए पत्रकारिता से संबंधित एक वर्षीय डिप्लोमा और सर्टीफिकेट कोर्स भी करवाये जाते हैं। यह कोर्स करवाने वाली मुख्य संस्थाओं में इंस्टीच्यूट ऑफ जर्नलिज्म, नई दिल्ली, अमीरी स्कूल ऑफ कम्युनेशन, सैक्टर 44-नोएडा, गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद इत्यादि सम्मिलित हैं।
पत्राचार के माध्यम से बैचलर ऑफ जर्नलिज्म ऐंड मास कम्युनीकेशन के लिए अवादेश प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी सीवा, इंस्टीच्यूट ऑफ ओपन ऐण्ड डिस्टैंस लर्निग बरकतुला विश्वविद्यालय, भोपाल, गुरू घासीदास यूनिवर्सिटी बिलासपुर (छत्तीसगढ़) कोटा ओपन यूनिवर्सिटी कोटा (राजस्थान) इत्यादि से संपर्क किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कई और मान्यता प्राप्त संस्थाएं हैं।

समाचार पत्र/पत्रिकाएं ग्राहक भी होते हैं

कई छायाचार पर पत्र/पत्रिकाएं लेखकों, स्वतंत्र पत्रकारों से प्रकाशन सामग्री लेकर अच्छा परिश्रामिक देती हैं। ऐसी स्थिति में प्रकाशन सामग्री प्रेषित करने वालों को उस समाचार पत्र/पत्रिका के स्तर पर जरूर ध्यान रखना चाहिए कि वह कैसी प्रकाशन सामग्री चाहते हैं। हर समाचार पत्र/पत्रिका की आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं और लगभग सभी समाचार पत्रों व पत्रिकाओं की नीतियां विभिन्न-विभिन्न हैं। अत: किसी भी परिश्रामिक देने वाली पत्रिका या समाचार पत्र की नीति, स्तर व जरूरतों के बारे में जानकारी होनी अति अनिवार्य है। प्रैसवार्ता न्यूज फीचर्स सर्विस के सौजन्य से दी जा रही इस विषय पर जानकारी के लिए यह जरूरी है कि सामयिक लेख, टिप्पणी, क्षेत्रीय वार्ता पत्र (न्यूज लैटर), विशेष वातापत्र, फिल्म समीक्षा, व्यंग्य चित्र, टी.वी. व रेडियो की समीक्षा के अतिरिक्त कविताएं, कहानियां ज्ञान-विज्ञान, मनोरंजन, कला व संस्कृति पर लेख, पुरस्तक समीक्षा, साक्षात्कार, कृषि उद्योग, व्यापार आदि पर लेखों को समाचार पत्र/पत्रिकाएं प्राथमिकता देती हैं।
डायजैस्ट पत्रिकाएं: जहां ज्ञान-विज्ञान, मनोरंजन पर साहित्य, कहानियां, कविताएं, हास्य, व्यंग्य, आकर्षक छाया चित्र व रंगीन पारदर्शियां, फोटो फीचर को प्राथमिकता देती है, वही खेल पत्रिकाएं खेल समाचार, खेलों के छाया चित्र, खिलाडिय़ों से साक्षात्कार, खेल व लेख व व्यंग्य चित्र आदि को उचित स्थान देती है। फिल्मी पत्रिकाएं, फिल्मी कलाकारों के छाया चित्र, साक्षात्कार, फिल्मी लेख व समाचार और फिल्मी समीक्षाएं छापती हैं-वहीं साहित्यक पत्रिकाएं कहानियां, कविताएं, गीत, गजलें, पुस्तक समीक्षा व साहित्य पर लेख, विज्ञान पत्रिकाएं, विज्ञान संबंधी सामग्री तथा व्यापार व उद्योग पत्रिकाएं व्यापार व उद्योग पर सामयिक लेख, समाचार, सर्वेक्षण व परिचर्चा को प्राथमिकता देती है।
समाचार ऐजन्सियां: समाचार, समाचार फोओ, समाचार छाया चित्र, सामयिक लेख, वार्तालाप, साक्षात्कार, विशेष समाचार पत्रिकाओं तथा समाचार पत्रों को प्रेषित करती हैं- वहीं फोटो एजेंसियां समाचार छाया चित्र, प्रसिद्ध व्यक्तियों के छाया चित्र, आकर्षक व्यक्तित्व के छाया चित्र, प्रसिद्ध स्थलों के छाया चित्र, पशु, पक्षी व प्राकृतिक दृश्यों के छायाचित्र व रंगीन पारदर्शियां इत्यादि। कुछ समाचार पत्र/पत्रिकाओं व समाचार एजेंसियों को प्रेषित प्रकाशन सामग्री पर उचित परिश्रामिक मिलता है। अत: ऐसे समाचार पत्र/पत्रिकाओं व समाचार एजेंसियों को ही प्रकाशन सामग्री का प्रेषण लाभदायक है। -प्रस्तुति प्रैसवार्ता (रजि.)

पत्रकारिता हमेशा स्कैंडलों के पीछे ही.........

जाने माने पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर कहते हैं कि इसमें कोई संदेह की गुंजाईश नहीं, कि पत्रकारिता स्कैण्डलों के पीछे ज्यादा भाग रही है, भले ही यह समय की जरूरत है, परन्तु इस वजह से अन्य पहलुओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। देश की स्वतंत्रता उपरांत राजनीतिक लोगों का पत्रकारिता में प्रवेश ज्यादा बढऩे की वजह से पत्रकारिता अपने लक्ष्य से अवश्य भटकी है, परन्तु समूचे पत्रकार जगत को इसका दोषी मानना सरासर अन्याय है। अखबारी जगत से जुड़े कुछ लोगों की मजबूरियां होगी, यह तो माना भी जा सकता है, मगर मजबूरियों के आगे हथियार डालना भी तो उचित नहीं, बल्कि मजबूरियों से सम्मानजनक समझौता भी तो हो सकता है। पत्रकार ग्रोवर के अनुसार अखबार को निस्पक्ष होना चाहिये, क्योंकि वह समाज का आईना है अत: उसकी जिम्मेवारी बनती है कि वह समाज को रास्ता दिखाये। इतिहास साक्षी है कि पत्रकारों ने दुनिया के इतिहास को बदला है और यही वजह है कि सभी क्षेत्रों से जुड़े लोग पत्रकारों से मार्ग दर्शन लेते हैं। स्वार्थ के लिए पत्रकारिता का लिबादा औढऩा राष्ट्र, समाज व मानवता से अन्याय है। अखबार वही प्रगति करता है, जो समाज की नब्ज पहचानता है। सत्य व निस्पक्ष समाचारों से अखबार की विश्वसनीयता बढ़ती है और जनता का स्नेह, सम्मान भी मिलता है। जागृत समाज को इस संबंध में सतर्क रहना चाहिये, ताकि कोई गलत तत्व पत्रकारिता में घुस कर समाज के आईने पर घूल न जमा जाये। अखबार आज जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। पत्रकार यदि सत्यता और समर्पित भावना से खबरों का प्रकाशन करेंगे, तो पाठक संख्या कारोबार बढऩे के साथ-साथ पाठक विश्वास भी बढ़ेगा, जो कि एक अखबार की जमा पूंजी है। वर्तमान परिस्थितियों की चर्चा करते हुए पत्रकार श्री ग्रोवर कहते हैं समाज के नैतिक स्तर गिरने में बदलाव सिर्फ पत्रकारिता ही ला सकती है और उसके लिए पत्रकारों को आगे आना होगा, भले ही उन्हें कुछ खोना पड़े। वह चाहते हैं कि पत्रकार स्कैंडलों के पीछे न भागकर ऐसा दायित्व निभायें, जिससे राष्ट्र समाज व मानवता का कल्याण हो। -सुभाष बांसल, प्रैसवार्ता

