दुनिया के कुछ जीवों में मौजूद खूबियां चिकित्सकों के लिए वरदान साबित हो रही है। दरअसल हम, जिन्हें खूबियां कह रहे हैं, वे खामियां है। उदाहरण के तौर पर आर्माडिलों नामक प्राणी मनुष्य के अलावा एकमात्र ऐसा जीवन है, जिसे कुष्ठ रोग सताता है। जंगल में रहने वाले पांच में से एक आर्माडिलों में एक कुष्ठ रोग के जीवाणु पहले पनपते देखे गए हैं। इस रोमांचारी तथ्य के जीवाणुओं की कमी कभी नहीं रहती। प्रयोग के लिए आर्माडिलो की देह में कुष्ठ रोग के जीवाणुओं को प्रवेश करा दिया जाता है। यहां के जीवाणु बड़ी तेजी से बढ़ते पनपते हैं। लगभग एक वर्ष के भीतर ही आर्माडिलो सुस्त पडऩे लगते हैं। इसके जिगर करके वैज्ञानिक इन पर भांति-भांति की दवाओं और टीकों का असर देखते हैं। इन्हीं की मदद से वे टीके भी बनाए गए हैं, जिनका भारत समेत दुनिया के कई देशों में लाखों लोगों पर परीक्षण हो रहा है। जापान के कुछ सफेद खरगोशों में एक ऐसे जीन की पहचान की गई है, जो उनकी देह में खतरनाक कोलेस्ट्राल की मात्रा तीन सात गुनी ज्यादा होती है। ये बच्चे किशोरावस्था में पहुंचने से पहले ही दिल के दौरे का शिकार होकर चल बसते हैं। असाध्य समझे जाने वाले इस दुर्लभ रोग की भलीभांति समझने और इसका ईलाज ढूंढने में ये खरगोश वैज्ञानिकों की भारी मदद कर रहे हैं। समुद्र में रहने वाली एक भारी-भरकम मछली मधुमेह का इलाज खोजने वाले वैज्ञानिकों की सहायता कर रही है। कोई सत्तर पोंड वजन वाली इस मछली को माकफिश के नाम से जाना जाता है। इसकी देह में आइलेट आफ लैगर हैंस नामक विशेष कोशिश समूहों की संख्या में असाधारण रूप से ज्यादा होती है। इसका काम कुछ खास हार्मोन भी शामिल है। जिसकी कमी यही रोग मधुमेह के नाम से जाना जाता है। मनुष्य समेत लगभग सभी स्तनधारी प्राणियों में ये विशेष कोशिकाएं काफी कम संख्या में अग्रन्याशय में मौजूद रहती है। परन्तु माकफिश में ये पेट के भीतरी ऊतकों से चिपकी रहती है और इनकी संख्या बीस से चालीस गुना ज्यादा होती है। माकफिश से इन कोशिकाओं को भारी संख्या में प्राप्त करके वैज्ञानिक मधुमेह के राज खोलने की कोशिश कर रहे हैं। मैक्सिकन सैलामेंडर नामक एक दस इंची जीव हमारे दिल की गुत्थियां सुलझाने की कोशिश कर रहा है। वैज्ञानिकों को यह जानकर बड़ा अचरज हुआ कि यदि सैलामेंडर के भ्रूण के पनपते दिल की कोशिकाएं अलग करके परखनली में नमक के घोल में डाल दी जाएं और इसमें कुछ खास वृद्धिकारक रसायन मिलाएं जाएं तो कोशिकाओं की बढ़वार तथा बंटवारा सामान्य रूप में परखनली में ही होने लगता है। कुछ ही दिनों में परखनली में भरा-भूरा दिल धड़कने लगता है। पर इसके विपरीत मनुष्य में दिल का दौरा पडऩे पर जो कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, वे दोबारा नहीं पनपती। यही वजह है, कि दिल का दौरा पडऩे पर अकसर रोगी की मृत्यु हो जाती है। वैज्ञानिक विविध प्रयोगों द्वारा सैलामेंडर के दिल की कोशिकाओं का राज जानने में जुटे हैं जो इन्हें नया जीवन प्रदान करता है। यदि यह राज खुला तो दिल के दौरे से मरने वालों की तादाद काफी घट जाएगी। वुडचक नामक साही जैसे छोटी जीव के जरिए वैज्ञानिक जिगर के कैंसर के राज जानने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल देखा गया है, कि जो लोग हेपेटाइटिस बी वायरस (पीलिया उत्पन्न करने वाला) का संक्रमण अधिक दिनों तक मौजूद रहता है, उनसे जिगर का कैंसर पनपने की संभावना बहुत प्रबल होती है। वुडचक में भी ठीक ऐसा ही होता है। हेपेटाइटिरा बी वायरस से संक्रमित वुडचक चार पांच साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते जिगर के कैंसर से ग्रस्त हो जाते हैं। वैज्ञानिक इनके जिगर की कोशिकाओं की गहराई से रासायनिक जांच पड़ताल करके यह जानने की कोशिश कर रहे हैं, कि वह कौन सा रसायन है, जो कैंसर पनपाता है। एक बार यह रसायन पकड़ में आ गया तो मनुष्य को जिगर के कैंसर से मुक्ति मिलने में दौर नहीं लगेगी। -सिल्की ग्रोवर (प्रैसवार्ता)
Monday, November 16, 2009
जानवर भी दिखाते हैं इलाज का रास्ता
दुनिया के कुछ जीवों में मौजूद खूबियां चिकित्सकों के लिए वरदान साबित हो रही है। दरअसल हम, जिन्हें खूबियां कह रहे हैं, वे खामियां है। उदाहरण के तौर पर आर्माडिलों नामक प्राणी मनुष्य के अलावा एकमात्र ऐसा जीवन है, जिसे कुष्ठ रोग सताता है। जंगल में रहने वाले पांच में से एक आर्माडिलों में एक कुष्ठ रोग के जीवाणु पहले पनपते देखे गए हैं। इस रोमांचारी तथ्य के जीवाणुओं की कमी कभी नहीं रहती। प्रयोग के लिए आर्माडिलो की देह में कुष्ठ रोग के जीवाणुओं को प्रवेश करा दिया जाता है। यहां के जीवाणु बड़ी तेजी से बढ़ते पनपते हैं। लगभग एक वर्ष के भीतर ही आर्माडिलो सुस्त पडऩे लगते हैं। इसके जिगर करके वैज्ञानिक इन पर भांति-भांति की दवाओं और टीकों का असर देखते हैं। इन्हीं की मदद से वे टीके भी बनाए गए हैं, जिनका भारत समेत दुनिया के कई देशों में लाखों लोगों पर परीक्षण हो रहा है। जापान के कुछ सफेद खरगोशों में एक ऐसे जीन की पहचान की गई है, जो उनकी देह में खतरनाक कोलेस्ट्राल की मात्रा तीन सात गुनी ज्यादा होती है। ये बच्चे किशोरावस्था में पहुंचने से पहले ही दिल के दौरे का शिकार होकर चल बसते हैं। असाध्य समझे जाने वाले इस दुर्लभ रोग की भलीभांति समझने और इसका ईलाज ढूंढने में ये खरगोश वैज्ञानिकों की भारी मदद कर रहे हैं। समुद्र में रहने वाली एक भारी-भरकम मछली मधुमेह का इलाज खोजने वाले वैज्ञानिकों की सहायता कर रही है। कोई सत्तर पोंड वजन वाली इस मछली को माकफिश के नाम से जाना जाता है। इसकी देह में आइलेट आफ लैगर हैंस नामक विशेष कोशिश समूहों की संख्या में असाधारण रूप से ज्यादा होती है। इसका काम कुछ खास हार्मोन भी शामिल है। जिसकी कमी यही रोग मधुमेह के नाम से जाना जाता है। मनुष्य समेत लगभग सभी स्तनधारी प्राणियों में ये विशेष कोशिकाएं काफी कम संख्या में अग्रन्याशय में मौजूद रहती है। परन्तु माकफिश में ये पेट के भीतरी ऊतकों से चिपकी रहती है और इनकी संख्या बीस से चालीस गुना ज्यादा होती है। माकफिश से इन कोशिकाओं को भारी संख्या में प्राप्त करके वैज्ञानिक मधुमेह के राज खोलने की कोशिश कर रहे हैं। मैक्सिकन सैलामेंडर नामक एक दस इंची जीव हमारे दिल की गुत्थियां सुलझाने की कोशिश कर रहा है। वैज्ञानिकों को यह जानकर बड़ा अचरज हुआ कि यदि सैलामेंडर के भ्रूण के पनपते दिल की कोशिकाएं अलग करके परखनली में नमक के घोल में डाल दी जाएं और इसमें कुछ खास वृद्धिकारक रसायन मिलाएं जाएं तो कोशिकाओं की बढ़वार तथा बंटवारा सामान्य रूप में परखनली में ही होने लगता है। कुछ ही दिनों में परखनली में भरा-भूरा दिल धड़कने लगता है। पर इसके विपरीत मनुष्य में दिल का दौरा पडऩे पर जो कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, वे दोबारा नहीं पनपती। यही वजह है, कि दिल का दौरा पडऩे पर अकसर रोगी की मृत्यु हो जाती है। वैज्ञानिक विविध प्रयोगों द्वारा सैलामेंडर के दिल की कोशिकाओं का राज जानने में जुटे हैं जो इन्हें नया जीवन प्रदान करता है। यदि यह राज खुला तो दिल के दौरे से मरने वालों की तादाद काफी घट जाएगी। वुडचक नामक साही जैसे छोटी जीव के जरिए वैज्ञानिक जिगर के कैंसर के राज जानने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल देखा गया है, कि जो लोग हेपेटाइटिस बी वायरस (पीलिया उत्पन्न करने वाला) का संक्रमण अधिक दिनों तक मौजूद रहता है, उनसे जिगर का कैंसर पनपने की संभावना बहुत प्रबल होती है। वुडचक में भी ठीक ऐसा ही होता है। हेपेटाइटिरा बी वायरस से संक्रमित वुडचक चार पांच साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते जिगर के कैंसर से ग्रस्त हो जाते हैं। वैज्ञानिक इनके जिगर की कोशिकाओं की गहराई से रासायनिक जांच पड़ताल करके यह जानने की कोशिश कर रहे हैं, कि वह कौन सा रसायन है, जो कैंसर पनपाता है। एक बार यह रसायन पकड़ में आ गया तो मनुष्य को जिगर के कैंसर से मुक्ति मिलने में दौर नहीं लगेगी। -सिल्की ग्रोवर (प्रैसवार्ता)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment