समाचार यानि न्यूज का अर्थ है, सभी दिशाओं की नई से नई घटनाओं की जानकारी। न्यूज यानि एन से नार्थ, इ से ईस्ट, डब्लयू से वैस्ट तथा एस से साउथ। सामचार की इसी परिभाषा संकलन व स्त्रोत पर प्रकाश डाल रहे प्रैसवार्ता के संपादक चन्द्र मोहन ग्रोवर एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य को अपने तथा अपने से जुड़े ''सब कुछ'' के विषय में निरंतर और पूर्ण जानकारी चाहिये और ऐसा तब हो सकता है-जब सूचना स्त्रोत निर्बाध व अनवरत बहता रहे। हम जानते हैं कि ज्ञान कितना ही महत्वपूर्ण क्यों न हो, यदि प्रकाश में नहीं आता तो वह धीरे-धीरे विलुप्त हो जाता है। इस तरह कोई भी घटना कितनी ही महत्वपूर्ण रोचक, रहस्यमय और मानवीय क्यों न हो-यदि इसकी लोगों को जानकारी नहीं तो यह अनजानी ही बनी रहेगी। ज्ञान और सूचना दोनों का प्रवाह लिपी के अविष्कार से पूर्व मौखिक ही बहा करता था। विभिन्न-विभिन्न मुनियों व विचारकों द्वारा मंत्रों, श£ोकों, उपदेशों व संदेशों द्वारा प्रसारित ज्ञान सूत्र रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी मानव जाति को प्राप्त होता रहा, परन्तु बाद में लिपी के अविष्कार, ताडपत्र और फिर कागज निर्माण से ज्ञान और सूचना के इस प्रवाह को मनुष्य जाति ने अपनी पीढ़ी को लिखित रूप में उपलब्ध करवाया। ज्यों-ज्यों मानव जाति की संख्या व दूरी बढऩे लगी-तो इस प्रवाह (ज्ञान और सूचना) को सभी तक पहुंचाने के लिए अन्य उपाय जरूरी हो गये। यातायात के द्रूत साधनों, मुद्रण की जानकारी आदि ने यूरोप के माध्यम से मानव जगत को ज्ञान व सूचना के नियमित प्रवाह के रूप में नई चीज दी-जिसे आज अखबार या समाचार पत्र कहा जाता है। ज्ञान और सूचना के स्त्रोत को दृष्टिगत रखते हुए समाचार पत्र का मुख्य कार्य पाठक को जानकारी देना तथा उसका मनोरंजन करना बताया जाता है। समाचार पत्र के लिए मनोरंजन शब्द बड़ा व्यापक है। पाठक किसी लिंग, आयु, श्रेणी, व्यवसाय अथवा रूची वर्ग का हो सकता है। वैसे भी अखबार में सभी के लिए रूचिकर सामग्री हो-यही मनोरंजन शब्द से अभिप्रत है। साहित्य की विभिन्न विधाओं, उपन्यास-कथा, कविता, संस्करण, जीवनी आदि-बाल जगत, महिला जगत, युवा जगत, वृद्धावस्था, विज्ञान, फिल्म, दूरदर्शन, रंगमंच, संगीत, नृत्य व अन्य कलाओं से जुड़ी समूची पठन सामग्री मनोरंजन का ही अंग कहा जा सकता है। समाचार यानि न्यूज की चर्चा के चलते जानकारी तथा सूचना देने के पक्ष तक ही सीमित रहते हुए यही कहा जा सकता है कि इस पक्ष के भी दो अंग है। एक शुद्ध समाचार तथा दूसरा समाचार के हमारे समाज, देश व समूची मानवता पर पड़े या पड़ सकने वाले प्रभाव का आकलन, विवेचन तथा उस विषय में जनमत तैयार करने का प्रयास-जोकि लेखों व सम्पादकीय से संभव हो सकता है।
समाचार यानि न्यूज क्या है- इसे समझ लेने उपरांत यह बता देना भी जरूरी है कि अखबार के पाठक विभिन्न-विभिन्न वर्गों के होने के साथ-साथ विभिन्न-विभिन्न रूची रखते हैं और यही कारण है कि ज्यादातर समाचार पत्र पाठकों की रूची और आवश्यकताओं को प्राथमिकता देते हैं। क्षेत्रीय अखबारों में, जहां क्षेत्रीय समाचारों की प्राथमिकता दी जाती है, वहीं, जिस स्थान से समाचार पत्र छपता है, वहां के समाचार पत्रों का सदा प्रमुखता मिलती है-भले ही समाचार पत्र स्थानीय, क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर का हो। अंग्रेजी के अखबार अंग्रेजी साहित्य व अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को ज्यादा महत्व देते हैं-जबकि भारतीय भाषाओं के राष्ट्रीय व प्रमुख समाचार पत्र प्राय: उन्हीं अंतर्राष्ट्रीय समाचारों का चयन करते हैं-जो या तो अपने देश से जुड़े हो अथवा समूचे विश्व पर प्रभाव डालते हैं। वर्तमान में आर्थिक गतिविधियों को लगभग सभी समाचार पत्र विशेष स्थान देने लगे हैं-जबकि कई समाचार पत्र आर्थिक व वाणिज्यिक समाचारों के विशेष संस्करण निकाल रहे हैं। पश्चिम में इसका चलन ज्यादा है, क्योंकि भारत में ज्यादातर परिवार एक ही अखबार खरीदते हैं-जबकि पश्चिम में कई-कई समाचार पत्र भी प्रयास करते हैं कि एक से ज्यादा विषयों से संबंधित जानकारी का प्रकाशन किया जा सके। घटनात्मक समाचारों में पांच ''क'' यानि कब, कहां, कैसे, कौन और क्यों को ध्यान में रखने से समाचार सम्पूर्ण और पाठनीय हो जाता है। समाचार में पांच ''क'' के प्रयोग के विपरीत कई समाचार सम्पादकों की राये में तो इन्ट्रों में सूत्र से सूचना होनी चाहिये और फिर उसका विस्तार होना चाहिये। इसके उपरांत पुलिस प्रशासन, सरकारी प्रयास हुई क्षति का विवरण, प्रभावित लोगों को आश्वस्त या सहायता देने की दिशा में, जो भी हुआ हो या करने का इरादा हो, उसकी जानकारी दी जा सकती है। हर संवाददाता को घटना की सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिये। यदि सूचना देरी से भी मिले, तो भी जरूर जाकर जाकर आसपास के लोगों या घटना से संबंधित लोगों से विवरण लेना चाहिये, परन्तु संदिग्ध परिस्थितियों वाली घटना में सतर्क रहना चाहिये, क्योंकि फालोअप का चक्कर कई बार महंगा पड़ सकता है। समाचारों के वर्गीकरण से ही उनके विभिन्न रूपों की जानकारी मिल जाती है कि वे किस विषय से जुड़े हुए हैं, यह स्पष्ट हो जाता है, अत: पत्रकार उनकी व्याख्या में न पड़कर सीधे समाचार संकलन पर आ जाते हैं। समाचार कैसे प्राप्त होगा या जुटाया जायेगा। इसकी जानकारी हर संवाददाता के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ उनकी दैनदिंन कार्यक्रम का सबसे बड़ा स्त्रोत है-एक सूचना, दो विज्ञप्ति-बुलेटिन या वक्तव्य, तीन संवाददाता सम्मेलन, चार मैच, प्रतियोगिता, सम्मेलन, न्यायालय, विधानसभा या संसद की रिर्पोटिंग, पांच नियमित अथवा विशेष ब्रीफिंग, छ: अनायास मिला संकेत या स्कूप तथा किसी विशेष समाचार की खोज। समाचार के स्त्रोतों पर ब्यौरेवाह विचार करने से पूर्व हर संवाददाता को ध्यान रखना चाहिये, कि समाचार में न केवल उसकी, अपितु उससे जुड़े अखबार की विश्वसनीयता भी दाव पर लगी रहती है। संवाददाता पाठकों के लिए अखबार के दूत का पर्याय होता है। इसलिए किसी घटना, वक्तव्य, सभा सम्मेलन, आरोप-प्रत्यारोप आदि का समाचार देते समय तथ्य को चैक (जांच) तथा क्रास चैक जरूर करें। समाचार देने में थोड़ी देर भले ही हो जाये, परन्तु जल्दबादी में अधूरी, गलत, अपुष्ट अथवा खंडनीय जानकारी न दें। प्राय: सभी घटनाक्रम व अपराध समाचारों का स्त्रोत सूचना ही होती है-भले ही वह पुलिस बुलेटिन से मिले या किसी अन्य सूत्र से। ऐसे समाचारों को कवर करते समय यह ध्यान रखना चाहिये, कि घटना अभी जारी है। अथवा उसके अवशेष अभी घटनास्थल पर ही हों, तो तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने का प्रयास किया जाना चाहिये। महानगरों में विज्ञप्ति, बुलेटिन अथवा वक्तव्यों की बाढ़ रहती है। विभिन्न-विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, उनके दल, सामाजिक संगठन, उनसे जुड़े वरिष्ठ कार्यकर्ता, कर्मचारी संगठन और उनके नेतागण, प्रमुख बुद्धिजीवी और प्रचारक अपनी नियमित या विशेष गतिविधियों पर अपने वक्तव्य जारी करते हैं। ऐसी सूचनाओं को आकर्षक ढंग देने के लिए इंट्रो जानकारी पूरक हो, तो अच्छा शीर्षक दिया जा सकता है। विज्ञप्ति, वक्तव्य या बुलेटिन में समाचार का जो भी अंश हो समाचार के शुरू में स्पष्ट हो जाये। ऐसा नहीं होना चाहिये कि समाचार का अंश आपके लिखे समाचार में सबसे अंत पर हो-उसी का शीर्षक बनना था और स्थानाभाव के कारण वही प्रमुख अंश कट गये। निस्सन्देह इसके लिए अखबार का संपादक डैस्क भी उत्तरदायी होगा, परन्तु संवाददाता होने के नाते आपको भी यह ज्ञान होना चाहिये कि कई बार समयाभाव में समाचार का पुर्नलेखन संभव नहीं हो पाता। संवाददाता सम्मेलन में समाचार संकलन का यही स्त्रोत ऐसा है-जिसमें संवाददाता के अनुभव, सूझबूझ और अध्ययन की सर्वाधिक परख होती है। जब तक संबंध विषय की पृष्ठभूमि का ज्ञान न हो-तब तक कोई भी संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे व्यक्ति से वांछित व विशेष जानकारी नहीं उगलवा सकता। अनुभव न हो तो प्रश्र पर पूरक प्रश्र का साहस और संबंध व्यक्ति को सही जानकारी देने के लिए विवश नहीं कर सकता। सूझबूझ के न होने पर उसे गलत तथ्य देते हुए या कोई जानकारी छिपाते हुए पकड़ नहीं सकता।
संवाददाता और सावधानियां:
(1) यह जानिये कि संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कौन कर रहा है और उसकी क्या स्थिति है?
(2) संवाददाता सम्मेलन का विषय अथवा मुद्दा क्या है?
(3) यदि यह मुद्दा पहले से ही चल रहा है, तो उसकी पूरी पृष्ठभूमि की जानकारी लेकर सम्मेलन में जायें?
(4) संवाददाता सम्मेलन में संवाददाता विषय से संबंधित कोई भी प्रश्र पूछने को स्वतंत्र है, परन्तु यदि संबंध व्यक्ति स्पष्ट उत्तर देने से इंकार कर देता है-तो बहस नहीं की जानी चाहिये। बेहतर रहेगा कि उस प्रश्र को किसी अन्य प्रश्र में समाहित कर वांद्धित जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की जाये।
(5) शिष्टता और संयम का साथ न छोड़ते हुए भाषा संयम रखें और जरूरत से ज्यादा उंचा भी बन बोला जाये।
(6) विवरण प्राप्त के लिए विषय से संबंध पूरक प्रश्र पूछते समय ध्यान रखें के आपका लक्ष्य संबंध व्यक्ति का चरित्र हनन करना या उसे छोटा दिखना न होकर पाठकों के लिए अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करना ही हो।
(7) संवाददाता सम्मेलन का समाचार बनाते समय इंट्रों में पूरे संवाददाता सम्मेलन का मुख्य स्वर सा मुद्दा उभर की सामने आना चाहिये, क्योंकि इंट्रों ही पाठक को समाचार पढऩे के लिए प्रेरित करेगा। संवाददाता सम्मेलन में उठाये गये मुद्दों का ब्यौरा क्रमानुसार समाचार में दिया जाना चाहिये तथा संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करने वाले का विवरण इंट्रों या फिर दूसरे पैराग्राफ तक आ जाना चाहिये।
(8) समाचार बनाते समय एक ध्यान रखा जाये कि संवाददाता सम्मेलन के आयोजन ने किसी व्यक्ति विशेष, अपने विरोधी दल के नेता अथवा किसी संगठन पर कोई आरोप लगाया हो-तो आयोजन की हैसियत जरूर देखें और जिस पर आरोप लगाया गया है, तो पक्ष लेने का हर संभव प्रयास किया जाये। पक्षपात व बेहूदा आरोप को नजर अंदाज कर दिया जाना चाहिये। यदि नेता बड़ा हो अथवा उसकी मंशा समाज व राष्ट्रहित में हो-तो आरोप-प्रत्यारोप का उल्लेख करते समय सावधान जरूर रहना चाहिये मैच, प्रतियोगिता, सभा सम्मेलन, विधानसभा, संसद व न्यायालय की रिर्पोटिंग करते समय, जो देखा व सुना जाये, उसी को लिखा जाये। किसी बात को विशेष अर्थ देने से परहेज करना चाहिये। विशेष टिप्पणी और अपने कमैन्टस देने की बजाये तथ्यों पर आधारित व सारगर्भित, पक्षपात व दोहराव रहित रिर्पोट को ही प्राथमिकता देनी चाहिये। खेल रिपोर्ट करते समय तथ्यों व आरोपों को चैक व क्रॉस चैक जरूर किया जाये तथा आरोपों का उल्लेख करते समय उन्हीं शब्दों का प्रयोग करें-जो कहे गये हों। किसी विधायक, सांसद व सदन की अवमानना वाली रिर्पोटिंग नहीं की जानी चाहिये। नियमित या विशेष ब्रीफिंग किसी संवाददाता सम्मेलन से कम नहीं होती, अत: इस संदर्भ में ज्यादा से ज्यादा जानकारी एकत्रित करने का प्रयास संवाददाता को करना चाहिये। यदाकदा अनायास ही और कई बार किसी अन्य स्टोरी पर कार्य करते हुए संवाददाता को किसी तथ्य की या मामले की भनक लग जाती है-जिससे समाज में तूफान खड़ा हो सकता है। प्रशासन में बावेला मच सकता है, सरकार हिल सकती है किसी नेता/अधिकारी/विशेष दल की प्रतिष्ठता को गहरा आघात पहुंचा सकता है। इसे ''स्कूप'' कहा जाता है-जो अपने आप में भनक या झलक मात्र है। संवाददाता को इसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है, क्योंकि इस मामले में तथ्य के बारे में गुप चुप अधिकाधिक जानकारी जुटानी होती है। सावधानी बरतना व प्रमाण जुटाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जरा सी चूक संवाददाता तथा संबंधित अखबार की विश्वसनीयता को गहरा आघात् पहुंचा सकती है। किसी समाचार विशेष पर कार्य, भले ही वह स्कूप से संबंधित हो या सौंपा गया विशेष दायित्व के लिए भी सावधानी का प्रयोग जरूरी है और यह भी ध्याना रखना होगा कि विशेष देरी न लगे तथा इसके भनक प्रतिद्वून्दी संवाददाता व अखबार को न लगे। नहीं तो स्टोरी से वंचित रहा जा सकता है और कोई दूसरा संवाददाता मोर्चा मार सकता है। अत: अंत में यही कहा जा सकता है कि अच्छे संवाददाता का कार्य तलवार की धार पर चलने जैसा जोखिम भरा है-जिसमें प्रतिपल सावधान रहने की जरूरत है। प्रस्तुति:प्रैसवार्ता
समाचार यानि न्यूज क्या है- इसे समझ लेने उपरांत यह बता देना भी जरूरी है कि अखबार के पाठक विभिन्न-विभिन्न वर्गों के होने के साथ-साथ विभिन्न-विभिन्न रूची रखते हैं और यही कारण है कि ज्यादातर समाचार पत्र पाठकों की रूची और आवश्यकताओं को प्राथमिकता देते हैं। क्षेत्रीय अखबारों में, जहां क्षेत्रीय समाचारों की प्राथमिकता दी जाती है, वहीं, जिस स्थान से समाचार पत्र छपता है, वहां के समाचार पत्रों का सदा प्रमुखता मिलती है-भले ही समाचार पत्र स्थानीय, क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर का हो। अंग्रेजी के अखबार अंग्रेजी साहित्य व अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को ज्यादा महत्व देते हैं-जबकि भारतीय भाषाओं के राष्ट्रीय व प्रमुख समाचार पत्र प्राय: उन्हीं अंतर्राष्ट्रीय समाचारों का चयन करते हैं-जो या तो अपने देश से जुड़े हो अथवा समूचे विश्व पर प्रभाव डालते हैं। वर्तमान में आर्थिक गतिविधियों को लगभग सभी समाचार पत्र विशेष स्थान देने लगे हैं-जबकि कई समाचार पत्र आर्थिक व वाणिज्यिक समाचारों के विशेष संस्करण निकाल रहे हैं। पश्चिम में इसका चलन ज्यादा है, क्योंकि भारत में ज्यादातर परिवार एक ही अखबार खरीदते हैं-जबकि पश्चिम में कई-कई समाचार पत्र भी प्रयास करते हैं कि एक से ज्यादा विषयों से संबंधित जानकारी का प्रकाशन किया जा सके। घटनात्मक समाचारों में पांच ''क'' यानि कब, कहां, कैसे, कौन और क्यों को ध्यान में रखने से समाचार सम्पूर्ण और पाठनीय हो जाता है। समाचार में पांच ''क'' के प्रयोग के विपरीत कई समाचार सम्पादकों की राये में तो इन्ट्रों में सूत्र से सूचना होनी चाहिये और फिर उसका विस्तार होना चाहिये। इसके उपरांत पुलिस प्रशासन, सरकारी प्रयास हुई क्षति का विवरण, प्रभावित लोगों को आश्वस्त या सहायता देने की दिशा में, जो भी हुआ हो या करने का इरादा हो, उसकी जानकारी दी जा सकती है। हर संवाददाता को घटना की सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंचने का प्रयास करना चाहिये। यदि सूचना देरी से भी मिले, तो भी जरूर जाकर जाकर आसपास के लोगों या घटना से संबंधित लोगों से विवरण लेना चाहिये, परन्तु संदिग्ध परिस्थितियों वाली घटना में सतर्क रहना चाहिये, क्योंकि फालोअप का चक्कर कई बार महंगा पड़ सकता है। समाचारों के वर्गीकरण से ही उनके विभिन्न रूपों की जानकारी मिल जाती है कि वे किस विषय से जुड़े हुए हैं, यह स्पष्ट हो जाता है, अत: पत्रकार उनकी व्याख्या में न पड़कर सीधे समाचार संकलन पर आ जाते हैं। समाचार कैसे प्राप्त होगा या जुटाया जायेगा। इसकी जानकारी हर संवाददाता के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ उनकी दैनदिंन कार्यक्रम का सबसे बड़ा स्त्रोत है-एक सूचना, दो विज्ञप्ति-बुलेटिन या वक्तव्य, तीन संवाददाता सम्मेलन, चार मैच, प्रतियोगिता, सम्मेलन, न्यायालय, विधानसभा या संसद की रिर्पोटिंग, पांच नियमित अथवा विशेष ब्रीफिंग, छ: अनायास मिला संकेत या स्कूप तथा किसी विशेष समाचार की खोज। समाचार के स्त्रोतों पर ब्यौरेवाह विचार करने से पूर्व हर संवाददाता को ध्यान रखना चाहिये, कि समाचार में न केवल उसकी, अपितु उससे जुड़े अखबार की विश्वसनीयता भी दाव पर लगी रहती है। संवाददाता पाठकों के लिए अखबार के दूत का पर्याय होता है। इसलिए किसी घटना, वक्तव्य, सभा सम्मेलन, आरोप-प्रत्यारोप आदि का समाचार देते समय तथ्य को चैक (जांच) तथा क्रास चैक जरूर करें। समाचार देने में थोड़ी देर भले ही हो जाये, परन्तु जल्दबादी में अधूरी, गलत, अपुष्ट अथवा खंडनीय जानकारी न दें। प्राय: सभी घटनाक्रम व अपराध समाचारों का स्त्रोत सूचना ही होती है-भले ही वह पुलिस बुलेटिन से मिले या किसी अन्य सूत्र से। ऐसे समाचारों को कवर करते समय यह ध्यान रखना चाहिये, कि घटना अभी जारी है। अथवा उसके अवशेष अभी घटनास्थल पर ही हों, तो तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने का प्रयास किया जाना चाहिये। महानगरों में विज्ञप्ति, बुलेटिन अथवा वक्तव्यों की बाढ़ रहती है। विभिन्न-विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, उनके दल, सामाजिक संगठन, उनसे जुड़े वरिष्ठ कार्यकर्ता, कर्मचारी संगठन और उनके नेतागण, प्रमुख बुद्धिजीवी और प्रचारक अपनी नियमित या विशेष गतिविधियों पर अपने वक्तव्य जारी करते हैं। ऐसी सूचनाओं को आकर्षक ढंग देने के लिए इंट्रो जानकारी पूरक हो, तो अच्छा शीर्षक दिया जा सकता है। विज्ञप्ति, वक्तव्य या बुलेटिन में समाचार का जो भी अंश हो समाचार के शुरू में स्पष्ट हो जाये। ऐसा नहीं होना चाहिये कि समाचार का अंश आपके लिखे समाचार में सबसे अंत पर हो-उसी का शीर्षक बनना था और स्थानाभाव के कारण वही प्रमुख अंश कट गये। निस्सन्देह इसके लिए अखबार का संपादक डैस्क भी उत्तरदायी होगा, परन्तु संवाददाता होने के नाते आपको भी यह ज्ञान होना चाहिये कि कई बार समयाभाव में समाचार का पुर्नलेखन संभव नहीं हो पाता। संवाददाता सम्मेलन में समाचार संकलन का यही स्त्रोत ऐसा है-जिसमें संवाददाता के अनुभव, सूझबूझ और अध्ययन की सर्वाधिक परख होती है। जब तक संबंध विषय की पृष्ठभूमि का ज्ञान न हो-तब तक कोई भी संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे व्यक्ति से वांछित व विशेष जानकारी नहीं उगलवा सकता। अनुभव न हो तो प्रश्र पर पूरक प्रश्र का साहस और संबंध व्यक्ति को सही जानकारी देने के लिए विवश नहीं कर सकता। सूझबूझ के न होने पर उसे गलत तथ्य देते हुए या कोई जानकारी छिपाते हुए पकड़ नहीं सकता।
संवाददाता और सावधानियां:
(1) यह जानिये कि संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कौन कर रहा है और उसकी क्या स्थिति है?
(2) संवाददाता सम्मेलन का विषय अथवा मुद्दा क्या है?
(3) यदि यह मुद्दा पहले से ही चल रहा है, तो उसकी पूरी पृष्ठभूमि की जानकारी लेकर सम्मेलन में जायें?
(4) संवाददाता सम्मेलन में संवाददाता विषय से संबंधित कोई भी प्रश्र पूछने को स्वतंत्र है, परन्तु यदि संबंध व्यक्ति स्पष्ट उत्तर देने से इंकार कर देता है-तो बहस नहीं की जानी चाहिये। बेहतर रहेगा कि उस प्रश्र को किसी अन्य प्रश्र में समाहित कर वांद्धित जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की जाये।
(5) शिष्टता और संयम का साथ न छोड़ते हुए भाषा संयम रखें और जरूरत से ज्यादा उंचा भी बन बोला जाये।
(6) विवरण प्राप्त के लिए विषय से संबंध पूरक प्रश्र पूछते समय ध्यान रखें के आपका लक्ष्य संबंध व्यक्ति का चरित्र हनन करना या उसे छोटा दिखना न होकर पाठकों के लिए अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करना ही हो।
(7) संवाददाता सम्मेलन का समाचार बनाते समय इंट्रों में पूरे संवाददाता सम्मेलन का मुख्य स्वर सा मुद्दा उभर की सामने आना चाहिये, क्योंकि इंट्रों ही पाठक को समाचार पढऩे के लिए प्रेरित करेगा। संवाददाता सम्मेलन में उठाये गये मुद्दों का ब्यौरा क्रमानुसार समाचार में दिया जाना चाहिये तथा संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करने वाले का विवरण इंट्रों या फिर दूसरे पैराग्राफ तक आ जाना चाहिये।
(8) समाचार बनाते समय एक ध्यान रखा जाये कि संवाददाता सम्मेलन के आयोजन ने किसी व्यक्ति विशेष, अपने विरोधी दल के नेता अथवा किसी संगठन पर कोई आरोप लगाया हो-तो आयोजन की हैसियत जरूर देखें और जिस पर आरोप लगाया गया है, तो पक्ष लेने का हर संभव प्रयास किया जाये। पक्षपात व बेहूदा आरोप को नजर अंदाज कर दिया जाना चाहिये। यदि नेता बड़ा हो अथवा उसकी मंशा समाज व राष्ट्रहित में हो-तो आरोप-प्रत्यारोप का उल्लेख करते समय सावधान जरूर रहना चाहिये मैच, प्रतियोगिता, सभा सम्मेलन, विधानसभा, संसद व न्यायालय की रिर्पोटिंग करते समय, जो देखा व सुना जाये, उसी को लिखा जाये। किसी बात को विशेष अर्थ देने से परहेज करना चाहिये। विशेष टिप्पणी और अपने कमैन्टस देने की बजाये तथ्यों पर आधारित व सारगर्भित, पक्षपात व दोहराव रहित रिर्पोट को ही प्राथमिकता देनी चाहिये। खेल रिपोर्ट करते समय तथ्यों व आरोपों को चैक व क्रॉस चैक जरूर किया जाये तथा आरोपों का उल्लेख करते समय उन्हीं शब्दों का प्रयोग करें-जो कहे गये हों। किसी विधायक, सांसद व सदन की अवमानना वाली रिर्पोटिंग नहीं की जानी चाहिये। नियमित या विशेष ब्रीफिंग किसी संवाददाता सम्मेलन से कम नहीं होती, अत: इस संदर्भ में ज्यादा से ज्यादा जानकारी एकत्रित करने का प्रयास संवाददाता को करना चाहिये। यदाकदा अनायास ही और कई बार किसी अन्य स्टोरी पर कार्य करते हुए संवाददाता को किसी तथ्य की या मामले की भनक लग जाती है-जिससे समाज में तूफान खड़ा हो सकता है। प्रशासन में बावेला मच सकता है, सरकार हिल सकती है किसी नेता/अधिकारी/विशेष दल की प्रतिष्ठता को गहरा आघात पहुंचा सकता है। इसे ''स्कूप'' कहा जाता है-जो अपने आप में भनक या झलक मात्र है। संवाददाता को इसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है, क्योंकि इस मामले में तथ्य के बारे में गुप चुप अधिकाधिक जानकारी जुटानी होती है। सावधानी बरतना व प्रमाण जुटाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जरा सी चूक संवाददाता तथा संबंधित अखबार की विश्वसनीयता को गहरा आघात् पहुंचा सकती है। किसी समाचार विशेष पर कार्य, भले ही वह स्कूप से संबंधित हो या सौंपा गया विशेष दायित्व के लिए भी सावधानी का प्रयोग जरूरी है और यह भी ध्याना रखना होगा कि विशेष देरी न लगे तथा इसके भनक प्रतिद्वून्दी संवाददाता व अखबार को न लगे। नहीं तो स्टोरी से वंचित रहा जा सकता है और कोई दूसरा संवाददाता मोर्चा मार सकता है। अत: अंत में यही कहा जा सकता है कि अच्छे संवाददाता का कार्य तलवार की धार पर चलने जैसा जोखिम भरा है-जिसमें प्रतिपल सावधान रहने की जरूरत है। प्रस्तुति:प्रैसवार्ता
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