पत्रकार -चन्द्र मोहन ग्रोवर

मेरी राय में पत्रकार बनने से पूर्व आदमी जो समझ लेना चाहिये, कि ये मार्ग त्याग का है, जोड़ का नहीं। जिस भाई-बहिन को भोग-विलास की लालसा हो, वह कोई धंधा करे और रहम करें, इस राम रोजगार पर। आदर्श पत्रकार ईमानदारी, पादरी, पीर, परमहंस सा नजर आता है, जो व्यक्तिगत सुख-दुख से उपर, किसी भी भीड़ में आसानी से पहचाना जा सकता है।
भाषा का ज्ञान पत्रकारिता की पहली शर्त है, घटनाओं के प्रति सजगता, घटना को समाचार की शकल देना आकर्षक शीर्षक लगाना, देश-विदेश की घटनाओं व समाचारों की नवीनतम जानकारी, सामान्य से प्रमुख व्यक्तियों से साक्षात्कार लेना, आलेख तैयार करना। संवाददाता सम्मेलन में व्यक्ति से प्रश्र करना, प्रभावी व्यक्तित्व, निर्भय, साहस से परिपूर्ण, प्रलोभन से दूर एक सफल पत्रकार के आवश्यक तत्व है।
पत्रकारिता एक पेशा नहीं, बल्कि यह तो जन सेवा का माध्यम है। राष्ट्रपति से लेकर सामान्य राहगीर के चरम सुख और दुख से संबंधित पत्रकारिता सार्वजनिक दायित्व से परिपूर्ण एक प्रकृष्ट कला है, जैसा कि पत्रकार कालाईल ने स्पष्ट कहा है कि ''महान है पत्रकारिता, लोकमानस को प्रभावित करने वाला होने के कारण पत्रकार क्या विश्व का शासन नहींÓÓ? वास्तव में रोचक एवं चुनौतीपूर्ण पेशे में वही सक्षम होगा, जिसमें कवि की कल्पना-शक्ति, कलाकार की सृजनात्मक योग्यता, न्यायाधीश की विषय निष्ठता, वैज्ञानिक की सुस्पष्टता और कम्प्यूटर मशीन की गति हो। ऐसे प्रतिभा सम्पन्न पत्रकार की ढेर सारे विषय में थोड़ा सा और थोड़ा सा के विषय में ढेर जा जानना चाहिए।
पत्रकारिता का प्राण तत्व समाचार है। मानव की ज्ञान पिपासा तब शांत होती है, जब वह समाचार सुन अथवा पढ़ लेता है। प्रात: कालीन नित्य क्रिया का एक अभिन्न अंग नये-नये समाचारों की जानकारी प्राप्त करना है, क्योंकि वह आधुनिक जीवन की एक जरूरत है। जिसमें सभी की रूची रहती है। पहले जब दो-चार व्यक्ति इक_े होते थे, तो धार्मिक व पारिवारिक चर्चा होती थी और अब आसपास, राष्ट्र, विदेश संबंधी समाचारों पर टीका टिप्पणी प्रारंभ हो जाती है। प्रैसवार्ता

खबरें जो देती कुछ नहीं-ले लेती है बहुत कुछ

पत्रकारिता क्षेत्र में एक विशेष पहचान रखने वाले पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर का मानना है कि भले ही खबरें कुछ देती न हो, लेकिन लेती बहुत कुछ है। ग्रोवर के अनुसार वर्तमान युग दूरदर्शन, आकाशवाणी, फिल्मों व समाचारों को काफी महत्व दे रहा है। ये सभी मनुष्य जीवन को आशावादी व निराशावादी, जिस ओर चाहें, ले सकते हैं, क्योंकि ज्यादातर लोगों की सोच सीमित है कि अखबर, फिल्में, रेडिय़ो क्या कर रहे हैं? माहौल ही ऐसा बन चुका है। ज्यादातर खबरें ऐसी होती हैं, जिनसे वातावरण खराब होने के ज्यादा आसार होते हैं। क्या ऐसी खबरें देनी जरूरी है। जीवन में फूल और कांटे दोनों ही हैं, लेकिन कांटों पर ज्यादा ध्यान न देकर फूलों की सुगंध को ही लोगों तक पहुंचाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति हर रोज बुराई से संबंधित खबरें ही पढ़ता रहेगा, तो उसे लगेगा कि शायद यही जीने का ढंग है और फिर वह सोचने लगेगा कि बुराई करने में ही बड़प्पन है। लोग बलात्कार ही नहीं करते, प्यार भी करते हैं। पुण्य कार्य भी होते हैं। इस सृष्टि में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो दीन-दुखियों के दुख के भागीदार है, जो जरूरतमंद लोगों की सेवा करके राष्ट्र, समाज व मानवता की सेवा कर रहे हैं। ऐसे लोगों में प्रेम की तो अनदेखी होती है, ताकि कोई अच्छा सबक न ले लें, जबकि बलात्कार जैसे समाचार अखबार नमक-मिर्च लगाकर प्रकाशित करते हैं। आत्महत्या, हिंसा, बलात्कार, रंग रलियां, डकैती इत्यादि खबरों से भले ही कोई लाभ अखबारी पाठकों को न मिले, परन्तु इनसे वातावरण ऐसा बनता है कि मानो जीवन में ऐसा कुकृत्य करना जरूरी है। टैलीविजन, अखबारों में, यदि ऐसी ही खबरों की चर्चा होती रहेगी, तो संभव है कि मनुष्य सोचने पर विवश होगा। खाली मन शरारत की तरफ ज्यादा भागता है। यही कारण ही माना जा सकता है कि अखबारी खबरों की वजह से बड़े-बड़े अपराध हुए हैं। हत्या, बलात्कार, डकैती तथा भ्रष्टाचार की खबरें, जब लोगों के मन व दिमाग में प्रवेश कर जाती है, तो फिर वह बुराई के चक्कर में उलझ जाता है। पत्रकार ग्रोवर का कहना है कि बहू को दहेज के लिए जिंदा जला दिया गया, अबोध बालिका से बलात्कार की खबरें अखबार जरूर छापते हैं, मगर ये सब करने वालों को मिली सजा संबंधी खबरें कम ही छपती हैं। इतना जरूर छपता है कि उक्त प्रकरण में संबंधित दोषियों को सत्ता पक्ष, अफसरशाही या पुलिस प्रशासन का सरंक्षण मिला हुआ है और पुलिसिया कार्यवाही एक दिखावा है। जरूरत इस चीज की है कि अपराध समाचार को उचित दायरे में रखकर उससे मिली सजा को प्रकाशित किया जाये, ताकि लोग अपराध करने से भयभीत हो। वर्तमान में सबसे बड़ी जरूरत है, एक स्वस्थ समाचार माध्यम की। लोगों को जीवन के अच्छे पक्ष जानने की जरूरत है। अच्छे पहलू का समाचार पत्र समाज का वातावरण स्वस्थ बना सकता है, ऐसा माना जाना चाहिये। -प्रस्तुति-प्रैसवार्ता

