आवश्यक नोट:-प्रैसवार्ता का प्रैस मैटर छापते समय लेखक तथा एजेंसी के नाम के अक्तिरिक्त संबंधित समाचार पत्र की एक प्रति निशुल्क बजरिया डाक भिजवानी अनिवार्य है

Tuesday, November 17, 2009

दिव्य प्रेम का वास्तविक स्वरूप

दिल्ली(प्रैसवार्ता) समस्त ब्रह्माण्ड परमपिता परमात के शुद्ध एवम् दिव्य प्रेम की अभिव्यक्ति है। हमारे जीवन का मूल तथा अन्तिम लक्ष्य शुद्ध दिव्य प्रेम है तथा जीवन की सम्पूर्ण यात्रा एवम् गतिविधियां भी प्रेमयुक्त होनी चाहिये, ताकि हम मनुष्य जीवन के वास्तविक स्वरूप को समझ कसें तथा जी सकें, जिस के परिणामस्वरूप हमरे जीवन में प्रेम तथा आनन्द के पुष्प विकसित होकर मानवता की समस्त कालिमाओं को दूर करके धरती माता के जीवन को गरिमा प्रदान करें। इस लेख में दिव्य प्रेम के वास्तविक स्वरूप को व्यक्त करने का प्रयास किया जा रहा है। दिव्य प्रेम परमात्मा की सर्वोच्च तथा सर्वप्रथम अभिव्यक्ति है, यह आनन्द की घनीभूत स्थिति है। यह परम शुद्ध है, अति विशाल, गहन तथा असीम है। यह परम शांत है, कोई शिकायत नहीं करता, कोई मांग नहीं करता, न ही अपने आप को दूसरों पर आरोपित करता है। हमें सदा शुद्ध दिव्य प्रेम को अपने भीतर महसूस करना चाहिये तथा जीना चाहिये। इससे चेतना का सवर्तोमुखी विकास होता है। आप के शरीर के कण-कण में गहन स्थिर शांति, आनन्द तथा दिव्य प्रकाश उत्पन्न होंगे, जोकि एक वृद्धिशील प्रक्रिया है तथा आप असीम शक्ति को परिपूर्ण हो जायेंगे। हमें सदा याद रखना चाहिये, कि हम सब एक ही परम सत्ता की भिन्न-भिन्न आकृतियां है तथा प्रेम हमारा मूल स्वभाव है, हमें प्रयत्नपूर्वक प्रेममय जीवन जीना चाहिये। हमारे चेहरे पर सदा प्रेमभरी मुस्कान होनी चाहिये। प्रेम तथा आनंद मिश्रित मुस्कान हमारी जीवन शैली होनी चाहिये। हमें प्रेम के प्रति सम्पूर्णत: सच्चे होना चाहिये। प्रेम ऐसा कोमल माधुर्य है जिससे दिव्य संगीत एवम् नृत्य जन्म लेते हैं तथा सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का साम्राज्य स्थापित करते हैं। प्रे्रम एक ऐसी औषधि है जो समस्त रोगों का शमन करती है। सूक्ष्म शुद्ध शांत प्रेम की शक्ति से मृत्यु भी डरती है। हमें परमात्मा के शुद्ध प्रेम के सिहांसन को सदा अपने हृदय में आसीन रखना चाहिये तथा विकट से विकट परिस्थिति में भी प्रेम की दृढ़ पकड़ को ढीली नहीं करना चाहिये। भेदभाव, विरोध, ईष्र्या, द्वेष, घृणा आदि प्रवृत्तियों को प्रेम की शुद्ध ज्वाला में भस्म कर देना चाहिये। प्रेम संपूर्ण समर्पण है जिस की शुद्ध यज्ञीय अग्रि अहंकार, स्वार्थ, आसक्ति तथा निम्र इच्छाओं को सदा-सदा के लिये भस्मीभूत करके मनुष्य को दिव्य सौन्दर्य प्रदान करती है। शुद्ध प्रेम से हमें आत्म समर्पण द्वारा परमात्मा के प्रति अपने आप को खोलना चाहिये तथा परमात्मा के दिव्य गुण ज्ञान शक्तियां प्राप्त करके अपने व्यक्तित्व का निरंतर उत्थान तथा शुद्धिकरण करते रहना चाहिये। हमें सदा दिव्य प्रेम के गहन समुद्र में डुबकी लगाते रहना चाहिये तथा दिव्यता के अनमोल रत्न संग्रहित करके आत्मविकास करना चाहिये। उससे हमारे जीवन में चुम्बकीय शक्ति आ जायेगी जो दिव्य प्रेम की मूक क्रान्ति लायेगी। दिव्यप्रेम में बड़े से बड़े आतंकवाद को तिरोहित करने की शक्ति है। इसमें सम्पूर्ण सुरक्षा तथा आत्मविश्वास है। यदि राजनेता ''फूट डालो तथा राज्य करोÓÓ की नीति को छोड़ कर दिव्यप्रेम के मार्ग को अपनायें तो उनके जीवन में अभूतपूर्व रूपान्तरण आ जायेगा, जो समस्त वर्तमान समस्याओं का समाधान प्रदान करने की क्षमता रखेगा। यदि कुछ संख्या में लोग दिव्य प्रेममय जीवन जीना शुरू कर दें, तो राज्यसत्ता परिवर्तन सुनिश्चित है। शुद्ध प्रेम हमें यह शिक्षा देता है, कि सभी के भीतर एक ही परमात्मा है चाहे पापी हो या धर्मात्मा। हमें किसी की निंदा/आलोचना नहीं करनी चाहिये। अपने मन को शांत तथा निर्भीक रख कर सभी कर सभी से प्रेम करना चाहिये। परमात्मा का प्रेम अनन्त है, इसमें समस्त शक्तियों गुणों तथा ज्ञानों का निवास है, यह मनुष्य के जीवन को सम्पूर्णत: रूपान्तरित तथा शुद्ध करता है। हमें अपने भीतर दिव्य प्रेम की शुद्ध धारा को उत्पन्न करते रहना चाहिये तथा अपने कर्म एवम् व्यवहार द्वारा प्रेम को परिलक्षित तथा प्रसारित करते रहना चाहिये। परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है, हमें शक्ति तथा बुद्धि प्रदान करें, ताकि हमारा दिव्य प्रेम का वास्तविक स्वरूप बन जाये तथा सम्पूर्ण धरती प्रेम का जीवित विग्रह हो जाये। आने वाला युग शुद्ध दिव्य प्रेम का युग है, आओ हम सब मिलकर इस का सूत्रपात करें, दिव्य प्रेम की सरिता हमारे भीतर प्रवाहित हो। -श्री कृष्ण गोयल योगाचार्य

No comments:

Post a Comment

YOU ARE VISITOR NO.

blog counters

  © Blogger template On The Road by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP