जुए का व्यसन नया नहीं है। इसकी शुरुआत प्राचीन समय में हुई, परन्तु हर काल में धर्म शास्त्रियों ने इनका विरोध किया है। जुआ खेलने के पासे भारत में काफी पुराने अवशेषों की खुदाई से मिले है। इतिहासकारों का कहना है कि ईसा से लगभग 3 हजा
र वर्ष पूर्व के समय के भी ऐसे पास मिल चुके हैं। ऋग्वेद के एक शोक में लिखा है कि जुआ नहीं खेलना चाहिए और मेहनत करके आजीविका चलानी चाहिए। उस समय के कुद और साक्ष्य से यह स्पष्ट होता है, कि धार्मिक और अच्छे लोगों को छोड़कर जुए का व्यसन उस समय प्रचलित था। महाभारत में भी जुआ खेलने के व्यसन का काफी उल्लेख मिलता है। जुआ खेलना अच्छा तो कभी नहीं माना गया, परन्तु कुछ काल में यह चुनौती माना जाता है। ललकारने पर युधिष्ठिर जैसे धर्मात्मा पुरूष भी विचलित हो जाते थे। शायद उस काल में जुए की ललकार को एक ही समझा गया, परन्तु यह समझने वालों की समझ का फर्क था। महाभारत में ही आगे कृष्ण का कथन है, कि जिसमें वो कहते हैं कि दुर्योधन की जिस सभा में चुनौती दी गई थी, उसमें अगर वे उपस्थित होते तो जुए के अनेक दोषों का वर्णन करते हुए युधिष्ठिर को जुआ खेलने से मना करते और उस दिन जुआ नहीं खेला जाता तो महाभारत का युद्ध ही नहीं होता और पूरा इतिहास कुछ और ही होता। कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों में यह उल्लेख है, कि विवाह के अवसर पर दुल्हन की सखियां वर को जुए के लिए ललकारती थीं और विभिन्न प्रकार की बजरियां रखकर उसे छकाने का भरसक प्रयत्न करती थीं। कुछ वर्गों में आज भी विवाह के उत्सवों में वर-वधू की आपस में संगे संबंधियों के समक्ष औपचारिक रूप से जुआ खेलने की परम्परा निभाई जाती है। इग्लैंड में पुराने समय में कुलीन पुरूष प्राय: बड़ी राशी से जुआ खेलते थे। ऐसे कई लोगों में ताश खेलने एवं पास फैकने का ज्ञान होना उतना ही महत्वपूर्ण था, जितना पार्टी में नृत्य करना एवं घुड़सवारी कला में माहिर होना। फ्रांस में बड़ी राशि से जुआ खेलने का शौक पुरूषों के साथ-साथ कुलीन परिवारों की महिलाओं में भी था। लोग इसके लिए अपनी अचल सम्पतियों तक गिरवी रख देते हैं। कुलीन वर्ग में यह शौक व्यापारी वर्ग में फैला और तत्पश्चात यह बुराई समाज में व्याप्त हो गई। जुआ भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में ही कुख्यात रहा है मिस्र में ईसा से 3500 वर्ष पूर्व की कलाकृतियों पर ऐसे बहुत से दृश्य मिलते हैं, जिनमें व्यक्तियों को जुआ खेलते हुए दिखाया गया है। कुछ भी हो, पर कोई व्यक्ति हमारे धार्मिक ग्रंथों से एवं अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह तथ्य नहीं निकाल सकता है कि जुआ खेलने कभी शुीा माना गया हो। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जुआ खेलने के बारे में एक अध्याय है, जिसके अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है, कि जो ठगी आदि कर्मों से आजीविका कमाते हैं, प्राय: ऐसे लोग ही जुआ खेलते थे। उनका कहना है कि शासन का यह कर्तव्य है, कि वह जनता एवं विशेष रूप से युवा वर्ग को जुए जैसे व्यसन से बचाए। सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलने वालों पर 12 पण जुर्माना किया जाता था। ऋग्वेद में जुए की काफी भत्र्सना की गई है, इसके अलावा मनुस्मृति ने इसे मनुष्य की दस बुरी आदतों में दूसरे नंबर की बुरी आदत माना है। इस संहिता के अनुसार यदि कोई राजा जुआ खेलता है तो, उसका परिणाम उसके राज्य का अंत होता है। राजा का यह कर्तव्य था, कि वह अपने मंत्रियों में सर्वप्रथम यह देखे कि कोई मंत्री प्रजा को जुए के व्यसन से दूर रहने की शिक्षा दें, क्योंकि उसके अनुसार जुए के अड्डे पर जाना प्रारंभ करने के बाद सभी बुरी आदतें अपना स्थान बना लेती हैं। आधुनिक काल में जुए का व्यसन एक से एक नए परिप्रेक्ष्य में है, चुनाव परिणाम एवं क्रीड़ा प्रतियोगिताओं के परिणामों पर भारी राशि के जुए के रूप में निवेश ने 'केसिनोÓ कासे को भी पीछे छोड़ दिया है। -मनमोहित (प्रैसवार्ता)

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