आवश्यक नोट:-प्रैसवार्ता का प्रैस मैटर छापते समय लेखक तथा एजेंसी के नाम के अक्तिरिक्त संबंधित समाचार पत्र की एक प्रति निशुल्क बजरिया डाक भिजवानी अनिवार्य है

Saturday, January 9, 2010

खबरें जो देती कुछ नहीं-ले लेती है बहुत कुछ

पत्रकारिता क्षेत्र में एक विशेष पहचान रखने वाले पत्रकार चन्द्र मोहन ग्रोवर का मानना है कि भले ही खबरें कुछ देती न हो, लेकिन लेती बहुत कुछ है। ग्रोवर के अनुसार वर्तमान युग दूरदर्शन, आकाशवाणी, फिल्मों व समाचारों को काफी महत्व दे रहा है। ये सभी मनुष्य जीवन को आशावादी व निराशावादी, जिस ओर चाहें, ले सकते हैं, क्योंकि ज्यादातर लोगों की सोच सीमित है कि अखबर, फिल्में, रेडिय़ो क्या कर रहे हैं? माहौल ही ऐसा बन चुका है। ज्यादातर खबरें ऐसी होती हैं, जिनसे वातावरण खराब होने के ज्यादा आसार होते हैं। क्या ऐसी खबरें देनी जरूरी है। जीवन में फूल और कांटे दोनों ही हैं, लेकिन कांटों पर ज्यादा ध्यान न देकर फूलों की सुगंध को ही लोगों तक पहुंचाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति हर रोज बुराई से संबंधित खबरें ही पढ़ता रहेगा, तो उसे लगेगा कि शायद यही जीने का ढंग है और फिर वह सोचने लगेगा कि बुराई करने में ही बड़प्पन है। लोग बलात्कार ही नहीं करते, प्यार भी करते हैं। पुण्य कार्य भी होते हैं। इस सृष्टि में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो दीन-दुखियों के दुख के भागीदार है, जो जरूरतमंद लोगों की सेवा करके राष्ट्र, समाज व मानवता की सेवा कर रहे हैं। ऐसे लोगों में प्रेम की तो अनदेखी होती है, ताकि कोई अच्छा सबक न ले लें, जबकि बलात्कार जैसे समाचार अखबार नमक-मिर्च लगाकर प्रकाशित करते हैं। आत्महत्या, हिंसा, बलात्कार, रंग रलियां, डकैती इत्यादि खबरों से भले ही कोई लाभ अखबारी पाठकों को न मिले, परन्तु इनसे वातावरण ऐसा बनता है कि मानो जीवन में ऐसा कुकृत्य करना जरूरी है। टैलीविजन, अखबारों में, यदि ऐसी ही खबरों की चर्चा होती रहेगी, तो संभव है कि मनुष्य सोचने पर विवश होगा। खाली मन शरारत की तरफ ज्यादा भागता है। यही कारण ही माना जा सकता है कि अखबारी खबरों की वजह से बड़े-बड़े अपराध हुए हैं। हत्या, बलात्कार, डकैती तथा भ्रष्टाचार की खबरें, जब लोगों के मन व दिमाग में प्रवेश कर जाती है, तो फिर वह बुराई के चक्कर में उलझ जाता है। पत्रकार ग्रोवर का कहना है कि बहू को दहेज के लिए जिंदा जला दिया गया, अबोध बालिका से बलात्कार की खबरें अखबार जरूर छापते हैं, मगर ये सब करने वालों को मिली सजा संबंधी खबरें कम ही छपती हैं। इतना जरूर छपता है कि उक्त प्रकरण में संबंधित दोषियों को सत्ता पक्ष, अफसरशाही या पुलिस प्रशासन का सरंक्षण मिला हुआ है और पुलिसिया कार्यवाही एक दिखावा है। जरूरत इस चीज की है कि अपराध समाचार को उचित दायरे में रखकर उससे मिली सजा को प्रकाशित किया जाये, ताकि लोग अपराध करने से भयभीत हो। वर्तमान में सबसे बड़ी जरूरत है, एक स्वस्थ समाचार माध्यम की। लोगों को जीवन के अच्छे पक्ष जानने की जरूरत है। अच्छे पहलू का समाचार पत्र समाज का वातावरण स्वस्थ बना सकता है, ऐसा माना जाना चाहिये। -प्रस्तुति-प्रैसवार्ता

No comments:

Post a Comment

YOU ARE VISITOR NO.

blog counters

  © Blogger template On The Road by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP