हरदा(प्रैसवार्ता) जिले के झाड़पा गांव में स्थित पीर की मजार की देखभाल सालों से हिन्दु समुदाय के लोग कर रहे हैं। वहीं यहां मोहर्रम पर चादर चढ़ाते हैं, लोभान जलाते हैं और साफ-सफाई करते हैं। पीर बाबा की यह मजार करीब चार सौ साल पुरानी है। कुछ साल पहले तक यह जर्जर हालत में थी। गांव वालों ने इसका जीर्णोद्धार कराया। इस गांव में कोई मुसलमान नहीं रहता। झाड़पा गांव हरदा से सात किमी दूर है। इसकी आबादी करीब तीन सौ हैं। सभी घर हिन्दुओं के हैं, लेकिन पीर बाबा के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है। गांव के संतोष बिश्रोई मजार पर रोजाना अगरबत्ती और लोभान जलाना व फूल चढ़ाना नहीं भूलते। यहां तक कि वे कोई भी काम मजार पर मत्था टेकने के बाद ही शुरू करते हैं। हर गुरुवार को वे बाबा के नाम पर यहां कन्याभोज का आयोजन भी करते हैं। खास बात यह है कि आसपास के गांवों में भी मुस्लिम आबादी नगण्य है। कुछ व्यवसायी और फेरीवाले मुसलमान गांव में आते हैं तो मजार पर मत्था जरुर टेकते हैं।
महक रहे हैं फूल: मजार के आसपास ग्रामीणों द्वारा गुलाब, अशोक सहित विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए गए हैं। एक ग्रामीण ओमप्रकाश सारन ने बताया कि अब मजार के चारों ओर दीवार व चबूतरा भी बना दिया गया है। मजार की मरम्मत तथा हरियाली से यहां का नजारा ही बदल गया है।
जीर्णोद्धार कराया:पीर बाबा के बारे में ज्यादा जानकारी किसी को नहीं है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि मजार करीब चार सौ साल पुरानी है। यह जर्जर हालत में थी। गांव वालों ने ही इसका जीर्णोद्धार कराया। लोगों की मान्यता है कि यहां मत्था टेकने से बरकत होती है। अकीदतमंदों की हर मुराद पूरी होती है। गांव के बुजुर्ग बद्री बिश्रोई, फूलचंद तथा कोटवार भागीरथ ने प्रैसवार्ता को बताया कि मजार की देखरेख वर्षों से गांववासी ही करते आ रहे हैं। उन्होंने कभी भी मंदिर और मजार में भेद नहीं समझा।
महक रहे हैं फूल: मजार के आसपास ग्रामीणों द्वारा गुलाब, अशोक सहित विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए गए हैं। एक ग्रामीण ओमप्रकाश सारन ने बताया कि अब मजार के चारों ओर दीवार व चबूतरा भी बना दिया गया है। मजार की मरम्मत तथा हरियाली से यहां का नजारा ही बदल गया है।
जीर्णोद्धार कराया:पीर बाबा के बारे में ज्यादा जानकारी किसी को नहीं है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि मजार करीब चार सौ साल पुरानी है। यह जर्जर हालत में थी। गांव वालों ने ही इसका जीर्णोद्धार कराया। लोगों की मान्यता है कि यहां मत्था टेकने से बरकत होती है। अकीदतमंदों की हर मुराद पूरी होती है। गांव के बुजुर्ग बद्री बिश्रोई, फूलचंद तथा कोटवार भागीरथ ने प्रैसवार्ता को बताया कि मजार की देखरेख वर्षों से गांववासी ही करते आ रहे हैं। उन्होंने कभी भी मंदिर और मजार में भेद नहीं समझा।
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