लखनऊ(प्रैसवार्ता) उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे कई ग्रामों में कौल आदिवासी रहते हैं और उनकी एक प्रथा के अनुसार दुल्हन को ससुराल जाने से पहले सारी रात नाचना पड़ता है। कौल समुदाय में यह ''उल्लास पर्व" के नाम से जाना जाता है। नव विवाहित दुल्हन अपने पति घर में जब पहली बार कदम रखती है, तो उसके दिल में उठ रहे बहुत से अरमान उसे दबाने पड़ते हैं और सबके सामने नाचना पड़ता है। सांय होते ही नाचने वाली जगह को सजाया जाता है और वहां रोशनी का प्रबंध किया जाता है। जगह-जगह पर मालाएं '' कोल दहका" या ''कोल दहकी" के लिए लटकाई जाती है। इस अजीब '' कोल दहका" की शुरुआत रात्री आठ बजे होती है, जो सूर्य निकलने से पहले समाप्त होती है। दुल्हन थकावट के चलते चूर-चूर होने पर नृत्य समाप्ति से पूर्व एक गीत गाती है, जिसका अर्थ होता है, ''हे-ईश्वर, यदि अगले जन्म में मुझे फिर नारी बनाये, तो कौल जाति में पैदा न करना।" कोल जाति की प्रथा अनुसार दुल्हन के इस नृत्य को उसका पति, ससुर, सास तथा परिवारजन देखते हैं। उल्लास में आकर कई बार दुल्हन की ननदें भी उसके साथ नाचती हैं। दूसरे दिन वहां सब कुछ बिखरा रहता है, जो याद दिलाता है कि दुल्हन यहां रात भर नृत्य करती रही थी।
Tuesday, June 1, 2010
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