नई दिल्ली (प्रैसवार्ता) आज हम दिल्ली स्थित भवन को 'राष्ट्रपति भवन' के नाम से पुकारते हैं। वहीं भवन अंग्रेजों के जमाने में वायसराय हाउस के नाम से जाना जाता था। यह भवन 1914 में बनकर तैयार हुआ था और इसे बनाने में पूरे 15 वर्ष लगे थे, इस भवन पर उन दिनों तक एक करोड़ 45 लाख रुपए खर्च हुए थे, इस भवन में 340 कमरे हैं, तीन बड़े हाल, इनसे अलग है। उनके नाम है दरबार हाल, अशोक हाल और बैक्वैन्अ हाल सभी प्रमुख समारोह दरबार हाल में आयोजित किये जाते हैं। बैक्वैंट हाल में मेहमानों के भोजन की व्यवस्था की जाती है। अशोक हाल में शपथ समारोह तथा अन्य कार्यक्रम होते हैं। राष्ट्रपति भवन के निर्माण में उस समय 7600 टन सीमेंट 14 लाख 50 हजार घनफुट लाल पत्थर और एक करोड़ 66 लाख ईंटें लगी थी। इसकी निर्माण सामग्री देश के विभिन्न भागों से लाई गयी थी। लाल पत्थर और सफेद पत्थर धोलपुर से सफेद पत्थर संगमरमर जोधपुर से, काला संगमरमर पटियाला से पीला संगमरमर जैसलमेर से और हरा संगमरमर बड़ौदा से मंगवाया था। केवल चाकलेटी संगमरमर विदेश से मंगवाया था। फर्नीचर के लिए सागोन, शीशम, चंदन और देवदार आदि लकडिय़ां भी कशमीर तथा देश के अन्य भागों से मंगवाई थी। इस प्रकार यदि चाकलेटी संगमरमर को छोड़ दे, तो यह भवन पूर्णत: स्वदेशी वस्तुओं से बना है। राष्ट्रपति भवन का एक मुख्य आकर्षण है, मुगल गार्डन। यह बाग कशमीर के शालीमार बाग की नकल पर लेडी हार्डिंग के जैसी है। कुछ कारे केवल विदेशी मेहमानों के लिये है। भवन में एक विभाग घोड़ों का भी है। जिससे अनेक प्रकार के घोड़े है। स्वदेशी के कट्टर समर्थक और सादगी के प्रतीक तथा देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेनद्र प्रसाद ने इस भवन की अंग्रेजीयत को काफी कम करके इसे स्वदेशी स्वरूप देने का प्रयत्न किया था, फिर भी यह भवन अंग्रेजीयत के रंग से अब तक भी पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है।
Tuesday, November 17, 2009
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