यह वर्ष 1947 का जिक्र है-जब फिल्म जगत में नूरजहां और शमशाद बेगम की तूती बोलती थी और लता मंगेशकर के उस समय पैर नहीं जमे थे। ऐसे अवसर पर एक गायिका गीता राये ने फिल्म जगत में प्रवेश लिया। उसने फिल्मीस्तान की पहली फिल्मी दो भाई की नायिका कामनी कौशल के लिए गाए गीत हमें छोड़ दिया, किस देश गये, पिया लौट के आना भूल गये, ने सारे देश में धूम मचा दी थी। इस गीत के निर्देशन सचिव देव बर्मन थे। इस फिल्म में गीता राये ने तीन ओर गीत गाये थे-जो बेहद लोकप्रिय थे। वह थे ''मेरा सुन्दर सपना बीता गया, मैं प्रेम में सब कुछ हार गई, बेदर्द जमाना गीत गया, मेरे पिया गये परदेस, बसंत रूत क्यों आई और याद करोगे, इक दिन हमको याद करोगे। इन्हीं दिनो में गीता राये ने फिल्म ''दिल की रानी'' में मधुबाला के लिए दो यादगारी गीत गाए। यह दोनों गीत क्यों बालम हमसे रूठ गए और बिगड़ी हुई तकदीर मेरी आके बना दे हिट हुए। गीता राये को इन गीतों के उपरांत काफी प्रसिद्धि मिली और उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1951 में फिल्म बाजी का संगीत निर्देशन करते समय सचिन बर्मन ने कहा था, कि उसे गीता राये के अतिरिक्त किसी गीतकार की जरूरत नहीं ''बाजी'' के लिए गीता राये ने एक बहुत सुंदर यादगारी गीत गाया था, वह था तदबीर से बिड़ी कोई तकदीर बना लें। इस फिल्म का निर्देशन गुरूदत्त ने किया था। इसी फिल्म के दौरान गीता राये और गुरूदत्त की पहचान हुई। जो बाद में शादी में तबदील हो गई। अब गीता राये गीता दत्त बन गई। 1957 में गुरूदत्त ने ''प्यासा'' फिल्म बनाई। गीता दत्त ने सचिन दा संगीत निर्देशन में एक बहुत प्यारा गीत आज सजन मोहे अंग लगा ले, जन्म सफल हो जायेगा। प्यासा का एक और गीत भी काफी लोकप्रिय हुआ था। 1959 में गुरूदत्त ने कागज के फूल फिल्म बनाई। जिसमें गीता दत्त ने वक्त ने क्या हंसी सितम गीत गाया। इस फिल्म के बाद गुरूदत्त व गीतादत्त में अनबन शुरू हो गई। क्योंकि गीतादत्त वहीदा रहमान को पसंद नहीं थी और वहीदा रहमान गुरूदत्त की चहेती नायिका थी। यह भी सत्य ही कहा जा सकता है, कि गुरूदत्त और गीता प्रेम बंधन में तो बध गए, पर उनकी निभ न सकी। गीता बचपन से ही अपने परिवार की आय का सहारा थी और शादी उपरांत भी उसे काफी काम करना पड़ता था। जहां गुरूदत्त अपना कैरियर बनाना चाहते थे, उसे गीतादत्त की जरूरत थी, क्योंकि उस वक्त उसकी तूती बोलती थी। गुरूदत्त, जहां सुखी व संवेदनशील था, वही गीतादत्त गजब की चुलबुली और मिलनसार थी। गीता दत्त ने बहुत कुछ बर्दाशत किया, परन्तु वहीदा रहमान को लेकर घर में उठा तूफान रूक न सका। घर स्वर्ग को नर्क बन गया। घर स्वर्ग से नर्क बन गया-जो गुरूदत्त व गीतादत्त को ले डूबा। दोनों का कैरियर समय से पूर्व समाप्त हो गया। 10 अक्तूबर 1964 को गुरूदत्त का निधन हो गया। गुरूदत्त के निधन से गीता दत्त टूट गई और बहुत कम गा सकी। सचिन दा बर्मन गीता दत्त से कुछ गीत गवाना चाहते थे, पर सफल न हुए। गीतादत्त भी 20 जुलाई 1972 को इस संसार को अलविदा कह गई। 25 वर्षों में गीतादत्त ने कम गाया, मगर जो भी गाया, एक याद बनकर रह गई। आज गीता दत्त की मौत हुए 35 वर्ष हो गए हैं, परन्तु वह अपने गीतों के कारण आज भी लोगों के दिलों में एक याद बनी हुई है। उसकी आवाज में एक खींच, एक दर्द था, जो आजकल के गीतों में नहीं मिलता।-सुभाष बांसल (प्रैसवार्ता
Monday, November 16, 2009
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