गुडग़ांव(प्रैसवार्ता) आम तौर पर किसी सभी समुदायों के लोगों में अपने परिचित या रिश्तेदार की मृत्यु पर मातम या शोक मनाया जाता है। तथा लोगों को रोते बिलखते देखा जाता है, परन्तु विभिन्न संस्कृतियों के इस देश में एक ऐसा भी समुदाय है जिसमें मृत्यु पर शौक नहीं अपितु जश्र मनाया जाता है तथा मृतक की शव यात्रा किसी की बारात की तरह प्रतीत होती है। मृतक को डी जे की धुन पर नाचते गाते हुए पूरे सम्मान के साथ अंत्येष्टी के लिए ले जाया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में खाना बदोस की तरह जीवन यापन करने वालो भूभलिया समुदाय के लोगों में मृतक को ढोल नगाड़ों और डी जे की धुन पर नाचते हुए अंत्येष्टी के लिए ले जाया जाता है। भूभलिया समुदाय का ऐसा ही एक वाक्या सोमवार को सामने आया। फिरोजपुर झिरका के गुडग़ांवां अलवर मार्ग पर बसे भूभलिया समुदाय मं कल एक महिला की मौत हो गई। परिवार के लोगों ने मौत पर मातम करने की बजाए डी जे का इंतजा किया और नाचते गाते महिला को अंतिम संस्कार के लिए ले गए। भूभलिया समुदाय के लोगों की दस परम्परा को देखने के लिए शहर जगह जगह शव यात्रा को देखने वालों की भीड़ लग गई। बच्चों ने डीजे की आवाज सुनकर इस उम्मीद पर देखने दौड़ पड़े कि शायद कोई बारात होगी। अंतिम यात्रा में जहां अन्य समुदाय के लोग गंगा जल और पवित्रता का ध्यान रखते हैं वहीं इस समुदाय के लोग शव यात्रा में भी जमकर जाम छलकाते हैं। भूभलिया समुदाय के वृद्ध रामू ने बताया कि उनके यहां शुरू से ही शव यात्रा जश्र के साथ निकालने की परम्परा है। उनकी भी अंतिम इच्छा यही है कि उनकी शव यात्रा भी उनकी पत्नी की तरह ही शान से निकले। अपने आपको चित्तौड़ गढ़ का वारिस बताने वाले खेमू ने बताया कि भूभलियाओं की यह परम्परा रही है कि वो जीते भी हैं शान से और मरते भी हैं शान से।
Friday, January 22, 2010
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