सुमात्रा में किसी शिल्पी ने एक ऐसे कुएं का निर्माण किया है, जिसमें झांकने से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कोई पानी के बीच बैठा है और उसके बीच वह स्वयं झांक रहा है। कुएं की सतह पर असंख्य व्यक्ति गये और उन्हें ऐसा आभासा होने लगा, जैसे ऊपर की ओर कोई बैठा है और उसके अंदर वह स्वयं है। शिल्पी को संसार से विदा हुए हजारों वर्ष बीत गये, पर उसकी कलाकृति आज तक अक्षुण है और वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बनी हुई है। बुखारा में एक शिल्पी ने एक भवन का प्रवेश-द्वार इस ढंग से बनाया है कि जब कोई उसमें प्रवेश करता है, तो उसे ऐसा जान पड़ता है कि भवन उस पर गिर रहा है। घबराकर अपनी सुरक्षा के लिए वह पीछे हटता और गिर पड़ता है। मगर उसे चोट इसलिए नहीं लगती, क्योंकि शिल्पी ने दीवार में मोटे-मोटे गद्दे लगा रखे हैं। फिलाडेलफिया में किसी शिल्पी ने एक ऐसे सरोवर का निर्माण किया है कि यदि कोई चीज उसकी तली में रख दी जाए, तो वह पक जाती है। आश्चर्य की बात यह है कि उसका वातावरण ठंडा ही रहता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि संभवत: उसमें किसी प्रकार का पत्थर सतह में लगाया गया है, जिससे पानी तो ठंडा रहता है, मगर सतह अग्रि की तरह तपती रहती है। -विक्रम कुण्डू 'प्रबोध' (प्रैसवार्ता)
Wednesday, November 18, 2009
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