जयपुर (प्रैसवार्ता) शरीर को चुस्त दुरस्त रखने के लिए खूब पानी पीने की बात जमानों से कही जाती है। हमारे यहां आसानी से उपलब्ध (अमेरिका जैसे देशों में एक बोतल पेयजल 150 से 200 रुपये तक में मिलता है। ) यह करिश्माई द्रव्य सेहत को सुधारने में मदद करता है, लेकिन इसके लिए पानी का स्वच्छ और शुद्ध होना भी आवश्यक है। जापान की सिकनेस एसोसिएशन द्वारा इस बात की पुष्टि की गई है कि यदि सही ढ़ंग से पानी का प्रयोग किया जाएं तो कई नई पुरानी बीमारियां दूर हो सकती हैं। वहीं यदि स्वस्थ व्यक्ति यह प्रयोग करता रहे, तो अपने स्वास्थ्य को कायम रख सकता है। इसके लिए तांबे के चौड़े मुंह वाले पात्र की आवश्यकता होती है। जिसे रोजाना मिट्टी से रगड़कर अंदर से साफ किया जाता रहे। शाम को तांबे के इस पात्र में स्वच्छ जल भरकर ढ़ककर रख दें। इस जल में चार या पांच उपयोग तुलसी के पत्ते डालने से यह जल और भी स्वच्छ उपयोगी हो जाता है। प्रातकाल:सूर्योदय से पहले इस बासी पानी को नित्य प्रति बासी मुंह, बिना कुल्ला किए धीरे-धीरे पिये। एक साथ यह जल न पिया जा सके, तो प्रारम्भ में दो गिलास से शुरू करें, फिर धीरे-धीरे बढ़ाते हुए चार गिलास तक कर दें। जल पीने के बाद सौ कदम टहलकर फिर शौच जाएं। इससे कब्ज दूर होकर शौच खुलकर आने लगेगा। इस प्रकार पानी पीने वाला व्यक्ति मलशुद्धि के साथ-साथ बवासीर, उदर रोग, यकृत प्लीहा के रोग, कुष्ठ रोग, सिरदर्द, नेत्र विकार, वात पित्त, कफ से होने वाले अनेकानेक रोगों से मुक्त रहता है। बुढ़ापा उसके पास नहीं फटकता और वह शतायु होता है। उसकी नेत्र ज्योति भी तीव्र हो जाती है। केश असमय सफेद नहीं होते और व्यक्ति सम्पूर्ण रोगों से मुक्त रहता है। सर्दियों में पानी अगर ज्यादा ठंडा है तो उसे गुनगुना करके पिया जा सकता है। सूर्योदय से पूर्व पिया गया यह पानी मां के दूध के सामान गुणकारी माना गया है। प्रारम्भ में तीन-दिन तक पानी पीने के बाद बार मूत्र हो सकता है और कुछ व्यक्तियों को लूज मोशन भी हो सकते हैं। इंडियन हैल्थ एसोसिएशन के अनुसार यह विज्ञान पर आधारित पद्धति है। इतना पानी एक साथ पीने से आंते स्वच्छ व क्रियाशील बनती है और नया ताजा खून बनाने में सहायता करती है। खाली पेट पिया गया यह पानी पूरे शरीर में रक्त में पायें जाने वाले विजातीय तत्वों को गुर्दों में छानकर मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकाल देता है। चौबीस घंटे में एक बार इस प्रकार की सफाई स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। जापानी सिकनेस एसोसिएयशन ने पानी के इस प्रयोग को वैज्ञानिक रूप में देकर भारतीय ऋषियों की अनुपम खोज के रूप में बताया है। अनुभवों व परीक्षणें से यह निष्कर्ष निकलता है कि इस प्रयोग से विभिन्न बीमारियों गिनती के दिनों में दूर हो सकता है। जैसे उच्च रक्त-चाप और मधुमेह एक मास में, पाचन क्रिया और पेट के रोग जैसे कब्ज आदि दस दिन में, कैंसर के रोगी छह मास में और फेफड़ों की टी.वी के रोगी तीन मास में लाभ प्राप्त कर सकते हैं। रोग मुक्ति के बाद भी इसका प्रयोग जारी रखा जा सकता है। उपरोक्त पानी का प्रयोग रोगी और स्वस्थ दोनों कर सकते हैं, लेकिन इस प्रयोग के करने वालों को कुछ जरूरी बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। 1. पानी पीने के बाद एक घंटे तक कुछ भी न पिए। पानी पीने के बाद मुंह धो सकते हैं। कुल्ला कर सकते हैं व मंजन कर सकते हैं। ठंडे पेय, मैदा और वेसन की बनी चीजें, तले हुए खाद्य पदार्थ, तेज मिर्च-मसालों और मिठाइयों से परहेज किया जाए। 3. फल और हरी सब्जियों पर जोर दिया जाए। चाय, कॉफी, आइसक्रीम, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, शराब तथा अन्य नशीली चीजों से दूर ही रहे। रात्रि को सोने से पूर्व कुछ भी नहीं खाना चाहिए। 4. पानी यदि अशुद्ध हो तो उसे रात में उबाल कर छानकर रख लेना चाहिए और प्रात: उस पानी को ही प्रयोग में लाना चाहिए।
Tuesday, November 17, 2009
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