कॉपी राईट के हकदार

आमतौर पर रचना का रचयिता, छायाचित्र का छायाकार व चित्र का हकदार अपनी रचना या छाया चित्र अथवा चित्र के कॉपी राईट का हकदार होता है-मगर किसी प्रकाशन संस्था में नौकरी अथवा प्रशिक्षण करने वाले लेखक या पत्रकार या छायाकार अथवा चित्रकार और प्रकाशक के बीच पहले ही तय न हुआ हो, तो नौकरियां प्रशिक्षण करने वालों के कार्य के कॉपी राईट का हकदार प्रकाश होता है। सरकार के लिए किये गये काम के कॉपी राईट की हकदार, अगर सरकार और लेखक या छायाकार अथवा चित्रकार के बीच पहले तय हुआ हो, तो सरकार होती है। व्यक्ति चित्र के कॉपी राईट का हकदार, अगर संबंधित व्यक्ति और छायाकार या चित्रकार के बीच पहले ही तय न हुआ हो, तो वह व्यक्ति होता है। सार्वजनिक स्थानों पर लिखे गये व्यक्ति चित्र के प्रकाशन के लिए संबंधित व्यक्ति की सम्मति लेने की आवश्यकता नहीं होती, अन्य व्यक्तियों के प्रकाशन के लिए संबंधित व्यक्ति की सम्मति लेना आवश्यक है। स्वतंत्र रूप से किसी प्रशासन संस्था के लिए कार्य करने वाले लेखक या पत्रकार, फोटोग्राफर या चित्रकार के कार्य के कॉपी राईट का हकदार, अगर उसके और प्रकाशन के बीच पहले तय नहीं हुआ हो, तो वह लेखक, पत्रकार या छायाकार व चित्रकार होता है। कॉपीराईट का यह अधिकार प्रथम प्रकाशन उपरांत 50 वर्ष तक चलता है। कॉपीराईट पूर्ण या आंशिक रूप से बेचा जा सकता है-जैसे केवल प्रथम संस्करण हेतु, केवल भारत में प्रकाशन हेतु, केवल पत्रिका में प्रकाशन हेतु केवल पेपर बैक या केवल साजिल्द संस्करण हेतु, सर्वाधिकार सहित इत्यादि। मनमोहित, प्रैसवार्ता

क्या होता है ए बी सी

पत्रकारिता क्षेत्र में ऐ.बी.सी. यानि आडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन एक विशेष स्थान रखता है । किसी भी अखवार के प्रसार आंकड़े अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं । अखबार का न केवल प्रभाव बढ़ाने के लिए अपितु विज्ञापन दाताओं को प्रभावित करने हेतु अखबार का प्रसार अधिक होना चाहिए । जिस अखबार की प्रसार संख्या अधिक होती है, विज्ञापन दरें भी स्वीकार कर ली जाती हैं। ऐसोसिऐशन ऑफ अमेरिकन एडवर्टर्रजसं ने वर्ष 1899 में समाचार पत्रों के प्रसार का एक सम-मानक के आधार पर सत्यापन करने का प्रथम प्रयास किया था । जिसे प्रकाशकों के असहयोग, कार्य संचालन एवं प्रयोग के लिए निधियों की कमी प्रकाशको का वही खाता तथा लेखा परीक्षा प्रणालियों में मानकीकरण की कमी और प्रसार शब्द की समुचित पमुचित परिभाषा न होने जैसी कतिपयय कठिनाईयों का सामना करना पड़ा और यह 1913 में जाकर दम तोड़ गया । दूसरे प्रयास के रूप में आडित ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन की स्थापना 1914 में हुई । यह संस्था अनेक दशाब्दियों तक विज्ञापन दाताओं को अनेक अखबारों के आंकड़े उपलब्ध करवाती रही है । ऐ.बी.सी का उद्देश्य है ''प्रकाशक सदस्यों के प्रसार के मानकीकृत विवरण प्रकाशित करना, इन विवरणों में प्रकाशित आंकड़ों का लेखा परीक्षकों द्वारा ऐसे किसी भी या सभी अभिलेखों का, जिन्हें ब्यूरो आवश्यक समझे, की गई लेखा परीक्षा से सत्थापन करना और केवल विज्ञापन दाताओं, विज्ञापन एजेन्सीज और प्रकाशकों के लाभ के लिए प्रसार के आंकड़े प्रकाशित करना । प्रस्तुति प्रैसवार्ता (रजि.)

पत्रकारिता आसान नहीं है

सिरसा के युवा समाज सेवी एवं धर्मप्रेमी सुभाष बांसल के अनुसार पत्रकारिता आसान नहीं है । समाज के हर क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले श्री बांसल का कहना है कि उनका पत्रकारिता से सबंध ज्यादा नहीं रहा है, मगर पत्रकारिता के महत्व, उसकी क्षमता और शक्ति से भली भांति परिचित हैं । भाषण के माध्यम से हजार, दो हजार या इससे ज्यादा लोगों तक बात पहुंचाई जा सकती है, परन्तु पत्रकार समाचार पत्रों के माध्यम से लाखों पाठकों तक अपने विचार पहुंचाते हैं । अच्छे ढंग़ से चुने हुए शब्दों में समाचार पिरोना ईश्वर द्वारा प्रदत्त कला ही मानी जा सकती है । जैसे बोलने की कला होती है - वैसे ही लिखने की कला होती है। बहुत कम लोग ऐसे हैं - जो दोनों कलाओं में माहिर होते हैं। मैंने अनेक अच्छे वक्ताओं को सुना है और महसूस किया है कि वक्ता अपने भाषण के माध्यम से इतने अच्छे ढंग़ से अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाते, जितना कि लेखनी के माध्यम से । प्राचीन युग में पत्रकारिता बड़ा जोखिम भरा कार्य माना जाता था, क्योंकि उस युग में पत्रकार देश भगत व क्रांतिकारी ज्यादा हुआ करते थे - जो पत्रकारिता के साथ-साथ राष्ट्र का दिशा-निर्देश भी करते थे । जिनमें शहीदे आजम स. भगत सिंह व गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है । प्रखर राष्ट्रवादी, जन कल्याण की भावना रखने वाले अधिक से अधिक बंधु पत्रकारिता क्षेत्र में जायें -यह अति आवश्यक होता जा रहा है, मगर साथ में यह भी जरूरी है कि उनकी ध्येय के प्रति निष्ठा व तीखापन कायम रहे अन्यथा पत्रकारिता में प्रवेश पाने उपरांत अनेक प्रकार के आकर्षणों में उलझ कर ध्येय की अनदेखी हो सकती है । यह भी ध्यान रखा जाये, तो उचित होगा, कि पत्रकार राष्ट्र, समाज और मानवता की सेवा के लिए स्वयं को अर्पित करें और चिकनी-चुपड़ी रोटी की बजाये सादा भोजन खाकर गुजारा करेंगे, तब जाकर उनकी प्रखरता बनी रहेगी। -सुभाष बांसल, प्रैसवार्ता

पत्रकार लोगों को गुमराह होने से बचायें

पत्रकारिता क्षेत्र में एक लम्बे समय से कार्यरत तथा वर्तमान में प्रैसवार्ता (रजि.) न्यूज प्लॅस (रजि.) न्यूज एजेंसीज तथा हिन्दी त्रै-साप्ताहिक ''सिटीकिंग'' के ग्रुप एडीटर चन्द्र मोहन ग्रोवर चाहते हैं कि पत्रकार लोगों को गुमराह होने से बचायें, क्योंकि यदि किसी पत्रकार ने अपने आपको जीवंत बनाये रखना है, तो उसे प्रलोभनों से बचते हुए व समाचार को गंभीरता से लेते हुए अपना लेखन निरंतर जारी रखना चाहिये। वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में हर रोज हो रहे घोटालों के पर्दाफाश होने से समाज में निराशावादी दृष्टिकोण पनपा है, कि सभी नेता अवसरवादी हैं। इसी सोच के चलते ईमानदार नेता भी मारा जा रहा है। श्री ग्रोवर के मुताबिक ऐसे समय में पत्रकारों व पत्रकारिता का दायित्व बनता है कि वह लोगों को गुमराह होने से बचायें। पत्रकारिता के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए श्री ग्रोवर का कहना है कि आजादी के समय देश के नेताओं का कद बहुत ऊंचा था और उस समय नेताओं में कमजोरी होते हुए भी पत्रकार उन पर उंगली नहीं डालते थे, क्योंकि उस समय पत्रकार स्वयश्ं को नेताओं के मुकाबले में बौना महसूस करते थे, परन्तु अब स्थिति बदली हुई है। वर्तमान में नेताओं का कद कम तथा पत्रकारों का कद बढ़ा है। यह कटु सत्य है कि ऐसी स्थिति के लिए राजनेता ही उत्तरदायी है। पत्रकार ग्रोवर कहते हैं कि इस सत्य की अनदेखी नहीं की जा सकती, कि समाज की राय बदलने में अखबार अहम् भूमिका निभाते हैं, परन्तु अखबारों को भी लिखने से पूर्व सतर्क रहना चाहिये, क्योंकि अखबार शब्दों से खेलते हैं। अखबारी गलती या लापरवाही से लिखा गया छोटा सा शब्द भी किसी को ठेस पहुंचा सकता है। ग्रामीण समाचार पत्रों की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री ग्रोवर कहते हैं कि कस्बाई अखबारों को बड़े अखबारों की नकल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह नकल घातक साबित हो सकती है। राष्ट्रीय स्तर के कई अखबार दूरदर्शन से प्रभावित हुए हैं, जबकि कस्बाई अखबारों की पाठक संख्या बढ़ी है। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया, जिस तीव्र गति से बढ़ा है, उससे लगता है कि हर आदमी का विचार और नजरिया सिकुड़ता जा रहा है। यह भी एक विडम्बना है कि जैसे-जैसे दुनिया सिकुड़ती जा रही है, वैसे ही आदमी की अपने आसपास के माहौल में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में कस्बाई अखबारों का महत्व बढ़ गया है, क्योंकि वही पाठकों की आशाओं पर खरा उतर सकते हैं। पत्रकार ग्रोवर कहते हैं कि यह इस देश का दुर्भाय है कि कुछ अखबार तथा उनके प्रतिनिधि लक्ष्मण रेखा से आगे नहीं जा सकते। दूसरों की पगड़ी उछालने वाले स्वार्थी अखबारों व पत्रकारों को पाठक जल्दी ही नकार देते हैं। पत्रकारों की जिम्मेवारी है कि वे समाज में रहकर, उस समाज की सेवा करें, जिस समाज की बदौलत अखबार चलता है। -प्रस्तुति प्रैसवार्ता (रजि.)

कापी राईट

किसी भी मौलिक कार्य, जैसे साहित्य रचना, छायाचित्र, संगीत फिल्म आदि के प्रकाशन या प्रसारण के अधिकार को कॉपीराईट कहते हैं। किसी भी मौलिक रचना या चित्र अथवा छाया चित्र को या उसके किसी अंश को प्रकाशित या पुन: प्रकाशित करने, उस अंश का रूपातंर या अनुवाद प्रकाशित करना, उस अंश को रेडियो, टी.वी. या सार्वजनिक स्थानों पर प्रसारित करना या उसके प्रयोग करने तथा उस फिल्म या नाटक बनाने को कॉपी राईट का उल्लंघन माना जाता है। प्रैसवार्ता

साक्षात्कार

किसी भी व्यक्ति के विचार, उसकी जीवनी या अन्य जानकारी बातचीत करके लिखने को साक्षात्कार किया जाता है। जिस व्यक्ति से साक्षात्कार किया जाना हो-उसे पहले स्वीकृति तथा समय निर्धारित कर लेना अच्छा होता है, क्योंकि साक्षात्कार देने वाला पूर्णतया हर प्रश्र का उत्तर देने के लिए तैयार होता है। साक्षात्कार रिकार्ड करने के लिए भी संबंधित से स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए, कि जिस व्यक्ति का व्यक्तित्व व कुछ विवरण आपको पता होना चाहिए। साक्षात्कार दूरभाष पर भी लिया जा सकता है। दूरभाष पर लिया गया साक्षात्कार काफी लाभदायक होता है क्योंकि आप निडरता से कुछ भी पूछ सकते हैं-जो सामने होने पर संकोचवश नहीं पूछा जा सकता। वैसे भी ऐसे साक्षात्कार में समय की बचत होती है। साक्षात्कार डाक द्वारा भी लिया जा सकता है। इस प्रकार के साक्षात्कारों में प्रश्र भिजवा दिये जाते हैं और उसका जवाब मिल जाता है। -प्रैसवार्ता प्रस्तुति

समाचार और विवरण

वर्तमान में समाचार और विवरण प्राप्ति के दो ढंग अपनाये जा रहे हैं-परम्परागत और आधुनिक। परम्परागत ढंग से समाचार व विवरण प्राप्ति का मुख्य स्त्रोत, सरकारी सूचना कार्यालय होता है-जबकि सिविल अस्पताल, पुलिस स्टेशन, नगर पालिकाओं के अतिरिक्त सामाजिक, धार्मिक संगठनों व राजनेताओं से समाचार भी मिल सकते हैं। इन स्त्रोतों से प्राप्त होने वाली जानकारी निष्पक्ष व पूर्णात सत्य नहीं होती। इसलिए इसमें पाठक कम रूची लेते हैं, अत: पत्रकारों को इन स्त्रोतों पर निर्भर रहने की बजाये समाचार और विवरण प्राप्ति के लिए आधुनिक ढंग प्रयोग में लाने चाहिए। जिसके लिए उन्हें विशेष लोगों से संबंध और सम्पर्क बनाये रखने के अतिरिक्त किसी भी घटना संबंधी प्रत्यक्षदर्शियों से मिलना चाहिए। कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं-जिसकी सत्यता प्राप्त करना कठिन होता है और घटना से संबंधित भी घटना को छिपाने या दबाने का प्रयास करते हैं, मगर ऐसी घटना की सत्यता तक पहुंचने के लिए जासूसी करनी चाहिए और जिन लोगों पर घटना छिपाने का संदेह हो-उसके दुश्मनों से संपर्क करने से विवरण प्राप्ति हो सकती है। खेलकूद, भाषण, प्रैस संवाददाता सम्मेलन, स्वागत समारोह आदि कार्यक्रमों की रिपोर्ट कार्यक्रम के स्थान पर जाकर करनी चाहिए। समाचार चित्र की प्राप्ति छायाकार के लिए पत्रकार के समाचार पाने से आसान है। कैमरा लेकर घटनास्थल पर जाकर फोटो ली जा सकती है, जिसका विरोध कम होता है। कई बार ऐसा भी होता है कि, पुलिस या भीड़ फोटो नहीं लेने देती, ऐसी स्थिति में गुप्त रूप से, बिना किसी को संदेह होने के, फोटो लेनी चाहिए। प्रैस कार्ड दिखाने पर किसी भी कार्यक्रम में, जहां प्रैस का प्रवेश वर्जित हो, को छोड़कर, जाकर प्रवेश लेने उपरांत फोटोग्राफी की जा सकती है। लोकप्रिय तथा सुप्रसिद्ध व्यक्तियों से आप अपना परिचय देकर छाया-चित्र ले सकते हैं-जबकि कुछ बदनाम तथा अपराधी व्यक्ति छायाचित्र देने से परहेज करते हैं और फोटो लेते समय मुंह ढक लेते हैं। ऐसे व्यक्तियों के छाया चित्र, उन्हें बिना बताये लेने चाहिए। प्रस्तुति:प्रैसवार्ता

पत्रकारिता के मान दंड

पत्रकारिता की सबसे बड़ी शर्त है-अपने पाठकों को पहचानना। पाठक कैसी सामग्री चाहते हैं, यदि इसका ज्ञान हो जाये, तो समाचार पत्र सफल हो जाता है। प्रमाणिकता, संतुलन, स्पष्टता, मानवीय दिलचस्पी और जिम्मेवारी के साथ प्रस्तुत प्रकाशन सामग्री पाठकों के दिलों दिमाग पर एक छाप छोड़ते हैं। जाने-माने अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार पुलिजर ने ठीक ही कहा था, कि ऊंचे आचार सिद्धांतों के बिना अखबार और उनके पत्रकार सरकारी तंत्र की तरह न सिर्फ असफल होंगे, अपितु समाज के लिए खतरनाक भी हो जायेंगे। इस दृष्टि से पत्रकारिता की चकाचौंध से प्रकाशित होकर इस पेशे में आने वाले लोगों को अपने कर्तव्यों से बारीकी से परिचित होना जरूरी है। पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर का कहना है कि इसमें कोई संदेह की गुंजाईश नहीं, कि स्वस्थ पत्रकारिता के लिए मौके पर लिखना-पढऩा, काम के प्रति लगाव, अपने निजीपूर्वाग्रह छोड़कर सत्य की खोज, हर प्रकार के तथ्यों की पुष्टि, चौबीस घंटों की प्रतिबद्धता, पुर्न लेखन तथा निसंकोच शब्दकोष की सहायता लेने जैसे गुणों की जरूरत है। एक पत्रकार को अधिक से अधिक जानने की उत्कंठा और रचनात्मक अभिरूची होना स्वाभाविक है। वहीं छोटी सी घटना की भी गहराई से पड़ताल कर दिचस्प ढंग से पेश करने की योग्यता होनी चाहिए। पत्रकार को निस्पक्ष रहते हुए ईमानदारी से काम करना चाहिए। पत्रकार कितना ही जानकार या प्रभावशाली क्यों न हो, जब तक वह अखबार की सीमा का पालन नहीं करता, वह समाचार पत्र के लिए लाभकारी सिद्ध नहीं हो सकता। समय पर समाचार देना यानि डैडलाईन को समझना पत्रकार के लिए अनिवार्य नियम है। आकस्मिक घटनाओं से अखबार घिसा पिटा लगने से ऊभ जाता है, लेकिन कई बार गर्म खबरें ही नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में पत्रकार की रचनात्मकता और क्षमता का पता चलता है। अच्छा पत्रकार वही है, जो स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हो। उसे इस बात की प्रतीक्षा नहीं करनी होगी कि मुख्य संवाददाता, समाचार संपादपन या संपादक क्या विषय देंगे। काम पर आते समय भी उसे किसी खबर की गांध मिल गई, तो वह खबर खोजने में लग जायेगा। खबरें खोजना तो ठीक है, परन्तु खबरों के लिए शब्दों से खेलना अवश्य गलत है। लेखक तो शब्दों से खेलते हैं, मगर पत्रकारों को अंकुश रखना होता है। सनसनी पैदा करने के लिए शब्दों से खेलना या तथ्यों को तरोडऩा-मरोडऩा समाचार पत्र के लिए ही नहीं, बल्कि पत्रकार के लिए भी खतरे की घंटी के समान व भारत वर्ष में सरकारी तंत्र से ''गोपनीय'' बनी किसी भी फाईल का विवरण प्राप्त करने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेना पड़ता है-जबकि कभी-कभी यह सिलसिला टकराव तक भी पहुंच जाता है। यदि कोई पत्रकार किसी व्यक्ति की निजी कम्पनी या संस्थान की जानकारी लेनी चाहे, तो उसे संयम से काम लेना होग, अन्यथा परिस्थिति में बदलाव आ सकता है। सत्ता का वश चले, तो सरकारी विज्ञप्तियों और भाषाओं के अतिरिक्त सब कुछ गोपनीय रहेगा। राष्ट्र हित के गोपनीयता की सीमाएं तय होनी चाहिए, ताकि सरकार और समाज की हर बात खुली और स्पष्ट हो सके। गोपनीय कार्यवाही से गलत सूचनाएं और अफवाहों में वृद्धि होगी और सत्ता का निरंतर दवाब बढ़ेगा, लेकिन नैतिक और सामाजिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्धता रहने पर पत्रकार इस स्वतंत्रता का प्रयोग कर सके। मीडिया का सत्ता से प्रेम संबंध अवश्य उसकी विश्वसनीयता को घेरे में ला सकता है। राजनेताओं को समस्याओं की जानकारी देने के लिए मीडिया पर निर्भर रहना पड़ता है, विशेषकर विपक्षी दल वाले मीडिया का सहारा लेकर ही अपनी छवि बनाते हैं, मगर इसे दुर्भाग्य ही माना जायेगा कि मीडिया के माध्यम से छवि सुधारने वाले सत्ता में आते ही मीडिया आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसी तरह भारत में पुलिसिया तंत्र आज भी विदेशी ब्रिटिश राज के पद चिन्हों पर चल रहा है। पुलिस हर क्षेत्र की अनियमितताओं और ज्यादतियों साथ जुड़ी हुई है, क्योंकि उसके पास कानून और जुल्म का डंडा-बंदूक है। जब भी मीडिया में पुलिस ज्यादतियों के समाचार आते हैं, तो बौखलाई पुलिस में हड़कम्प मच जाता है और मीडिया के साथ कटुता बढ़ जाती है। मधुरता बढ़ाने के लिए मीडिया को अपने ढंग से अपराध समाचारों की खोजकी का सूत्र मजबूत करना चाहिये। मीडिया का काम सरकार की गलतियों की ओर ध्यान का ध्यान आकर्षित करना है, लेकिन राष्ट्र की संप्रभुता उसकी सीमा होनी चाहिए। ओलोचना करते हुए भी राष्ट्रहित में संयम रखते हुए मीडिया को विदेशी ताकतों की इच्छा या जाने-अनजाने उनके हितों की पूर्ति के लिए सरकार और उनकी नीतियों की आलोचना से बचना चाहिए। -चन्द्र मोहन ग्रोवर (प्रैसवार्ता)

पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए

वरिष्ठ पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर के अनुसार भारतवर्ष की पत्रकारिता तो राष्ट्रीय आंदोलनों के माध्यम से संघर्ष करके तपकर निखरी है। पत्रकारों पर ही भारतवासियों को गर्व है-जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अहम् योगदान दिया। पत्रकार, जहां विदेशी शक्ति से मुक्त करवाने वाली आजादी के दीवाने थे, वहीं देश के नव निर्माण, संस्कृति, आदर्श और देश के प्रति समर्पण भी थे। पत्रकारों के ही अपराध थे-राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जैसे राष्ट्र सेवक, पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे कर्मठ देश भक्त, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसे वीर सेनानी। पत्रकारिता इन्हीं के प्रेरक विचारों को जन-जन तक पहुंचाती हुई स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दे रही थी। आजादी के बाद देश में बहुत कुछ बदलाव आया और इसी बदलाव के चलते पत्रकारिता ने भी अपना चोला बदला। उसके संजोये हुए आदर्श, मानक सिद्धांत व्यावसायिकता की झोली में समा गये। पूंजीपतियों की चंगुल में फंसकर पत्रकारिता विचार-वाहक हो गई। राष्ट्रीय चेतना का महान आलम्बन, एक सजग क्रियाशील प्रहरी अपनी अस्मिता के लिए चिंतित हो उठा। पत्रकारिता कर्तव्यों, आदर्शों और अपने जनसेवी उद्देश्यों के प्रति सच्ची निष्ठा का प्रतीक है। पत्रकारिता निस्पृह समाज सेवा है, एक तटस्थ विचारक की विचारणा और सूझबूझ का खुला गुलदस्ता है। सामाजिक चेतना की धूरी है, आस्था, तपस्या और सृजना की त्रिवेणी है, एक मिशन है, निष्काम और निस्वार्थ भाव से किये गये कार्यों का दस्तावेज है, लग्र कर्मठता तथा ईमानदारी इन तीन कर्म सूत्रों पर आधारित जीवन दर्शन है, नीर-क्षीर विवेक का प्रतिफल है, मगर वर्तमान पत्रकारिता क्षेत्र में स्वस्थ पत्रकारिता की अनदेखी हो रही है। स्वस्थ पत्रकारिता ही समाचार पत्र की लोकप्रियता और पत्रकारों की अहम् भूमिका, उसकी निस्पक्षता और पैनेपन का प्रतीक तथा जीवंतता है। कलम के सिपाही पत्रकार को बुद्धिजीवी कहा गया है। उसका अपना निर्णय दृष्टिकोण होता है और यही निर्णय, दृष्टिकोण की पत्रकारिता का अलंकार है। यदि यह निर्माणात्मक, जनहितकारी, जन जागरण और जन चेतना की मशाल साबित हुआ तो पत्रकारिता में स्वयं ही चार चांद लग जाते हैं। स्वार्थी और पीत पत्रकारिता से सफलता नहीं मिल सकती। वर्तमान में विश्व भर में विश्व कल्याण, विश्व शांति के प्रयास होने लगे हैं, ऐसी स्थिति में पत्रकारिता को अहम् भूमिका निभानी होगी, क्योंकि उसका दायरा सम्पूर्ण विश्व में सर्व सुलभ साध्य साधना समाचार पत्र है। इस वृहद दायरे का निर्वाह पत्रकार की परिधी में आ चुका है। विश्व स्तरीय पत्रकारिता किसी भी प्रकार की गहन निरीक्षण शक्ति, सूक्ष्म अवलोकन, तात्कालिक जागरूकता और राजनैतिक चेतना द्वारा ही संभव है। पत्रकारिता का ध्येय कोरी आलोचना नहीं है, वह ''ब्लैकमेल'' तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि उसके संकीर्णता, प्रलोभन न होना, सत्य को कड़वाहट तक न ले जाने, व्यर्थ के मसाले लगाकर ''सूर्खी'' न बनाने की क्षमता हो। एक स्वच्छ मार्ग निर्मित किया जाये, स्वस्थ जनमत जागरूक करने का प्रयास ही जन प्रशंसा का पात्र बना सकती है और पत्रकारिता का उज्जवल पृष्ठ जन-मन को मोह सकेगा, इसलिए पत्रकारिता का स्वरूप सर्वजन सुखाये हो, सत्यता और वास्तिविकता के प्रतिमानो को वर्तमान के तराजू पर तोल कर प्रकाशित किया जाये, अर्नगल को अर्गल न बनाया जाये और न ही अर्गल को अतिक्रमण कर उसे रौंदा जाये। जरूरत पडऩे पर विचार-विमर्श उपरांत जनोपयोगिता के संदर्भ में निर्णय लिया जाये, अन्यथा जनमानस की मानसिकता बिगड़ते देर नहीं लगती और पत्रकारिता पर कुठाराघात भी हो सकता है।Justify Full -चन्द्र मोहन ग्रोवर (प्रैसवार्ता)

प्रैस की स्वतंत्रता और पत्रकार

माननीय उच्चतम न्यायालय ने कुछ पत्रकारों द्वारा सरकारी मकानों को आंबटनके सिलसिले में प्रस्तुत की गई एक रिट याचिका पर अपने निर्णय के साथ पत्रकारों को एक सामयिक सलाह भी दी थी। न्यायालय का कहना है कि, पत्रकार यदि सचमुच प्रैस की आजादी को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो उन्हें सरकारी सुविधाओं का प्रलोभन छोड कर झोंपडिय़ों में रहने के लिए तैयार रहना चाहिए। न्यायालय की सलाह को पत्रकार मानेंगे-ऐसा तो असंभव लगता है, मगर प्रैस की स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए यह जरूरी भी है। पत्रकारिता और प्रलोभन दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। पत्रकारिता को लेकर भी एक उलझन है, दिशाहीनता है कि पत्रकारिता पेशा है, सेवा है या एक मिशन। नौकरी, धंधा है या आदर्श। दुर्भाग्यवश भारत में पत्रकारिता का इतिहास कोई पुराना नहीं है। छापाखाना और प्रैस अखबार कल की ही बाते हैं। इसलिए प्रेरणा और दिशा-निर्देश के लिए इतिहास पुराण में भी गोता नहीं मार सकते। हकीकत से जुड़े लोग आत्म संकट के काल में धनवंतरी से जुड़ जाते हैं और शिल्पी कारीगरी वाले विश्वकर्मा से। अध्यापकों के मार्ग दर्शन हेतु तो गुरू की महत्ता से इतिहास भरा पड़ा है। यह अलग बात है कि, आधुनिक युग तक आते-आते ऐतिहासिक पौराणिक रोमानियत से निकल कर आज सभी व्यवसाय बन गये हैं। परन्तु फिर भी अन्तरआत्मा के संकट काल में आत्म विश्लेषण के लिए इनके पास पुरानी न सही-करीब सात दशक पुरानी पत्रकारिता की एक समृद्ध परम्परा रही है। गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबू राम पराडकर, लोक मान्य तिलक, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, सभी किसी न किसी रूप में अपने काल के पत्रकार रहे और उन्होंने पत्रकारिता की गौरवमयी परम्परा स्थापित की है, परन्तु उस समय पत्रकारों के सामने स्वतंत्रता एक लक्ष्य था। ऊर्जा का अक्षय स्त्रोत। उन दिनों अखबार भी व्यवसाय नहीं माने जाते थे, बल्कि लक्ष्य प्राप्ति के साधन थे। आज पत्रकार पर तिहरी मार है, सरकार के प्रलोभन हैं, जिन व्यावसायिक घरानों के अखबार हैं-उनके अपने खास ध्येय हैं और इन दोनों से कहीं आगे बढ़ कर कांशी राम जैसे राजनीति के पक्षधर उनके पीछे ल_ लिए घूम रहे हैं। इन तीनों से बढ़कर एक अंदर का अन्तद्र्धद भी है-वहीं जिसका जिक्र आरंभ में है। पत्रकारिता आदर्श है या पेशा/परन्तु यह प्रश्र अपने आप में पूर्ण नहीं है। पूरा प्रश्र तब बनता है, जब इसके साथ यह भी जोड़ दिया जाये कि, अखबार आदर्श है या व्यवसाय। कौन नहीं जानता, कितने ही अखबार व्यावसायिक घरानों से जुड़े हुए हैं। वहीं सम्पादकीय नीति में सम्पादक स्वतंत्र नहीं फील्ड के पत्रकार की कौन कहे। आपात स्थिति में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया था। रामनाथ गोयनका और उनके अखबारों की बातें जाने दें, तथाकथित राष्ट्रीय अखबार, उन दिनों किसकी रक्षा कर रहे थे-व्यवसाय की या पत्रकारिता धर्म की। सरकार की मार तो और भी भयानक है। वह प्रलोभन भी देती है और भय भी। उसके पास आखिर बल है। पहले लोभ से खरीदो और यदि कोई न खरीदा जाऐ, तो कुचल दो। मुलायम सिंह यादव ने जब प्रैस के विरूद्ध ''हल्ला बोल अभियान'' चलाया था, तो वह उन बचे खुचे पत्रकारों के ही विरूद्ध था, जो प्रलोभनीय जाल में नहीं फंसे थे। समाचार पत्रों में सूचियां छपी थी कि, मुलायम सिंह के प्रलोभनीय जाल में कौन, कितना निहाल हुआ। कांशीराम तो सत्ता की गंध से स्वयं ही पत्रकारों पर टूट पड़े थे। कैमरों की लोकलाज भी उन्हें नहीं रोक सकी। दिल्ली में बैठा अभिजात्य वर्ग कांशी राम के बारे में तो नाक बंद कर कह देगा-उफ! कैसे कैसे लोग राजनीति में आ गये हैं, परन्तु इग्लैंड के जान मेजर के बारे में क्या कहेगे, जिन्होंने 'डेली मिरर' के पत्रकार की सरेआम पिटाई कर दी थी। जान मेजर तो वहां के प्रधानमंत्री थे। सरकारी प्रलोभन तो पत्रकार ठुकरा देगा और प्रैस की रक्षा के लिए झोंपड़ी में रह कर ठिठुर भी लेगा, परन्तु झोंपड़ी के बाहर खड़ी राजनीति कीलाठी एवं दूर बैठी सरकार की भृकुटि से उसे कौन बचाएगा। प्रलोभन से तो बच जायेगा-भय से कैसे मुक्त होगा। दरअसल, जिनके लिए पत्रकारिता व्यवसाय है-उनको न तो प्रलोभन से बचने की जरूरत है और न ही राजकीय कोप में भयभीत होने की। ऐसे पत्रकारों के लिए तो वर्तमान में फलने-फूलने के लिए आदर्श स्थितियां है। चर्चा है कि बिहार के चारा कांड में कई पत्रकार फंसे हुए हैं। आजादी की लड़ाई और आपातकाल में भी ऐसा प्रमाण मिल गया था। पत्रकारिता क्षेत्र में जो
व्यवसाय जान कर आए हैं- उन पर भी आखिर व्यवसाय की शूचिता एवं नैतिकता के आधार पर नियम लागू होंगे ही। पत्रकारिता व्यवसाय में प्रैस की स्वतंत्रता तो एक नैतिक धर्म है। उच्चतम न्यायालय की सलाह का नैतिक पाश उन पर भी लागू होता है। एक वर्ग ऐसा भी है, जो पत्रकारिता को न आदर्श मानता है और न व्यवसाय, बल्कि उससे भी आगे की चीज। वे पत्रकार होते हुए भी झोंपड़ी में ठिठुर रहे पत्रकार के साथ नहीं, बल्कि बाहर लाठी लिए तैनात राजनीति के साथ है। वहीं दरअसल प्रैस की आजादी के लिए सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि घर के अंदर होते हुए भी घर के शत्रु भी हैं। उनके लिए उच्चतम न्यायालय की सलाह की नहीं, किसी निर्णय की आवश्यकता है। कौन जाने, न्यायिक सक्रियता के इस युग में किसी दिन ऐसा निर्णय आ भी जाये।

