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Saturday, January 9, 2010

पत्रकारिता पर हावी हो रही राजनीति से पत्रकारिता खतरे में

आज से कुछ वर्ष पूर्व पत्रकारिता समाज में सम्मानजनक ढंग का व्यवसाय माना जाता था और समाज भी उन्हें विशेष व्यक्ति के तौर पर स्वीकार किये हुए था, परन्तु अब पत्रकारिता में निरंतर आ रहे बदलाव और पत्रकारिता पर हावी हो रही राजनीति से लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ पत्रकारिता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। कुछ पत्रकार भी अपने सही उद्देश्य से भटक कर झूठी वाही-वाही लूटने और धन कमाने के राह पर चल पड़े हैं-जिनके कारण स्वच्छ, स्वस्थ तथा निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले ईमानदार पत्रकार प्रभावित हो रहे हैं। मेरा निजी अनुभव है कि जो पत्रकार झूठी शौहरत और धन कमाने की लालसा को लेकर पत्रकारिता करते हैं, समाज जल्दी ही उन्हें ''बैक टू पैवेलियन'' कर देता है। किसी भी पत्रकार को अपने निजी स्वार्थ के चलते प्रैस के मान-सम्मान को दाव पर लगाने का अधिकार नहीं है। मेरी सोच अनुसार जब कोई भी पत्रकार सत्यता को छिपाने के लिए गलत तत्वों से सौदेबाजी करता है, तो वह गलत तत्वों को शह देने की भूमिका निभाने के अतिरिक्त पत्रकार समुदाय को भी संदेह के दायरे में लाकर खड़ा कर देता है। यदि हम राजनीतिज्ञों की ही बात करें तो तस्वीर का एक अजीबो-गरीब रूख देखने को मिलेगा। यह किसी से भी भूला नहीं है कि हर राजनेता प्रैस से मधुर संबंध बनाने को प्राथमिकता देता है, क्योंकि उसकी सोच होती है कि प्रैस ही राजनेता की छवि बना व बिगाड़ सकती है। कुछ पत्रकार भी निजी स्वार्थों के चलते राजनेताओं की पकड़ में आ जाते हैं, जबकि पत्रकारिता के दायित्व को समझने वाले जब राजनेताओं की गिरफ्त नहीं आते, तो वह उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए सभी ढंग अपनाने से भी नहीं चूकते क्योंकि राजनेताओं के निजी स्वार्थों व उल्टी-सीधी कार्यप्रणाली से उन्हें बचना होता। राजनेता कैसे दिखते हैं, क्या करते हैं और उनका असली चेहरा कैसा है, पत्रकार जानते हैं और राजनेता भी जानते हैं कि वह अपनी छवि व कार्यप्रणाली कैसे जनता की नजरों में बनाये रखना चाहते हैं। इसलिए पत्रकारों को अपने पक्ष में करना उनकी राजनीतिक विवशता होती है। वर्तमान में तो राजनेता इस कद्र सक्रिय देखे जा सकते हैं-जो पत्रकारों को अपने साथ जोड़े हुए हैं और दुखद पहलू यह है कि कुछ पत्रकार अपने आका राजनेताओं का गुणगान करते समय चाटुकारिता की समस्त सीमाएं लांघने से भी नहीं चूकते। दूसरी तरफ पत्रकारों में भी एकता न होने के कारण छत्रपति जैसे पत्रकारों को अपनी शहादत देने के लिए आगे आना पड़ा। अपराधी व गलत तत्व राजनेताओं व प्रशासनिक तंत्र की छत्रछाया में पत्रकारों से मारपीट या अभद्र व्यवहार करने से नहीं चूकते। स्थिति ऐसी हो गई है कि पहले अपराधी व गलत तत्व पत्रकारों से भय खाते थे, मगर अब पत्रकार उनसे भयभीत देखे जा सकते हैं। पिछला वर्ष पंजाब सहित हरियाणा प्रदेश के पत्रकारों के लिए शुभ नहीं रहा। कई पत्रकार ज्यादती का शिकार हुए और पत्रकार समुदाय में एकता न होने के कारण विवशता वश ज्यादती के शिकार को सब्र का घूंट भरना पड़ा। पत्रकार पर ज्यादती अखबारी सुर्खियों में तो बढ़ चढ़ कर पढ़ी जा सकती है और निंदा करने वाले पत्रकारों के ब्यान बखूबी पढ़े जा सकते हैं, मगर उसके साथ न्याय दिलवाने के चलने वाले ढूंढने से भी नहीं मिलते। प्रशासनिक तंत्र तथा राजनेता भी घडिय़ाली आंसू बहाकर झूठी सहानुभूति दिखाने से गुरेज नहीं करता, क्योंकि पत्रकार से ज्यादती करने वालों से उनके मधुर संबंध जो होते हैं। यदि किसी पत्रकार से ज्यादती के विरोध में पत्रकार एकत्रित हो भी जायें तो प्रशासनिक तंत्र दोषीगण को काबू करके मुकद्दमे की ऐसी परिभाषा तैयार करता है कि जमानत झटपट हो जाती हैं और जमानत से रिहा हुआ दोषी फिर धमकाने की प्रक्रिया में तेजी ला देता है-जिससे संबंधित पत्रकार और उसके परिवारजनों की नींद उड़ जाती है और वह समझौते को ही सही मानते हैं। पत्रकार भले ही कितना ईमानदार, निस्पक्ष व सिद्धांत वादी हो, मगर राजनेता उसकी ईमानदारी, सिद्धांतवादी नीति व निस्पक्षता के स्पैलिंग ही बदल देने में विशेष कहे जाते हैं। जरूरत है पत्रकारों को एक ऐसे संगठन की, जो अपने मान सम्मान व अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करें। राजनेताओं व प्रशासनिक तंत्र से सिद्धांतवादी टक्कर लेकर आजादी के परवाने पत्रकारों की तरह राजनेताओं को पत्रकारों के अधिकार व कर्तव्य का ज्ञान करवाकर उन्हें अहसास करवा सके कि पत्रकार राष्ट्र की सच्ची धरोहर हैं और कानूनी दायरे में रहकर देशहित को सर्वोपरि मानते हुए सत्यता के पक्षधर हैं। -रमेश कुमार(प्रैसवार्ता)

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