पत्रकारिता क्षेत्र में एक लम्बे समय से कार्यरत तथा वर्तमान में प्रैसवार्ता (रजि.) न्यूज प्लॅस (रजि.) न्यूज एजेंसीज तथा हिन्दी त्रै-साप्ताहिक ''सिटीकिंग'' के ग्रुप एडीटर चन्द्र मोहन ग्रोवर चाहते हैं कि पत्रकार लोगों को गुमराह होने से बचायें, क्योंकि यदि किसी पत्रकार ने अपने आपको जीवंत बनाये रखना है, तो उसे प्रलोभनों से बचते हुए व समाचार को गंभीरता से लेते हुए अपना लेखन निरंतर जारी रखना चाहिये। वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में हर रोज हो रहे घोटालों के पर्दाफाश होने से समाज में निराशावादी दृष्टिकोण पनपा है, कि सभी नेता अवसरवादी हैं। इसी सोच के चलते ईमानदार नेता भी मारा जा रहा है। श्री ग्रोवर के मुताबिक ऐसे समय में पत्रकारों व पत्रकारिता का दायित्व बनता है कि वह लोगों को गुमराह होने से बचायें। पत्रकारिता के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए श्री ग्रोवर का कहना है कि आजादी के समय देश के नेताओं का कद बहुत ऊंचा था और उस समय नेताओं में कमजोरी होते हुए भी पत्रकार उन पर उंगली नहीं डालते थे, क्योंकि उस समय पत्रकार स्वयश्ं को नेताओं के मुकाबले में बौना महसूस करते थे, परन्तु अब स्थिति बदली हुई है। वर्तमान में नेताओं का कद कम तथा पत्रकारों का कद बढ़ा है। यह कटु सत्य है कि ऐसी स्थिति के लिए राजनेता ही उत्तरदायी है। पत्रकार ग्रोवर कहते हैं कि इस सत्य की अनदेखी नहीं की जा सकती, कि समाज की राय बदलने में अखबार अहम् भूमिका निभाते हैं, परन्तु अखबारों को भी लिखने से पूर्व सतर्क रहना चाहिये, क्योंकि अखबार शब्दों से खेलते हैं। अखबारी गलती या लापरवाही से लिखा गया छोटा सा शब्द भी किसी को ठेस पहुंचा सकता है। ग्रामीण समाचार पत्रों की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री ग्रोवर कहते हैं कि कस्बाई अखबारों को बड़े अखबारों की नकल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह नकल घातक साबित हो सकती है। राष्ट्रीय स्तर के कई अखबार दूरदर्शन से प्रभावित हुए हैं, जबकि कस्बाई अखबारों की पाठक संख्या बढ़ी है। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया, जिस तीव्र गति से बढ़ा है, उससे लगता है कि हर आदमी का विचार और नजरिया सिकुड़ता जा रहा है। यह भी एक विडम्बना है कि जैसे-जैसे दुनिया सिकुड़ती जा रही है, वैसे ही आदमी की अपने आसपास के माहौल में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में कस्बाई अखबारों का महत्व बढ़ गया है, क्योंकि वही पाठकों की आशाओं पर खरा उतर सकते हैं। पत्रकार ग्रोवर कहते हैं कि यह इस देश का दुर्भाय है कि कुछ अखबार तथा उनके प्रतिनिधि लक्ष्मण रेखा से आगे नहीं जा सकते। दूसरों की पगड़ी उछालने वाले स्वार्थी अखबारों व पत्रकारों को पाठक जल्दी ही नकार देते हैं। पत्रकारों की जिम्मेवारी है कि वे समाज में रहकर, उस समाज की सेवा करें, जिस समाज की बदौलत अखबार चलता है। -प्रस्तुति प्रैसवार्ता (रजि.)
Saturday, January 9, 2010
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