कहने को तो देश के मूर्धन्य सारंगी नवाजों में शुमार होते हैं, मगर महफिल में, यदि वे कोई न गाएं, तो उनके मुरीद उदास हो सकते है। मुरीद उदास हो जाएं, ये उनकी आवाज में जो खिंचाव है, वो मर्मभेदी है, सम्मोहक है। उनको सुनते हुए कहीं गहरे भीतर करूणा महसूस होती हे तो कभी गहरे रूमान में डूब जाने को जो चाहता है। उस्ताद का अंदाज़ ही कुछ ऐसा है कि सुनने वाला डूब जाता है, चाहे वो सारंगी बजा रहे हो या राग गा रहे हों। उस्ताद सुल्तान खां का जादू इसी तरह का है। खूबियां तो उनमें अनेक होगी, मगर त्रिगुणी खूबियों में सबसे पहले उनका एक अत्यंत भावुक, संवेदनशील और पारदर्शी इंसान होना है। ईश्वर के प्रति अदम्य आस्था रखने वाला यह शख्स अपनी एक कला, अपनी सिद्धहस्तता और अपने मुरीदों का श्रेय भी उस्ताद उसी नीली छतरी वाले को देते हैं। वे अपनी क्षमताओं ओर श्रोता समाज में व्याप्त अपने सम्मोहन को लेकर फिर मालिक को याद करते हैं और कहते है कि ये उसी का जलवा है, जो आज इस उम्र में इस तरह नवाज़ रहा हैं। सारंगी बजाने के निमंत्रण उनको लगातार मिलते रहते है। उनकी सभाएं गायन और वादन दानों से माहौल को खुशनुमा बनाती है। खास बात यह है कि उस्ताद अपनी प्रस्तुति के समय लगातार अपने श्रोताओं से संवाद किए रहते हैं। अपना गाना-बजाना जिस सहजता से वे सम्प्रेषित करते हैं, वो सुनने वालों को बेहद प्रभावित करता है। सुप्रतिष्ठित सारंगी नवाज़ उस्ताद सुल्तान खां का सारंगी के स्वर माधुर्य पर गहरा नियंत्रण है। वे अपने जमाने के जाने-माने सारंगी वादक उस्ताद अजीम खां के पोते तथा उस्ताद गुलाम खां के सुपुत्र हैं। शास्त्रीय संगीत में घरानेदार परंपरा और अनुषासन में उस्ताद सुल्तान खां का परिश्कार हुआ है। देष-दुनिया के तमाम प्रतिश्ठित संगीत समारोहों में आपने अपने एकल सारंगी वादन से रसिक श्रोता समाज को चमत्कृत किया है वहीं मूर्धन्य कलाकारों के साथ संगत में भी अनूठी तारतम्यता प्रदर्षित की है। ह्नदय को हरे बेधने वाली गायकी, आपकी प्रतिभा का एक दूसरा उत्कृष्ट आयाम है। अनेक महत्वपूर्ण फिल्मों में गाये आपके गीत कालजयी महत्व के है। इन दिनों गुड्डू धनोआ की फिल्म 'बिग ब्रदर में उस्ताद का गाया और उन्हीं पर फिल्माया गीत ' जग लाल-लाल दिखे है मुझको काफी चर्चित और सफल अलबम है। इसके अलावा फिल्म 'हम दिल दे चुके सनम में 'अलबेला सजन आया गंगाजलÓ में 'जानकी नाथ सहाय करें सुल्तान खां ने फिल्म संगीत के चाहने वालों के बीच अपनी एक ऐसी जगह बनायी है जो बड़ी परिपक्व और प्रभावषाली है। हिंदुस्तान के तमाम शहरों के साथ ही दुनिया के अनेक देषों में उस्ताद की सारंगी और आवाज काएक रिष्ता बना है। रिष्तों में जो पुख्तगी है, उसका कारण है उनकी निष्छलता और श्रेश्ठता की असीम ऊंचाइयों पर अवस्थित उनकी अनूठी कला और उस्ताद इस सबके लिए अल्लाह के शुक्रगुज़ार होते हैं। -सुभाष बांसल प्रैसवार्ता
Saturday, January 2, 2010
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