कुछ सुना आपने

सभी समाचार अच्छे नहीं होते-जबकि सत्य समाचार तो बिल्कुल ही अच्छे नहीं होते, क्योंकि इनसे हंगामा हो जाता है।
कलम के सिपाही स्याही का ऐसा प्रयोग करें, कि मात्र चंद बूंदे ही लाखों लोगों के मुंह में जुबान डालने का काम करें।
किसी भी देश या क्षेत्र के लिए वह समय सबसे दुर्भाग्य पूर्ण होता है-जब प्रैस भी सत्ता के गठजोड़ का एक हिस्सा बन जाता है।
क्षेत्रीय प्रैस की भूमिका कहीं ज्यादा होती है, क्योंकि इसी से तय होती है-राष्ट्रीय प्रैस की दिशा।
क्षेत्रीय प्रैस हो या राष्ट्रीय, उसका केवल इतना ही काम नहीं, कि वह राजनेताओं का ही गुणगान करते रहे, बल्कि प्रैस की असली जिम्मेवारी तो वह दर्पण बनना है-जो जनता के साथ किए गए वायदों को उजागर करें।
-प्रैसवार्ता न्यूज सर्विस

समाचारों को पाठनीय बनाने के लिए

शब्द: सरल, परिचित, प्यारे, सार्थक, स्टीक व चित्र बना देने वाले होने चाहिए, जबकि सामाजिक व घरेलू शब्द से परहेज करना ठीक है।
मुहावरे: चुभने वाले व सुबोध भले ही हैं, मगर बाजारू नहीं होने चाहिए।
वाक्य: छोटे, क्रमिक, पूर्ण सार्थक व एकसूत्र होने चाहिए।
अनुच्छेद: छोटे, विषय अनुसार, महत्व में क्रम, सक्रिय, सुबोध तथा निरामिक है।
लेखन: साधिकार, सौद्येश्य, दृष्टिकोण स्पष्ट, शैली वार्ता, भाषा सरल व प्रवाह, आलोचना हो, पर आरोप नहीं, व्याख्या हो, वृत्तान्त नहीं तथा सलाह अप्रत्यक्ष हो। प्रस्तुति-प्रैसवार्ता

संवाददाताओं के गुण, कार्य और श्रेणियां

पैनी दृष्टि तथा विस्तृत श्रवण शक्ति सत्यनिष्ठा और निर्भीकता मुद्रलेखन, आशुलेखन का टंकण ज्ञान, अनंत जिज्ञासा-वृति व अटल उत्सुकता, मातृभाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा व एक विदेशी भाषा पर पकड़, जटिल घटनाओं व विविध समस्याओं को समझने की शक्ति समाचार सूंघने की क्षमता।
कार्य: समाचारों के शीघ्र संकलन, उनकी सुस्पष्ट व्याख्या तथा शुद्धता के साथ पाठकों हेतु, उसे बोधगम्य बनाने का कार्य संवाददाता का है। गुप्तचर, मनोवैज्ञानिक एवं वकील के गुणों से संपन्न होकर वह अपनी प्रतिभा के बल पर समाज सेवा करता है-भले ही यह कार्य सरल न हो। संवाददाताओं गुप्त समाचार सूंघता है और उसे नाटकीय रूप धारण करना पड़ता है। संवाददाता मनोवैज्ञानिक गुण रखते हुए मनुष्यों से मिलकर दिल की बात को पकड़ सकते हैं। संवाददाता को प्रारंभ में सह समझ लेना चाहिए कि उसका कच्चा माल 'समाचार' है और समाचार के महत्व को उसे सम्यक रूप से जानना होगा, क्योंकि उसकी थोड़ी सी अनवधानतावश एक ''अफवाह'' दंगा उत्पन्न करती है। जिस कारण अव्यवस्था व अनिश्चितता का वातावरण छा जाता है। अकुशल संवाददाताओं के हाथों पड़कर समाचार कभी डायनामाईट से भी अधिक खतरनाक बन जाता है।
पत्रकार मोरिस फेगेस
श्रेणियां
संवाददाताओं की प्रमुख निम्र श्रेणियां हैं:-
कार्यालय संवाददाता: पत्र के कार्यालय में रहकर संवादों के संकलनकर्ता
विशेष संवाददाता: संवादों के संकलन के साथ उनका विश्लेषण व विवेचन करने वाला।
संसदीय संवाददाता: संसद की कार्यवाही के समाचार संकलन करने वाले
विदेश संवाददाता: दूसरे देशों से समाचार प्रेषित करने वाले
मुफस्सिल संवाददाता: पत्र कार्यालय से दूर छोटे-छोटे स्थानों से संवाद भेजने वाले।

