चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा राज्य के जिला सिरसा के उपमंडल डबवाली के ग्राम पन्नीवाला मोरिकां तथा मेवात जिला के ग्राम गंगवानी में सरपंची की नीलामी होने से विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव सामने आये हैं, जिन्होने प्रशासन की मूकदर्शकता पर प्रश्र अंकित कर दिये हैं। क्या कोई योग्य पुरूष महिला अपनी योग्यता को चांदी के चंद सिक्कों की भेंट चढ़ा पायेगा, क्या सरपंचों की तरह विधायकों और सांसदों की भी नीलामी होगी, क्या मतदाताओं को उनके अधिकार से वंचित रखना उचित है, इत्यादि ऐसे सवाल उठ खड़े हुए हैं। खाप पंचायतों के अजब-गजब फैसलों के लिए चर्चित हरियाणा में अब पंचायती चुनाव दौरान लोकतंत्र से जुड़े नीलामी पद से संविधान व कानून को चुनौती मानते हुए हरियाणवी पंचायतों ने अब लोकतांत्रिक प्रणाली को बौना दिखाया है। लोकतांत्रिक प्रणाली के हनन के लिए दोषीगण पर कोई कार्यवाही का न होना प्रशासन पर मूकदर्शक बनने के आरोप हैं। ''प्रैसवार्ताÓÓ को मिली जानकारी अनुसार चुनाव आयोग किसी भी चुनाव के दौरान निस्पक्षता के साथ-साथ लोकतांत्रिक प्रणाली को बनाये रखने के लिए बकायदा खर्च सीमा निर्धारित करता है, लेकिन लाखों रुपये में बिक सरपंच फिर क्या है? खर्च सीमा के निर्धारण से ज्यादा खर्च लोकतंत्र के हनन के दायरे में है। सूत्र बताते हैं कि चुनाव आयोग इस तरह की घटनाओं पर नजर रखे हुए है। ऐसे धन बल के बलबूते पद करने वालों को बर्खास्त करने के साथ-साथ अपराधिक मामला दर्ज भी करवा सकता है। आयोग का मानना है कि अगर खर्च सीमा निर्धारित न हो, तो फिर गरीब, योग्य व्यक्ति चुनाव लड़ ही नहीं पायेगा, क्योंकि स्वच्छ व स्वस्थ माहौल में लोकतांत्रिक माहौल बनाने के लिए खर्च सीमा निर्धारित करेगा। हरियाणा राज्य से शुरू हुई इस नई परंपरा को यदि संजीदगा से न लिया गया, तो इसके परिणाम गंभीर होंगे। इस बेहद चिंतन पहलू को भले ही ग्रामीण समर्थन दे, मगर यह संविधान तथा कानूनी नियमों की दृष्टि से किसी अपराध से कम नहीं आंका जा सकता।
Tuesday, June 1, 2010
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