यदि दस लाख लीटर पानी में एक बूंद सिरका या शराब डालकर उस घोल को कुत्ते के पास रखा जाये, तो वह उसे सूंघ कर मालूम कर लेगा कि उसमें सिरका या शराब मिलाई हुई है। अपने मालिक का दस वर्ष पहले पहना हुआ पुराना कपड़ा भी, यदि कुत्ते को परखने के लिए दिया जाये, तो वह अपनी अद्भुत सूंघने की क्षमता के द्वारा यह पहचान लेता है कि कपड़ा उसके मालिक का ही है। प्राणी जगत में प्रकृति ने मात्र कुत्ते को ही सूंघने की यह अद्भुत क्षमता प्रदान की है। एक साधारण कुत्ते की सूंघने की क्षमता मनुष्य से दस लाख गुणा अधिक होती है। यह क्षमता कुत्ते की आयु, नसल, प्रशिक्षण तथा वातावरण पर भी निर्भ करती है। अल्सेशियन लेब्राडोर, डावरमेन तथा हाऊंड जैसी नसल में सूंघने की क्षमता अन्य प्रजाति के कुत्तों की अपेक्षा अधिक होती है। इस अनूठी क्षमता के कारण ही इस नसल के कुत्तों को कठोर प्रशिक्षण देकर पुलिस विभाग में खोजी कुत्तों के रूप में काम लिया जाता है। ये प्रशिक्षित कुत्ते सूंघ कर ही विशाल बर्फीली पहाडिय़ों में दुर्घनाग्रस्त हवाई जहाज का ''ब्लैक बॉक्स'' ढूंढ निकालते हैं। पल भर में हत्यारों, विस्फोटक तथा नशीले पदार्थों के तस्करों को पकडऩे की करामात यह मूक पशु ही कर सकता है।
विज्ञान:जहां आधुनिक युग में सुपर कम्प्यूटर एवं मानव मस्तिष्क भी मात खा जाता है, वहां एक कुत्ता सूंघ कर घटना के रहस्य को ढूंढ निकालने में सफलता प्राप्त कर लेता है। कुत्तों में सूंघने की क्षमता का रहस्य इसकी नाक व मस्तिष्क की बनावट में छुपा होता है। प्रत्येक जीव की नाक में, जो क्षेत्र सूंघने के प्रति संवेदनशील होता है, उसे ''ऑलफेक्ट्री एरिया'' कहते हैं। कुत्ते में यह क्षेत्र मनुष्य से चालीस गुणा अधिक होता है। यह झिल्लीनुमा सिमटा रहता है, जिससे सूंघने के लिए अधिक कोशिकाएं उपलब्ध होती हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक जीव के मस्तिष्क में एक विशेष भाग होता है, जो गंध की प्रकृति को परखने का काम करता है। कुत्ते में इस भाग की कोशिकाएं मनुष्य की तुलना में चालीस गुणा ज्यादा होता है। -डॉ. एम.एल. परिहार (प्रैसवार्ता)
विज्ञान:जहां आधुनिक युग में सुपर कम्प्यूटर एवं मानव मस्तिष्क भी मात खा जाता है, वहां एक कुत्ता सूंघ कर घटना के रहस्य को ढूंढ निकालने में सफलता प्राप्त कर लेता है। कुत्तों में सूंघने की क्षमता का रहस्य इसकी नाक व मस्तिष्क की बनावट में छुपा होता है। प्रत्येक जीव की नाक में, जो क्षेत्र सूंघने के प्रति संवेदनशील होता है, उसे ''ऑलफेक्ट्री एरिया'' कहते हैं। कुत्ते में यह क्षेत्र मनुष्य से चालीस गुणा अधिक होता है। यह झिल्लीनुमा सिमटा रहता है, जिससे सूंघने के लिए अधिक कोशिकाएं उपलब्ध होती हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक जीव के मस्तिष्क में एक विशेष भाग होता है, जो गंध की प्रकृति को परखने का काम करता है। कुत्ते में इस भाग की कोशिकाएं मनुष्य की तुलना में चालीस गुणा ज्यादा होता है। -डॉ. एम.एल. परिहार (प्रैसवार्ता)
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