कपड़ों की दुनियां की शान बटन का पहली बार प्रयोग 13वीं शताब्दी में किया था, जबकि उससे पूर्व कपड़ों को आवश्यकता अनुसार किसी चीज में लपेटकर गाऊन की तरह बांधा जाता था। शुरूआत में बटन का प्रयोग अमीर और राजघराने से संबंध रखने वाले लोगों ने किया, क्योंकि उस समय बटन सोने-चांदी या हीरे-जवाहरात से बने होते थे। बताया गया है कि महारानी एलिजाबेथ को बटनों का इतना शौंक था कि वे अपने सोने के गहनों को पिघलाकर बटन बनवा लिया करती थी। स्काटलैंड की रानी मैरी के पास हीरे जवाहरात जड़े 400 बटन थे, जिनके बीचों बीच एक-2 लाल जड़ा हुआ था। डयूक ऑफ बरमिंघम के बटन हीरों के होते थे, जो कपड़ों में इस तरह टंके होते थे, कि बार-2 टूटकर गिर जाया करते थे। फ्रांस के सम्राट लुई चैदहवें ने, तो छह बटनों के सैट की कीमत पौने चार लाख चुकायी थी। धागे के बटन की शुरूआत 1700 से हुई, जबकि 1840 में कठोर रबड़ से बटन बनने लगे, जो अलग अलग प्रकार के होते थे और कई बार इनमें षीषे का प्रयोग भी किया जाता था। 19वीं शताब्दी में बिजली से चलने वाली मषीने बन गई और पीतल के साथ-2 प्लास्टिक, मोती, चमड़े, लकड़ी, सीप आदि के बटन बनाये जाने लगे। यह भी आ श्चर्यजनक है कि डाक टिकटों की तरह कुछ लोगों को बटन इका करने का शौक होता है, जो अमेरिका में काफी लोकप्रिय है, जहां कई शौकीन एक-2 बटन को हासिल करने के लिए लाखों रूपये तक खर्च कर देते हैं। -मनमोहित, प्रैसवार्ता
Thursday, November 26, 2009
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