पंजाबी पत्रकारिता के विनाश के लिए पंजाबी समाचार पत्र ही उत्तरदायी

पढ़ाई करते-करते छिन्दा सिंह बेगू को लिखने का चस्का पड़ गया और उसके कई लेख सुप्रसिद्ध न्यूज फीचर्स सर्विस प्रैसवार्ता के माध्यम से कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए, तो इस पर दोस्तों ने बिना मांगे सलाह देते हुए छिन्दा सिह बेगू को पत्रकारिता में प्रवेश करने के तैयार कर दिया-हालांकि रूची श्री बेगू की भी थी। स्नातमक होते ही बेगू ने पत्रकारिता की डिग्री लेने के लिए एक विश्व विद्यालय में प्रवेश पा लिया। पत्रकारिता की डिग्री मिलते ही छिन्दा सिंह बेगू को एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक ने दिल्ली में संवाददाता का कार्यभार सौंप दिया और इसी के साथ ही श्री बेगू बन गये पत्रकार और लग पड़े कलम चलाने। हिन्दी पत्रकारिता के रूझान से असंतुष्ट श्री बेगू सुनहरी भविष्य की आशा लिए पंजाबी पत्रकारिता की तरफ घूम गये और इसी के साथ ही घूम गया-उसका भविष्य। छिन्दा सिंह बेगू पत्रकारिता की डिग्री और अनुभव को लेकर पंजाबी समाचार पत्रों के मुख्य केन्द्र जालंधर पहुंचे गये, परन्तु जब उसने जालंधर के पंजाबी समाचार पत्रों के कार्यालयों से संपर्क किया, तो उसके होश उड़ गये। श्री बेगू हैरान थे कि अखबार के दफतर हैं, या शोषण के अड्डे। सबसे पहले छिन्दा सिंह बेगू पंजाबी समाचार पत्र के कार्यालय में पहुंचे तो, उसे लगा कि वह किसी राजनीतिक दल के दफतर में आ गये हैं। खैर-करीब दो घंटे उपरांत संपादक को देखकर संपादक जी ने घंटी बजाकर स्टैनों को बुलाकर आदेश दिए कि तीन महीने का प्रैस कार्ड बेगू को दे दिया जाये और ध्यान रहे कि यदि इस अवधि दौरान बेगू दो पृष्ठ का विज्ञान परिशिष्ट (लगभग डेढ़ लाख रुपये) तथा अखबार की संख्या में वृद्धि करवाये, तो स्थाई कार्ड दे देना-नहीं तो छुट्टी कर दी जाये। मुझे वेतन कितना मिलेगा, पूछने पर छिन्दा सिंह को संपादक ने कहा कि विज्ञापनों में कमीशन मिलेगा। समाचार छपेंगे-लोग तुम्हें पत्रकार कहेंगे, पर श्रीमान जी, मैं पत्रकार तो हूं-मेरे पास डिग्री है। छिन्दा सिंह के कहते ही संपादक महोदय मुस्कराये और कहने लगे कि, जो छपता है-वही पत्रकार है। डिग्री की कोई कीमत नहीं। इस संपादक को संपादकी विरसे में मिली है-क्योंकि यह खुद भी पहले एक अखबार में नौकरी करते थे। छिन्दा सिंह ने इस समाचार पत्र के कार्यालय से निकल कर एक रिक्शा पर सवार होकर एक ओर दफ्तर तक पहुंचे। इस समाचार पत्र में संपादक महोदय बिल्कुल अकेले दफ्तर में विराजमान थे। छिन्दा सिंह ने अपनी डिग्री व अनुभव के बल पर यहां निवेदन किया तो उतर मिला कि अखबार कितने बढ़ाओगे और कितने विज्ञापन लाओगे। इस पर छिन्दा सिंह ने कहा कि रिर्पोटरी करना चाहता हूं या मार्किटिंग नहीं। इस पर संपादक जी का चश्मा उपर-नीचे हुआ और छिन्दा सिंह से कहने लगे कि इस शहर में फिलहाल हमें रिर्पोटर की जरूरत नहीं है, क्योंकि समाचार पत्र विक्रता ही नि:शुल्क खबरे भेज रहा है। अखबार भी ज्यादा बेचता है, परन्तु जनाब! उसको तो लिखना ही नहीं आता, मेरे पास सरकारी डिग्री है। डिग्री नूं छिक्के टंग दे, जेे रिपोर्टरी करनी है-तां इह करना ही पऊ। जेकर साडी शरता मंजूर नहीं, तां जा सकता हैं, कहकर संपादक जी ने छिन्दा सिंह को वापसी का रास्ता दिखा दिया। अब छिन्दा सिंह सोचने लगा कि यह कैसे लोकतंत्र के स्तम्भ हैं, जो पत्रकारिता को दिशा देने की बजाये विनाश की ओर ले जा रहे हैं। हिम्मत न हारते हुए छिन्दा सिंह एक ओर समाचार पत्र के कार्यालय में पहुंच गया-तो वहां संपादक जी ने पांच फार्म थमा दिये और कहा इन्हें भरकर भेज देना, पर इससे पूर्व तेरी ''करैक्टर रिपोर्ट'' मंगवाई जायेगी। इस संपादक महोदय ने घंटी मारी और स्टैनो को आदेश दिया कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से इसकी ''करैक्टर रिपोर्ट'' मंगवाई जाये। छिन्दा सिंह फार्मों को लेकर वापिस घर आ गया और सोचने लगा कि पुलिस रिपोर्ट उपरांत नौकरी लग जायेगी। फार्म जब छिन्दा सिंह ने पढऩे शुरू किये-तो उसका दिमाग घूम गया क्योंकि इन फार्मों की शर्ते ही ऐसी थी। खैर-पुलिस रिपोर्ट, फार्म भरने और शपथ पत्र देने उपरांत उसे तीन मास के लिए न्यूज सप्लाई एजेंट का अथारिटी लैटर उसे मिला। छिन्दा सिंह द्वारा प्रेषित समाचार तीन मास तक छपे और फिर बंद हो गये। छिंदा सिंह पुन: जालंधर आया और संपादक महोदय से मिला तो संपादक जी ने फरमाया-तेरे स्टेशन से दूसरे अखबार के रिर्पोटर ने विशेष परिशिष्ट निकाला है, आप भी निकालिए अन्यथा चलिये। छिन्दा सिंह एक बार फिर सोच में डूब गया कि उसने कैसा काम चुना। यदि पत्रकारिता छोड़ते हैं-तो चौधर समाप्त होती है-यदि नहीं छोड़ता तो कुछ लेने की बजाये देना पड़ेगा। यह कैसा समाज का आईना है। यह कैसा लोकतंत्रीय स्तम्भ है। ऐसी अखबारी समूहों का तो पर्दाफाश ही करना होगा। पंजाबी पत्रकारिता का विनाश कर रहे समाचार पत्र समूहों को सबक सिखाने के लिए छिन्दा सिंह शोषित हुए पत्रकारों को संगठित करने के लिए एक पत्रकार संगठन बनाकर तथ्य एकत्रित करके माननीय हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के लिए सक्रिय हो गया। छिन्दा सिंह अपने प्रयास में कितना सफल होंगे-यह तो समय ही बतायेगा, मगर छिन्दा सिंह का यह प्रयास पत्रकार वर्ग को सदैव याद रहेगा। प्रस्तुति:प्रैसवार्ता

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