आवश्यक नोट:-प्रैसवार्ता का प्रैस मैटर छापते समय लेखक तथा एजेंसी के नाम के अक्तिरिक्त संबंधित समाचार पत्र की एक प्रति निशुल्क बजरिया डाक भिजवानी अनिवार्य है

Saturday, January 9, 2010

पंजाबी पत्रकारिता के विनाश के लिए पंजाबी समाचार पत्र ही उत्तरदायी

पढ़ाई करते-करते छिन्दा सिंह बेगू को लिखने का चस्का पड़ गया और उसके कई लेख सुप्रसिद्ध न्यूज फीचर्स सर्विस प्रैसवार्ता के माध्यम से कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए, तो इस पर दोस्तों ने बिना मांगे सलाह देते हुए छिन्दा सिह बेगू को पत्रकारिता में प्रवेश करने के तैयार कर दिया-हालांकि रूची श्री बेगू की भी थी। स्नातमक होते ही बेगू ने पत्रकारिता की डिग्री लेने के लिए एक विश्व विद्यालय में प्रवेश पा लिया। पत्रकारिता की डिग्री मिलते ही छिन्दा सिंह बेगू को एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक ने दिल्ली में संवाददाता का कार्यभार सौंप दिया और इसी के साथ ही श्री बेगू बन गये पत्रकार और लग पड़े कलम चलाने। हिन्दी पत्रकारिता के रूझान से असंतुष्ट श्री बेगू सुनहरी भविष्य की आशा लिए पंजाबी पत्रकारिता की तरफ घूम गये और इसी के साथ ही घूम गया-उसका भविष्य। छिन्दा सिंह बेगू पत्रकारिता की डिग्री और अनुभव को लेकर पंजाबी समाचार पत्रों के मुख्य केन्द्र जालंधर पहुंचे गये, परन्तु जब उसने जालंधर के पंजाबी समाचार पत्रों के कार्यालयों से संपर्क किया, तो उसके होश उड़ गये। श्री बेगू हैरान थे कि अखबार के दफतर हैं, या शोषण के अड्डे। सबसे पहले छिन्दा सिंह बेगू पंजाबी समाचार पत्र के कार्यालय में पहुंचे तो, उसे लगा कि वह किसी राजनीतिक दल के दफतर में आ गये हैं। खैर-करीब दो घंटे उपरांत संपादक को देखकर संपादक जी ने घंटी बजाकर स्टैनों को बुलाकर आदेश दिए कि तीन महीने का प्रैस कार्ड बेगू को दे दिया जाये और ध्यान रहे कि यदि इस अवधि दौरान बेगू दो पृष्ठ का विज्ञान परिशिष्ट (लगभग डेढ़ लाख रुपये) तथा अखबार की संख्या में वृद्धि करवाये, तो स्थाई कार्ड दे देना-नहीं तो छुट्टी कर दी जाये। मुझे वेतन कितना मिलेगा, पूछने पर छिन्दा सिंह को संपादक ने कहा कि विज्ञापनों में कमीशन मिलेगा। समाचार छपेंगे-लोग तुम्हें पत्रकार कहेंगे, पर श्रीमान जी, मैं पत्रकार तो हूं-मेरे पास डिग्री है। छिन्दा सिंह के कहते ही संपादक महोदय मुस्कराये और कहने लगे कि, जो छपता है-वही पत्रकार है। डिग्री की कोई कीमत नहीं। इस संपादक को संपादकी विरसे में मिली है-क्योंकि यह खुद भी पहले एक अखबार में नौकरी करते थे। छिन्दा सिंह ने इस समाचार पत्र के कार्यालय से निकल कर एक रिक्शा पर सवार होकर एक ओर दफ्तर तक पहुंचे। इस समाचार पत्र में संपादक महोदय बिल्कुल अकेले दफ्तर में विराजमान थे। छिन्दा सिंह ने अपनी डिग्री व अनुभव के बल पर यहां निवेदन किया तो उतर मिला कि अखबार कितने बढ़ाओगे और कितने विज्ञापन लाओगे। इस पर छिन्दा सिंह ने कहा कि रिर्पोटरी करना चाहता हूं या मार्किटिंग नहीं। इस पर संपादक जी का चश्मा उपर-नीचे हुआ और छिन्दा सिंह से कहने लगे कि इस शहर में फिलहाल हमें रिर्पोटर की जरूरत नहीं है, क्योंकि समाचार पत्र विक्रता ही नि:शुल्क खबरे भेज रहा है। अखबार भी ज्यादा बेचता है, परन्तु जनाब! उसको तो लिखना ही नहीं आता, मेरे पास सरकारी डिग्री है। डिग्री नूं छिक्के टंग दे, जेे रिपोर्टरी करनी है-तां इह करना ही पऊ। जेकर साडी शरता मंजूर नहीं, तां जा सकता हैं, कहकर संपादक जी ने छिन्दा सिंह को वापसी का रास्ता दिखा दिया। अब छिन्दा सिंह सोचने लगा कि यह कैसे लोकतंत्र के स्तम्भ हैं, जो पत्रकारिता को दिशा देने की बजाये विनाश की ओर ले जा रहे हैं। हिम्मत न हारते हुए छिन्दा सिंह एक ओर समाचार पत्र के कार्यालय में पहुंच गया-तो वहां संपादक जी ने पांच फार्म थमा दिये और कहा इन्हें भरकर भेज देना, पर इससे पूर्व तेरी ''करैक्टर रिपोर्ट'' मंगवाई जायेगी। इस संपादक महोदय ने घंटी मारी और स्टैनो को आदेश दिया कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से इसकी ''करैक्टर रिपोर्ट'' मंगवाई जाये। छिन्दा सिंह फार्मों को लेकर वापिस घर आ गया और सोचने लगा कि पुलिस रिपोर्ट उपरांत नौकरी लग जायेगी। फार्म जब छिन्दा सिंह ने पढऩे शुरू किये-तो उसका दिमाग घूम गया क्योंकि इन फार्मों की शर्ते ही ऐसी थी। खैर-पुलिस रिपोर्ट, फार्म भरने और शपथ पत्र देने उपरांत उसे तीन मास के लिए न्यूज सप्लाई एजेंट का अथारिटी लैटर उसे मिला। छिन्दा सिंह द्वारा प्रेषित समाचार तीन मास तक छपे और फिर बंद हो गये। छिंदा सिंह पुन: जालंधर आया और संपादक महोदय से मिला तो संपादक जी ने फरमाया-तेरे स्टेशन से दूसरे अखबार के रिर्पोटर ने विशेष परिशिष्ट निकाला है, आप भी निकालिए अन्यथा चलिये। छिन्दा सिंह एक बार फिर सोच में डूब गया कि उसने कैसा काम चुना। यदि पत्रकारिता छोड़ते हैं-तो चौधर समाप्त होती है-यदि नहीं छोड़ता तो कुछ लेने की बजाये देना पड़ेगा। यह कैसा समाज का आईना है। यह कैसा लोकतंत्रीय स्तम्भ है। ऐसी अखबारी समूहों का तो पर्दाफाश ही करना होगा। पंजाबी पत्रकारिता का विनाश कर रहे समाचार पत्र समूहों को सबक सिखाने के लिए छिन्दा सिंह शोषित हुए पत्रकारों को संगठित करने के लिए एक पत्रकार संगठन बनाकर तथ्य एकत्रित करके माननीय हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के लिए सक्रिय हो गया। छिन्दा सिंह अपने प्रयास में कितना सफल होंगे-यह तो समय ही बतायेगा, मगर छिन्दा सिंह का यह प्रयास पत्रकार वर्ग को सदैव याद रहेगा। प्रस्तुति:प्रैसवार्ता

No comments:

Post a Comment

YOU ARE VISITOR NO.

blog counters

  © Blogger template On The Road by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP