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Thursday, November 26, 2009

असतो मा सदगमय: तमसो मा ज्योतिर्गमय

भारत में अतिप्राचीन व महान संस्कृति को जीवित रखने वाले त्यौहारों की श्रृंखला में दीपावली पर्व का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यह पर्व न सिर्फ हमारे देश भारत में बल्कि समूचे विश्व में अलग-अलग नामों से तथा अपने-अपने सुंदर ढंग से मनाया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या को प्रतिवर्ष करोड़ों भारतीय असख्ंय नन्हें दीप प्रज्जवलित करके अंधकार को चुनौती देते हैं। जगमगाती दीपावली में दीपमालिका की आभ असतो मा सदगमय तमसो मा त्योतिर्गमय का वैदिक संदेश स्मरण करते हुये असत्य से सत्य की ओर तक से प्रकाश की ओर अज्ञान से ज्ञान की ओर दृढ़तापूर्वक कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। प्रकृति का नियम है कि समाज के कल्याण के लिए जो अपना बलिदान देते हैं वह सदेव दीपक के उज्जवल धवल प्रकाश की तरह अमर होकर जगमगाते हैं और जो समाज को क्षति (हानि) पहुंचाने के लिए भभकते हैं वह आग की तरह बुझा दिये जाते हैं। दीपावली प्रकाश पर्व इन्ही पुनीत भावनाओं व अंधकार निराशा के बीच प्रकाश एवं सत्यसाहस की प्ररेणा पुंज तथा त्याग बलिदान का स्मरणीय प्रतीक पर्व है। ''बने बाती सा यह तन मेरा, रहे तेल जैसा ये मन मेरा, जलू और जग को प्रकाश दूं, दिये जैसा हो जीवन मेरा दीप+आवली (दीपावली) वास्तव में दीपक तेल और बाती की अनूठी एकता और उनके पुण्य बलिदान का प्रतीक स्मरणीय पर्व होने के साथ-साथ असत्य और अज्ञान रूपी अंधकार पर सत्य और ज्ञान रूपी प्रकाश की जय विजय का पर्व भी है। दीपावली के रिमझिमाते झिलमिलाते प्रकाश में अनेक गूढ़ अर्थ प्रकाशित होकर चमकते हुए समाज व राष्ट्र को निरंतर नई पे्रेरणा चेतना व शिक्षा प्रदान करते हैं, जिस प्रकार दीपक एक अकेला होकर भी समस्त प्रकार के अंधकार को काल का ग्रास बना लेता है और अपने प्रकाश द्वारा जग को प्रकाशित कर बुझने के उपरांत भी इतिहास में महाभारत के कुमार अभिमन्यु की भांति अमरत्व प्राप्त कर लेता है उसी प्रकार हमें भी समाज की अनेक प्रकार बुराईयां अधिकार को दीपक की भांति ज्ञान, बल की शक्ति से निर्भय निर्बाध गति से समाप्त करना चाहिए, राष्ट्र में छायी यह बुराई रूपी घनघोर काली अमावस्या जिस दिन हमारी दीपक तेल बाती की अटूट एकता व उनके बलिदान की तरह हमारे राष्ट्रीय त्याग संघर्ष रूपी दीपक के प्रकाश से भस्म हो जाएगी, उसी दिन दीपावली और उसकी सार्थकता सच्चे अर्थों में सिद्ध होगी, लेकिन तब तक। ''सदभावों के फूलों को मुरझाने से बचाये रखिए, खंडित ना हो मानवता, एक दीप जलाये रखिए।-विशाल शुक्ल ऊँ (प्रैसवार्ता)

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