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Tuesday, November 17, 2009

बाल मजदूरों का शोषण बदस्तूर जारी-प्रशासन खामोश

जयपुर(प्रैसवार्ता) एक ओर राज्य सरकार 14 नवंबर को बाल दिवस (नेहरू जयंती) पर देश के आने वाले कर्णधारों मासूम फूलों से बच्चों के बचपन की बातें समारोह करके इतिश्री कर लेती हैं, वहीं दूसरी तरफ छोटया, राजू, कालू, लीम, दीनू जेसे बाल श्रमिकों को बेलगाम शोषण बदस्तूर जारी है, जहां इनकी सिसकियां सुनने वाला कोई हीं होता। सरकार ऐसे कानून लागू ही क्यों करती है, जिनकी धज्जियां उड़ायी जाती रहती हैं। इस तरह के कानूनों से सरकारी कागजों की बर्बादी तो होती है, इसके अलावा प्रशासन पर नाजायज बोझ भी बढ़ता है। उदाहरण के लिए बाल श्रम कानून को ही ले लीजिए, राजस्थान प्रदेश में इस कानून की कोई अहमियत नहीं है। आम जनता की बात छोडि़ए, इस कानून को लागू करने वाले ही इसकी सरेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। यह कानून 10 अक्तूबर से लागू किया गया था, लेकिन सात महीने बीत जाने के बाद भी अब तक यह प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाया है। हकीकत यह है कि कलेक्टर परिसर, जिला सत्र न्यायालय परिसर, शासन सचिवालय, छोटे-बड़े अस्पताल सहित अनेक सरकारी कार्यालयों में संचालित कैन्टीन सहित विभिन्न अन्य स्थानों पर इस कानून का माखौल उड़ाया जा रहा है। सचिवालय, कलेक्टर, जिला सत्र न्यायालय में तो लगता ही नहीं कि वहां यह कानून लागू भी है। इस कानून को लागू करते वक्त सरकार ने ऐलान किया था, कि इसकी पालना नहीं करने वालों को दंडित किया जायेगा। एक-दो दिन तो बड़े जोर से प्रचार हुआ बाद में इसे लागू करने वाले ही भूल गये। आज तक राज्य में इस कानून को तोडऩे पर कितने लोगों को दंडित किया गया? जब कानून की कोई अहमियत ही नहीं है, तो उसके लागू करने का औचित्य क्या है, सरकार की मंशा भी इसकों मन से लागू करने की नहीं है। वह केवल औचारिकता पूरी कर कागजों को काले कर रही है, कागज काले करना सरकार की परम्परा है। फैक्ट फाइल: फिर क्या करेंगे इन बाल श्रमिकों के नियोक्ताओं का कहना है कि इन्हें अगर यहां से हटा दिया जायेगा तो, ये लोग भूखे मर जायेंगे। समाज में इनके लायक रोजगार के अवसर नहीं है और पुर्नवास की भी कोई व्यवस्था नहीं है। बच्चे है या व्यस्क मजदूर: इन जगहों पर बच्चे एक ही परिसर में घूम-घूम कर रोजाना 10-15 किलोमीटर तक की पद यात्रा करते हैं, वे बर्तन माजते हैं और घंटों भट्टी या चूल्हें के पास बैठकर तपती गर्मी में भी सैकड़ों रोटियां रोज सेकते हैं। बाल श्रमिकों का औसत विवरण
1. सरकारी अधिकारियों के घर 14 फीसदी 2. व्यापारी के घर 18 फीसदी। 3. ठेले पर 21 फीसदी 4. फुट पाथ पर बूट पॉलिश 20 फीसदी। 5. कचना वीनना 17.5 फीसदी। 6. होटल में काम 9.5 फीसदी।
क्या कहना है: राज्य के श्रम आयुक्त ने प्रैसवार्ता के पूछने पर बताया कि राजय में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को घरों, होटलों, ढाबों, मनोरंजन केन्द्रों आदि में काम पर रखने की पाबंदी लगा दी गई है। सरकार जैसा निर्देश देगी, सर्वे आदि से बाल श्रमिकों की संख्या पता करेंगे, शिकायत आने पर कानूनी कार्यवाही भी की जायेगी।
क्या है कानून मं नया: भारत सरकार के राजपत्र के अनुसार बाल श्रम अधिनियम 1986 की धारा 4 के तहत पूर्व में घोषित तेरह कार्यों के साथ दो और कार्यकाल श्रमिक कार्यों के साथ दो और कार्यकाल श्रमिक में शामिल किए गए हैं। बच्चों को घरेलू श्रमिक या नोक बनाना, ढाबों, रेस्त्रा, होटल, मोटल, चाय की दुकानों, रिसोर्ट या अन्य मनोरंजन केन्द्रों में बच्चों का नियोजन।
क्या होगी सजा: अब 14 साल से कम आयु के बालक से काम और उसकी तय मजदूरी का पता चलने पर अभियुक्त को तीन से बारह माह के कारावास, दस से बीस हजार रुपये जुर्माना या दोनों सजाओं का प्रावधान है।

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