सिरसा के युवा समाज सेवी एवं धर्मप्रेमी सुभाष बांसल के अनुसार पत्रकारिता आसान नहीं है । समाज के हर क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले श्री बांसल का कहना है कि उनका पत्रकारिता से सबंध ज्यादा नहीं रहा है, मगर पत्रकारिता के महत्व, उसकी क्षमता और शक्ति से भली भांति परिचित हैं । भाषण के माध्यम से हजार, दो हजार या इससे ज्यादा लोगों तक बात पहुंचाई जा सकती है, परन्तु पत्रकार समाचार पत्रों के माध्यम से लाखों पाठकों तक अपने विचार पहुंचाते हैं । अच्छे ढंग़ से चुने हुए शब्दों में समाचार पिरोना ईश्वर द्वारा प्रदत्त कला ही मानी जा सकती है । जैसे बोलने की कला होती है - वैसे ही लिखने की कला होती है। बहुत कम लोग ऐसे हैं - जो दोनों कलाओं में माहिर होते हैं। मैंने अनेक अच्छे वक्ताओं को सुना है और महसूस किया है कि वक्ता अपने भाषण के माध्यम से इतने अच्छे ढंग़ से अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाते, जितना कि लेखनी के माध्यम से । प्राचीन युग में पत्रकारिता बड़ा जोखिम भरा कार्य माना जाता था, क्योंकि उस युग में पत्रकार देश भगत व क्रांतिकारी ज्यादा हुआ करते थे - जो पत्रकारिता के साथ-साथ राष्ट्र का दिशा-निर्देश भी करते थे । जिनमें शहीदे आजम स. भगत सिंह व गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है । प्रखर राष्ट्रवादी, जन कल्याण की भावना रखने वाले अधिक से अधिक बंधु पत्रकारिता क्षेत्र में जायें -यह अति आवश्यक होता जा रहा है, मगर साथ में यह भी जरूरी है कि उनकी ध्येय के प्रति निष्ठा व तीखापन कायम रहे अन्यथा पत्रकारिता में प्रवेश पाने उपरांत अनेक प्रकार के आकर्षणों में उलझ कर ध्येय की अनदेखी हो सकती है । यह भी ध्यान रखा जाये, तो उचित होगा, कि पत्रकार राष्ट्र, समाज और मानवता की सेवा के लिए स्वयं को अर्पित करें और चिकनी-चुपड़ी रोटी की बजाये सादा भोजन खाकर गुजारा करेंगे, तब जाकर उनकी प्रखरता बनी रहेगी। -सुभाष बांसल, प्रैसवार्ता
Saturday, January 9, 2010
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