चक्रवती का नाम आज लोग भूल गये हैं। बंगाल में पैदा हुए गणपति जादूगरों के जादूगर थे। इस देश में आधुनिक जादूगरी कला के वह सूत्रधार थे। अंतराष्ट्रीय ख्यातिसंपन्न जादूगर पी.सी. सरकार को जादूगरों का जादूगर कहा जाता है। गणपति चक्रवती उनके गुरू थे। श्रीरामपुर के चापरा के एक जमींदार परिवार में उनका जन्म हुआ था। उनका मन बचपन में पढ़ाई की अपेक्षा गाने-बजाने में ज्यादा लगता। एक दिन पिता की लांछना से तंग आकर गणपति ने घर छोड़ दिया। उस वक्त वह अठारह साल के थे। उन दिनों वह भटकते हुए तरह-तरह के लोगों के संपर्क में आये। साधू संतों से लेकर जादूगरों तक के साथ रहे। जादूगरी कला ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया। वह इस कला को सीखने लगे और अपने समय के विख्यात प्रोफेसर बोस के सर्कस में बतौर जादूगर शामिल हो गये। धीरे-धीरे वह इतने लोकप्रिय हो गये कि सर्कस में उनका इंद्रजाल देखने के लिए लोगों की भीड़ आने लगी। उनका एक खेल इल्यूजन बॉक्स लोगों को हैरत में डाल देता। इस खेल में उनके हाथ पैर बांधकर, उन्हें एक थैले में बंद कर दिया जाता था। थैले का मुंह बंद कर दिया जाता था। थैले का मुंह बांधकर उस थैले को एक बॉक्स में रखकर उसे भी बंद कर दिया जाता था। बक्से के आगे एक काला पर्दा टांग दिया जाता। उसके बाद गणपति चक्रवती का जादुई खेल शुरू होता। दर्शक सांस रोक कर उसे देखते। खेल खत्म होने के बाद दर्शक पाते कि जादूगर पहले की तरह ही थैले में बंद हैं। नब्बे साल पहले अपने इस इंद्रजाल के बूते पर 300 रुपये महीना व कमाते थे। सर्कस में काम करते समय ही उनका प्रेम उसी सर्कस में झूले का खेल दिखाने वाली कलाकार हिंगनबाला देवी, जिनका असली नाम हरिमति दासी था, से हुआ। हालांकि दोनों की शादी नहीं हुई, पर दोनों ने एक दूसरे का साथ जीवन भर निभाया। गणपति चक्रवर्ती ने जब सर्कस छोड़कर खुद अपनी जादू मंडली गठित की, हिंगन देवी भी सर्कस छोड़कर उनके साथ आ गयी। गणपति चक्रवती की सफलता के पीछे उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। गणपति चक्रवती अभिनय और संगीत कला में भी निपुण थे। इनका उपयोग वह अपने प्रदर्शन में करते थे। गणपति चक्रवती तंत्र विद्या में भी माहिर थे। उन्होंने अपना काफी समय तांत्रिकों से इस विद्या को सीखने में लगाया था। वह मानव मन के गहन जानकर थे। वह दर्शकों के मनोविज्ञान को समझते थे और वह अपने खेल में इसी का इस्तेमाल करते थे। अभिनय, संगीत और स्टेजक्राफ्ट गणपति के इंद्रजाल की विशेषताएं थी, जिन्हें उनके योग्य शिष्य पी.सी. सरकार के नाम और काम का फायदा उठाकर उनकी वृद्धावस्था में एक नकलची जादूगर गणपति ने अपना इंद्रजाल दिखाना शुरू किया, उसका स्तर बहुत खराब था। फलत: जनता में गणपति की बदनामी होने लगी। ऐसे समय में पी.सी. सरकार ने उस छद्म जादूगर की कलई खोली। बेचारा जादूगर जादू का प्रदर्शन छोड़कर सन्यासी बन गया। 20 नवंबर 1939 को 92 वर्ष की उम्र में गणपति चक्रवती को दिल का दौरा पड़ा। वह उसी हालत में किसी तरह अपने द्वारा स्थापित किये गये मंदिर में पहुंचे और कृष्ण की मूर्ति से लिपट गये। उस नीरदबरन के चरणों में ही उन्होंने अंतिम सांस ली। गणपति चक्रवती ने जादू का खेल दिखाकर जितना धन कमाया था, उतना धन आज भी अधिकांश जादूगर के लिए सपना है। -प्रैसवार्ता
Friday, November 13, 2009
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