दुनियां में भांति-भांति के रंग बिरंगे और खूबसूरत पक्षी हैं, लेकिन कई पक्षी ऐसे भी रहे हैं, जिन्हें हम अब केवल किताबों में ही देख सकते है, क्योंकि स्वार्थी मनुश्य की वजह से वे हमेषा के लिए इस दुनिया से विलुप्त हो गये हैं। प्राणीषास्त्री विलुप्त पक्षियों की श्रेणी में डोडो, माओ, राक जैसे पक्षियों को शमिल करते हैं। इन पक्षियों के विशय में वैज्ञानिकों द्वारा दी गयी जानकारियों का ब्यौरा बड़ा ही रोचक है। डोडो मारीषस में पायी जाने वाली एक भोली भाली और भारी भरकम चिडिया थी। सन् 1507 में जब पुर्तगाली इस द्वीप पर पहुंचे, तो उन्होनें इसका नाम डोडो रखा वास्तव में डोडो एक पुर्तगाली षब्द है, जिसका अर्थ होता है मूर्ख। अपने नाम के अनुरूप डोडो व्यवहार करती थी। वह षत्रुओं से अपना बचाव नहीं कर पाती थी। मूर्ख और स्वभाव से आलसी इस पक्षी का पुर्तगाली आसानी से षिकार कर लेते थे। इसलिए पुर्तगालियों के मनपंसद व्यंजनों में डोडो का मांस मुख्य था। डोडो एक बड़े मुर्गे के आकार का पक्षी था, जिसका एक नहीं कई दुम होती थी। रंग बिरंगे डोडो जब झुंड बनाकर लुढ़कते गिरते चलते थे, तो लोग उन्हें देखकर खूब हंसते थे। कुछ प्राणीषास्त्रीयों का मानना है कि पहले डोडो पक्षी भी उडना जानते रहे होंगे। किंतु कुछ परिस्थितिजन्य कारणों से वे षायद उडऩा भूल गये हैं। उनका आलसी स्वभाव और उडन षक्ति का अभाव ही उनके लिए विनाष का कारण बन गया, क्योंकि इन कारणों से वे आसानी से कुत्ते बिल्लियों के हाथ लग जाते थे। इस तरह 1640 तक डोडो पूरी तरह विलुप्त हो गये। 1638 को इसे आखिरी बार लंदन में देखा गया था, इसके बाद यह जीता जागता पक्षी इतिहास बन गया। विलुप्त होने वाले दूसरे पक्षियों में मोआ भी एक है। मोआ पक्षी पहले न्यूजीलैंड की हरी भरी धरती पर बसते थे। सोलहवीं षताब्दी में जब मनुश्य के कदम इस धरती पर पड़े तो इन पक्षियों पर आफत आ पड़ी। मोआ कुछ-कुछ मौजूद षतुरमुर्ग और एमु से मिलते जुलते थे। मोआ अपने विषाल आकार के कारण अपनी मजबूत टांगों के बल पर काफी तेज गति से भाग सकते थे। पक्षियों में आपसी भाईचारे की भावना भी थी। तीसरी विलुप्त प्रजाति मेडागास्कर का राक पक्षी था, जिसकी ऊँचाई 12 फीट तक होती थी। ये पक्षी मेडागास्कर द्वीप के पक्षीराज कहलाते थे। राक पक्षी को मेडागास्कर वासी इसे हाथी पक्षी भी कहते थे। सुप्रसिद्ध मार्को पोलो ने इस पक्षी को मनुश्य के दुगने कद का बताया है। मेडागास्कर की लोककथाओं में इस पक्षी का काफी वर्णन है। कथाओं के अनुसार पहले ये हाथी पक्षी उड़ते थे। यहां के निवासी इन्हें षैतान की आत्मा मानते थे और इनकी पूजा करते थे। लेकिन मार्को पोलो के अनुसार यह पक्षी उडने में असमर्थ थे। माना जाता है कि इस पक्षी का एक अंडा एक फीट तक लंबा होता था और उसमें दो गैलन तक पानी आ सकता था, यह प्रकृति की एक अद्धभुत रचना थी। मोआ, डोडा और राक तीनों पक्षी मनुश्य के क्रूर अत्याचारों की वजह से इस पष्थ्वी से विलुप्त हो गये इन तीनों पक्षियों का आकार प्रकार के कारण प्रकष्ति में विषिश्ट स्थान था। हालांकि पक्षियों को कई और भी प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और कई खत्म होने के कगार पर हैं। दुनिया में भांति-भांति के रंग बिरंगे और खूबसूरत पक्षी हैं, लेकिन कई पक्षी ऐसे भी रहे हैं, जिन्हें हम अब केवल किताबों में ही देख सकते हैं क्योंकि स्वार्थी मनुश्य की वजह से वे हमेषा के लिए इस दुनिया से विलुप्त हो गये हैं। प्राणीषास्त्री के विशय में वैज्ञानिकों द्वारा दी गयी जानकारियों का ब्यौरा बड़ा ही रोचक है। - चन्द्र मोहन ग्रोवर (प्रैसवार्ता)
Thursday, November 26, 2009
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