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Friday, November 13, 2009

सुर सम्राट:कुंदनलाल सहगल

स्वर सम्राट सहगल के इस स्मरण पर्व पर उनके साथ हुई अपनी पहली और आखिरी मुलाकात आज भी मुझे बेखूबी याद है। चौथे दशक के मध्य लखनऊ में संपन्न अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन में उनसे मेरी वह भेंट हुई थी। तब मेरे बीस बसंत भी पूरे नहीं हो पाये थे, लेकिन तब भी मैं उनका दीवाना बन चुका था। उन्हीं दिनों भारतीय फिल्मों के मूर्धन्य छायाकार कृष्णगोपाल का भी लखनऊ आना हुआ। हम लोगों के साथ उनके पारिवारिक संबंध थे। अचानक एक शाम घर पर आकर उन्होंने बताया कि अपने मित्र कुंदनलाल सहगल के आमंत्रण पर वह उस संगीत सम्मेलन में एक श्रोता की हैसियत से शिरकत करने जा रहे हैं और अगर मैं चाहंू तो उनके साथ वहां चल सकता हूं। मेरे लिए उनका यह कहना किसी मुंह मांगी मुराद से कम नहीं था। सहगल मेरे लिए किसी देवपुरूष से कम नहीं थे। बालम आय बसो मोरे मन में, तड़प बीते दिन रैन और प्रेम का है इस जंग में पंथ निराला जैसे उनके गीत हम नवयुवकों के लिए तब तक अमृतवाणी के पर्याय बन चुके थे और उनको गुनगुनाते हुए हमारे मन को तृप्ति नहीं मिलती थी। उस आमंत्रण को अपने लिए मैंने एक वरदान माना और आनन फानन में तैयार होकर उनके पीछे हो लिया। सच कहूं तो नवाब वाजिद अली शाह द्वारा निर्मित लखनऊ की ऐतिहासिक सफेद बारादरी के प्रांगण में पहुंच कर, जब मैंने पहली बार सहगल को देखा, तो मुझे विश्वास ही नहीं हो पाया कि रूपहले पर्दे पर अपने लाखों प्रशंसकों का मन मोहने वाले स्वर सम्राट वहीं है, उन पर नजर पड़ते ही के.जी. चाचू ने उनको कुन्दनभाई के नाम से जब संबोधित किया और फिर सहगल ने जिस गर्मजोशी के साथ उन्हें अपने आलिंगन में आबद्ध कर डाला, उसे देखकर मेरे सम्मुख संदेह का कोई प्रश्र नहीं बच रहा था। मुझे याद है, सहगल की तबीयत उस दिन कुछ खराब थी। इसी से सम्मेलन के उस सत्र में इंकार कर दिया था। इस आश्वासन के साथ कि अगले दिन वह श्रोताओं का मनोरंजन करेंगे। बाद में संयोजकों के अत्याधिक अनुनय विनय पर अपने एक दो गीत सुनाने के लिए वह तैयार हुए और मंच पर आकर शायद कोई पक्का राग अलापना भी उन्होंने शुरू कर दिया, लेकिन जब श्रोतागण फिल्मी तर्ज पर हल्के गानों की फरमाईश करने लगे, तो सहगल अचानक यह कहते हुए मंचस्थल से बाहर निकल आये कि वह पेशेवर गायक नहीं है और उन लोगों की फरमाईशों को पूरा करना उनके लिए सहज संभव नहीं है। किंचित अस्वस्थ होते हुए भी सहगल उस समय गुस्से से कांप रहे थे और उनके लाल चेहरे को देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था, कि दशर्क-श्रोताओं के व्यवहार से उनके मन को कड़ी ठेस पहुंची है। मुझे याद है, उर्दू के मशहूर अफसाना-निसार सआदत हसन मन्टो भी उन दिनों लखनऊ आये हुए थे और सम्मेलन स्थल में हम लोगों के बराबर वाली कुर्सी पर आसीन थे। सहगल को जब बाहर जाते देखा तो, हम भी उनके पीछे-पीछे हो लिये। दर्शकों की भीड़ को हटाने की कोशिश करते हुए मन्टो जब सहगल के पास पहुंचे, उस समय भी सहगल का गुस्सा शांत नहीं हो पाया था। मैं यहां पर एक गाना भी नहीं सुना सकता। अपने आसपास जमा हुए लोगों से वह कह रहे थे यह संगीत सम्मेलन है, या भांडो का तमाशा? और फोरन ही मन्टो और के.जी. चाचू के हाथों को थामते हुए उन्होंने कहा था, चलो जी, कहीं बाहर घूमे चल कर, यहां एक मिनट भी मैं नहीं ठहर सकता। के.