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Thursday, November 26, 2009

दर्द का रिश्ता निभाने वाली कलाकार-मीना कुमारी

हिन्दी सिनेमा की एक बहुत बड़ी सुलझी हुई अदाकारा मीना कुमारी का जन्म 1935 में मास्टर अली बक्ष के घर हुआ। बक्ष भी अदाकारी करने के रसिया थे, परन्तु उन्हें फ़िल्मी जगत में असफलता का सामना करना पड़ा, जिससे उनका दिल टूट गया और परिवार गहरे आर्थिक संकट में फंस गया। परिस्थितियां ऐसी हो गई कि उन्हें अपनी साढे तीन वर्षीय बेटी मजहबी उर्फ मीना कुमारी को लेकर फिल्मों में काम ढूंढने के लिए एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो तक के चक्कर काटने पड़े। बक्ष की भाग दौड़ रंग लाई और मीना को निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म ''लैदर फैस'' में बाल कलाकार के रूप में काम करने का अवसर मिल गया। इन फिल्म में मीना के अभिनय की भरपूर प्रशंसा हुई और धीरे-धीरे उसे उच्च फिल्मों में काम करने का निमंत्रण मिलना शुरू हो गया। चार से दस वर्ष की आयु आते-आते मीना ने बाल कलाकार के रूप में 8 फिल्मों में काम किया, जिसमें बहिन, कसौटी और प्रतिज्ञा इत्यादि प्रमुख थी। मीना को फिल्म जगत में लगातार काम मिलता रहा- जिससे परिवार की आर्थिक दशा में सुधार होता गया। बतौर सह नायिका भगरूर, सनम, पीया घर जा और बिछड़े बालक फिल्में कौन उपरांत 15 वर्ष की आयु में मीना की पहली फिल्म बतौर नायिका रिलीज हुई, जिसका नाम था, श्री गणेश महिला (1950) इसके बाद तो उसने ''फुटपाथ'', ''आरती'', ''दिल एक मंदिर'', साहिब-बीबी और गुलाम, बैजू बावरा, चिराग कहां, रोशनी कहां, शारदा, फूल और पत्थर जैसी फिल्मों की झड़ी लगा दी। ''पाकीजा'' में मुख्य भूमिका निभाकर मीना ने अपनी अदाकारी का शिखर दर्शकों के दिलों पर छाप बना दिया। 1951 में एक सड़क हादसे में मीना बुरी तरह घायल हो गई और उसे पांच मास तक अस्पताल में रहना पड़ा। इस दौरान फिल्म निर्देशक जनाब कमाल अमरोही ने उसकी देख भाल की, परिणाम स्वरूप दोनों में मुहब्बत हो गई और 4 फरवरी 1952 को दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। इसके उपरांत मीना कुमारी ने और ज्यादा परिश्रम किया और ''बंदिश'', परिणीता, जहारा, कोहिनूर, नौ लक्खा हार, किनारे-किनारे जैसी फिल्में हिन्दी सिनेमा जगत को दी। फिल्मों में मीना निरंतर सफल जरूर होती गई, परन्तु विवाहिता जीवन में असफलताएं निरंतर पीछा करती है। स्थिति ऐसी बन गई कि पति-पत्नी के अलग होने की नौबत गई और 5 मार्च 1964 को दोनों अलग-अलग हो गए। जिंदगी के गमों को भूलने के लिए मीना ने शराब पीनी शुरू कर दी। इसी बीच उसकी मित्रता गुलजार, धमेन्द्र सादन कुमार से भी हुई, मगर सच्चा प्यार किसी से नहीं मिला। सच्चा हमदर्द सच्चा साथी तलाश कर रही मीना कुमारी ने 31 मार्च 1972 को मौत को गले लगा लिया। कठिनाईयों से जिंदगी शुरू करने वाली और कठिनाईयों से ही जिंदगी समाप्त करने वली थी, महान कलाकार मीना कुमारी, जो आज भी अपने प्रशंसकों के बीच स्थान बनाए हुए है। परमजीत सिंह (प्रैसवार्ता)

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