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Wednesday, January 20, 2010

आखिर! क्यों होते हैं बलात्कार?

बलात्कार बढऩे के कई कारण है, लेकिन इसका मुख्य कारण आज की फैशन में ढलने वाली लड़कियां ही है और उससे भी ज्यादा फैशन में तथा अति विश्वास में रहते हैं उनके माता पिता अपने परिवार को फ्रेंक पूरी बनाना और बच्चों को फेशन की ओर खुले आम घूमने-फिरने की पूरी आजादी देना यही तो उनकी सबसे बड़े गलती है। मां बाप के कहने पर बच्चों को आजादी मिलती है। उन्हीं के कहे अनुसार लड़के और लड़कियां उनके नख्शे कदम पर चलते हैं। गलती अकेले लड़कों की ही नहीं रहती लड़कियां ही खुद निमंत्रण देती हैं। अपनी इज्जत के साथ खेलने के लिये। पाश्चात्य फैशन के चलते अंग प्रदर्शन करना, टाइट सूट व जींस टी शर्ट पहनना अंग दिखाकर लड़कों को उत्तेजित करना इसलिए कि लड़कों की नजरों में वे अधिक सुंदर व सेक्सी दिखें और फिर लड़के उत्तेजित होकर गलत कदम उठा लेते हैं फिर गलतियां सिर्फ लड़कों की समझी जाती है। कानून को गलतियां लड़कियों की नहीं दिखती और इज्जत खोने से पहले न ही मां बाप की आंखें खुलती हैं सरकार हमेशा लड़कों के लिये कानून निकालती है क्या लड़कियों के लिए कोई कानून नहीं समझ आते। जिनके कारण बलात्कार होते हैं, इसलिए शायद कहा जाता है अंधी सरकार का अंधा कानून। यदि इसी तरह लड़कों को लड़कियां कामोउत्तेजना के लिये प्रेरित करेंगी तो बलात्कार तो होंगी ही। यदि हमारी सरकार नपुंसक नही है तो उन्हें एक कानून ऐसा जरूर निकालना चाहिए कि सजा बालात्कारी को कम और उन लड़कियों को ज्यादा मिलें जो मुंह पर कपड़ा बांधे हुये अंग प्रदर्शन कर घूमती फिरती गाडिय़ों पर नजर आती हैं। लड़कियां मां बाप के संस्कार से ही रहन-सहन का ढंग सीखती हैं। क्या पढ़े-लिखे मां बाप के दिमाग में यह समझ नहीं आता कि शादी से पहले लड़की की जिम्मेदारी मां बाप की ही होती है। उन्हें संस्कारी बनायें। यह सिखायें कि क्या अच्छा और क्या बुरा है। लड़कियों को भी सभी तरह की समझदारी होती है, लेकिन अपनी ही इज्जत की नहीं होती तभी तो उसे दाव पर लगाने के लिये यहां वहां घूमती हैं। कभी स्कूल के बहाने तो कभी कॉलेज के तो कभी-कभी कहती हैं सहेली के यहां किसी काम से जा रही है और मुंह पर कपड़ा लपेटा और काफी शॉप में बैठी दिखेंगी और यदि इत्फाक से मां बाप की घूमने जाने की प्लालिंग हुई और वे भी काफी शॉप में काफी पीने-चले गये तो क्या देखते हैं। कोई लड़की कितनी गलत तरीके से किसी लड़के के साथ चिपक कर बैठी हुई है। लेकिन वे बेवकूफ ये नहीं जान पा रहे हैं कि जो लड़की चिपक कर बैठी हुई है असल में वो अपनी खुद की बिटिया रानी जो गुलछरे उड़ा रही है। आखिर वे भी कैसे पता कर सकते हैं मुंह पर कपड़ा बंधा हुआ है। जाने ऐसी कितनी लड़कियां है जो अपने बड़े भाईयों तथा पिताजी लोगों का रूतबा पूरे शहर में करती फिरती हैं और शायद कभी-कभी वे ही लड़कियां अपने भाइयों और पिता को बेवकूफ बनाने में सफल हो जाती है।, हो सकता है एकाएक ट्राफिक पर या चलते फिरते रास्तों में ही किसी लड़के की गाड़ी में चिपक कर बैठी हो और बाजू में उनका अपना भाई खड़ा हो या चलते फिरते रास्ते में बहन भाई क्रास हो रहे हो तो भाई या पिता पहचान ही नहीं सकते, क्योंकि मैडम के मुंह पर कपड़ा जो बंधा हुआ है। 21वीं शताब्दी के चलते लड़कियों ने अपने खुद ही कायदे कानून बनाने शुरू कर दिये हैं। सरकार उनके लिये क्या कानून बनाएगी और तो और मां भी उन्हें क्या कायदे सिखाएगी, वे खुद ही उल्टा उन्हीं को कायदे कानून बताने लगती है और बच्चे शायद ये भूल जाते हैं कि पैदा उन्होंने नहीं मां बाप ने उन्हें पैदा किया है या फिर घर के जिम्मेदार लोग ही लड़कियों से कमजोर होते हैं लड़कियों के आगे शायद उनकी धोंस चलती ही नहीं। इसलिए तो लड़कियां लड़कों की तरह दिलेरी से गाडिय़ों व साइकिलों पर अंग प्रदर्शन कर मुंह पर कपड़ा बांधे घूमती हुई नजर आती हैं, जिससे कि कोई घर का व्यक्ति उन्हें पहचान ही न सके। यदि लड़कियां विदेशी कल्चर ही अपनाना चाहती हैं तो फिर उतने कपड़े भी नहीं पहनना चाहिये वो कपड़े भी उतार देना चाहिये। शराब सिगरेट भी शुरू कर देना चाहिये, जैसे दोस्तों के साथ रातें बिताना यदि ऐसा ही करना है तो पूरी तरह से अपनाओं किसी भी फैशन में कोई कमी न हो और इन लड़कियों के माता पिता से अनुरोध है कि वे उनका पूरी तरह से साथ देकर उन्हें ऊंचाइयों पर चढ़ाये आज बड़ा दुख होता है क्या इसी दिन के लिए आजाद नहीं हुआ था हमारा देश। कितने वीरों ने अपने प्राणों की बली दे डाली अपने प्राणों की बली इसलिए दी गई थी, क्योंकि हमारा भारत देश, खुशहाली में संस्कारी में कायदे कानून में नं. 1 पर हो लेकिन हमारे भारतवासी ही भारत देश को विदेशी रूप में ढालने की कोशिश कर रहे हैं बस दो दिन ही ऐसे होते हैं। जब भारतवासी वीर जवानों को याद कर उनके गुण गाते हैं। (1)26 जनवरी (2)15 अगस्त उसके बाद किसने बली दी, क्यों दी, किसके लिये दी, क्यों शहीद हुये और वो कौन था जिन्होंने हमारे भारत देश को अच्छे और संस्कारी दिन दिखाने के लिए आजाद कराया था। उनसे उन्हें कोई मतलब नहीं बस फिर कयाहै। कारवां फिर शुरू हो जाता है बात वही की वहीं रह जाती है, लेकिन एक बात कहना चाहती हूं कि अपनी बिटिया को बिगाडऩे में या उसे संस्कारी बनाने में उसकी अपनी मां का हाथ सबसे अहम होता है। -विशाल शुक्ल ऊँ, छिंदवाड़ा (प्रैसवार्ता)

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