जी. चाचू ने फौरन ही एक तांगे को आवाज दी थी और हम चारों उस पर बैठकर गोमती की तरफ निकल पड़े थे। मंकी ब्रिज तक पहुंचते पहुंचते सहगल का गुस्सा शांत हो चुका था और वह हम लोगों से कह रहे थे, मैंने बुरा किया, जो वहां से चला आया। आखिर उन बेचारों की क्या गलती थी? नहीं मुझे वापिस लौटना चाहिए और यह कहते कहते वह तांगे को बारादरी की ओर मुडऩे का आदेश दे ही बैठे थे, लेकिन बारादरी पहुंचने पर पता चलता कि सहगल के निकलने के बाद वहां उपस्थित जनता अचानक ही इतनी आक्रमक हो उठी थी, कि संयोजकों के सम्मुख उस सत्र का समापन करने के अतिरिक्त कोई अन्य पर्याय ही शेष नहीं बच पाया था। वहां से किसी दूसरी जगह जाने के लिए हम लोग तांगे पर ही चढ़े ही थे, कि सहगल मुझसे पूछ बैठे थे, बरखुदार, यहां मालीखां के नाम से कोई सराय है? हां है तो। मैंने जवाब दिया, लेकिन मुझे समझ में नहीं आ पा रहा था, कि उस मौहल्ले से आखिर उनका क्या सरोकार है, मालीखां की सराय पुराने लखनऊ, चौक और रानी कटरे से भी आगे एक बहुत ही निम्रवर्गीय मोहल्ला माना जाता था, उन दिनों और सहगल का उससे संबंध हो सकता है। यह सचमुच समझ में आने वाली बात नहीं थी। वहां आपको किसी से मिलना है क्या? मैंने फिर पूछा। हां, वहां जालंधर का मेरा एक दोस्त रहता है। गर्मी में कुल्फिया और सर्दी में माल मक्खन बनाता है। पिछली बार जब उससे मुलाकात हुई थी, तो बोला था, कि लखनऊ आने पर मेरे डेरे पर जरूर आईये। सो उसी से मिलने वहां जाना चाहता हूं। फिर कुछ देर बाद हंसते हुए बोले थे, तुम लोगों को मेरे साथ वहां चलने में अगर कोई एतराज हो तो मुझे वहां पहुंचा कर वापस चले आना। मैं तुम लोगों को अपने साथ नत्थी कर बेकार की जहमत नहीं दूंगा और हमारा तांगा खरामे खरामे मालीखां की सराय के लिए चल निकला। कैसरबाग उसने पार किया, रोशनुदौला की कचहरी को पीछे छोड़ा, गोलागंज के चौराहे पर क्षण भर के लिए घोड़े को पानी पिलाने के लिए रूका और फिर डयौढी आगामीर, शाहमीना, गोल दरवाजे, कोनेश्वर महादेव और कालीचरण स्कूल होते हुए आखिर सराय मालीखां पहुंच ही गया। वही सहगल के उस अनोखे दोस्त का डेरा था। इस बीच सहगल किसी हिचक या तकल्लुफ हमारे तांगे वाले से बाते करते रहे थे। कुछ इस तरह जैसे वह खुद भी उसी के तबके के हो। अठन्नी महीने की खोली में रहकर चवन्नी रोज पर अपना अपने बीवी बच्चों का पेट पालने वाले, गरीबी ही जिसका पेशा हो और भगवान पर विश्वास ही जिसका अकेला धर्म और ईमान। घंटाभर तो लगा होगा, हम लोगों को सहगल के उस साथी की कोठरी को ढूंढने में और जब उससे भेंट हुई, तो उसके चतुर्थाश से कम सहगल ने उसे अपने गले नहीं लगाया होगा। अजीब दृश्य था और अजीब समां। सिर्फ हम लोग ही नहीं, आसपास के सब मजदूर इक्के तांगे वाले और कुजड़े कबाड़ी उन दोनों की इस अदभुत मिलन को देखकर आश्चर्यचकित थे, राम भी क्या भरत से इसत तरह मिले होंगे और फिर तो जब हम लोग वहां जमे तो सारी रात बीत गई और हम लोगों को पता भी नहीं लग पाया कुल्फी निमिष वाले की पत्नी नेरोट साग बनाया और हम सबने गपशप करते हुए उससे अपने उदर भरे रूक रूक कर, मजा लेते हुए सहगल और उनके उस दोस्त की धमाचौकड़ी के बीच। सहगल की मस्ती देखने का मेरा वह पहला मौका था। एक ऐसी मस्ती, जो शायद देवलोक के वासियों के लिए भी काल्पनित वस्तु हो। खाने पीने के बाद सहगल ने अपनी तान छेड़ी और उनकी सारी बीमारी अचानक हवा में काफूर हो गई। चार घंटे तक वह लगातार अपने गाने सुनाते रहे और अनेक श्रोता थे। आसपास के वही संगी साथी, जिन्हें हम लोग समाज के निचले तबके में शुमार करते हैं। जो गला हजारों रुपयों में आयोजित संगीत सम्मेलन में नहीं खुल सका था। वह वहां अयाचित रूप से चल निकला और हम लोग उसे देखते ही रह गये। सुबह साढ़े पांच बजे तक सहगल का गायन चलता रहा था और वहां से जब हम लोग सहगल को उनके होटल में छोडऩे के लिए सड़क पर निकले तो सफाई कर्मियों ने वहां झाड़ फेरना शुरू कर दिया था और मशकिये अपनी मशकों को लेकर उसे तर करने के लिए तैयार खड़े थे। -मनमोहित ग्रोवर (प्रैसवार्ता)

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