हमारे समाज में सामान्य रूप से एक ही जीवनसाथी और एक ही विवाह के प्रावधान है। ये नियम और कानून समाज में मर्यादा बनाए रखने के उद्देश्य से बनाए गए है, जो बेहद जरूरी भी है। हमारे यहां विवाह एक पवित्र स्थायी संस्था है, जो जीवन भर चलती रहे, यही इच्छा रहती है। विवाह में सेक्स बुनियाद आवश्यकता भी माना जाता है। यहां यह सुखद आनंद का पर्याप्य भी है। आनंद की तृप्ति के उद्देश्य से विवाह ही जीवन की प्राथमिकता आवश्यकता माना गया है। वैवाहिक यौन संबंध हमारे देश में सम्मान की दृष्टि से महसूस किए जाते हैं, जबकि गैर वैवाहिक यौन संबंध अवैध और अनेतिक समझे जाते हैं। विवाह के पश्चात कुद बेहद आनंदायक और सुखद होते हैं, पर सामान्य गति से एक रास्ता लिए चलने वाले जीवन में रोमांच कम हो जाता है। पारिवारिक जवाबदारियां बढने लगती हैं और एक बासीपन समा जाता है। साथ चलने के बावजूद पति-पत्नी में कशिश और चाहत कम और खीझ एवं झल्लाहट ज्यादा आने लगती है। इस तरह का बेरूखा जीवन नीरसता पैदा करता है। शर्मीला का कहना है, कि दिन भर बच्चों सक चक चक के घर के थका देने वाले काम और पति का इंतजार फिर वही उबाऊ संबंध बेहद बोझिल, बेकार और बेमानी लगते थे। मैं जीवन में बदलाव चाहती थी। हमारे संबंधों में उष्णता कम और ठंडापन ज्यादा आ गया था, फिर हमने स्वेच्छा से कुछ दिन अलग रहना चाहा। मैं कुछ दिन के लिए बच्चों के साथ अपनी सास के पास ससुराल रहने चली गई। वहां दिनचर्या बदल गई थी। सारा दिन हम सास बहू यहां वहां की बातें करते, रिश्तेदारों के घर-व्यवहार निभाने जाते, नए-नए व्यंजन सीखते बनाते, हंसना, खेलना पिकनिक मेरे जीवन में फिर बदलाव आ गया। पंद्रह दिन कब कहा बीत गए, पता ही नहीं चला। जब पति लेने आए तो सास ने मेरी बढ़-चढ़ कर प्रशंसा की, मेरे गुणों का जोर देखकर ब्खान किया। बस फिर क्या था पति के साथ घर पहुंचते ही प्यार फिर परवान चढा और एक दूसरे को पाने की चाहत बेतहाश बलवती हुई रश्मि अपने जीवन के बासीपन से परेशान थी, न कोई चहलबाजी, ना रोमांस, बोर उबाउ संबंध कब तक साथ देते। इसलिए पति-पत्नी बच्चों को नानी के पास छोड़कर (हनीमून) की याद ताजा करने के लिए शिमला चले गए। साथ-साथ घूमना, रेस्तरा के स्वाद, एक दूसरे के लिए शॉपिंग करने में बड़ा मजा आने लगा और नवविवाहितों की तरह एक दूसरे को प्यार करने लगे, जब घर आए तो बदलाव ने तरोताजा कर दिया था। दाम्पत्य में ऐसी स्थिति सबके साथ आती है। चलते फिरते प्यार भरी नजरों से निहारना, एक दूसरे का क्षण भर का स्पर्श, मात्र भी नयापन देता है, उतेजना लाता है। -उषा भार्गव (प्रैसवार्ता)
Tuesday, November 17, 2009
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