नई दिल्ली(प्रैसवार्ता) सुप्रीम कोर्ट ने 1967 उपरांत हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से डिग्री, डिपलोमा या सर्टिफिकेट लेने वालों पर आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाते हुए इस द्वारा जारी सभी प्रमाण पत्रों को अवैध करार दिया है। इन प्रमाण पत्रों के सहारे आयुर्वेदिक की प्रैक्टिस कर रहे है चिकित्सकों के लिए यह एक बड़ा झटका है। जस्टिस डा. बी.एस. चौहान और स्वतंत्र कुमार की बैंच ने दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा के आयुर्वेद चिकित्सों की याचिका को खारिज करते हुए उक्त निर्णय सुनाया है। इन चिकित्सकों ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षा पास की थी, परन्तु यह आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए 1970 में अधिसूचित मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। बैंच ने अपने निर्णय में कहा, ''बिना वैद्य योग्यता, डिग्री या डिपलोमा के अकुशल, अपंजीकृत व अनधिकृत चिकित्सकों को रोगियों के शोषण की अनुमति नहीं दी जा सकती। संस्थान ने इन लोगों को न ही छात्र के रूप में भर्ती किया और न ही उन्हें औपचारिक शिक्षा दी। बिना मान्यता का यह संस्थान इन लोगों की बुनियादी योग्यता से भी वाकिफ नहीं है। 1970 के कानून में निर्धारित योग्यता के बिना किसी भी व्यक्ति को मैडीकल प्रेक्टिस करने की अनुमति नहीं दी गई है। ऐसे में इन लोगों पर आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने पर पाबंदी गलत नहीं है।
Wednesday, June 2, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment