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Wednesday, January 20, 2010

कैसे बनते हैं-आंसू

विश्व में प्रकृति ने जो भी वस्तु बनाई है, उसका कोई न कोई महत्व है। इन वस्तुओं में भले ही वृक्ष हो, पानी हो या कीड़ा-मकौड़ा, हर जीव जंतु का किसे न किसे ढंग से प्रकृति का संतुलन बनाये रखने में योगदान है। इसी प्रकार मनुष्य शरीर में मिलने वाले अंग और उनमे से निकलने वाले पदार्थ जैसे थूक, आंसू, नाक व कान से निकलने वाले लेस पदार्थ इत्यादि का अपना महत्व है। नाक में बालों का बहुत महत्व है, जो कि सास द्वारा अंदर जाने वाली हवा को छानते हैं और इसमें धूल के करण, हवा में उडऩे वाले हल्के हानिकारक बीजों को लेसदार पदार्थ के साथ रोकने में मदद करते हैं। कानों में भी एक गाढ़ा लेसदास पदार्थ होता है, जो कान के रास्ते अंदर जाने वाली धूल इत्यादि को रोकता है। आंखों में भी एक नमकीन स्वाद वाला तरल पदार्थ निकलता है, जिसे आंसू कहते हैं। यह आंसू हमारे शरीर से ज्यादा खुशी, गम या चोट लगाने पर निकलते हैं। यह आंसू लैकरेमल शैक नामक एक थैली से निकलते हैं और इस थैली का नाक के साथ सीधा सम्पर्क होता है। इसलिए कई बार रोने पर निकलते आंसूओं के साथ-साथ नाक से भी पानी निकलना शुरू हो जाता है। आंसू आंखों के लिए बहुत लाभदायक है, जो आंखों को धो कर साफ रखते हैं और आंखों में पड़ी धूल आदि को निकालते हैं। कई बार आंखों में कई प्रकार के सुक्ष्म कीटाणु भी प्रवेश कर जाते हैं, जिनका खात्मा भी आंसू ही करते हैं। आंसुओं की रसायनिक रचना के पक्ष में 94 प्रतिशत पानी और 6 प्रतिशत रासायनिक, जिसमें कुछ सार्व तथा लाईसोजनिम तत्व होते हैं, की मौजूदगी के कारण आंसुओं में कीट नाशक शक्ति होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार आंसुओं का शरीरिक महत्व तो है ही, बल्कि सामाजिक महत्व भी है। आंसुओं के माध्यम से मनुष्य के दिल का दर्द बाहर निकलता है और मन हल्का हो जाता है। जिन व्यक्तियों की आंखों से आंसू नहीं निकलते, उन्हें एक प्रकार से रेगी माना जाता है और ''पत्थर दिल'' भी कहा जाता है। आंसू मनुष्य, पशु-पक्षी, जीव-जंतुओं के लिए प्रकृति द्वारा मिले एक वरदान कहे जा सकते हैं। -परमिन्द्र (प्रैसवार्ता)

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